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पुरातन ज्ञान के खण्डहरों पर खड़ा है आज का विज्ञान

प्राचीन काल ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से कितना समृद्ध था, इसका अनुमान तब के सुविकसित यंत्र उपकरणों एवं वास्तुशास्त्र से संबंधित अद्भुत निर्माणों से लगाया जा सकता है। आज तो उनकी हम बस कल्पना ही कर सकते है। यथार्थतः ज्ञान और विज्ञान को समझने में तो शायद सदियों लगा जाएँ। आर्ष उल्लेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि प्राचीन समय के दो मूर्धन्य वैज्ञानिकों-वास्तु विदों में त्वष्टा एवं मय अग्रगण्य थे। त्वष्टा एवं मय अग्रगण्य थे। अर्थात् विश्वकर्मा देवों के विज्ञानवेत्ता थे। और तरह तरह के आश्चर्यचकित करने वाले शोध अनुसंधानों सदा संलग्न रहते थे,। जबकि मय, विश्वकर्मा के प्रतिद्वंद्वी और असुरों की सहायता में निरत रहते थे। उनके उपकरण देवों पर विजय प्राप्ति हे दानवों के लिए होते थे। या तो विश्वकर्मा को संपूर्ण सृष्टि का रचयिता माना गया है। (विश्वकर्मन नमस्तेऽस्तु विशत्मन् विश्वसंभव) महाभारत शान्ति पर्व 47/75 किन्तु वे चिरपुरातन विधा वास्तु शास्त्र के प्रथम उपदेष्टा एवं प्रवर्तक आचार्य के रूप में अधिक विख्यात है। राजा भोजकृत ‘ समराँगण सूत्रधार के तीसरे अध्याय प्रश्नध्याय में खगोल विज्ञान मनोविज्ञान एवं

आध्यात्मिक काम विज्ञान

आस्तिक कौन ? नास्तिक कौन ? आस्तिकता का सच्चा स्वरूप 'ईश्वर है'-केवल इतना मान लेना मात्र ही आस्तिकता नहीं है । ईश्वर की सत्ता में विश्वास कर लेना भी आस्तिकता नहीं है, क्योंकि आस्तिकता विश्वास नहीं, अपितु एक अनुभूति है । 'ईश्वर है' यह बौद्धिक विश्वास है । ईश्वर को अपने हृदय में अनुभव करना, उसकी सत्ता को संपूर्ण सचराचर जगत में ओत- प्रोत देखना और उसकी अनुभूति से रोमांचित हो उठना ही सच्ची आस्तिकता है । आस्तिकता की अनुभूति ईश्वर की समीपता का अनुभव कराती है । आस्तिक व्यक्ति जगत को ईश्वर में और ईश्वर को जगत में ओत-प्रोत देखता है । वह ईश्वर को अपने से और अपने को ईश्वर से भिन्न अनुभव नहीं करता । उसके लिए जड़-चेतनमय सारा संसार ईश्वर रूप ही होता है । वह ईश्वर के अतिरिक्त किसी भिन्न सत्ता अथवा पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं मानता । प्राय: जिन लोगों को धर्म करते देखा जाता है उन्हें आस्तिक मान लिया जाता है । यह बात सही है कि आस्तिकता से धर्म-प्रवृत्ति का जागरण होता है । किंतु यह आवश्यक नहीं कि जो धर्म-कर्म करता हो वह आस्तिक भी हो । अनेक लोग प्रदर्शन के लिए भी धर्म-कार्य किया करते हैं ।

