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जब शरीर का कोई अंग घिस जाए, उसे बदल डालिए

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दस-पन्द्रह साल के बाद मनुष्य ख़ुद अपने शरीर पर 'थिगलियाँ' लगाना शुरू विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दस-पन्द्रह साल के बाद मनुष्य ख़ुद अपने शरीर पर 'थिगलियाँ' लगाना शुरू कर देगा। वह अपने पुराने और घिस चुके अंगों को और अपनी माँसपेशियों के संयोजी ऊतकों को, जब मन होगा, ख़ुद ही बदल लिया करेगा। जापान में एक क्लीनिकल अनुसंधान के दौरान कोशिका-चिकित्सा (या सेल-थैरेपी) की सहायता से मानव-हृदय के ऊतकों को नया जीवन दिया जाता है। रूस में विशेष जैविक-रिएक्टरों में न सिर्फ़ संयोजी ऊतकों का विकास किया जाता है, बल्कि नए मानव-अंगों को भी विकसित किया जाता है। फ़िलहाल चिकित्सक इस तक्नोलौजी का सिर्फ़ परीक्षण कर रहे हैं। लेकिन जल्दी ही चिकित्सक इस तक्नोलौजी का व्यावहारिक रूप से इस्तेमाल शुरू कर देंगे। आज से दस साल पहले अगर कोई इस तरह की बात कहता तो लोग उसे कपोल-कल्पना ही मानते और उसकी हँसी उड़ाने लगते। लेकिन आज मानव अंगों को कृत्रिम रूप से विकसित करने वाली इस तरह की तक्नोलौजी एक वास्तविकता यानी एक सच्चाई बन चुकी है। आज वैज्ञानिक पुनर्योजी

जॉन लेनन के दाँत से उनका क्लोन बनाने की घोषणा

कनाडा के उस दाँतों के डॉक्टर माइकेल झूक ने, जिसने दो साल पहले विश्वप्रसिद्ध संगीत मण्डली दी बीटल्स के प्रमुख जॉन लेनन का दाँत ख़रीदा था, यह घोषणा कि है कि वह उस दाँत से जॉन लेनन का डी०एन०ए० निकलवा कर जॉन लेनन का क्लोन बनवाएँगे। माइकेल झूक का कहना है -- यदि वैज्ञानिक मैमथ का क्लोन बना सकते हैं तो जॉन लेनन का क्लोन भी बना सकते हैं। माइकेल झूक का कहना है कि जल्दी ही आनुवंशिक्विज्ञानी लेनन के सभी आनुवंशिकी कोड पता लगा लेंगे और हज़ारों लोगों के प्रिय गायक को फिर से पौनर्जीवित करने की कोशिश करेंगे। माइकेल झूक ने वर्ष 2011 में जॉन लेनन का दाँत क़रीब 31 हज़ार डॉलर में ख़रीदा था। दाँत ख़रीदने के बाद उन्होंने सारी दुनिया के दाँतों के क्लीनिकों और कालेजों की यात्रा की और उअस यात्रा से वापिस लौटकर लेनन का यह दाँत अपने केबिन में सुरक्षित रख लिया। इससे पहले झूक प्रसिद्ध लोगों के दाँतों के बारे में एक क़िताब भी लिख चुके हैं। जॉन लेनन ने अपना यह दाँत उखाड़कर अपनी नौकरानी डॉट जेरलेट को 1960 में दिया था और उससे कहा था कि वह अपनी बेटी को उनका यह दाँत उपहार में दे दे। लेकिन बाद में उनका य

"अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण

नासा की मदद से विकसित की जा रही "अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण सन् 2012 की गर्मियों में सम्पन्न नासा की मदद से विकसित की जा रही "अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण सन् 2012 की गर्मियों में सम्पन्न किए जाएंगे। यहाँ पर "ड्रीम चेज़र" नामक मिनी शटल की चर्चा है। यह उन चार वाहनों में से एक है, जिन पर "अंतरिक्ष टैक्सी" बनाने के नासा के प्रोग्राम के अंतर्गत निजी कम्पनियाँ काम कर रही हैं। नासा के विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना के सफल कार्यान्वन से सन् 2016 तक, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक लोगों को भेजना और पृथ्वी पर वापस लाना काफी किफ़ायती हो जाएगा। आशा है कि आगामी दो वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक लोगों और माल को पहुँचाने के लिए रॉकेट, अंतरिक्ष यान, लांच पैड और बाकि सारा बुनियादी ढांचा तैयार हो जाएगा। sabhar : http://hindi.ruvr.ru/ और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2011/10/12/58579820/

