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आखिर अंदर से कैसा होता है मस्तिष्क?

अमरीका में वैज्ञनिक पहली बार मनुष्य के दिमाग का पूरा नक्शा जारी करने वाले हैं. इस नक़्शे से इस बात को समझने में मदद मिलेगी कि क्यों कुछ लोग स्वाभाविक रूप से अधिक वैज्ञानिक सोच वाले, संगीत के रसिक या कलाप्रेमी होते हैं. वैज्ञानिक मैसेच्यूसेट्स के जनरल अस्पताल में मौजूद दुनिया की सबसे ताकतवर ब्रेन स्कैनिंग मशीन से दिमाग का नक्शा तैयार करने में लगे हैं.हाल ही में कुछ चित्रों को अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस की एक बैठक में जारी किया गया. इस स्कैनर को चलाने के लिए 22 मेगावाट बिजली की दरकार होती है. इतनी बिजली के साथ एक परमाणु पनडुब्बी बड़े ही आराम से चलती हैं. अभी तक वैज्ञानिकों ने केवल 50 मनुष्यों के गहन स्कैन किए हैं . दिमाग का स्कैन " हम दिल का स्कैन कर के अच्छी तरह से बता सकते हैं कि वहां क्या चल रहा है या क्या गलत घट रहा है. कितना अच्छा होगा अगर हम दिमाग की इस तरह की तस्वीरे निकालें और लोगों को सलाह दे पायें कि उन्हें उनकी समस्या के लिए क्या करना है " प्रोफ़ेसर वैन वीडीन वैज्ञानिक  क्लिक करें दिमाग  की बारीक नसों में मौजूद तर

दक्षिण कोरिया ने बनाए पेट्रोल-उत्पादक जीवाणु

दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने संसार में सबसे पहले ऐसे जीवाणु पा लिए हैं जो पेट्रोल बना सकते हैं| देश के विज्ञान, सूचना-संचार प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक प्राक्कल्पना मंत्रालय ने यह बताया है| कोरियाई अग्रणी विज्ञान और टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट में विकसित ये जीवाणु ग्लूकोज़ “खाते” हैं और बदले में देते हैं पेट्रोल| प्रयोगों के दौरान ऐसे जीवाणुओं वाले एक लीटर घोल से 580 मिलीग्राम ईंधन प्राप्त हुआ| यह ईंधन आम पेट्रोल से थोड़ा भिन्न है तो भी इसका व्यापक उपयोग हो सकता है, सूचना में कहा गया है और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_09_30/DKoriya-petrol-jivanu/ sabhar : http://hindi.ruvr.ru

जीने के लिए सर्वभक्षी बनना होगा

संयुक्त राष्ट्र संघ का खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मानवजाति को भुखमरी से बचने के लिए सर्वभक्षी बनना होगा| इस संगठन के विशेषज्ञों का कहना है कि कीट-पतंगे ही भविष्य में मनुष्य का प्रमुख आहार होंगे| पिछले कई दशकों से संसार खाद्य-पदार्थों की कमी को लेकर चिंतित है| कृषि-उत्पादन में ऐसी “आनुवंशिक-संशोधित” किस्मों के, जिन पर किसी तरह के हानिकारक कीटों और रोगों का कोई प्रभाव नहीं पडता, उपयोग को लेकर बहुत वाद-विवाद होता रहा है| अब हवा के एक नया रुख चला है| एफ.ए.ओ. के विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोटीन का पृथ्वी पर एक प्रचुर स्रोत है जिसकी ओर लोगों ने ध्यान नहीं दिया है – ये हैं कीट-पतंगे| इनका पालन कृषि की एक प्रमुख शाखा बन सकता है| आज तो ऐसी बातें कपोल-कल्पना ही लगती हैं, किंतु ये जीवन का यथार्थ बन सकती हैं, रूसी आयुर्विज्ञान अकादमी के आहार संस्थान के डायरेक्टर विक्टर तुतेल्यान कहते हैं: “हमें सदा आहार के नए स्रोतों की, नई टेक्नोलोजी की खोज करते रहना चाहिए| आहार की समस्या विकासशील देशों की ही नहीं, सारी मानवजाति की समस्या है| इस समस्या का एक संभव हल है

महाकाल को मानव कैसे जीतेगा?

