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"अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण

नासा की मदद से विकसित की जा रही "अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण सन् 2012 की गर्मियों में सम्पन्न नासा की मदद से विकसित की जा रही "अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण सन् 2012 की गर्मियों में सम्पन्न किए जाएंगे। यहाँ पर "ड्रीम चेज़र" नामक मिनी शटल की चर्चा है। यह उन चार वाहनों में से एक है, जिन पर "अंतरिक्ष टैक्सी" बनाने के नासा के प्रोग्राम के अंतर्गत निजी कम्पनियाँ काम कर रही हैं। नासा के विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना के सफल कार्यान्वन से सन् 2016 तक, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक लोगों को भेजना और पृथ्वी पर वापस लाना काफी किफ़ायती हो जाएगा। आशा है कि आगामी दो वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक लोगों और माल को पहुँचाने के लिए रॉकेट, अंतरिक्ष यान, लांच पैड और बाकि सारा बुनियादी ढांचा तैयार हो जाएगा। sabhar : http://hindi.ruvr.ru/ और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2011/10/12/58579820/

जापानी एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाएंगे

जापानी कंपनी ओबयाशी का वर्ष 2050 तक एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का इरादा है। यह लिफ्ट माल और यात्रियों जापानी कंपनी ओबयाशी का वर्ष 2050 तक एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का इरादा है। यह लिफ्ट माल और यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाने और वहाँ से पृथ्वी पर लौटने के काम में सहायता करेगी। इस नए वाहन की गति 200 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। इसमें बैठकर एक सप्ताह तक अंतरिक्ष की यात्रा की जा सकेगी। लिफ्ट के लिए ऊर्जा सौर पैनलों की सहायता से जुटाई जाएगी। अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का विचार सबसे पहले सन् 1895 में सामने आया था जब एक रूसी वैज्ञानिक कॉन्स्तांतिन त्सियॉलकोवस्की ने एक ऐसा टावर बनाने का विचार पेश किया था जिसकी सहायता से पृथ्वी की सतह से इसकी कक्षा तक पहुँचा जा सके। तब से आज तक यह विचार वैज्ञानिकों के ध्यान का केंद्र बना रहा है और हाल के वर्षों में नासा में इस विचार को अमली शकल देने के विषय पर कई सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे हैं sabhar  :  और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_03_03/67373343/ http://hindi.ruvr.ru

खगोलविदों ने सौर प्रणाली जैसी एक नई ग्रह प्रणाली खोजी

तारिका प्रणाली एच.डी. जी.जे. 676ए , जो पृथ्वी से 16.4 पारसेक्स या 53.46 प्रकाश वर्ष दूर और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_07_10/nai-sour-pranali/ तारिका प्रणाली  एच.डी.   जी.जे. 676ए , जो पृथ्वी से 16.4 पारसेक्स या 53.46 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है, देखने में हमारी सौर प्रणाली जैसी ही लगती है। इसमें पृथ्वी जैसे ग्रह एक तारे की परिक्रमा करते हैं और गैस के विशालकाय बादल इस तारे से बहुत दूर हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह हमारी ग्रह प्रणाली जैसी एक दुर्लभ सौर प्रणाली है जो वर्तमान में गायब हो रही है। जर्मनी में गौटिंगेन विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक खगोल भौतिकी संस्थान के शोधकर्ता डॉ. गिलेम आंगलाड एस्कुडेस के नेतृत्व में खगोलविदों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने बोने लाल ग्रहों के बारे में विभिन्न दूरबीनों की मदद से प्राप्त जानकारियों का एक काफ़ी लंबे समय में विश्लेषण किया है।   वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी से अपेक्षाकृत कम दूरी पर स्थित अन्य प्रणालियों की भी खोज की गई है लेकिन वहाँ अभी तक पृथ्वी जैसे ग्रह दिखाई नहीं दिए हैं। अगर वहाँ पृथ्वी जैसे कई ग्रह मिल जाएंगे तो यह कह

मंगल पर मानव मिशन अगले 5 से 15 साल में`

चेन्नई : नासा की एक वैज्ञानिक का कहना है कि मंगल पर मानव मिशन अगले पांच से 15 साल में साकार होने की संभावना है।  अनीता सेनगुप्ता ने पत्रकारों से कहा कि ‘मंगल पर मानव मिशन संभव है और यह सिर्फ कुछ समय की बात रह गई है। मेरे हिसाब से अगर बजट और प्रौद्योगिकी समस्या नहीं रही तो यह पांच से 15 साल में संभव हो सकेगा।  अनीता की नासा के उस दल में अहम भूमिका थी जिसने ‘क्यूरियासिटी’ रोवर को भेजा था। (एजेंसी) sabhar :  http://zeenews.india.com

