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मिला हमेशा जवान रहने का नुस्खा

एक प्रोफेसर का दावा है कि उसने दक्षिण जापान के लोगों की लंबी उम्र का राज ढूंढ निकाला है. यह राज एक खास पौधे के अर्क में छुपा है, जिसे स्थानीय लोग "गेटो" के नाम से जानते हैं. ओकिनावा की रियूक्यूस यूनिवर्सिटी में कृषि विज्ञान के प्रोफेसर शिंकिचि तवाडा ने दक्षिण जापान के लोगों की लंबी उम्र का राज ढूंढ निकाला है. तवाडा को विश्वास है कि गहरे पीले-भूरे से रंग का दिखने वाला एक खास पौधे "गेटो" का अर्क इंसान की उम्र 20 फीसदी तक बढ़ा सकता है. तवाडा कहते हैं, "ओकिनावा में कई दशक से  लंबी उम्र तक जीने का दर  दुनिया में सबसे ज्यादा रहा है और मुझे लगता है कि इसका कारण जरूर यहां के परंपरागत खान पान में ही छुपा है." काइको उहारा 64 साल की हैं लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम की दिखती हैं. इसका राज वह गेटो को बताती हैं. काइको अपनी दुकान में ऐसे सौंदर्य उत्पाद भी बेचती हैं जिनमें गेटो ही मुख्य घटक होता है, "मैं गेटो का काढ़ा पीती हूं, जो मुझे तरो ताजा कर देता है, और मैं इस पौधे के अर्क को पानी में घोल कर लगाती हूं जिससे झुर्रियां भी कम होती हैं." दक्षिण जाप

जब सबको पता होगा हमारे बारे में

कल्पना कीजिए एक दुनिया की जहां निजता जैसी कोई चीज नहीं होगी. मच्छर के साइज का एक रोबोट आए और बिना किसी अदालती आदेश के आपका डीएनए चुरा ले जाए. ऐसा कुछ सच होने वाला है. शुरुआत हो चुकी है. आप खरीदारी के लिए जाएं और दुकानों को पहले से ही पता हो कि आपकी खरीदने की आदतें कैसी हैं. भविष्य की दुनिया की ऐसी कई तस्वीरें हार्वर्ड के कुछ प्रोफेसरों ने दावोस के विश्व आर्थिक फोरम में खींची. यहां दुनिया भर से आए राजनीतिक और आर्थिक जगत के चोटी के प्रतिनिधियों को बताया गया कि अब व्यक्तिगत निजता जैसी कोई धारणा नहीं रही. हार्वर्ड के कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर मार्गो सेल्टजर ने कहा, "आपका आज में स्वागत है. हम उस दुनिया में पहुंच चुके हैं. जिस निजता को हम अब तक जानते आए हैं, वह अब संभव नहीं है." जेनेटिक्स के क्षेत्र में शोध करने वाले एक अन्य हार्वर्ड प्रोफेसर सोफिया रूस्थ ने कहा कि इंसान की व्यक्तिगत जेनेटिक सूचना का सार्वजनिक क्षेत्र में जाना अब अपरिहार्य हो गया है. रूस्थ ने बताया कि खुफिया एजेंटों को विदेशी राजनेताओं की जेनेटिक जानकारी चुराने को कहा जा रहा है ताकि उनकी बीमारियों और जिं

मंगल पर 'एलियन की जांघ की हड्डी' धरती से बाहर जीवन का सबूत?

लंदन नासा के क्यूरियॉसिटी रोवर को मंगल की सतह पर अकेले चक्कर काटते हुए 2 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। हाल ही में इस रोवर द्वारा खींची गई एक तस्वीर से एलियन्स के वजूद में यकीन रखने वाले बेहद उत्साहित हैं। उन्हें मंगल की सतह पर कुछ ऐसा दिखा है, जिसे वे इस बात का सबूत बता रहे हैं कि हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कोई और भी है। मंगल की सतह पर कुछ ऐसा दिखा है, जिसे 'एलियन की जांघ की हड्डी' बताया जा रहा है।  एलियन की तलाश और उनकी मौजूदगी को साबित करने की कोशिश में नई-नई थिअरीज पेश करने वाले लोग नासा के क्यूरियॉसिटी रोवर की खींची इस तस्वीर के आधार पर दावा कर रहे हैं कि मंगल ग्रह पर भी किसी वक्त जीवन रहा होगा। उनका दावा है कि रोवर के मैस्टकैम से 14 अगस्त को ली गई इस तस्वीर से साफ होता है कि किसी वक्त मंगल की सतह पर बड़े जानवर और शायद डायनॉसॉर तक घूमा करते थे। हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि हडड  'नॉर्दर्न वॉइसेज ऑनलाइन' नाम के पोर्टल पर एक अज्ञात शख्स ने लिखा है, 'इस तस्वीर में दिख रही हड्डी से साफ होता है कि मंगल पर किसी वक्त कुछ तो रहता था।&#

