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विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान) ■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग ■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग ■ 2 त्रुटि  = 1 लव , ■ 1 लव = 1 क्षण ■ 30 क्षण = 1 विपल , ■ 60 विपल = 1 पल ■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) , ■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा ) ■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार) ■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) , ■ 7 दिवस = 1 सप्ताह ■ 4 सप्ताह = 1 माह , ■ 2 माह = 1 ऋतू ■ 6 ऋतू = 1 वर्ष , ■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी ■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी , ■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग ■ 2 युग = 1 द्वापर युग , ■ 3 युग = 1 त्रैता युग , ■ 4 युग = सतयुग ■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग ■ 72 महायुग = मनवन्तर , ■ 1000 महायुग = 1 कल्प ■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ ) ■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म ) ■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म ) सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l दो लिंग
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नई बदलाव करते विश्व में आर्टिफीसियल इंटेलीजेन्स की क्या संभावना है

नई बदलाव करते विश्व में आर्टिफीसियल इंटेलीजेन्स की क्या संभावना है नई बदलाव करते विश्व में आर्टिफीसियल इंटेलीजेन्स की क्या  संभावना है   दुनियाभर में AI यानी Artificial Intelligence को लेकर लोगों के बीच जॉब सिक्योरिटी को लेकर बहस छिड़ चुकी है. एआई के बढ़ते प्रभुत्व ने 'व्हाइट कॉलर जॉब्स' को भी इसकी जद में ला दिया है. हालांकि, इसे लेकर लोग दो मतों में बंटे हैं. एक का कहना है कि इससे नौकरियां धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगीं. वहीं, कुछ का कहना है कि AI लोगों के जीवन में कई मौके लेकर आने वाला है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या एआई भविष्य में नौकरियों की संभावनाएं पैदा करेगा या फिर नौकरियों के लिए खतरा बन जाएगा जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है AI सवाल उठ रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से किस तरह के काम लिए जा सकते हैं? दरअसल, एआई से हर तरह के काम लिए जा सकते हैं. चिंता इसी बात की है. अभी से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है. बहुत से ऐसे काम हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए ही हो रहे हैं. मसलन, सेल्फ ड्राइविंग कार आ रही है. गूगल मैप तो पहले से ही हमारी जिं

कामवासना भी एक उपासना, साधना है।

 कामवासना भी एक उपासना, साधना है। काम पूर्ति से दिमाग की गन्दगी निकलकर जिन्दगी सुधर जाती है। अगर इस ब्लॉग से पूरी बात या सार समझ नही आया हो, तो टिप्पणी करें। किस्सा ओर भी बढ़ सकता है। काम, जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। प्रत्येक प्राणी के भीतर रागात्मक प्रवृत्ति की संज्ञा काम है। वैदिक दर्शन के अनुसार काम सृष्टि के पूर्व में जो एक अविभक्त तत्व था वह विश्वरचना के लिए दो विरोधी भावों में आ गया। इसी को भारतीय विश्वास में यों कहा जाता है कि आरंभ में प्रजापति अकेला था। उसका मन नहीं लगा। उसने अपने शरीर के दो भाग। वह आधे भाग से स्त्री और आधे भाग से पुरुष बन गया। तब उसने आनंद का अनुभव किया। स्त्री और पुरुष का युग्म संतति के लिए आवश्यक है और उनका पारस्परिक आकर्षण ही कामभाव का वास्तविक स्वरूप है। प्रकृति की रचना में प्रत्येक पुरुष के भीतर स्त्री और प्रत्येक स्त्री के भीतर पुरुष की सत्ता है। ऋग्वेद में इस तथ्य की स्पष्ट स्वीकृति पाई जाती है, जैसा अस्यवामीय सूक्त में कहा है—जिन्हें पुरुष कहते हैं वे वस्तुत: स्त्री हैं; जिसके आँख हैं वह इस रहस्य को देखता है; अंधा इसे

शक्ति की उपासना ही अघोर की अपनी क्रिया है

     ब्रम्हांड की जो परा अपरा शक्ति है उससे जुडना ही अपने आप को जोड़ना ही योग है।सभी सूर्यांन्शियो को अपने क्षात्र धर्म के पताका तर आना चाहिए। हमारे देश में जो एक सौ आठ शक्ति पीठेंहैं।वह परा अपरा इसी विद्या के पाठशाला और उच्च विद्या के विद्यालय है।जिसे स्वयं शिव ने स्थापित किया था।जो शिव शिवा वंशजों को पूर्णत्व प्राप्त करने हेतु ही थे।तथा ग्यारह शिव लिंगो की स्थापना ब्रम्हवंशियो को वैष्णव विद्या ब्रम्ह विद्या को प्राप्त करने के केन्द्र स्थापित किए थे।पर अब विद्या शिक्षा दीक्षा का आडंबर मात्र रह गया है। धनोपार्जन हेतु लोग गुरु गद्दी तिकड़म से अपने लेते हैं।ऐसा में आचरण नहीं होता।सनातन बहुत सी विद्याओं का लोप हो गया है।अब विद्वानों द्वारा उन विद्याओं का शोध कर प्रगट करना अनिवार्य हो गया है। वैदिक मंत्रों के रहस्य को जाने शोध करें। प्रत्येक गांव तथा ब्लाक में एक पीठ स्थापित कर वहां पांच वर्ष से दस वर्ष के बच्चों को क्षात्रावास में प्राकृतिक परिवेश में रखकर उत्तम गुरुओ द्वारा संस्कारिक ्शारीरिक व्यवहारिक वआध्यात्मिक भाषाओ ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देनी चाहिए।योग का संयम नियम का प्रारम्भिक ज्

