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दस साल बाद कैसा होगा आपका मकान?

भविष्य के घर की झलक जिस रफ्तार के तकनीक बदल रही है, उससे इंसान के रहन-सहन के तौर तरीके में भी बदलाव आ रहे हैं. कंप्यूटर क्षेत्र की नामी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने 'स्पेस ऑफ द फ्यूचर' नाम के अपने मॉडल को नए रूप में पेश किया है, जो दिखाता है कि आज से पांच या दस साल बाद जिंदगी किस तरह की होगी. वॉशिंगटन में माइक्रोसॉफ्ट के मुख्यालय में भविष्य के इस मकान को बनाया गया है. इसमें अत्याधुनिक तकनीक से आपकी शक्ल को देख कर या फिर एक इशारा पाते ही खाना पकाने जैसे काम भी बेहद आसानी हो जाते हैं. माइक्रोसॉफ्ट में इस अहम प्रोजेक्ट से जुड़े एंटन एंड्रयूज ने बीबीसी को इस मकान की सैर कराई. एंड्रयूज़ ने इस मकान में एक खास डेस्क दिखाई. ये डेस्क आपकी ज़रूरत के हिसाब से ऊपर या नीचे हो जाएगी जिससे आप आसानी से काम कर सकें. फिर देखते ही देखते वो डेस्क कंप्यूटर स्क्रीन के तौर पर खुल कर सामने आती है. डेस्क में छिपी जानकारियाँ इसमें आप कुछ चीजों को अपने हिसाब से आकार दे सकते हैं ये स्क्रीन व्यक्ति का चेहरा पहचान कर उसके काम से संबंधित चीजें स्क्रीन पर पेश करती है. एंड्रयूज़ के म

कैसे होंगे भविष्य के स्मार्ट शहर

भविष्य के शहर के निर्माण में तकनीक के इस्तेमाल पर बढ़ रहा है जोर दुनियाभर में नए शहर बसाए जा रहे हैं और जिन शहरों में हम सदियों से रह रहे हैं उन्हें सुधार कर भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है. ऐसा तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते प्रदूषण के जवाब में हो रहा है. साथ ही पूरे शहर को एक साथ वेब नेटवर्क पर जोड़ना भी नए शहर बसाने और पुराने शहरों के नवीनीकरण का एक प्रमुख कारण है. वहीं कुछ शहर स्मार्ट होने का मकसद शहरों को और हरा-भरा और पर्यावरण को कम दूषित करना है.स्मार्ट शहर का मतलब ये हो सकता है कि डेटा की मदद से ट्रैफिक में जाम से बचा जा सके, या फिर निवासियों को बेहतर सूचना देने के लिए विभिन्न सेवाओं को एक साथ जोड़ देना. तकनीकी कपंनी जैसे आईबीएम और सिस्को स्मार्ट शहरों में अपने लिए व्यवसाय का ज़बर्दस्त मौका देख रहीं हैं. आईए जानते हैं, दुनियाभर में चर्चा में रहने वाले ऐसे स्मार्ट शहरों के प्रोजेक्ट के बारे में. सॉन्गडो, दक्षिण कोरिया कई लोगों के लिए सॉन्गडो स्मार्ट शहरों का सरताज है. येलो सी समुद्री तट पर इस शहर को बसाने का काम वर्ष 2005 में शुरु हुआ और इस पर 35 बिल

