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2035 तक आदमी की जगह रोबोट मज़दूरी करेंगे

Photo: EPA वर्ष 2025 तक विकसित देशों में रोबटों की संख्या उन देशों की जनसंख्या से ज़्यादा होगी और वर्ष 2032 वर्ष 2025 तक विकसित देशों में रोबटों की संख्या उन देशों की जनसंख्या से ज़्यादा होगी और वर्ष 2032 में उनकी बौद्धिक-क्षमता भी मानवीय बौद्धिक-क्षमता से अधिक हो जाएगी। और वर्ष 2035 तक रोबट पूरी तरह से मानव की जगह श्रमिक का काम करने लगेंगे। मानवजाति अभी भी क्रमिक विकास के दौर से गुज़र रही है। प्रतिरोपण विज्ञान के विकसित होने की वज़ह से मानव की औसत आयु बढ़कर 200 वर्ष तक हो सकती है। मास्को में अमरीकी कम्पनी सिस्को के प्रमुख तक्नीशियन डेव एवन्स ने यह भविष्यवाणी की। उन्होंने कहा कि यदि बीसवीं शताब्दी के आरम्भ तक मानवजाति का ज्ञान हर सौ वर्ष में बढकर दुगुना हो जाता था, तो आज हर 2-3 साल में ऐसा होता है। उन्होंने कहा कि त्रिआयामी (थ्री डी) प्रिन्टर का आविष्कार तक्नोलौजी के क्षेत्र में अभी तक मानवजाति की सबसे ऊँची छलाँग है। इसका मतलब यह है कि किसी चीज़ को बनाने के लिए उसके त्रिआयामी डिजिटल मॉडल पर विभिन्न प्रकार की सामग्री को परत दर परत चिपकाया या जोड़ा जा सकता है। भविष्य मे

मानव अंग बनाने की प्रौद्योगिकी विकसित करेगा जापान

Photo: RIA News जापान की सरकार ने आधिकारिक तौर पर इस बात की घोषणा की है कि उसकी अगले 10 सालों में जापान की सरकार ने आधिकारिक तौर पर इस बात की घोषणा की है कि उसकी अगले 10 सालों में कृत्रिम बहुउद्देशीय स्टेम कोशिकाओं से मानव शरीर के अंग उगाने-बनाने के लिए व्यावहारिक प्रौद्योगिकी विकसित करने की एक योजना है। इन अंगों में फेफड़े, जिगर और अन्य तथाकथित "त्रिआयामी अंग" शामिल हैं। अक्तूबर माह में जापानी सरकार ने नोबेल पुरस्कार विजेता सिन्गई यामानाका को अगले दस साल तक वित्तीय सहायता देने का फैसला किया था। ग़ौरतलब है कि यामानाका ही दुनिया के पहले ऐसे अग्रणी वैज्ञानिक हैं जिन्होंने स्टेम कोशिकाओं से मानव अंग बनाने की खोज की थी। इस काम के लिए जापानी सरकार देश के बजट से 20 से 30 अरब येन (25.5-38.5 करोड़ डॉलर) आवंटित करेगी। जापान दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसकी सरकार ने लंबी अवधि के दौरान ऐसी वैज्ञानिक गतिविधियों के लिए एक राजकीय कार्यक्रम अपनाया है sabhar : http://hindi.ruvr.ru और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/2012_11_02/japani-manav-ang/

