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टेलीपैथी और सम्मोहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

     टैलीपैथी  क्या  है हमारे  पुराणों  में वर्णित  है की देवता लोग  आपस  में बातचीत  बिना कुछ  कहे  कर लेते थे |  और  वो  सोचते थे  तो  दूसरे  लोगो  के पास  सन्देश  पहुंच  जाता था , धर्म और विज्ञान ने दुनिया के कई तरह के रहस्यों से पर्दा उठाया है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के इस युग में अब सब कुछ संभव होने लगा है। मानव का ज्ञान पहले की अपेक्षा बढ़ा है। लेकिन इस ज्ञान के बावजूद व्यक्ति की सोच अभी भी मध्ययुगीन ही है। वह इतना ज्ञान होने के बावजूद भी मूर्ख, क्रूर, हिंसक और मूढ़ बना हुआ है। खैर, आज हम विज्ञान की मदद से हजारों किलोमीटर दूर बैठे किसी व्यक्ति से मोबाइल, इंटरनेट या वीडियो कालिंग के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन प्राचीन काल में ऐसा संभव नहीं था तो वे कैसे एक दूसरे से संपर्क पर पाते थे? मान लीजिये आप समुद्र, जंगल या रेगिस्तान में भटक गए हैं और आपके पास सेटेलाइट फोन है भी तो उसकी बैटरी डिस्चार्च हो गई है ऐसे में आप कैसे लोगों से संपर्क कर सकते हैं? दरअसल, बगैर किसी उपकरण की मदद से लोगों से संपर्क करने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं। जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें।

फेसबुक ला रहा है नई तकनीक, दिमाग जो सोचेगा वही टाइप हो जाएगा

नई दिल्ली:  फेसबुक इन दिनों एक नए तरीके की तकनीक पर काम कर रही है, जिसमें  फेसबुक  पर लिखने से आपको निजात मिल जाएगी. इस तकनीक में आप जो सोचेंगे वही टाइप होना शुरू हो जाएगा. फेसबुक इंक ने अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के पूर्व प्रमुख के नेतृत्व में चलाए गए गोपनीय प्रोजेक्ट से पर्दा हटाते हुए बताया कि कंपनी अब विचार व स्पर्श द्वारा संचार की दिशा में शोध कर रही है.  हाल ही में लॉन्च बिल्डिंग-8 शोध तकनीक का इस्तेमाल करते हुए फेसबुक द्वारा ब्रेन सेंसिंग पर काम किया जा रहा है. इसके तहत फेसबुक इस्तेमाल करने वालों को टाइपिंग के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी और वह दिमाग में जो सोचेगा वही टाइप हो जाएगा. पेंटागन की डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजंसी (डीएआरपीए) के पूर्व निदेशक व फेसबुक की हेड ऑफ सीक्रेटिव बिल्डिंग-8 के उपाध्यक्ष रेजिना डुगन ने कंपनी के एफ-8 सम्मेलन में कहा कि हम बिल्डिंग-8 पर काम कर रहे हैं.  उन्होंने कहा, 'भविष्य क्रांतिकारी तकनीकी से भरा हुआ है, जो बिना टाइपिंग के हमें लोगों से संवाद करने योग्य बनाएगी.'     इस शोध पर फेसबुक में 60 लोगों की ट

नया स्मार्ट चश्मा, एक ही लैंस करेगा विभिन्न लैंसों का काम

वॉशिंगटन:  वैज्ञानिकों ने ऐसे  स्मार्ट ग्लासेस  (चश्मा) विकसित किए हैं जिनके लैंस तरल आधारित हैं और उनका लचीलापन हर उस वस्तु पर फोकस करने में मदद करेगा जिसे भी ग्लासेस पहनने वाला व्यक्ति देख रहा होगा. यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इन ग्लासेस को कुछ इस तरह विकसित किया गया कि वह आंख की प्राकृतिक पुतली की तरह काम करेंगे यानी वह हर उस वस्तु पर फोकस कर सकेंगे जिसे भी व्यक्ति देख रहा है चाहे वह वस्तु दूर की हो या फिर पास की. उम्र बढ़ने के साथ हमारी आंखों के लैंस कड़क होते जाते हैं और विभिन्न दूरी पर फोकस करने की अपनी क्षमता और लचीलापन खो देते हैं. इसलिए चश्मा लगाने की जरूरत पड़ती है. लेकिन तब मुश्किल और बढ़ जाती है जब हम विभिन्न दूरी पर फोकस करने की क्षमता खो देते हैं और ऐसी स्थिति में हमें अलग-अलग दूरी पर देखने के लिए विभिन्न लैंसों की जरूरत पड़ती है. नए विकसित चश्मों में ग्लिसरिन से बने लैंस होते हैं जिन्हें दो लचीली झिल्लियों के बीच रखा जाता है. इन लैंसों को फ्रेम में लगा दिया जाता है. ये झिल्लियां फोकस मिलाने के लिए मुड़ जाती हैं. लैंस का लचीलापन और

फेसबुक ऐसे बदल देगा आपके जीवन का सच

Facebook, one of the most popular searches of this century, has made it clear that its mission is to open the reality of reality. The company wants that the gadgets which are already in the hands of people, can show them the world of reality reality and for that they do not have to wait for any high tech gear to be installed. Introducing its annual developers conference in Silicon Valley, Facebook CEO Mark Zuckerberg said that the camera of smartphones is an early platform filled with reality. With this help, which can be adjusted to social media Zuckerberg said, "I'm confident that we will now go ahead with this Augmented Reality platform." He predicted that this technique will be fitted in the eye glasses in the future. Zuckerberg told how to use digital plants, animals, masks and much more. Your browser's version of this program looks like People in Pokémon go show animated creatures in real surroundings of their surroundings In the words of Zuckerberg, &qu