छोटा दिमाग बड़ी समझदारी

पिछले 30 हजार सालों में इंसान का दिमाग लगातार सिकुड़ता जा रहा है. इसका मतलब ये नहीं कि हम दिमागी रूप से कमजोर हो रहे हैं बल्कि रिसर्च में पता चला है कि विकास के क्रम में छोटा होता दिमाग इंसानों को स्मार्ट बना रहा है. होमो सेपियन्स से आधुनिक मानव तक का सफर तय करने में इंसान के दिमाग का आकार करीब 10 फीसदी छोटा हो गया. यानी कभी 1500 क्यूबिक सेंटीमीटर के दिमाग का आकार अब घटकर 1359 क्यूबिक सेंटीमीटर रह गया है. महिलाओं का दिमाग पुरुषों के मुकाबले छोटा होता है और उनके दिमाग के आकार में भी इतनी ही कमी आई है. यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया में मिली मानव खोपड़ियों के अवशेष की छानबीन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं. अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के जॉन हॉक्स बताते हैं, "मैं तो कहूंगा कि विकास के क्रम में पलक झपकते ही दिमाग का आकार छोटा हो गया." हालांकि दूसरे वैज्ञानिक दिमाग के सिकुड़ने को ज्यादा हैरतअंगेज नहीं मानते. उनके मुताबिक हम जितने बड़े और मजबूत होंगे हमारे शरीर पर नियंत्रण के लिए उतने बड़े दिमाग की जरूरत होगी. आधुनिक इंसान से ठीक पहले का इंसान यानी निएंडर

यह आंख तो नहीं, पर दिखा सकती है

नेत्रहीन तो इसे वरदान की तरह 'देख' रहे हैं. अमेरिका में बनी यह बायोनिक आंख उन लोगों की रोशनी कुछ हद तक लौटा सकती है जो रेटिनिटिस पिगमेनटोसा की वजह से आंखें खो बैठे हैं. अब दूसरी पीढ़ी की बायोनिक आंख बाजार में आ रही है. रेटिनिटिस पिगमेनटोसा एक तरह की बीमारी है जो इंसान को अंधा बना देती है. कुछ वक्त पहले तक तो यह अंधापन लाइलाज ही था. लेकिन बायोनिक आंख यानी आर्गस प्रतिरोपण ने कुछ हद तक इसे ठीक कर पाने में सफलता दिलाई. यूरोप के बाजारों में बायोनिक आंख जल्दी ही बिकने लगेगी. और जर्मनी के लोगों के लिए तो अच्छी खबर यह है कि देश के हेल्थ केयर सिस्टम ने इसे इन्श्योरेंस में कवर करने का फैसला कर लिया है. संभावना है कि ब्रिटेन और फ्रांस भी ऐसा ही करेंगे. बायोनिक आंख की कीमत एक लाख अमेरिकी डॉलर यानी 45 लाख रुपये से ज्यादा है. सवाल यह है कि इन्श्योरेंस कंपनियों को इसे कवर करने के लिए राजी किया जा सकता है या नहीं. उसी बात पर इसकी सफलता निर्भर करेगी. बायोनिक विजन सिस्टम एक कैमरा है जो चश्मे से जुड़ा है. यह हाई फ्रीक्वेंसी वाले रेडियो सिगनल रेटिना में लगी चिप को भेजता है. इन चिप

मूत्र से 'सूँघा जा सकेगा' मूत्राशय का कैंसर?

कैंसर की कोशिकाएं मौजूद हों तो मूत्र में से एक खास तरह की गंध आती है. अगर  क्लिक करें मूत्राशय में कैंसर  पनप चुका है तो इसमें गैस के रूप में रसायन की मौजूदगी पाई जाती है. यह उपकरण एक सेंसर की मदद से इस रसायन का पता लगा लेता है. मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले कि यह व्यापक पैमाने पर उपलब्ध हो, जाँच से शत-प्रतिशत परिणाम पाने के लिए अभी और अध्ययन करने की जरूरत है.इसको बनाने वालों ने 'प्लॉस' नामक एक पत्रिका को बताया है कि शुरुआती परीक्षणों में हुई 10 बार की जांच में से 9 बार जांच से सटीक परिणाम मिले. क्लिक करें ब्रिटेन में  हर साल करीब 10,000 लोगों के मूत्राशय के कैंसर का इलाज किया जाता है. मूत्र की गंध डॉक्टर लंबे समय से ऐसे तरीकों की तलाश कर रहे हैं जिनसे इस  क्लिक करें कैंसर का पता  पहले चरण में ही लगाया जा सके. उस समय उसका इलाज आसान होता है. " इससे पहले कि इस उपकरण का इस्तेमाल अस्पतालों में किया जाने लगे इसकी अभी और जांच करने की जरूरत है. इसके लिए हमें मरीजों से बड़े पैमाने पर नमूने इकट्ठे करने होंगे " प्रोफेसर प्रोबर्ट इन

