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दिमाग़ की उत्तेजना दिल के लिए फायदेमंद!

जेम्स गैलाघर हेल्थ एडिटर, बीबीसी न्यूज़ वेबसाइट दिमाग़ के एक हिस्से की उत्तेजना दिल के लिए फायदेमंद हो सकती है. 'प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंस' में प्रकाशित इस रिसर्च पेपर के अनुसार दिमाग़ का जो हिस्सा शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करता है, उसके उत्तेजित होने से दिल का दौरा पड़ने के बाद मरीज़ की हालत सुधर सकती है. 'द स्ट्रोक एसोसिएशन' ने कहा है कि रिसर्च से दिलचस्प नतीजे निकले हैं. देखा गया है कि दिल के दौरे से लोगों की याद्दाश्त चली जाती है, उनकी गतिविधियों और बातचीत करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.अध्ययन में चूहे के दिमाग़ पर तेज़ रोशनी डाली गई. ये चूहे उन जानवरों की तुलना में तेजी से दौड़ने लगे जिन पर यह प्रयोग नहीं आज़माया गया था. ख़ून के थक्के से दिमाग़ की कोशिकाओं को ऑक्सीजन और शुगर की आपूर्ति बंद हो जाती है और वे कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं. स्ट्रोक होने की सूरत में नुक़सान कम हो इसके लिए जल्द से जल्द इलाज ज़रूरी होता है. उत्तेजना स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन की रिसर्च टीम ने जानवरों पर परीक्षण करके इस बात का पत

नई क़िस्म की सूर्य-बैटरियों के निर्माण की तक्नोलौजी खोज ली गई

आस्ट्रेलिया की फ़्लींडेर्स यूनिवर्सिटी में प्लास्टिक लेमिनेशन करके लचीली सूर्य-बैटरियों के निर्माण की ऐसी नई तकनीक खोज ली गई आस्ट्रेलिया की फ़्लींडेर्स यूनिवर्सिटी में प्लास्टिक लेमिनेशन करके लचीली सूर्य-बैटरियों के निर्माण की ऐसी नई तकनीक खोज ली गई है जो कहीं अधिक सस्ती है। इस आविष्कार से नई पर्यावरण शुद्ध ऊर्जा की ओर आगे बढ़ना आसान हो जाएगा। हालाँकि प्लास्टिक की सूर्य-बैटरियों के क्षेत्र में पिछले पन्द्रह साल से अनुसंधान किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी इस दिशा में आजकल उपयोग में लाई जा रही तकनीक बड़ी महँगी पड़ती है। परम्परागत् रूप से प्लास्टिक पैनल बनाने की तकनीक में एक के बाद एक विभिन्न सामग्रियों की परतें एक-दूसरे के ऊपर चढ़ाई जाती हैं। लेकिन समय के साथ-साथ ये सामग्रियाँ घिस जाती हैं और सूर्य-बैटरियाँ काम करना बन्द कर देती हैं। नई तकनीक के अनुसार दो विद्युत-संचरण परतों पर विभिन्न सामग्रियों की परत चढ़ाने के बाद ऊपर से उस पर प्लास्टिक लेमिनेशन किया जा सकेगा। इस लेमिनेशन के फलस्वरूप सामग्रियों का घिसना और आपस में मिलना रूक जाएगा और सूर्य-बैटरी कहीं अधिक कुशलता से काम कर सकेगी। ले

कृत्रिम हाथ असली हाथ जैसा

  रोम.   किसी दुर्घटना में अपना हाथ गंवा चुके लोगों के लिए वैज्ञानिक एक खुशखबरी लाए हैं. शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कृत्रिम हाथ बनाने में कामयाबी हासिल करली हैं जो काफी कुछ असली हाथ जैसा हैं. यानि यह कृत्रिम हाथ चीज़ों को पकड़ने के साथ-साथ उन्हें महसूस भी कर सकेगा. यूरोपीय शोधकर्ताओं ने अपनी इस सफलता की घोषणा करते हुए कहा है कि पहली बार एक बायोनिक हाथ के जरिए एक व्यक्ति मुट्ठी में पकड़ी गई चीज की बनावट और आकार समझने में कामयाब रहा है. यानी कृत्रिम हाथ भी अब महसूस करने में मदद कर सकेगा. इटली में बायोनिक हाथ पर एक महीने तक ट्रायल चला. इस कामयाबी ने शोधकर्ताओं में नया जोश भर दिया है. अब तक कृत्रिम हाथ का इस्तेमाल करने वाले को वस्तु के पकड़े जाने का कोई एहसास नहीं होता था. साथ ही कृत्रिम हाथ को नियंत्रित करना मुश्किल होता है, मतलब यह कि कृत्रिम हाथ का इस्तेमाल करने वाला वस्तु को पकड़ने की कोशिश में उसे नुकसान पहुंचा सकता है. शोध में शामिल सिलवेस्ट्रो मिचेरा के मुताबिक, जब हमने ये कृत्रिम हाथ सेंसर की मदद से उस व्यक्ति के हाथ पर लगाया तो हम उस हाथ में अहसास उसी समय बहाल कर सके और वह अपने

