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'मकड़ी के धागों की तरह' बुने जा सकेंगे अंग

ब्रिटेन में शोधकर्ताओं ने शरीर के अंग मकड़ी के जाले की तरह बनाने का एक तरीका दिखाया है. लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की एक टीम ने नए टिश्यू बनाने के लिए पॉलीमर के साथ मिली हुई कोशिकाओं का निरंतर प्रवाह इस्तेमाल किया. इन शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का परीक्षण चूहों में खून लाने-ले जाने वाली नसें बनाने में किया.शोधकर्ताओं का मानना है कि ट्रांसप्लांट के लिए अंग बनाने में दूसरी तकनीकों के मुकाबले इस तकनीक से ज़्यादा बेहतर नतीजे मिल सकते हैं. अभी प्रयोगशालाओं में अंग बनाने के लिए कई विधियों का इस्तेमाल हो रहा है. 'प्रयोगशाला में अंग' कुछ विधियों में एक कृत्रिम ढांचे से शुरुआत होती है जिसमें मरीज़ की ख़ुद की कोशिकाओं को डाल दिया जाता है और फिर इसे कलम की तरह लगा दिया जाता है. कुछ मरीज़ों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर ब्लैडर बनाए गए हैं. एक अन्य तकनीक में किसी शव से किसी अंग को लिया जाता है, जैसा अंग प्रत्यर्पण में होता है, फिर एक डिटर्जेंट का इस्तेमाल कर पुरानी कोशिकाओं को हटा दिया जाता है और प्रोटीन का एक ढांचा बचा रह जाता है. इस ढांचे में उस मरीज़ की कोशिकाएं लगाई जाती

क्या रोबोट के साथ सेक्स संभव हो पाएगा?

    टिम बाउलर सेक्स रोबोट रॉक्सी से मिलिए. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे किस तरह लेते हैं- इंसान और रोबोट के संबंधों के बीच एक अहम कड़ी या सेक्स रोबोट के रूप में. सेक्स के लिए बाज़ार में कई कृत्रिम साधन उपलब्ध हैं, लेकिन रॉक्सी को बनाने वाले डगलस हाइंस का कहना है कि यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंसानी रूप का संगम है. " अगर आप अपनी समस्याओं को मित्रों, परिजनों और समाज के बजाए रोबोट के माध्यम से सुलझाना चाहते हैं तो आपको इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. हम सोच रहे हैं कि हम केवल रोबोट बना रहे हैं लेकिन वास्तव में हम मानवीय मूल्यों और संबंधों को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं. " रोबोट की परिकल्पना दशकों पुरानी है, लेकिन यह मशीनी मानव अभी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है. प्रोफेसर शेरी टर्कल चलने में सक्षम रोबोट का अभी बहुत ज्यादा व्यावसायिक उपयोग नहीं है. वे बहुत महंगे हैं और केवल समतल सतह पर ही चल सकते हैं. कमज़ोरी क्लिक करें जापान  की सबसे अच्छी माने जाने वाली महिला रोबोट एचआरपी-4सी का विकास नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्न

ब्रमांड का सृजक कौन

वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंस का कहना है की  ब्रमांड संग्रचना के पीछे भौतिक नियम है ना की  ईश्वर जैसी कोई सर्वशक्ति इस पर हर इंसान की अपनी राय हो सकती है लेकिन सदी सबसे बड़े वैज्ञानिक की राय को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है | बेसक इस बयान से धर्मावलंबी सहमत नहीं हो परंतु वैज्ञानिक  युग मे लोग बुनियादी सवालो पे बिचार करते ही हैं |  fcx cSax ls cuk czgEekaM         fcx cSax ;kuh czgaekMh; egkfoLQksV og ?kVuk gS] ftls gekjs czgEkkaM dh mRifRr gqbZ gSA fcx cSax F;ksjh czgekaM ds ‘kq:vkrh fodkl ij jks’kuh Mkyrh gSA bl F;ksjh ds eqrkfcd fcx cSax dh ?kVuk djhc 13-7 vjc o”kZ igys gSA fcx cSax ekWMy ds eqrkfcd czgekaM ‘kq:vkrh voLFkk esa cgqr gh xje vkSj ?kuk Fkk] ftldk rsth ls foLrkj gqvkA QSyus ds ckn BaMk gksdj o ekStwnk voLFkk esa igq¡pkA vkt Hkh ;g QSy jgk gSA lR; dh iM++rky         vkt ge ;gk¡ ckr djsxh gkafdx dh vkSj muds }kjk crk, x;s mu dkj.kksa dh ftudh jks’kuh esa mUgksusa l`f”V lajpuk laca/kh ,slk c;ku fn;kA blesa dksbZ ‘kd ugha fd LVhQu gkWfdax chloh lnh ds egku oS