स्‍टेम सेल थेरेपी से ठीक हुए एचआईवी के दो मरीज

मेलबर्न : अमेरिकी के दो मरीजों को घातक बीमारी एचआईवी से पूरी तरह छुटकारा मिल गया है। इससे उन लोगों के लिए उम्‍मीद की किरण जगी है, जो इस बीमारी से पीडि़त हैं।  बोस्‍टन में ब्रिगहैम एंड वीमेंस हॉस्पिटल के डाक्‍टरों ने बुधवार रात घोषणा की कि एचआईवी से पीडि़त दो मरीजों को इस खतरनाक वायरस (ब्‍लड और टिश्‍यू) से पूरी तरह मुक्ति मिल गई है। कैंसर का इलाज करने के क्रम में बोन मैरो स्‍टेम सेल ट्रांसप्‍लांट किया गया था। जिन दो मरीजों का इलाज किया गया था, उसमें से एक युवा है और दूसरा प्रौढ़ है। एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी के आठ और पंद्रह हफ्ते के बाद इनमें इस घातक वायरस के लक्षण नहीं दिखे। एचआईवी पॉजिटीव मरीज जब इलाज बंद कर देते हैं तो यह वायरस से चार से आठ हफ्ते के बीच दोबारा सक्रिय हो जाता है।  sabhar :  http://zeenews.india.com

एलियंस का पता लगाने के लिए भेजा मैसेज

वॉशिंगटन.  ब्रह्माण्ड में एलियंस की मौजूदगी को लेकर हर किसी के मन में जिज्ञासा है। 17 जून को एलियंस को संदेश (लोन सिग्नल) भेजा गया। यह संदेश लोन सिग्नल प्रोजेक्ट के तहत भेजा गया है। इस प्रोजेक्ट के जरिए इंटरनेट यूजर्स बीम मैसेज भेज कर ब्रह्मांड में एलियंस की मौजूदगी का पता कर पाएंगे।     लोन सिग्नल प्रोजेक्ट के मुख्य मार्केटिंग ऑफिसर अर्नेस्टो क्वालिज्जा के मुताबिक अब हम जान सकेंगे कि ब्रह्मांड के किसी कोने पर एलियंस मौजूद हैं? विख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने भी कहा था कि एलियंस हमारी पृथ्वी के आसपास ही हैं। वे लगातार हमपर और हमारी गतिविधियों पर नजर भी रख रहे हैं।     ग्लीज-526 पर एलियंस की संभावना : हक-मिश्रा   प्रोजेक्ट के अंतर्गत वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में एक बिंदु चुना है। कैलिफोर्निया का जेम्सबर्ग अर्थ स्टेशन तारामंडल ग्लीज-526 को संदेश भेजेगा। पृथ्वी से ग्लीज 17.6 प्रकाश वर्ष दूर है। लोन सिग्नल ने प्रोजेक्ट के मुख्य साइंस ऑफिसर जैकब हक-मिश्रा के मुताबिक  वैज्ञानिकों को किसी भी ड्वार्फ का चक्कर लगाता कोई ग्रह नहीं मिला। वहीं ग्लीज-526 पर एलियंस के होने

एचआईवी से बचाने वाली दवा

   (इस दवा को ब्रिटेन एचआईवी के इलाज के लिए उपयोग की अनुमति देता है न कि उसके बचाव के लिए) अभी तक दुनिया भर में एचआईवी और एड्स के लड़ने की जद्दोजहद चल रही है और शोध चल रहे हैं कि इसका इलाज किस तरह से किया जाए. इसी विषय पर और पढ़ें एचआईवी - एड्स  हम जानते हैं कि एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति यदि नियमित रूप से एंटीरेट्रोवायरल दवा लेता रहे तो उसका वायरस इतना कमज़ोर हो जाता है कि वह किसी और को संक्रमित लायक ही नहीं बचता " माइकल बॉर्टन, यूएनएड्स ये सब एचआईवी संक्रमण के बाद की बाते हैं. लेकिन इस बीच अब एक ऐसी दवा आ गई है जो एचआईवी संक्रमण को रोकती है. अमरीकी स्वास्थ्य नियामक संस्था ने पहली बार एक ऐसी दवा को अनुमति दे दी है जो एचआईवी के संक्रमण को रोकती है. शोध कहता है कि हर रोज़ एक गोली खाने से एचआईवी संक्रमण का खतरा 73 प्रतिशत तक कम हो सकता है. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़डीए) ने कहा है कि त्रुवादा नाम की ये दवा उन लोगों को दी जा सकती है जिन्हें एचआईवी संक्रमण का खतरा बहुत अधिक है या ऐ