'प्रतिरोधक तंत्र' से ही होगा कैंसर का इलाज :जेम्स गैलाघर

अमरीकी शोधकर्ताओं ने कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में बदलाव करने का तरीका खोज लिया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली बेहद संवेदनशील होने के साथ संतुलित होती है, जो शरीर में घुसपैठ करने वाले विषाणुओं और रोगाणुओं से लड़ती है, लेकिन वह शरीर के अपने उत्तकों यानी टिशूज़ से नहीं लड़ती. शोध का यह नतीजा ‘नेचर मेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.फिलाडेल्फिया के बाल अस्पताल के शोधकर्ताओं को जानवरों पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि प्रतिरोधक प्रणाली के संतुलन में बदलाव करने से कैंसर का एक नया इलाज ढूंढ़ा जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जब रोग प्रतिरोधक प्रणाली शरीर के ही उत्तकों पर असर करने लगती है तो कई गंभीर बीमारियां जैसे टाइप 1 डायबिटीज हो जाती है. ट्रेग सेल्स शोध का एक नया क्षेत्र दरअसल, ट्रेग सेल्स कैंसर और ऑटोइम्यून डिजीज में शोध का एक नया और चर्चित क्षेत्र है. ऑटोइम्यून डिजीज का संबंध उन बीमारियों से है, जो रोग प्रतिरोधक प्रणाली से ही शरीर के अंदर के ऊतकों के नष्ट होने के कारण होती हैं. यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली का हिस्सा है

अंतरि‍क्ष की इस कालोनी में रहेंगे 10 हजार लोग, देखि‍ए तस्‍वीरें

क्‍या अंतरि‍क्ष में रहना संभव है। वहां न तो सांस लेने के लि‍ए हवा है और न ही पीने के लि‍ए पानी। इसके बावजूद वैज्ञानि‍कों का मानना है कि एक दि‍न वह ऐसा संभव कर दि‍खाएंगे। इसके लि‍ए आज से नहीं बल्‍कि तकरीबन चार दशक पहले से ही शोधकार्य चल रहा है। कई सारे वैज्ञानि‍कों ने इसका ब्‍लूप्रिंट भी तैयार कि‍या है। इन ब्‍लूप्रिंट के सहारे वह सोचने पर मजबूर करते हैं कि एक दि‍न अंतरि‍क्ष में जीवन संभव होगा। ये जीवन मशीनों के सहारे संभव होगा। नासा 1975 से इस बारे में शोध कर रहा है। इसके अलावा स्‍टैनफोर्ड वि‍श्‍ववि‍द्यालय में इस बारे में रि‍सर्च चल रही है। बताया जा रहा है कि यह रि‍सर्च अगर कामयाब हो गई तो अंतरि‍क्ष में 10 से 14 हजार लोग एक ही मशीनी कालोनी में रह सकेंगे।    अंतरि‍क्ष में गुरुत्‍वाकर्षण की भी समस्‍या है। अंतरि‍क्ष यानों में अक्‍सर व्‍यक्‍ति हवा में तैरते हुए देखे जाते हैं क्‍योंकि वहां पहुंचने पर गुरुत्‍वाकर्षण न होने की वजह से उनके पैर टि‍क नहीं पाते हैं। इस समस्‍या का भी इलाज खोजा गया।  \ इस कालोनी में पृथ्‍वी की तरह गुरुत्‍वाकर्षण होगा। इसके लि‍ए यह कालोनी एक मि‍नट

नई रोशनी लाएंगे स्टेम सेल

स्टेम कोशिकाओं की मदद से आने वाले दिनों में इंसान में दृष्टिहीनता पूरी तरह ठीक किए जाने की संभावना है. ब्रिटिश वैज्ञानिकों को चूहों में ऐसा करने में सफलता मिली है. एक नए शोध में कहा गया है कि यह रेटिना की बीमारियों के इलाज में एक अहम कदम है. वैज्ञानिकों ने इसके लिए चूहे के भ्रूण से मूल कोशिकाएं ली. शुरुआती स्टेज वाली इन कोशिकाओं को फिर प्रयोगशाला में इस तरह से कल्चर किया ताकि वे अपरिपक्व फोटोरिसेप्टरों में तब्दील हो जाएं. फोटोरिसेप्टर रेटिना में रोशनी पकड़ने वाले सेल्स होते हैं. इसके बाद इस तरह की करीब दो लाख कोशिकाओं को चूहे के रेटिना में डाला गया. इनमें से कुछ आंखों की कोशिकाओं में ढल गए और दृष्टि लाने में सफल रहे. आंखों की रोशनी में कितना फर्क पड़ा है, इसे वॉटर मेज परीक्षण से देखा गया. साथ ही ऑप्टोमैट्री की मदद भी ली गई.    फोटोरिसेप्टरों के खत्म होने से रेटिनाइटिस पिगमेंटोजा और उम्र बढ़ने के साथ आंखों की मांसपेशियों के खराब होने की बीमारी एएमडी होती है. ब्रिटेन के मेडिकल रिसर्च काउंसिल ने एक प्रेस रिलीज में कहा, "भ्रूण की मूल कोशिकाओं से आने वाले दिनों में अनगिनत