छठी पीढ़ी का विमान

रूस में छठी पीढ़ी के विमान के विकास पर काम आरंभ हो गया है| लगता है यह चालकरहित विमान ही होगा| कृत्रिम बुद्धि के बल पर ही इस विमान का संचालन होगा| आजकल रूस में पांचवीं पीढ़ी के विमान T-50 के परीक्षण पूरे हो रहे हैं| इस विमान की बॉडी कोम्पोज़िट सामग्रियों से बनाई गई है और इसकी वायु-गतिकीय संरचना ऐसी है कि उड़ान के समय यह रडारों के लिए प्रायः अदृश्य रहता है| नई पीढ़ी का विमान किस दृष्टि से इससे आगे होना चाहिए? चालकरहित उड्डयन विशेषज्ञ देनीस फेदुतीनोव कहते हैं: “विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि छठी पीढ़ी के विमान चालकरहित होंगे| हमें दो कदम आगे चलना चाहिए, पांचवीं पीढ़ी के विमान का विकास-कार्य पूरा होने का इंतज़ार किए बिना ही आगे बढ़ना चाहिए| कई देशों में इस दिशा में काम हो रहा है| अमरीका में बोईंग कंपनी ‘फेंटम रे’ प्रोजेक्ट पर तथा ‘नॉर्थरोप ग्रूमन’ कंपनी X-47B प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं| इस साल गर्मियों में ‘नॉर्थरोप ग्रूमन’ कंपनी ने पहली बार यह प्रदर्शित किया है कि इस श्रेणी का विमान पुलट के बिना ही विमानवाहक पोत से उड़ सकता है और उस पर उतर भी सकता है|” विशेषज्ञ यह मानते है

इसरो, टाटा मोटर्स ने हाइड्रोजन से चलने वाली बस बनाई

बेंगलूर:  टाटा मोटर्स लिमिटेड तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश में पहली बार हाइड्रोजन चालित आटोमोबाइल बस विकसित की है. दोनों संस्थानों ने कई साल के अनुसंधान के बाद यह बस विकसित की है. इस बस का प्रदर्शन आज जतमिलनाडु के महेंद्रगिरि स्थित इसरो के केंद्र लिक्विड प्रोपल्सन सिस्टम्स सेंटर में किया गया. इसके के अधिकारियों ने बताया कि यह सीएनजी से चलने वाली बस की तरह ही है. इसमें उच्च दाब में भी हाइड्रोजन की बोतल बस की छत पर होती हैं और इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता. हाइड्रोजन सेल क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी का एक उपउत्पाद है जिसे इसरो पिछले कई साल से विकसित कर रही है. उन्होंने कहा, यह पूरी तरह से क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी नहीं है, यह तरलीकृत हाइड्रोजन हैंडलिंग है जिसमें इसरों को विशेषज्ञता है. इसरो तथा टाटा मोटर्स ने हाइड्रोजन से चलने वाली बस के विकास के लिए 2006 में समझौता किया था. इसरो के मानद सलाहकार वी जी गांधी तथा टाटा मोटर्स के उप महाप्रबंधक डा एम राजा ने यह घोषणा की. इसके अनुसार दोनों संगठनों ने भारत मे पहली बार ऐसी इंधन सेल बस बनाई है जो हाइड्रोजन से चलती है. ग

बिना ड्राइवर वाली टैक्सी कार बनाएगा गूगल

लंदन.  एक से बढ़कर एक अद्भूत पर प्रैक्टिकल आविष्कारों को अंजाम देने में लगा इंटरनेट किंग गूगल अब बिना ड्राइवर वाली टैक्सी कार बनाने में जुटा है.ये रोबो-टैक्सी. यात्रियों को डिमांड पर इच्छित स्थान से पिक करेगी और गंतव्य तक छोड़ेगी. रोबो-टैक्सी के विकास में गूगल एक्स टीम लगी है जिसने गूगल ग्लास को ईजाद किया है.गूगल की इस कार में कैमरा, सेंसर, राडार और साफ्टवेयर जोड़ा जाएगा जिससे कार पर कंट्रोल किया जा सकेगा.ब्रिटेन की सड़कों पर इस कार की टेस्टिंग की अनुमति दी जा चुकी है. गूगल ने 2010 में सेल्फ ड्राइविंग कार प्रोजेक्ट शुरू किया था.गूगल का यह सेल्फ ड्राइविंग सिस्टम टोयटा प्रायस और लेकस आरएएक्स कार में लगाया जा चुका है. sabhar :  http://www.palpalindia.com