चांद पर एलियन्स

लंदन.  गूगल मैप के जरिये एक शोधकर्ता ने चंद्रमा की सतह का अध्ययन किया तो अचानक उसे चंद्रमा की सतह पर ऐसा रहस्यमय त्रिकोणीय स्पेसशिप के दिखाई दिया, जो एलियन्स के स्पेसशिप जैसा दिखता है. शोधकर्ता ने अपने इस वीडियो को ऑनलाइन खोज को प्रोत्साहित करने के लिए यूट्यूब पर wowforreel के नाम से पोस्ट किया है. यूट्यूब पर पोस्ट किए अपने वर्णन में इस शोधकर्ता ने कहा है कि आज तक एलियन्स के संदर्भ में हुई यह खोज अद्वितीय और अद्भुत है. शोधार्थी ने दावा किया कि उसे चंद्रमा पर दिखाई देने वाला त्रिकोणीय स्पेसशिप बिलकुल सुपर सीक्रेट स्टेल्ट एयरक्राफ्ट की उस टेक्नोलॉजी के समान था, जिसका दावा टेक एंड गेजेट्स न्यूज में किया जाता है. हालांकि उसने यह भी कहा कि चंद्रमा पर दिखाई देने वाली आकृति धरती पर बने अब तक के सबसे बड़े एयरक्राफ्ट से कई गुणा बड़ी है.sabhar :http://www.palpalindia.com/

अब चंद घंटों में बना लीजिए घर

 आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस मकान को बनने में ना जाने कितना-कितना समय लग जाता है इस नई वैज्ञानिक क्रांति के बाद वह महज 24 घंटों में ही बनकर तैयार हो जाएगा. दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रोफेसर बाहरोख खॉसनेविस के दल ने एक ऐसे जाइंट 3डी प्रिंटर का निर्माण किया है जो 2,500 स्क्वैर फुट के मकान का निर्माण महज 24 घंटों में कर पाने में सक्षम है. बाहरोख का कहना है कि इस प्रिंटर के जरिए आप परत दर परत एक घर का निर्माण कर सकते हैं और वो भी मात्र एक दिन में. इतना ही नहीं प्रोफेसर बाहरोख का यह भी दावा है कि इस 3डी प्रिंटर की सहायता से ना सिर्फ एक घर बल्कि आप कॉलोनी भी बसा सकते हैं. इसके अलावा प्रोफेसर का यह भी दावा है कि इससे अलग - अलग डिजाइन और स्ट्रक्चर के मकान भी बनाए जा सकते हैं. अत्याधिक नवीन तकनीक के साथ निर्मित हुआ यह 3डी प्रिंटर एक ऐसी क्रांति कहा जा सकता है जिसके बारे में कुछ वर्षों पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था. अगर यह 3डी प्रिंटर इन सब दावों पर खरा उतरता है तो आपातकाल के समय निवास स्थानों का निर्माण किया जा सकता है और वो भी अपेक्षाकृत कम खर्च के  sabhar :htt

नासा ने ली हैंड ऑफ गॉड की तस्वीर

यूएस स्पेस एजेंसी नासा के न्युक्लियर स्पेक्ट्रोस्कोफिक टेलिस्कोप एरे ने पल्सर विंड नेबुला जिसे हैंड ऑफ गॉड के नाम से भी जाना जाता है की नई तस्वीर ली है. टेलिस्कोप से ली गई इस तस्वीर में नेबुला को दिखाया गया है जो कि 17,888 लाइट-ईयर्स दूर है. इसे एक मृत स्पिनिंग स्टार ने रोशनी दी है जिसका नाम है पीएसआर 1509-58 इस पल्सर की कुल लम्बाई19 किलोमीटर है लेकिन यह हर एक सैकंड में सात बार घूमता है. जैसे ही यह स्पिन होता है यह उन कणों को फैंकता है जो स्टार की मृत्यु के दौरान उछले थे. यह कण मैगनेटिक फील्ड से जाकर मिलते हैं जिससे एक्स-रे में ग्लो आ जाता है. नासा के लिए इस ऑबजेक्ट को घेरे हुए सबसे बड़ी रहस्यमय बात यह है क्या यह पल्सर के कण चीजों के साथ मिलने के बाद ऎसे दिखाई देता है या फिर यह वास्तव में हाथ का आकार ही है. नूसटार ने पहली बार इस चित्र को हाई एनेर्जी एक्स रे में खींचा है जो कि नीले रंग में दिखाई दे रहा है. नासा के चंद्रा एक्स-रे ऑब्जरवेट्री द्वारा पहले ली गई इमेज लोअर एनर्जी एक्स र-रे में ली गई है जो कि हरे और लाल रंग में दिखाई गई है.sabhar :http://www.palpalindia.com/

नौकरियां छीन लेंगे क्या रोबोट

अगर आपको डर लगता है कि रोबोटों का वक़्त आने वाला है तो डरने की ज़रूरत नहीं. वो पहले से ही हमारे बीच मौजूद हैं. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के प्रतिनिधि पहले ही हमारी ज़िंदगी के हर पहलू में शामिल हैं- वह हमारे इनबॉक्स को स्पैम मुक्त रखते हैं, वह इंटरनेट के प्रयोग में मदद करते हैं, वह हमारे हवाई जहाज़ चलाते हैं और अगर गूगल को सफ़लता मिली तो जल्द ही वे हमारे लिए हमारी गाड़ियां भी चलाएंगे. सिलिकॉन वैली के सिंगुलैरिटी विश्वविद्यालय में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के प्रमुख, नील जैकबस्टीन ने बीबीसी से कहा, "आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बसी हुई है." वे कहते हैं, "इसका इस्तेमाल दवाइयों, कानून, डिज़ाइन बनाने में और पूरी तरह स्वचालित उद्योग में होता है." और हर दिन अल्गोरिद्म पहले से ज़्यादा चतुर होती जा रही है. इसका मतलब यह है कि आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी चाहत- ऐसी मशीन की खोज, जो इंसानों जितनी ही बुद्धिमान हो- पूरा होने के बेहद करीब हो सकती है. जैकबस्टीन का अनुमान है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस 2020 के दशक के मध्य तक इंसा