ऐसे आप खुद बिजली पैदा कर सकेंगे

वैज्ञानिकों ने विश्व के सबसे पतले इलेक्ट्रिक जेनरेटर का किया एक्सपेरिमेंट पीटीआई, न्यू यॉर्क अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने सबसे दुबला जेनरेटर विकसित किया है, जो देखने में ट्रांसपैरेंट, बेहद हल्का, मोड़ा जा सकनेवाला और खींचकर लंबा किए जा सकने की क्षमता से लैस होगा। कोलंबिया इंजीनियरिंग ऐंड जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के रिसर्चर्स ने इसे पीजोइलेक्ट्रिसिटी नाम दिया है और पहली बार इसका एक्सपेरिमेंटल ऑब्जर्वेशन किया है। ये कमाल है मॉलेब्डेनम डाइसल्फाइड (MoS2) का। वैज्ञानिकों ने इसे एटॉमिक रूप से बेहद पतले मैटीरियल में डाला और इसका पीजोट्रॉनिक इफेक्ट देखा। वैज्ञानिकों ने पाया कि ये एक विशेष तरह के इलेक्ट्रिक जनरेटर की तरह काम कर रहा है। रिसर्चर्स ने पावर प्रोडक्शन कर इसका डिमॉन्सट्रेशन भी किया। क्या है पीजोइलेक्ट्रिक इफेक्ट एक खास बात और इस जेनरेटर में कि पीजोइलेक्ट्रिक इफेक्ट को इससे पहले केवल थिऑरिटिकली ही समझा गया था। पीजोइलेक्ट्रिसिटी एक ऐसा इफेक्ट है, जिसमें किसी मैटीरियल को खींचने या दबाने से बिजली पैदा होती है। इस प्रयोग से मॉलेब्डेनम डाइसल्फाइड की खासियत का

2014 में साइंस' के टॉप 10 आविष्कार

साइंस पत्रिका ने साल 2014 में सामने आईं ढेरों नई खोजों और आविष्कारों में से चुनी हैं ये 10 खास चीजें. इसमें चूहों में मिले चिरयौवन के राज से लेकर डायनासोर से जुड़े खुलासे शामिल हैं. चांद पर पहला कदम रखने जैसा बड़ा कदम साल 2014 की सबसे बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि रही यूरोपीय स्पेस एजेंसी के रोजेटा मिशन के नाम. 12 नवंबर को रोजेटा मिशन में ऑर्बिटर फिले को कॉमेट 67पी/चूरियूमोव-गेरासिमेंको पर सफलतापूर्वक लैंड कराया गया. फिले पर कुल 20 वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं जो वहां धरती पर जीवन की उत्पत्ति और ब्रह्मांड की रचना से जुड़े सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं. इंसानों की बनाई सबसे पहली पेंटिंग अक्टूबर 2014 में साइंस में छपी रिपोर्ट में बताया गया कि इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में चूना पत्थर की गुफा में करीब 40,000 साल पुरानी पेंटिंग मिली है. इसे मानव इतिहास की सबसे पुरानी पेंटिंग माना जा रहा है. इससे पहले तक सबसे पुरानी पेंटिंग यूरोप में मिली मानी जाती थी. पहला सेमी-सिंथेटिक जीव कैलिफोर्निया के स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक बैक्टीरिया ई. कोलाई के डीएनए को बढ़ाने में सफलता