परमात्मा और विज्ञान

मनुष्य की इच्छा सदियों से ये रही है की उसे वह सर्वशक्तिमान हो जाए वह प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ले | इसके लिए वह परमात्मा और विज्ञान का सहारा लेता है | वह कौन है कहाँ से आया है कहा जायेगा मरने के बाद कहा जाएगा क्या मरने बाद भी अस्तित्व है समस्याएं क्यों आती है धीरे धीरे मनुष्य अपनी जिज्ञासा विज्ञान के माध्यम से जानना शुरू की ठीक यही जिज्ञासा मेरे मन में भी थी किया जो धर्म में बताया गया है किया वह कपोल कल्पित है या उनमे कुछ सच्चाई भी है इसके लिए मैंने एक ब्लॉग बहुत पहले शुरू किया था की मानव का विकास विज्ञान और अध्यात्म के द्वारा पर मैंने सोचा की पहले विज्ञान का अध्ययन किया जाये और उसके बाद इसे अध्यात्म की कसौटी पर रखा जाए इसके लिए मैंने विज्ञान इंडिया डॉट कॉम - अनंतवार्ता डॉट काम शुरू किया इस साइट पे आप को विज्ञान और अध्यात्म से जुडी रोचक जान कारी आप को मिलेगी अब बाते विज्ञान की करते है विज्ञान अवधारणाओं को नहीं मानता जब तक वह किसी तथ्य को कसौटी पर परख़ नहीं लेता तबतक मानता नहीं और सत्य भी जब तक

थ्री डी प्रिंट वाले शारीरिक अंगों के दौर में पहुंचा भारत

गुड़गांव:  थ्री डी प्रिंट वाले शारीरिक अंग अब  भारत  में हकीकत का रूप ले चुके हैं और यह निश्चित रूप से देश के चिकित्सकीय परिदृश्य को बदलकर रख सकता है। एक स्कूल शिक्षिका के साहस ने भारत में एक ऐसी चिकित्सकीय क्रांति को जन्म दिया है, जिसपर ज्यादा लोगों का ध्यान ही नहीं गया। यह चिकित्सकीय क्रांति बरेली से गुड़गांव तक फैल गई है। नोएडा स्थित मेट्रो अस्पताल के एक चिकित्सक ने कहा, ‘थ्री डी प्रिंटिंग एक ऐसा आगामी नवोन्मेष है, जो निजी जरूरत के अनुरूप उपचार देने की पेशकश करता है।’ इसी तकनीक को पूरे-पूरे अंग बदलने के लिए जीवित उतकों पर भी आजमाया जा रहा है लेकिन इसमें अभी वक्त लगेगा। जरा सोचिए कि आप अपने खुद के गुर्दे की एक प्रति निकालें और अपने खराब गुर्दे को बदलवा लें। इस माह की शुरुआत में गुड़गांव स्थित मेदांता : द मेडिसिटी के युवा चिकित्सकों के एक दल ने एक महिला की खराब हो चुकी रीढ़ को बदलकर पहली बार थ्री डी प्रिंटेड टाइटेनियम इंप्लांट लगा दिया। इस सर्जरी ने महिला को एक नया जीवन दे दिया। सर्जरी के महज चार दिन बाद महिला चलने-फिरने लगी थी। चिकित्सकों का कहना है कि यदि सर्ज

वैज्ञानिकों ने विकसित किया इलेक्ट्रॉनिक पौधा, विज्ञान के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत

लंदन:  वैज्ञानिकों ने पौधे के संवहन तंत्र में सर्किट लगाकर एक इलेक्ट्रॉनिक पौधे का निर्माण किया है। इससे विज्ञान के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हो सकती है। //--> //--> स्वीडन के लिकोंपिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के दल ने पौधों के अंदर लगाए गए तारों, डिजिटल लॉजिक और प्रदर्शनकारी तत्वों को दिखाया गया है, जो आर्गेनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के नए अनुप्रयोगों और वनस्पति विज्ञान में नए उपकरण विकसित करने में मददगार हो सकते हैं। उमीआ प्लांट साइंस सेंटर के निदेशक और प्लांट रिप्रोडक्शन बायलॉजी के प्रोफेसर ओव निल्सन ने कहा, इससे पहले वैज्ञानिकों के पास जीवित पौधे में विभिन्न अणुओं के सकेंद्रण को मापने के लिए कोई अच्छा उपकरण नहीं था, लेकिन इस शोध के बाद हम पौधों का विकास करने वाले उन विभिन्न पदार्थो की मात्रा को प्रभावित करने में सक्षम हैं। शोधकर्ताओं ने कहा, पौधों में रासायनिक मार्गो पर नियंत्रण से प्रकाश संश्लेषण आधारित ईंधन सेल, सेंसर्स (ज्ञानेंद्रियों) और वृद्धि नियामकों के लिए रास्ता खुल सकता है। इसके साथ ही ऐसे उपकरण भी तैयार किए जा सकते हैं, जो पौधों की आंतरिक क्रियाओं को व्यवस्थि