अंतरिक्ष में अकेलेपन का साथी बनेगा बोलने वाला रोबोट

जापान ने दुनिया का पहला बोलने वाला रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा है. इस रॉकेट को अंतरिक्षयात्री कोचि वकाटा के साथी के रूप में अंतरिक्ष में भेजा गया है. वकाटा का अंतरिक्ष अभियान नवंबर से शुरू होगा. किरोबो नाम के इस रोबोट को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) में काम कर रहे अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सामान लेकर जा रहे एक अनाम रॉकेट से अंतरिक्ष भेजा गया. 13 इंच के किरोबो ने जापान के तानेगाशिमा द्वीप से उड़ान भरी. वह 9 अगस्त को आईएसएस पहुंच जाएगा. किरोबो एक शोध का हिस्सा है जिसके तहत यह देखा जाना है कि लंबे समय तक अकेले रहने वाले लोगों को मशीनें किस तरह से भावनात्मक सहारा दे सकती हैं. एच-2बी रॉकेट के लॉंच का जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेन्सी (जाक्सा) द्वारा सीधा प्रसारण किया गया. यह अनाम रॉकेट आईएसएस पर काम कर रहे छह स्थाई कर्मचारियों के लिए पीने का पानी, खाना, कपड़े और काम के उपकरण लेकर गया है. किरोबो नाम “ क्लिक करें उम्मीद” और “रोबोट ” के लिए जापानी शब्दों से बनाया गया है. बड़ी छलांग इस छोटे से  क्लिक करें मानवरूपी रोबोट  का वज़न करीब एक किलो है और यह कई तरह की

इंजीनियरों ने शुरू किया मोबाइल आधारित टीवी चैनल

तिरअनंतपुरम : इंजीनियरिंग स्नातकों के एक समूह ने यहां एक ऐसा टीवी चैनल शुरू किया है जिसे मोबाइल फोन के जरिए देखा जा सकता है। यह चैनल स्थानीय समाचारों एवं घटनाओं को प्रोत्साहित करेगा। समूह के संस्थापकों में से एक अरविंद जीएस ने यहां संवाददाताओं को बताया कि ‘वी 4 यू’ नाम का यह चैनल राजधानी शहर से पहला 2जी, 3जी मोबाइल टीवी चैनल है। उन्होंने कहा कि दर्शक इस अनूठे चैनल को अपने मोबाइल फोन से दुनिया में कहीं भी देख सकते हैं। चौबीस घंटे का यह चैनल जावा और एंड्रायड जैसे सभी प्लेटफार्मों पर काम करेगा। दर्शक मामूली शुल्क देकर इस चैनल का लाभ उठा सकते हैं। (एजेंसी) sabhar : http://zeenews.india.com

वैज्ञानिकों ने पशु ऊतक से बनाया कृत्रिम मानव कान

वाशिंगटन : हाल ही में वैज्ञानिकों ने कथित तौर पर पशु ऊतक से हू-ब-हू मानव कान विकसित करने में सफलता पा ली है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वह किसी रोगी की कोशिका से भी पूरे कान को विकसित करने में जल्द ही सफलता पा लेंगे। बीबीसी ने बोस्टन स्थित मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के शोधकर्ताओं के हवाले से कहा है कि इस प्रकार विकसित किया गया कान एकदम वास्तविक कान के समान लचीला है। चिकित्सा विज्ञान में ऊतक अभियांत्रिकी उभरती हुई नई पद्धति है, जिसमें मानव के वैकल्पिक अंगों को विकसित किया जाता है, ताकि क्षतिग्रस्त अंगों को बदला जा सके। यह शोध पत्र विज्ञान पत्रिका रॉयल सोसायटी इंटरफेस में प्रकाशित हुआ है। शोधपत्र में कहा गया है कि अमेरिकी अनुसंधानकर्ताओं का दल कृत्रिम कान के निर्माण में लगा हुआ है, ताकि जन्म से ही कान के अविकसित रहने या दुर्घटना में कान खो देने वाले मनुष्यों की मदद की जा सके। इससे पहले अनुसंधानकर्ताओं ने किसी बच्चे के कान के आकार के कान को एक चूहे पर विकसित करने में सफलता पाई थी। हालिया अनुसंधान में उन्होंने गाय और भेड़ के ऊतकों की मदद से तार की सहायता से कान के आकार की 3डी संरचना पर कृत