क़रीब 2 अरब 80 करोड़ साल बाद सूरज बूढ़ा और पुराना हो जाएगा और वह सड़ने लगेगा यानी वह क़रीब 2 अरब 80 करोड़ साल बाद सूरज बूढ़ा और पुराना हो जाएगा और वह सड़ने लगेगा यानी वह फूलना शुरू हो जाएगा और एक विशाल लाल आग के गोले में बदल जाएगा। सूरज में होने वाले इन बदलावों का पृथ्वी पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा । ज़मीन पर गर्मी इस बुरी तरह से बढ़ जाएगी कि जीवन पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगा। एक भी जीव-जन्तु इस धरती पर बाक़ी नहीं रहेगा। वैसे तो एक अरब 80 करोड़ साल बाद ही पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जन्तु और मनुष्य ख़त्म हो जाएँगे, लेकिन पानी में रहने वाले तरह-तरह के जीवाणु और कीटाणु तथा ज़मीन के भीतर गहराई में रहने वाले जीव फिर भी बचे रह जाएँगे। यह भविष्यवाणी उन ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने की है, जो पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लुप्त होने की प्रक्रिया का क्रमबद्ध ढंग से अध्ययन कर रहे हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने न सिर्फ़ सूर्य की गरमी बढ़ने से पृथ्वी पर होने वाले बदलावों का अध्ययन किया है, बल्कि उन्होंने यह भी देखा है कि यदि अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में कोई बदलाव होता है तो उसका पृथ्वी के जीवों पर

गूगल कम्पनी सभी को अमर कर देना चाहती है

आज आधुनिकतम चिकित्सा व्यवस्था और जैव तक्नोलौजी मानव के जीवन को लम्बा करने की दिशा में अनुसन्धान कर रही हैं। पिछले दौर में ज़्यादा से ज़्यादा निजी कम्पनियाँ और निजी अनुसन्धान केन्द्र इस दिशा में काम कर रहे हैं। हाल ही में इण्टरनेट महाकम्पनी 'गूगल ने भी इसी दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों गूगल ने अपनी नई कम्पनी कैलिको का नाम सार्वजनिक किया है, जो मानव के स्वास्थ्य और सुख से जुड़ी समस्याओं की दिशा में काम करेगी। लेकिन गूगल की इस कम्पनी का मुख्य उद्देश्य जीवन को और लम्बा करने की सम्भावना का अध्ययन करना है। फिलहाल गूगल कम्पनी ने अपनी अधिकांश योजनाओं को गोपनीय रखा हुआ है। लेकिन पर्यवेक्षकों का ख़याल है कि यह नई कम्पनी बढ़ती उम्र के साथ पैदा होने वाली बीमारियों और कैंसर के क्षेत्र में अनुसन्धान करेगी। गूगल के निकटस्थ सूत्रों के अनुसार शुरू में 'कैलिको' में एक छोटी-सी टीम काम करेगी, जो कैंसर के ख़िलाफ़ संघर्ष करने के लिए नई तक्नोलौजी का विकास करेगी। sabhar :  http://hindi.ruvr.ru और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_09_26/244288115/

भूल जाइए रोबोट, अब आ गया जीबोट

दुबई में एक कमाल का जीबोट तैयार किया गया है जो उर्जा प्रबंधन के तौर तरीकों में भारी बदलाव लाएगा. यह हकीकी रोबोट तार और बिना तार दोनों नेटवर्कों की सहायता से काम करेगा. पैसेफिक कंट्रोल्स नाम की कंपनी ने इस जीबोट को बनाया है. यह जीबोट शहर के पारिस्थिकी तंत्र का प्रबंधन करने वाली दुनिया की पहली कोशिश ‘गैलेक्सी’ के विकास का हिस्सा है. शिकागो में समारोह में कंपनी के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिलीप राहुलान ने इस तकनीक का अनावरण किया   था उन्होंने बताया, ‘प्रबंधित सेवाओं का नया स्तर है जीबोट. स्वचालित सेवाओं के विभिन्न नेटवर्कों में इन तेज, खुद से सीखने वाले सॉफ्टवेयरों को लगाया जाएगा.’ उन्होंने बताया कि दुनिया भर में गैलेक्सी की सराहना हुई है. sabhar :.. http://aajtak.intoday.in

रोबोट को जिंदा मशीन बनाने की तैयारी

मनुष्य के रोमांच और खेल के लिए बैटरी लगा कर बने रोबोट्स के दिन अब लद गए. रोबोटिक्स विज्ञान और तकनीन में नई क्रांति हो रही है जिसे इवोल्यूशनरी रोबोटिक कहा जाता है. अब रोबोट्स का पालतू जानवर की तरह इस्तेमाल करने का विचार. बीलेफेल्ड के रोबोटिक्स प्रोफेसर हेल्गे रिटर अपने जापानी सहयोगी मिनोरू असादा के साथ. चाइल्ड रोबोट सीबी2 प्रोजेक्ट के साथ. सिर्फ पालतू बनाने का विचार ही नहीं बल्कि वे रोबोटों को पैदा करने की भी बात कर रहे हैं. इवोल्यूशनरी रोबोटिक की खासियत है कि इसके तहत रोबोट्स में मनुष्यों वाली विशेषताएं भी होंगी. रोबोट में इस्तेमाल होने वाली मशीनें डायनामिक होंगी, आस पास के वातावरण से खुद को एडजस्ट कर लेंगी, खुद को बदल सकेंगी, नकार कर सकेंगी. साथ ही अपने आप सीख सकेंगी, सहायता करेंगी, विकसित होंगी और जिंदा प्राणी या व्यक्ति की तरह खुद को विकसित कर सकेंगी. गड़बड़ी के मारे साल में एक बार रोबोट्स की चैंपियनशिप होती है जिसमें फुटबॉल, राहत ऑपरेशन और घर में काम आने वाले रोबोट्स एक दूसरे से भिड़ते हैं. रोबोटों की क्षमता दिखाने वाली ये प्रतियोगिताएं अक्सर रोबोटों में गड़बड़ी के कारण