बस, एक गोली और पासवर्ड याद रखने के झंझट से मुक्ति

लॉस एंजिलिस.  अगर आप अपने बैंक खाते, एटीएम, पैन कार्ड आदि का पासवर्ड भूल जाते हैं और इसकी वजह से आपको काफी मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है तो घबराएं नहीं. बस, एक गोली खाएं और पासवर्ड याद रखने के झंझट से मुक्ति पाएं. अमरीका के कैलिफोर्निया प्रांत की एक कंपनी ने अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके एक ऎसी छोटी से गोली ईजाद की है जो आपके सभी पासवर्ड याद रखेगी. यह गोली पासवर्ड याद रखने के अलावा आपके शरीर का तापमान, शारीरिक गतिविधियों और आराम का ब्योरा भी रखती है. इस गोली के अंदर रेत के एक दाने के आकार के बराबर सिलिकन से बनी सूक्ष्म चिप होती है. इस गोली को निगलने के बाद आपको किसी तरह का पासवर्ड याद रखने की जरूरत नहीं महसूस होगी. यह गोली खाद्य पदार्थो में मिलने वाले तत्वों से बनाई गई है और खाने के साथ-साथ यह भी बाद में पच जाती है. इस गोली में किसी प्रकार की बैटरी नहीं होती है, बल्कि इसमें एक स्विच लगा होता है जो हमारे पेट में मौजूद एसिड से गीला होकर ऊर्जा प्राप्त करता है और चिप खास सिग्नल को पकड़ने लगती है. इसके साथ ही एक पैच भी आता है जो चिप से मिलने वाले डाटा को ट्रांसमिट करता है. हमारा शरीर

रहस्यमयी एंटीमैटर पकड़ने का दावा

तकनीकी कमाल दिखाते हुए वैज्ञानिकों ने 16 मिनटों तक एंटीमैटर (प्रतिपदार्थ) को रिकार्ड समय तक इकट्ठा किए रखा. उनका दावा है कि इससे एंटीमैटर के रहस्यों पर से पर्दा हट सकता है. एंटीमैटर रहस्यमयी पदार्थ है जिसे डॉन ब्राउन के उपन्यास और फिल्म 'एंजल्स एंड डेमन्स' में सर्वविनाशक हथियार के तौर पर दिखाया गया है. एंटीमैटर को रखना आसान नहीं क्योंकि कण और प्रतिकण एक-दूसरे से हुई टक्कर से पैदा ऊर्जा में खत्म हो जाते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार 14 अरब साल पहले बिग बैंग के समय पदार्थ और एंटीमैटर बराबर मात्रा में उपलब्ध थे. अगर यह संतुलन बना रहता तो ब्राह्मांड आज जिस रूप में है उस आकार में नहीं रहता. अनजाने कारणों से प्रकृति में पदार्थ के लिए अनुकूलता है और एंटीमैटर आज दुर्लभ हो गया है. भौतिक शास्त्र के लिए यह बड़ी पहेली है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हाइड्रोजन के अणुओं के साथ कम ऊर्जा के परीक्षण इस रहस्य को सुलझाने में अहम कदम साबित हो सकते हैं. जेनेवा में प्रयोग करने वाली यूरोपीय ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च के अल्फा टीम के प्रवक्ता जैफरी हैंग्स्ट ने कहा, 'हम एंटीहाइड्रोजन

चश्मे से छुटकारा जल्द

क्या आप भी उन लोगों में से एक हैं जो चश्मे का इस्तेमाल करने से आजिज आ चुके हैं? यदि ऐसा है तो चिंता न करें. वैज्ञानिकों ने एक ऐसा क्रांतिकारी तरीका ईजाद किया है जो लाखों लोगों को चश्मा पहनने की मजबूरी से हमेशा के लिए छुटकारा दिला सकता है. वैज्ञानिकों ने जो नई चिकित्सा पद्धति विकसित की है उसके तहत आंखों के अंदर एक तरह का छोटा-सा प्लास्टिक प्रतिरोपित कर चश्मे की जरूरत को खत्म किया जा सकता है. 'जेड कामरा' नाम की इस शैली के प्रायोगिक परीक्षणों में काफी अच्छे परिणाम मिले हैं. डेली टेलीग्राफ के अनुसार इस शैली में लेजर की मदद से कॉर्निया (आंखों के बाहरी लेंस) में एक हल्का सा छेद कर काफी महीन परत डाल दी जाती है. इससे आंखों में प्रवेश करने वाली रोशनी की मात्रा को नियंत्रित करने में सहूलियत होगी और स्पष्ट और साफ देखा जा सकेगा. ब्रिटेन में इस तरह का इलाज शुरू हो चुका है. वैज्ञानिकों के मुताबिक 70 साल से ज्यादा उम्र के लोग, जिनकी दूर या पास की नजर काफी कम है, उन्हें इस नए इलाज का ज्यादा फायदा नहीं मिल सकेगा क्योंकि उनके कैट्रैक्ट्स को बदले जाने की जरूरत होती है. इस तकनीक में एक आंख