पहला मेंढक जो अंडे नहीं बच्चे देता है

वैज्ञानिकों को इंडोनेशियाई वर्षावन के अंदरूनी हिस्सों में एक ऐसा मेंढक मिला है जो अंडे देने के बजाय सीधे बच्चे को जन्म देता है. एशिया में मेंढकों की एक खास प्रजाति 'लिम्नोनेक्टेस लार्वीपार्टस' की खोज कुछ दशक पहले इंडोनेशियाई रिसर्चर जोको इस्कांदर ने की थी. वैज्ञानिकों को लगता था कि यह मेंढक अंडों की जगह सीधे टैडपोल पैदा कर सकता है, लेकिन किसी ने भी इनमें प्रजनन की प्रक्रिया को देखा नहीं था. पहली बार रिसर्चरों को एक ऐसा मेंढक मिला है जिसमें मादा ने अंडे नहीं बल्कि सीधे टैडपोल को जन्म दिया. मेंढक के जीवन चक्र में सबसे पहले अंडों के निषेचित होने के बाद उससे टैडपोल निकलते हैं जो कि एक पूर्ण विकसित मेंढक बनने तक की प्रक्रिया में पहली अवस्था है. टैडपोल का शरीर अर्धविकसित दिखाई देता है. इसके सबूत तब मिले जब बर्कले की कैलिफोर्निया यूनीवर्सिटी के रिसर्चर जिम मैकग्वायर इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप के वर्षावन में मेंढकों के प्रजनन संबंधी व्यवहार पर रिसर्च कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें यह खास मेंढक मिला जिसे पहले वह नर समझ रहे थे. गौर से देखने पर पता चला कि वह एक मादा मेंढक है, जिसके

1600 किमी प्रति घंटे रफ़्तार वाली कार

ये थोड़ा अंतरिक्ष यान है, कुछ कार जैसा है और कुछ जेट फाइटर जैसा. इन सबका मिला-जुला रूप है ब्लडहाउंड सुपरसोनिक कार, जिसकी रफ़्तार के बारे में आप सुनेंगे तो आपको यक़ीन नहीं होगा. दुनिया के सबसे तेज़ विमान कॉनकॉर्ड की रफ़्तार से बस कुछ ही कम है इसकी स्पीड. अगर सब कुछ इंजीनियरों की योजना के अनुसार चला तो नई पीढ़ी की इस 'कॉनकॉर्ड कार' की स्पीड होगी 1000 मील यानी क़रीब 1600 किलोमीटर प्रति घंटा. ब्लडहाउंड एसएससी ब्लडहाउंड (एसएससी) आख़िर कैसे हासिल करेगी ये रफ़्तार? ब्लडहाउंड प्रॉजेक्ट के चीफ़ इंजीनियर मार्क चैपमैन कहते हैं कि पहला थ्रस्ट एसएससी इंजन कार को 763 मील प्रति घंटे की रफ़्तार देने में ही सक्षम था. ब्लडहाउंड एसएससी में एक-दो नहीं बल्कि तीन इंजन हैं. पहले दो इंजन कंबाइंड हैं, तीसरा इंजन रेसिंग कार की तरह का है. जो कार को रॉकेट जैसी गति देता है. ये इंजन 20 टन की ताक़त से सुपरसोनिक कार को रफ़्तार देगा. चैपमैन कहते हैं कि ब्लडहाउंड एसएससी 1600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार पाने के लक्ष्य से तैयार किया जा रहा है. अनूठी खूबियां ब्लडहाउंड एसएससी को 2015 त

क्लिनिकली डेड इंसान को भी रहता है होश

लंदन किसी का दिल और दिमाग काम करना बंद कर दे तो उसे मरा हुआ ही समझा जाएगा ना, पर क्या कोई यह उम्मीद भी कर सकता है कि वह इंसान अपने आसपास की हलचल महसूस कर रहा होगा। यकीन करना मुश्किल है मगर साइंटिस्ट्स ने 2000 लोगों पर स्टडी के बाद यही पता लगाया है। डॉक्टरों के मुताबिक, मेडिकल लिहाज से डेड करार दिए जा चुके इंसान को भी होश रह सकता है। साउथैंप्टन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने मौत के बाद कैसा लगता है इस बात को जानने के लिए यूके, यूएस और ऑस्ट्रिया के 15 अस्पतालों से मरीजों को चुना। ये वो लोग थे जिन्हें दिल का दौरा पड़ा था। साइंटिस्ट्स ने चार साल तक तहकीकात की और पाया कि इनमें से करीब 40 पर्सेंट लोगों को उस वक्त भी होश था, जबकि क्लिनिकल तौर पर वह डेड करार दिए जा चुके थे। हालांकि बाद में उनके दिल ने दोबारा काम करना शुरू कर दिया। रिसर्चरों के मुताबिक, इनमें से एक शख्स को तो यहां तक याद है कि वह अपने शरीर से किस तरह बाहर आया और कमरे के एक कोने से अपने शरीर के साथ सबकुछ होता हुआ देख रहा था। 'द टेलिग्राफ' के मुताबिक, साउथैंप्टन के 57 साल के एक सोशल वर्कर का कहना था कि बेहोशी और तीन

