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दिमाग के रहस्य खोलने के लिए सबसे बड़ा दांव

इंसानी दिमाग़ को समझने के लिए दस साल तक चलने वाली एक अरब पाउंड (करीब 99 अरब रुपये) लागत की परियोजना पर काम शुरू हो गया है. दुनिया के 135 संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिक इस परियोजना में भाग ले रहे हैं जिसका नाम है दि ह्यूमन ब्रेन प्रोजेक्ट (एचबीपी). इनमें से ज़्यादातर वैज्ञानिक यूरोपीय हैं. यह हर साल प्रकाशित हज़ारों न्यूरोसाइंस के शोधपत्रों से दिमाग पर शोध के आंकड़ों का डाटाबेस भी तैयार करेगा.इसका उद्देश्य एक ऐसी तकनीक विकसित करना है जिससे दिमाग की कंप्यूटर से नकल तैयार की जा सके. ईपीएल, स्विट्ज़रलैंड में एचबीपी के निदेशक प्रोफ़ेसर हेनरी मार्कराम कहते हैं, "ह्यूमन ब्रेन प्रोजेक्ट पूरी तरह नई कंप्यूटर साइंस टेक्नोलॉजी बनाने की कोशिश है ताकि हम सालों से दिमाग के बारे में जुटाई जा रही सारी जानकारियों को एकत्र कर सकें." नक्शा बनाना संभव नहीं प्रोफ़ेसर मार्कराम कहते हैं, "हमें अब यह समझने लगना चाहिए कि इंसान का दिमाग इतना ख़ास क्यों होता है, ज्ञान और व्यवहार के पीछे का मूल ढांचा क्या है? दिमागी बीमारियों का निदान कैसे किया जाए और दिमागी गणना के आधार पर नई तकनीकों का

किसी भी भाषा को ट्रांसलेट कर देगा ये इंटेलिजेंट चश्मा

टोक्यो.  जापान ने एक ऎसा चश्मा तैयार किया है जिसको पहनकर आप किसी भी भाषा को आसानी से पढ सकते हैं, क्योँकि यह चश्मा किसी भी भाषा को ट्रांसलेट कर आपके सामने पेश कर सकता है और आप आसानी से इस चश्मे को पहनकर किसी भी भाषा को आसानी से पढ सकते हैं. आपकी जानकारी के लिये बता दें कि यह चश्मा पर्यटकों के लिए वरदान साबित हो सकता है. इस तकनीक से विदेश यात्रा करने वाले पर्यटकों, रेस्त्रां का मैन्यू और अन्य दस्तावेज को तुरंत पढने में सहायता मिलेगी. जापान की एक बडी मोबाइल ऑपरेटर कंपनी का कहना है कि उसने एक ऎसा चश्मा तैयार किया है जो अपरिचित शब्दों की एक सूची का अनुवाद कर सकता है. खबर के अनुसार कंपनी का कहना है कि उसका यह इंटेलीजेंट चश्मा किसी भी अपरिचित शब्दों की अनुवादित छवि पेश कर सकता है. यह चश्मा देखने के काम आने के साथ-साथ आभासी चित्रों की भी हेरफेर करने में सहायक है. कंपनी के अनुसार इस तकनीक को जापान के एक कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक शो सीटैक-2013 में प्रदर्शित किया जाएगा. कंपनी का कहना है कि यह चश्मा, जिस पर अभी शोध जारी है, उपभोक्ता की अपनी भाषा में अनुवादित विषयवस्तु प्रस्तुत कर सकता है. गूगल

भविष्य की दुनिया क्या कनेक्टेड होगी?

भविष्य की पीढ़ियां जिस दुनिया में रहेंगी वे हर लिहाज़ से ज़्यादा कनेक्टेड (जुड़ी हुई) होंगी. लेखक टेड विलियम्स पूछते हैं कि क्या ये एक जुड़ी हुई दुनिया यानी कनेक्टेड वर्ल्ड कैसे हमारे समाज और हमें बदल देगी. "तर्कशील व्यक्ति दुनिया के हिसाब से खुद को ढाल लेता है जबकि अविवेकी व्यक्ति दुनिया को अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करता है. इसलिए जितनी भी तरक्की है वह अविवेकी मनुष्य पर निर्भर है." जॉर्ज बर्नार्ड शॉ भले ही हम उन्हें तब महसूस नहीं कर पाते हैं जब वे घटित हो रहे होते हैं.तकनीक के हर बड़े क़दम ने मानव समाज को व्यापक रूप में बदला है. इसलिए ही हम जानते हैं कि वे बड़े तकनीकी बदलाव थे. निजी विचार और समूह जेबीएस हेल्डेन के ब्रह्मांड के बारे में दिए गए प्रसिद्ध वक्तव्य में कहा जाए तो, 'भविष्य आपकी कल्पना से अलग नहीं होगा बल्कि जितनी आप कल्पना कर सकते हैं उससे बहुत अलग होगा.' हम सामाजिक प्राणी हैं लेकिन भिन्न होने के ख़तरे तब से कम हुए हैं जब से व्यक्तिवाद हमारे समाज और स्वयं हम में बड़ी ताक़त बनता चला गया है. भविष्य की दुनिया ज़्यादा कनेक्टेड होगी नवीन