जब शरीर का कोई अंग घिस जाए, उसे बदल डालिए

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दस-पन्द्रह साल के बाद मनुष्य ख़ुद अपने शरीर पर 'थिगलियाँ' लगाना शुरू विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दस-पन्द्रह साल के बाद मनुष्य ख़ुद अपने शरीर पर 'थिगलियाँ' लगाना शुरू कर देगा। वह अपने पुराने और घिस चुके अंगों को और अपनी माँसपेशियों के संयोजी ऊतकों को, जब मन होगा, ख़ुद ही बदल लिया करेगा। जापान में एक क्लीनिकल अनुसंधान के दौरान कोशिका-चिकित्सा (या सेल-थैरेपी) की सहायता से मानव-हृदय के ऊतकों को नया जीवन दिया जाता है। रूस में विशेष जैविक-रिएक्टरों में न सिर्फ़ संयोजी ऊतकों का विकास किया जाता है, बल्कि नए मानव-अंगों को भी विकसित किया जाता है। फ़िलहाल चिकित्सक इस तक्नोलौजी का सिर्फ़ परीक्षण कर रहे हैं। लेकिन जल्दी ही चिकित्सक इस तक्नोलौजी का व्यावहारिक रूप से इस्तेमाल शुरू कर देंगे। आज से दस साल पहले अगर कोई इस तरह की बात कहता तो लोग उसे कपोल-कल्पना ही मानते और उसकी हँसी उड़ाने लगते। लेकिन आज मानव अंगों को कृत्रिम रूप से विकसित करने वाली इस तरह की तक्नोलौजी एक वास्तविकता यानी एक सच्चाई बन चुकी है। आज वैज्ञानिक पुनर्योजी

जॉन लेनन के दाँत से उनका क्लोन बनाने की घोषणा

कनाडा के उस दाँतों के डॉक्टर माइकेल झूक ने, जिसने दो साल पहले विश्वप्रसिद्ध संगीत मण्डली दी बीटल्स के प्रमुख जॉन लेनन का दाँत ख़रीदा था, यह घोषणा कि है कि वह उस दाँत से जॉन लेनन का डी०एन०ए० निकलवा कर जॉन लेनन का क्लोन बनवाएँगे। माइकेल झूक का कहना है -- यदि वैज्ञानिक मैमथ का क्लोन बना सकते हैं तो जॉन लेनन का क्लोन भी बना सकते हैं। माइकेल झूक का कहना है कि जल्दी ही आनुवंशिक्विज्ञानी लेनन के सभी आनुवंशिकी कोड पता लगा लेंगे और हज़ारों लोगों के प्रिय गायक को फिर से पौनर्जीवित करने की कोशिश करेंगे। माइकेल झूक ने वर्ष 2011 में जॉन लेनन का दाँत क़रीब 31 हज़ार डॉलर में ख़रीदा था। दाँत ख़रीदने के बाद उन्होंने सारी दुनिया के दाँतों के क्लीनिकों और कालेजों की यात्रा की और उअस यात्रा से वापिस लौटकर लेनन का यह दाँत अपने केबिन में सुरक्षित रख लिया। इससे पहले झूक प्रसिद्ध लोगों के दाँतों के बारे में एक क़िताब भी लिख चुके हैं। जॉन लेनन ने अपना यह दाँत उखाड़कर अपनी नौकरानी डॉट जेरलेट को 1960 में दिया था और उससे कहा था कि वह अपनी बेटी को उनका यह दाँत उपहार में दे दे। लेकिन बाद में उनका य

"अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण

नासा की मदद से विकसित की जा रही "अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण सन् 2012 की गर्मियों में सम्पन्न नासा की मदद से विकसित की जा रही "अंतरिक्ष टैक्सी" के पहले परीक्षण सन् 2012 की गर्मियों में सम्पन्न किए जाएंगे। यहाँ पर "ड्रीम चेज़र" नामक मिनी शटल की चर्चा है। यह उन चार वाहनों में से एक है, जिन पर "अंतरिक्ष टैक्सी" बनाने के नासा के प्रोग्राम के अंतर्गत निजी कम्पनियाँ काम कर रही हैं। नासा के विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना के सफल कार्यान्वन से सन् 2016 तक, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक लोगों को भेजना और पृथ्वी पर वापस लाना काफी किफ़ायती हो जाएगा। आशा है कि आगामी दो वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक लोगों और माल को पहुँचाने के लिए रॉकेट, अंतरिक्ष यान, लांच पैड और बाकि सारा बुनियादी ढांचा तैयार हो जाएगा। sabhar : http://hindi.ruvr.ru/ और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2011/10/12/58579820/

जापानी एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाएंगे

जापानी कंपनी ओबयाशी का वर्ष 2050 तक एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का इरादा है। यह लिफ्ट माल और यात्रियों जापानी कंपनी ओबयाशी का वर्ष 2050 तक एक अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का इरादा है। यह लिफ्ट माल और यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाने और वहाँ से पृथ्वी पर लौटने के काम में सहायता करेगी। इस नए वाहन की गति 200 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। इसमें बैठकर एक सप्ताह तक अंतरिक्ष की यात्रा की जा सकेगी। लिफ्ट के लिए ऊर्जा सौर पैनलों की सहायता से जुटाई जाएगी। अंतरिक्ष लिफ्ट बनाने का विचार सबसे पहले सन् 1895 में सामने आया था जब एक रूसी वैज्ञानिक कॉन्स्तांतिन त्सियॉलकोवस्की ने एक ऐसा टावर बनाने का विचार पेश किया था जिसकी सहायता से पृथ्वी की सतह से इसकी कक्षा तक पहुँचा जा सके। तब से आज तक यह विचार वैज्ञानिकों के ध्यान का केंद्र बना रहा है और हाल के वर्षों में नासा में इस विचार को अमली शकल देने के विषय पर कई सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे हैं sabhar  :  और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_03_03/67373343/ http://hindi.ruvr.ru

खगोलविदों ने सौर प्रणाली जैसी एक नई ग्रह प्रणाली खोजी

तारिका प्रणाली एच.डी. जी.जे. 676ए , जो पृथ्वी से 16.4 पारसेक्स या 53.46 प्रकाश वर्ष दूर और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_07_10/nai-sour-pranali/ तारिका प्रणाली  एच.डी.   जी.जे. 676ए , जो पृथ्वी से 16.4 पारसेक्स या 53.46 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है, देखने में हमारी सौर प्रणाली जैसी ही लगती है। इसमें पृथ्वी जैसे ग्रह एक तारे की परिक्रमा करते हैं और गैस के विशालकाय बादल इस तारे से बहुत दूर हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह हमारी ग्रह प्रणाली जैसी एक दुर्लभ सौर प्रणाली है जो वर्तमान में गायब हो रही है। जर्मनी में गौटिंगेन विश्वविद्यालय के अंतर्गत एक खगोल भौतिकी संस्थान के शोधकर्ता डॉ. गिलेम आंगलाड एस्कुडेस के नेतृत्व में खगोलविदों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने बोने लाल ग्रहों के बारे में विभिन्न दूरबीनों की मदद से प्राप्त जानकारियों का एक काफ़ी लंबे समय में विश्लेषण किया है।   वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी से अपेक्षाकृत कम दूरी पर स्थित अन्य प्रणालियों की भी खोज की गई है लेकिन वहाँ अभी तक पृथ्वी जैसे ग्रह दिखाई नहीं दिए हैं। अगर वहाँ पृथ्वी जैसे कई ग्रह मिल जाएंगे तो यह कह

मंगल पर मानव मिशन अगले 5 से 15 साल में`

चेन्नई : नासा की एक वैज्ञानिक का कहना है कि मंगल पर मानव मिशन अगले पांच से 15 साल में साकार होने की संभावना है।  अनीता सेनगुप्ता ने पत्रकारों से कहा कि ‘मंगल पर मानव मिशन संभव है और यह सिर्फ कुछ समय की बात रह गई है। मेरे हिसाब से अगर बजट और प्रौद्योगिकी समस्या नहीं रही तो यह पांच से 15 साल में संभव हो सकेगा।  अनीता की नासा के उस दल में अहम भूमिका थी जिसने ‘क्यूरियासिटी’ रोवर को भेजा था। (एजेंसी) sabhar :  http://zeenews.india.com