भैरव रहस्य

 [[[नमःशिवाय]]]                 श्री गुरूवे नम                            भैरव रहस्य    अनेक साधक भैरव को शिव का अवतार मानते दार्शनिक दृष्टि से यह कथन उसी प्रकार का है कि जिस प्रकार प्रणाम को विष्णु और रुद्र को शिव के रूप में समझा जाता है इस दृष्टिकोण में प्रत्येक साधक की है और प्रत्येक शक्ति का भगवती गुण की दृष्टि से इस भैरव शिव की प्रचंड शक्तियों के नायक है इन्हें उनके गुणों का नायक माना जाता है इनका रूप बड़ा भयंकर है किंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि जीव में स्थित यह गुण भी कार्य सिद्धि एवं मनोनुकूल ता प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है ब्रह्मांड में इनकी व्यापक सकता है इनके अनेक रूप हैं जैसे काल भैरव रूद्र भैरव बटुक भैरव आदि। इनकी साधना अर्धरात्रि में मां काली की साधना की भांति शमशान में जाकर करनी चाहिए भैरव की साधना से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं व्यक्तिगत में प्रभाव दृष्टि में सम्मोहन ललाट में वशीकरण विद्या का वास होता है शरीर में असाधारण बल उत्पन्न होता है । वामाचारी साधना ओं के लिए मुख्य देवी देवता यही है पिछली पोस्टों में इनकी साधना की अत्यंत सरल विधि बताई गई है त्राटक ध्यान साधना य

राजयोग तन्त्रमं:मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को जागृत करके दूर की स्थिति को जान सकते हैं

  मस्तिष्क के सूक्ष्म केन्द्रों को जागृत करके दूर की स्थिति को जान सकते हैं। रेडियो टेलीविजन मोबाइल फोन की तरह देखा सुना जा सकता है। यहां तक कि अपने पूर्वजों पीरों पैगम्वरों के संवाद सुन सकते हैं। प्रकृति के अदृश्य भेदों को जान सकते हैं। अपनी आभा प्राण उर्जा को सघन व विस्तृत कर सकते हैं। तथा सूक्ष्म शरीर से समूचे ब्रम्हांड में विचरण कर सकते हैं। लौकिक पारलौकिक कार्यों का सम्पादन कर सकते हैं। यह सूक्ष्म तथा स्थूल शरीर समूचे ब्रम्हांड का एक नमूना है।जो ब्रम्हांड में तमाम ग्रह नक्षत्र बिखरे पड़े हैं, जिनका आदि अंत का पता नहीं है,उसी ब्रम्हांड की एक छोटी सी आकृति यह हमारी मानव काया है।योग की व्यापक क्रियाओं को पूर्ण रूपेण केवल अघोरेश्वर ही जान पाते हैं। क्योंकि अघोरेश्वर सदा से अनादि काल से अघोरेश्वर ही होते हैं समय समय पर अपने योग्य सन्तानों दीक्षा देने के लिए धरा पर अवतरित होते हैं।इसीसे सनातन विद्या आज तक धरती पर है। साधारण लोग तो तमाम भ्रान्तियों में ही फंस जाते हैं। ईश्वर द्वारा हमको प्रदान की गयी साधन स्वरूप यह काया,यह दिव्य शरीर,अजीमो अज़ीम यह रूहेपैकर,मानव विज्ञान के परे की बात है।

AdSense Changing Publisher Revenue Share Structure

AdSense Changing Publisher Revenue Share Structure AdSense announced it is changing publisher revenue share structure to pay per per impression. Some say this could be better   AdSense announced it is changing publisher revenue share structure to pay per per impression. Some say this could be better Google announced that it is changing how it pays AdSense publishers, no longer paying per click and switching to exclusively paying on a per impression model. The announcement assures publishers that the amounts publishers receive should remain the same for most publishers. Google explained that these changes will go into effect in early 2024. A blog post on the AdSense blog advised publishers that they are making two changes: Revenue-share structure will be updated Publishers will be paid by impression According to AdSense, publishers have pocketed 68% of the ad revenue. Payments under the new payment structure should, according to AdSense, result in publishers receiving “about 68% of the