इंसानी दिमाग में लगेगा चिप !

क्या एक दिन ऐसा भी आएगा जब दिमाग में प्रत्यारोपित किए गए चिप की बदौलत इंसान सीधे संपूर्ण मानव ज्ञान का उपयोग करने में सक्षम हो पाएगा? आपको शायद ये बात मज़ाक लगे, शायद सोच से परे भी, लेकिन अमरीकी लेखक और आविष्कारक रे कुरुजविल का मानना है कि ऐसा भविष्य में ज़रुर संभव होगा. हाल ही में सैनफ्रांसिस्को में हुए एक सम्मेलन में  रे कुरुजविल ने बीबीसी फ्यूचर  को बताया कि किस तरह से भविष्य में महत्वपूर्ण बदलाव जन्म लेंगे और इंसानों व समाज पर इनका क्या असर होगा. ये परिवर्तन मानव इतिहास का सबसे बड़ा परिवर्तन होगा. रे कुरुजविल का तर्क है कि  क्लिक करें कंप्यूटर की ताकत  आज जिस तरह से बढ़ गई है, उस देखते हुए कहा जा सकता है कि 2029 में मशीनें इंसानों की तरह ही स्मार्ट हो जाएगी. चिप को तंत्रिका तंत्र से जोड़ कर हम मानव को और स्मार्ट बनाया जा सकता हैं. " सूचना प्रौद्योगिकी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, दशक पहले जितना कंप्यूटर इस्तेमाल में आता था, उसकी तुलना में आज हम दोगुनी तेजी़ से कंप्यूटर की ताकत का इस्तेमाल करते हैं, भविष्य में इसकी ताकत और इस्तेमाल लगातार बढ़ता जाएग

"रिसर्च का तरीका अलग है"

अभिजीत बोरकर माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट में एस्ट्रोफिजिक्स विभाग में शोध कर रहे हैं. शर्मीले और शांत दिखने वाले अभिजीत को जर्मनी आए अभी कुछ ही समय हुआ है. वह शोध पूरा कर भारत लौटना पसंद करेंगे. अभिजीत कहते हैं कि अगर वह भारत में विज्ञान को किसी तरह बढ़ावा दे पाएं और हाईस्कूल के बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा कर पाएं तो उनहें बहुत अच्छा लगेगा. मंथन में इस बार उन्होंने ब्लैक होल और उल्कापिंडों पर रोशनी डाली. पेश हैं उनसे बातचीत के कुछ अंश. डॉयचे वेलेः   अभिजीत जर्मनी में आपने अपने शोध के लिए   कहां कहां आवेदन किया? अभिजीत बोरकरः  जी मैंने सिर्फ माक्स प्लांक संस्थान के लिए ही अप्लाई किया था. मेरा चयन यहां सबसे पहले हो गया, तो जुलाई 2012 में मैं यहां पीएचडी के लिए जर्मनी आ गया. यहां शोध करने के लिए आपने कैसे आवेदन किया? पीएचडी के लिए आप दो तरह से अप्लाई कर सकते हैं, या तो सीधे प्रोफेसर से संपर्क कीजिए और उन्हें ईमेल या फोन के जरिए अपना प्रोजेक्ट बताइए, या फिर आप उनके कॉलेजों में आवेदन कर सकते हैं. फिर बाकायदा इंटरव्यू होने के बाद छात्रों को चुना जाता है. मे