जापानी एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाएंगे

जापानी कंपनी ओबयाशी का वर्ष 2050 तक एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का इरादा है। यह लिफ्ट माल और यात्रियों जापानी कंपनी ओबयाशी का वर्ष 2050 तक एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का इरादा है। यह लिफ्ट माल और यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाने और वहाँ से पृथ्वी पर लौटने के काम में सहायता करेगी। इस नए वाहन की गति 200 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। इसमें बैठकर एक सप्ताह तक अंतरिक्ष की यात्रा की जा सकेगी। लिफ्ट के लिए ऊर्जा सौर पैनलों की सहायता से जुटाई जाएगी। अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का विचार सबसे पहले सन् 1895 में सामने आया था जब एक रूसी वैज्ञानिक कॉन्स्तांतिन त्सियॉलकोवस्की ने एक ऐसा टावर बनाने का विचार पेश किया था जिसकी सहायता से पृथ्वी की सतह से इसकी कक्षा तक पहुँचा जा सके। तब से आज तक यह विचार वैज्ञानिकों के ध्यान का केंद्र बना रहा है और हाल के वर्षों में नासा में इस विचार को अमली शकल देने के विषय पर कई सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे हैं sabhar  :  और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_03_03/67373343/ http://hindi.ruvr.ru

खगोलविदों ने सौर प्रणाली जैसी एक नई ग्रह प्रणाली खोजी

तारिका प्रणाली एच.डी. जी.जे. 676ए , जो पृथ्वी से 16.4 पारसेक्स या 53.46 प्रकाश वर्ष दूर और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_07_10/nai-sour-pranali/ तारिका प्रणाली  एच.डी.   जी.जे. 676ए , जो पृथ्वी से 16.4 पारसेक्स या 53.46 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है, देखने में हमारी सौर प्रणाली जैसी ही लगती है। इसमें पृथ्वी जैसे ग्रह एक तारे की परिक्रमा करते हैं और गैस के विशालकाय बादल इस तारे से बहुत दूर हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह हमारी ग्रह प्रणाली जैसी एक दुर्लभ सौर प्रणाली है जो वर्तमान में गायब हो रही है। जर्मनी में गौटिंगेन विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक खगोल भौतिकी संस्थान के शोधकर्ता डॉ. गिलेम आंगलाड एस्कुडेस के नेतृत्व में खगोलविदों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने बोने लाल ग्रहों के बारे में विभिन्न दूरबीनों की मदद से प्राप्त जानकारियों का एक काफ़ी लंबे समय में विश्लेषण किया है।   वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी से अपेक्षाकृत कम दूरी पर स्थित अन्य प्रणालियों की भी खोज की गई है लेकिन वहाँ अभी तक पृथ्वी जैसे ग्रह दिखाई नहीं दिए हैं। अगर वहाँ पृथ्वी जैसे कई ग्रह मिल जाएंगे तो यह कह

मंगल पर मानव मिशन अगले 5 से 15 साल में`

चेन्नई : नासा की एक वैज्ञानिक का कहना है कि मंगल पर मानव मिशन अगले पांच से 15 साल में साकार होने की संभावना है।  अनीता सेनगुप्ता ने पत्रकारों से कहा कि ‘मंगल पर मानव मिशन संभव है और यह सिर्फ कुछ समय की बात रह गई है। मेरे हिसाब से अगर बजट और प्रौद्योगिकी समस्या नहीं रही तो यह पांच से 15 साल में संभव हो सकेगा।  अनीता की नासा के उस दल में अहम भूमिका थी जिसने ‘क्यूरियासिटी’ रोवर को भेजा था। (एजेंसी) sabhar :  http://zeenews.india.com

'प्रतिरोधक तंत्र' से ही होगा कैंसर का इलाज :जेम्स गैलाघर

अमरीकी शोधकर्ताओं ने कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में बदलाव करने का तरीका खोज लिया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली बेहद संवेदनशील होने के साथ संतुलित होती है, जो शरीर में घुसपैठ करने वाले विषाणुओं और रोगाणुओं से लड़ती है, लेकिन वह शरीर के अपने उत्तकों यानी टिशूज़ से नहीं लड़ती. शोध का यह नतीजा ‘नेचर मेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.फिलाडेल्फिया के बाल अस्पताल के शोधकर्ताओं को जानवरों पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि प्रतिरोधक प्रणाली के संतुलन में बदलाव करने से कैंसर का एक नया इलाज ढूंढ़ा जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जब रोग प्रतिरोधक प्रणाली शरीर के ही उत्तकों पर असर करने लगती है तो कई गंभीर बीमारियां जैसे टाइप 1 डायबिटीज हो जाती है. ट्रेग सेल्स शोध का एक नया क्षेत्र दरअसल, ट्रेग सेल्स कैंसर और ऑटोइम्यून डिजीज में शोध का एक नया और चर्चित क्षेत्र है. ऑटोइम्यून डिजीज का संबंध उन बीमारियों से है, जो रोग प्रतिरोधक प्रणाली से ही शरीर के अंदर के ऊतकों के नष्ट होने के कारण होती हैं. यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली का हिस्सा है