जल्दी ही खुद के अंग विकसित कर सकेंगे आप

वैज्ञानिकों के मुताबिक पांच साल के भीतर मानव अपने खुद के अंग जैसे जोड़, रीढ़ की हड्डी और हृदय आदि को विकसित कर सकेगा, जिससे बुजुर्ग लोग अधिक उम्र में भी स्वस्थ रह सकेंगे। लीड्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड बायलॉजिकल इंजीनियरिंग का एक दल इस परियोजना पर काम कर रहा है, जिसके तहत बुजुर्ग लोग अपने क्षतिग्रस्त जोड़ों और हृदय को फिर से विकसित कर सकेंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस परियोजना का उद्देश्य शरीर में इच्छानुरूप अंगों को बदल सकना है और अनुसंधान केंद्रों का प्रमुख ध्यान टिश्यू और मेडिकल इंजीनियरिंग की एक प्रणाली के इर्दगिर्द लगाना है। प्रतिरक्षा विज्ञानी प्रोफेसर ऐलीन इंघम के नेतृत्व में वैज्ञानिक मनुष्य तथा जंतुओं के अंगों से जीवित कोशिकाओं को निकालने की तकनीक पर काम कर रहे हैं। जीवित कोशिकाएं स्नायुओं, जोड़ों और रक्त वाहिकाओं का पांच प्रतिशत से कम विकास करती हैं और इन्हें विशेष एंजाइमों तथा डिटर्जेंटों के साथ हटाया जा सकता है। द डेली टेलीग्राफ की खबर के अनुसार इन जैविक कोशिकाओं को रोगियों के शरीर में प्रतिरोपित किया जाता है, जिसके बाद शरीर खुद ब खुद कोशिकाओं को बद

जापान के वैज्ञानिक करेंगे सपनों की वीडियों रिकॉर्डिंग

आप लिखी गयी कहानियों की फिल्में देखते रहें, टीवी पर अपना मनपसन्द धारावाहिक देखते हैं, लेकिन आपने कभी ये सोचा है कि यदि सोते वक्त आपके द्वारा देखे गये सपनों को स्क्रीन पर देखने का मौका मिले तो कैसा लगेगा? बेशक ये किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। जापानी वैज्ञानिक मानव मसितष्क की अवचेतन अवस्था निद्रा में देखें गये सपनों में घुसपैठ करने और, उनकी यूसबी, फ्लैश ड्राइव या वीडियो डिस्क पर रिकार्डिग करने में जी-जान से जुटें है। कहने-सुनने में में यह काल्पनिक जरूर लग रहा होगा, लेकिन इस समय जापान के नारा नगर के वैज्ञानिक स्वप्नों में घुसपैठ कर उसकी वीडियो रिकार्डिंग की तैयारी में लगे हुए हैं। इस तकनीक का इस्तेमाल करने में सोये हुये व्यकित को किसी भी प्रकार कोर्इ दिक्कत नहीं होगी।इस विषय पर वहां के तकोलोजी संस्थान के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि मनुष्य के अवचेतन में झांककर यह देखा जा सकता है कि सोया हुआ व्यकित किस तरह के सपने देख रहा है। फिलहाल अब उनका अगला टारगेट है कि मनुष्य द्वारा देखे गये सपनों की वीडियो रिकार्डिंग करना। जापानी वैज्ञानिकों का यह शोध अपने-आप में अदभुत है। वें नींद के अन्य चरणों

भारत में रूसी टेकनोलाजी से सस्ती बिजली ऊर्जा

भारत में जो बिजली घर रूसी टेकनोलाजी पर बनाये गये हैं उनके द्वारा उत्पादित बिजली ऊर्जा अमरीका की भागीदारी से निर्मित बिजली घरों द्वारा उत्पादित ऊर्जा से 50 प्रतिशत सस्ती होगी। यह सूचना इंडियान एक्सप्रेस समाचार पत्र द्वारा दी गयी है। उसके अनुसार अगर कुडनकुलम के दूसरे और तीसरे रिएक्टरों का निर्माण किया जायेगा तो उसके द्वारा उत्पादित एक किलोवाट ऊर्जा का दाम केवल 6 रुपये होगा। कुडनकुलम के पहले रिएक्टर को आनेवाले समय में चालू किया जायेगा। दूसरे रिएक्टर का निर्माण पूरा होनेवाला है। तिसरे और चौथे रिएक्टरों के निर्माण के लिये कांट्रेक्ट की तैयारी की जा रही है। sabhar :http://hindi.ruvr.ru/ और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_09_19/243252388/