कपड़े जो राह दिखाएंगे और ना गुम होंगे

मचीना ऐसी जैकेट बना रही हैं जिससे संगीत पैदा किया जा सके चेन्नई में इंजीनियरिंग छात्राओं ने छेड़खानी करने वालों को  क्लिक करें करंट मारने वाले अंतर्वस्त्र बनाए तो ज़्यादातर लोगों को पहली बार पता चला कि तकनीक का इस्तेमाल कपड़ों में कितने काम का हो सकता है. लेकिन दुनिया भर में पहनने योग्य तकनीक को लेकर कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. कंपनी की सह संस्थापक लिंडा मचीना कहती हैं, “हम एक कार्यक्रम में गए और देखा कि एक व्यक्ति सिर्फ़ कंप्यूटर से संगीत बजा रहा था.”कैलिफ़ोर्निया की एक नई कंपनी मचीना मेक्सिकन कारीगरों का इस्तेमाल कर एक ऐसी जैकेट तैयार कर रही हैं जो संगीत पैदा कर सके. व कहती हैं, “हमने सोचा कि ऐसी चीज़ बनाई जाए जिससे संगीतकार अपने शरीर का इस्तेमाल कर ही संगीत पैदा कर सके.“ जैकेट से संगीत उनकी जैकेट में कपड़ों के नीचे चार लचीले सेंसर हैं. एक एक्सलेरोमीटर मीटर है जो आपकी बांह की हरकत को भांप लेता है. एक जॉयस्टिक है और चार दबाने वाले बटन हैं. पहनने वाले की ज़रूरत के अनुसार सेंसर और बटन जैसे चाहे लगाए जा सकते हैं. यह एक इंटरफ़ेस सॉफ्टवेयर से कंप्यूटर या मोबाइल फ़

पहनने वाली तकनीक से बदलेगी दुनिया?

गूगल ग्लास से पहले की दुनिया की ऐसी नहीं थी, जैसी अब हो गई है. इस ग्लास के इस्तेमाल से आप फोटो ले सकते हैं, मैसेज भेज सकते हैं. इससे दिशा का पता चल सकता है और दूसरी तमाम चीजें भी कर सकते हैं. क्लिक करें ऐसे में वाकई में गूगल ग्लास अविश्वसनीय चीज है. गूगल ग्लास उन पहनने  वाली तकनीकों में शामिल है जिसके जरिए माना जा रहा है कि आम लोगों का जीवन बदल सकता है. हालांकि इस मुद्दे पर अभी बहस जारी है कि कंप्यूटर और इंसानों के नजदीकी बढ़ने से किस तरह के सकारात्मक बदलाव होंगे, इन तकनीकों के बाज़ार और कारोबार के बारे में ज़्यादा चर्चा देखने को नहीं मिलती. 'तकनीक से हैप्पी बर्थडे' " कल्पना कीजिए, एक शख्स बॉयलर को पकड़े हुए है, वह एक भारी उपकरण के नीचे है और उसे अपने हाथों के सहारे से उसे पकड़े रहना है, इसके बावजूद वह कंप्यूटिंग वातावरण में काम कर सकता है. " वेद सेन, प्रमुख, मोबिलिटी विभाग, कॉग्निजेंट टेक्नॉलॉजी सोल्यूशन हालांकि अभी वियरेबल टेक्नॉलॉजी (ऐसी तकनीक जिसे पहनना संभव होगा) के शुरुआती दिन हैं लेकिन ढेरों ऐसी कंपनियां हैं जो इसके कारोबार पर ध

आखिर अंदर से कैसा होता है मस्तिष्क?

अमरीका में वैज्ञनिक पहली बार मनुष्य के दिमाग का पूरा नक्शा जारी करने वाले हैं. इस नक़्शे से इस बात को समझने में मदद मिलेगी कि क्यों कुछ लोग स्वाभाविक रूप से अधिक वैज्ञानिक सोच वाले, संगीत के रसिक या कलाप्रेमी होते हैं. वैज्ञानिक मैसेच्यूसेट्स के जनरल अस्पताल में मौजूद दुनिया की सबसे ताकतवर ब्रेन स्कैनिंग मशीन से दिमाग का नक्शा तैयार करने में लगे हैं.हाल ही में कुछ चित्रों को अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस की एक बैठक में जारी किया गया. इस स्कैनर को चलाने के लिए 22 मेगावाट बिजली की दरकार होती है. इतनी बिजली के साथ एक परमाणु पनडुब्बी बड़े ही आराम से चलती हैं. अभी तक वैज्ञानिकों ने केवल 50 मनुष्यों के गहन स्कैन किए हैं . दिमाग का स्कैन " हम दिल का स्कैन कर के अच्छी तरह से बता सकते हैं कि वहां क्या चल रहा है या क्या गलत घट रहा है. कितना अच्छा होगा अगर हम दिमाग की इस तरह की तस्वीरे निकालें और लोगों को सलाह दे पायें कि उन्हें उनकी समस्या के लिए क्या करना है " प्रोफ़ेसर वैन वीडीन वैज्ञानिक  क्लिक करें दिमाग  की बारीक नसों में मौजूद तर

दक्षिण कोरिया ने बनाए पेट्रोल-उत्पादक जीवाणु

दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने संसार में सबसे पहले ऐसे जीवाणु पा लिए हैं जो पेट्रोल बना सकते हैं| देश के विज्ञान, सूचना-संचार प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक प्राक्कल्पना मंत्रालय ने यह बताया है| कोरियाई अग्रणी विज्ञान और टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट में विकसित ये जीवाणु ग्लूकोज़ “खाते” हैं और बदले में देते हैं पेट्रोल| प्रयोगों के दौरान ऐसे जीवाणुओं वाले एक लीटर घोल से 580 मिलीग्राम ईंधन प्राप्त हुआ| यह ईंधन आम पेट्रोल से थोड़ा भिन्न है तो भी इसका व्यापक उपयोग हो सकता है, सूचना में कहा गया है और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_09_30/DKoriya-petrol-jivanu/ sabhar : http://hindi.ruvr.ru