इंटरनेट के जरिए दूसरे का दिमाग होगा काबू में

वॉशिंगटन।।  वैज्ञानिकों ने ऐसा सिस्टम डिवेलप किया है, जिसमें एक शख्स एक खास इंटरफेस का इस्तेमाल करके दूसरे शख्स की सोच को कंट्रोल कर सकता है। यह इंटरफेस इंटरनेट के जरिए दोनों के दिमागों को कनेक्ट करता है। खास बात यह है कि इसे डिवेलप करने वाली रिसर्च टीम में एक भारतीय भी शामिल है। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में प्रोफेसर राजेश राव ने इलेक्ट्रिकल ब्रेन रेकॉर्डिंग का इस्तेमाल करके अपना दिमागी सिग्नल अपने साथी को भेजा। इस सिग्नल की वजह से उनके साथी की कीबोर्ड पर टिकी उंगली में हरकत हुई। राव के असिस्टेंट स्टोको का कहना है, 'जिस तरह से इंटरनेट कंप्यूटरों को आपस में जोड़ने का काम करता है, ठीक वैसे ही इंटरनेट दिमागों को भी कनेक्ट कर सकता है। हम दिमाग में बसे ज्ञान को एक शख्स से दूसरे में ट्रांसफर करना चाहते हैं।' गौरतलब है कि ड्यूक यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने दो चूहों के बीच ब्रेन-टु-ब्रेन कम्यूनिकेशन होने से जुड़ा प्रयोग किया था। हावर्ड ने भी इंसान और चूहे के बीच ऐसा प्रयोग किया है। राव का मानना है कि उनका यह प्रयोग इंसानों के बीच ब्रेन कम्यूनिकेशन का पहला साइंटिफिक प्रयोग है।  sabhar

चूहे में इंसानी दिमाग

मस्तिष्क के प्रत्यारोपण की दिशा में वैज्ञानिकों ने एक अहम कदम आगे बढ़ाया है. मानव दिमाग का अहम जीन जब उन्होंने चूहे में प्रत्यारोपित किया तो पाया कि चूहे का दिमाग सामान्य से ज्यादा तेज चलने लगा. रिसर्चरों के मुताबिक इस रिसर्च का लक्ष्य यह देखना था कि अन्य प्रजातियों में मानव दिमाग का कुछ हिस्सा लगाने पर उनकी प्रक्रिया पर कैसा असर पड़ता है. उन्होंने बताया कि इस तरह के प्रत्यारोपण के बाद चूहा अन्य चूहों के मुकाबले अपना खाना ढूंढने में ज्यादा चालाक पाया गया. उसके पास नए तरीकों की समझ देखी गई. एक जीन के प्रभाव को अलग करके देखने पर क्रमिक विकास के बारे में भी काफी कुछ पता चलता है कि इंसान में कुछ बेहद अनूठी खूबियां कैसे आईं. जिस जीन को प्रत्यारोपित किया गया वह बोलचाल और भाषा से संबंधित है, इसे फॉक्सपी2 कहते हैं. जिस चूहे में ये जीन डाला गया उसमें जटिल न्यूरॉन पैदा हुए और ज्यादा क्षमतावान दिमाग पाया गया. इसके बाद मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों ने चूहे को एक भूलभुलैया वाले रास्ते से चॉकलेट ढूंढने की ट्रेनिंग दी. इंसानी जीन वाले चूहे ने इस काम को 8 दिनों में सीख लिया जबकि आम चूहे