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ग्रहों को निगल रहा है ब्लैक होल धनु-ए

धरती से 26,000 प्रकाश वर्ष दूर एक विशाल ब्लैक होल एक एक कर ग्रहों, तारों और पिंडो को निगल रहा है. ब्लैक होल हमारी आकाश गंगा के केंद्र में है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ब्लैक होल सूर्य से चार लाख गुना बड़ा है ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लिसेस्टर के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह ब्लैक होल हर दिन ब्रह्मांड में तैरती चीजों को निगलता जा रहा है. ब्लैक होल को सैजिटेरियस-A (धनु-ए) नाम दिया गया है. डॉक्टर कास्टीटिस जुबोवास के मुताबिक धनु-ए अपने सामने आने वाले गैस और धूल से बने क्षुद्र ग्रहों को तोड़ कर निगल रहा है. इस दौरान एक्स-रे किरणें और इंफ्रारेड विकीरण भी दिखाई पड़ रहा है. डॉक्टर जुबोवास और उनके साथियों कहते हैं कि ब्लैक होल आकार में सूर्य से 4,00,000 गुना बड़ा है. ब्रह्मांड में तैर रहे तारों के अवशेषों को भी धनु-ए निगलता जा रहा है यह जानकारी सामने आने के बाद यह बहस फिर छिड़ गई है कि क्या ब्लैक होल सौर मंडल को नए सिरे से बनाते हैं. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के माउंट स्ट्रोम्लो ऑब्जरवेट्री के मिशेल बैनिस्टर कहती हैं, "आकाश गंगा का केंद्र एक अत्यंत ऊर्जा वाला स्थान है. बहुत कम दायर

इंसानी हुक्म का गुलाम 'असीमो'

रोबोट का एक नया अवतार आ गया है जो इंसानी हुक्म का गुलाम है. होंडा कंपनी की चार साल की मेहनत ने एक रोबोट को अद्भुत बना दिया और इसे नाम दिया है 'असीमो'. ये रोबोट एक नए अंदाज़ और बंपर तेवर के साथ हाजिर है. ये रोबोट आदेश मिलने पर हर काम करता है, दौड़ता है, उछलता है, जूस बनाता है. इतना ही नहीं इस रोबोट को इस अंदाज़ में बनाया गया है, जिससे ये सिर्फ प्लेन सरफेस पर ही नहीं उबड़-खाबड़ इलाकों में भी बिल्कुल सधे हुए अंदाज़ में आसानी से चल सकता है. ये रोबोट 9 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है. इस रोबोट के पैर और हाथ में तो मूवमेंट है ही इसकी उंगलियां भी काम करती हैं. होंडा कंपनी अब इस रोबोट में कुछ ऐसे गुण भरना चाहती है, जिससे ये रोबोट परमाणु संकट में अपने हुनर का दम दिखा सके. साफ है अगले कुछ दिनों में ये रोबोट और भी कई खासियतों के साथ सामने होगा. sabhar :  www.samaylive.com

मोड़ कर रख सकेंगे टीवी

वैज्ञानिकों ने क्वांटम डॉट तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से लचीले टीवी स्क्रीन बनाए जा सकेंगे। अब आप 3-डी टीवी को भूल जाइए। रिसर्चर्स ने प्रकाश छोड़ने वाले ऐसे क्रिस्टल तैयार किए हैं, जिनकी मदद से बेहद पतले टीवी स्क्रीन बनाना संभव होगा। इन क्रिस्टल को क्वांटम डॉट्स(क्यूडी) नाम दिया गया है। क्या हैं क्वांटम डॉट : क्वांटम डॉट रूपी क्रिस्टल का आकार हमारे एक बाल के एक लाखवें हिस्से के बराबर है। इन्हें बेहद सस्ते सेमी-कंडक्टर मटेरियल से बनाया गया है, जो अल्ट्रावॉयलेट या बिजली के संपर्क में आने पर प्रकाश छोड़ते हैं। इनके आकार में फेरबदल कर प्रकाश के रंग को नियंत्रित किया जा सकता है। बनेंगे स्क्रीन : वैज्ञानिकों ने बेहद लचीली प्लास्टिक शीट पर इन्हें प्रिंट कर एक बेहद पतला डिस्प्ले बोर्ड बनाने में सफलता प्राप्त की है। यह डिस्प्ले बोर्ड ही एक स्क्रीन की तरह काम करेगा। लचीली प्लास्टिक से बने होने के कारण इसे किसी भी आकार में न सिर्फ ढाला जा सकेगा, बल्कि मोड़ कर कहीं भी रखा जा सकेगा। कब तक आएगा : वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि क्वांटम डॉट टीवी सेट अगले वर्ष के अंत तक बाजार में होंगे। हाल

नासा ने खोजा पृथ्वी का जुड़वां ग्रह !