प्रयोगशाला में विकसित हुआ इंसानी दिमाग़

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में छोटे आकार का ‘मानव मस्तिष्क’ विकसित किया है. मटर के बराबर का ये अंग ठीक उतना बड़ा है जितना नौ हफ़्ते के भ्रूण में पाया जाता है. लेकिन इसमें सोचने की क्षमता नहीं है. वैज्ञानिकों ने कुछ असामान्य बीमारियों की जानकारी हासिल करने के लिए इस ‘मस्तिष्क’ की मदद ली है.समझा जाता है कि ये तंत्रिका से जुड़ी बीमारियों के इलाज में मददगार साबित होगा. इस शोध के बारे में विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में लेख छपा है. कोशिकाएं तंत्रिका विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों ने नई खोज को चौंका देनेवाला और दिलचस्प बताया है. मानव मस्तिष्क शरीर में पाए जाने वाले सभी अंगों में सबसे अधिक जटिल माना जाता है. 'ऑस्ट्रियन अकादमी ऑफ़ साइंसेस' के वैज्ञानिक अब मानव मस्तिष्क के शुरूआती आकार को विकसित करने में कामयाब हो गए हैं. वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग के लिए या तो मूल भ्रूणीय को‏‏‏शिकाओं या वयस्क चर्म कोशिकाओं को चुना. इनकी मदद से भ्रूण के उस हिस्से को तैयार किया गया जहां दिमाग़ और रीढ़ की हड्डी का हिस्सा विकसित होता है. इन कोशिकाओं को 'जेल' की छोटी बूंदों में रखा गय

'फेस मशीन' पढ़ लेगी चेहरे की ख़ुशी और ग़म

बीबीसी संवाददाता समांथा फेनविक ने चेहरा पढ़ने वाली मशीन के प्रयोग में हिस्सा लिया आपका चेहरा आपके बारे में क्या कह रहा है? किसी के लिए ये बताना शायद मुश्किल हो लेकिन एक नई तकनीक के बारे में दावा किया जा रहा है कि वो चेहरा देखकर पहचान लेगी कि आप ख़ुश हैं, उदास हैं या बोर हो रहे हैं. लेकिन कंपनी इसके लिए पहले आपकी अनुमति लेती है. इसके बाद बायोमेट्रिक ट्रैकिंग के लिए विशेष वेबकैम से आपके चेहरे के भावों को रिकार्ड करती है.इससे ऑनलाइन विज्ञापन कंपनियों को पता चल सकेगा कि आप उनके  क्लिक करें विज्ञापन पेज  को देखकर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं? इस तकनीक का इस्तेमाल अभी बड़े बजट के विज्ञापनों को लांच करने से पहले लोगों के रुझान को जानने के लिए किया जाता है. अनौपचारिक प्रयोग बीबीसी ने इस तकनीक का विकास करने वाले रीयलआइज़ के साथ मिलकर अपने रेडियो-4 के श्रोताओं पर प्रोग्राम ‘यू एंड योर्स’ की रिलीज से पहले अनौपचारिक प्रयोग किए. " यह कंप्यूटर प्रोग्राम देखने में सक्षम है कि लोगों की भौंहें, मुंह और आंखें कैसे गति करती है? वैश्विक स्तर पर छह भावनाएं होती हैं, जो सबके लिए सम