पृथ्वी के बाहर जीवन की चाह फिर से परवान चढ़ रही है. दुनिया की सबसे बड़ी वैज्ञानिक संस्था नासा ने बिलकुल पृथ्वी जैसा ग्रह खोज निकाला है. वह अपने सूर्य का चक्कर लगाता है. न बहुत ठंडा, न बहुत गर्म और पानी की पूरी संभावना. कोई तीन साल पहले अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने नए ग्रहों की तलाश में केपलर नाम का टेलीस्कोप पृथ्वी से बाहर अनजान दुनिया की खोज में भेजा था. दो साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों को वे तस्वीरें मिल गईं, जो अब तक की सबसे उत्साहित करने वाली बताई जा रही हैं. ऐसे ग्रह का पता चल रहा है, जो पृथ्वी से ढाई गुना बड़ा होगा. तापमान 22 डिग्री के आस पास यानी पानी न तो जमेगा और न ही खौलेगा. दिन वसंत ऋतु के किसी दिन की तरह खुशगवार होगा. उसकी स्थिति ऐसी जगह है, जहां पानी होने की पूरी संभावना दिख रही है यानी उस ग्रह में वह सारे गुण हैं, जो पृथ्वी में हैं और जिसके आधार पर जीवन की कल्पना की जा सकती है. केपलर को सम्मान देते हुए ग्रह का नाम रखा गया है, केपलर-22बी. घर के बाहर घर नए ग्रहों की तलाश के मामले में बड़ा योगदान देने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ज्यॉफ मार्सी का कहना है,
पृथ्वी के बाहर जीवन की चाह फिर से परवान चढ़ रही है. दुनिया की सबसे बड़ी वैज्ञानिक संस्था नासा ने बिलकुल पृथ्वी जैसा ग्रह खोज निकाला है. वह अपने सूर्य का चक्कर लगाता है. न बहुत ठंडा, न बहुत गर्म और पानी की पूरी संभावना.   कोई तीन साल पहले अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने नए ग्रहों की तलाश में केपलर नाम का टेलीस्कोप पृथ्वी से बाहर अनजान दुनिया की खोज में भेजा था. दो साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों को वे तस्वीरें मिल गईं, जो अब तक की सबसे उत्साहित करने वाली बताई जा रही हैं. ऐसे ग्रह का पता चल रहा है, जो पृथ्वी से ढाई गुना बड़ा होगा. तापमान 22 डिग्री के आस पास यानी पानी न तो जमेगा और न ही खौलेगा. दिन वसंत ऋतु के किसी दिन की तरह खुशगवार होगा. उसकी स्थिति ऐसी जगह है, जहां पानी होने की पूरी संभावना दिख रही है यानी उस ग्रह में वह सारे गुण हैं, जो पृथ्वी में हैं और जिसके आधार पर जीवन की कल्पना की जा सकती है. केपलर को सम्मान देते हुए ग्रह का नाम रखा गया है, केपलर-22बी. घर के बाहर घर नए ग्रहों की तलाश के मामले में बड़ा योगदान देने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ज्यॉफ मार्सी का कहना है, &q

गॉड पार्टिकल के बहुत पास पहुंचा मानव

दशकों की मशक्कत के बाद मानव सभ्यता का दावा है कि वह उस कण के बहुत पास पहुंच गई है, जिसने इस सृष्टि की उत्पत्ति की है. हिग्स बोसोन यानी गॉड पार्टिकल की तलाश लगभग पूरी हो गई और वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका अस्तित्व है. दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्विट्जरलैंड के सर्न में चल रहे बरसों के प्रयोग के बाद मंगलवार को दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि हिग्स बोसोन कण अब पहुंच से दूर नहीं रहा. इस कण के बारे में करीब चार दशक पहले चर्चा शुरू हुई और विज्ञान का दावा है कि इसकी वजह से ही बिग बैंग विस्फोट हुआ, जिसके बाद यह पूरी कायनात बनी. हालांकि वैज्ञानिकों ने जोर देकर कहा कि अभी यह खोज पूरी नहीं हुई है. इंग्लैंड में लीवरपूल यूनिवर्सिटी के थेमिस बोकॉक ने कहा, "अगर हिग्स की बात सही साबित हो जाती है, तो निश्चित तौर पर यह इस सदी की सबसे बड़ी खोजों में होगा. भौतिक विज्ञानियों ने धरती की रचना के बारे में अहम कड़ी को सुलझा लिया है, जिसका असर हमारे रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है." सर्न की महाप्रयोगशाला अद्भुत नजारा कई मीटर लंबे हाइड्रॉन कोलाइडर में प्रयोग के बाद सर्न ने सनसनीखेज ख

2050 की दुनिया

आने वाली दुनिया कैसी होगी। सबकी अपनी कल्पनाएं और अंदाजे हैं। विज्ञान दुनिया को नए तरीके से देख रहा है। फिल्मी दुनिया की अपनी फंतासियां हैं। बात हो रही है 2050 की। आज की कल्पनाएं निश्चित तौर पर आने वाले वक्तके धरातल पर होंगी। संभव है दिमाग को कम्प्यूटर की फाइल के तौर पर सुरक्षित रखा जाए। यह भी मुमकिन है कि आदमी गायब होना सीख ले।  यह है फ्यूचरोलॉजी ऎसा नहीं है कि भविष्य दर्शन केवल फिल्मकारों की कल्पना तक सीमित है। वैज्ञानिक भी इसमें खासी रूचि ले रहे हैं। तथ्यों और पूर्वानुमानों के सामंजस्य को विज्ञान की कसौटी पर परख कर भविष्य की कल्पना एक नए विज्ञान की राह खोल रही है। यह विज्ञान है फ्यूचरोलॉजी यानी भविष्य विज्ञान। क्या भविष्य में चांद पर बस्ती बसेगी। क्या हमारा परिचय धरती से परे किसी दूसरी दुनिया के प्राणियों से होगा। क्या इंसान मौत पर विजय पाने में कामयाब हो जाएगा। नामुमकिन सी लगने वाली ऎसी कल्पनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन भी फ्यूचरोलॉजी के तहत किया जा रहा है। जिस तरह से मौसम-विज्ञानी भविष्य में मौसम का, अर्थशास्त्री भविष्य की विकास दर और इतिहासकार अतीत की घटनाओं का तार्किक आकलन पेश क