शोधकर्ता एक वास्तविक जीवन टर्मिनेटर बनाने के करीब आ सकते हैं

कृत्रिम बुद्धि और मशीन सीखने के भविष्य के बारे में सामूहिक मानवीय कल्पना को परेशान करने का एक व्यापक भय है, लेकिन विज्ञान-कल्पित फिल्मों के इन प्रतीकों को जल्द ही एक वास्तविकता बन सकती है? डीसीएस निगम और अमेरिकी सेना अनुसंधान  प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं  ने मानव मस्तिष्क के डेटासेट को कृत्रिम बुद्धि तंत्रिका नेटवर्क में डालने के बाद मार्च में साइप्रस में वार्षिक  बुद्धिमान उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस सम्मेलन में एक पत्र प्रस्तुत किया। इसके बाद, नेटवर्क ने एक लक्ष्य के लिए खोज करते समय एक इंसान को पहचानना सीख लिया।   निष्कर्ष एक साल के लंबे शोध कार्यक्रम का परिणाम संज्ञानात्मक और न्यूरोएगोनोमिक्स सहयोगी प्रौद्योगिकी गठबंधन के रूप में किया गया था। युद्ध में लक्ष्य को एक सैन्य की प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी कि सेना का देश किस प्रकार दुनिया भर में प्रकट होता है।   अमेरिकी सेना के रूप में नागरिक मौत, या "संपार्श्विक क्षति" की जनता, उस देश की अंतरराष्ट्रीय ख्याति पर गंभीरता से नजरअंदाज और नष्ट हो जाती है। © फोटो: PIXABAY मशीनों का उदय: आर्टिफिशियल इंटेलीजें

अमेरिकी सैनिक जल्द बनेंगे रोबोट, करेंगे जंग की तैयारी

सभी देशों के लिए चुनौती बना अमेरिका अब एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। वह अपने सैनिकों को  महामानव बनाने की  हर कोशिश करने में जुटा है। अमेरिकी रक्षा एजेंसी 'डारपा' सैनिकों के मस्तिष्क को नियंत्रिंत करने पर शोध कर रही है। इस खास तरह के प्रोजेक्ट का नाम है टीएनटी (टार्गेटेड न्यूरोप्लास्टिसिटी ट्रेनिंग)। इसमें सैनिकों के सीखने और  समझने की  क्षमता बढ़ेगी।  प्रयोग सफल रहा तो अमेरिकी सैनिक बन जाएंगे जीवित रोबोट इस प्रक्रिया से सैनिकों के  सीखने और समझने  में 30 प्रतिशत तेज सुधार देखने को मिलेगा।  इस पूरे प्रोजेक्ट  को लगभग 4 सालों में पूरा किया जाएगा। इन चार सालों में सैनिकों के मस्तिष्क में सिनैप्टिक प्लास्टिसिटी को तेज करने की गतिविधियों पर भी काम किया जाएगा। 'डारपा' विद्युतीय उत्तेजना के जरिए सैनिकों के मस्तिष्क को तेज करना चाहती है।  2016 में घोषित हुए टीएनटी कार्यक्रम में डारपा ने अमेरिका के 7  संस्थानों  यूनिवर्सिटी  अॉफ टेक्सास,  एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी,  जॉन हॉपकिस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी अॉफ फ्लोरिडा,यूनिवर्सिटी अॉफ मैरीलैंड, और राइट स्टेट यून

मंत्र विज्ञान का रहस्य

मन को मनन करने की शक्ति या एकाग्रता प्राप्त करके जप के द्वारा सभी भयों का नाश करके पूरी तरह रक्षा करने वाले शब्दों को मंत्र कहते है।  अर्थार्थ मनन करने पर जो रक्षा करे उसे मंत्र कहते है।  जो शब्दों का समूह या कोई शब्द विशेष जपने पर मन को एकाग्र करे और प्राण रक्षा के साथ साथ अभीष्ट फल प्रदान करें वे मंत्र होते है। मंत्र शब्द संस्कृत भाषा से है।  संस्कृत के आधार पर मंत्र शब्द का अर्थ सोचना ,  धारणा करना  ,  समझना व् चाहना  होता है।  मन्त्र जप हमारे यहां सर्वसामान्य है।  मन में कहने की प्रणाली दीर्घकाल से चली आ रही है।  केवल हिन्दुओ में ही नहीं वरन बौध्द ,  जैन  ,  सिक्ख आदि सभी धर्मों में मंत्र जप किया जाता है।  मुस्लिम भाई भी तस्बियां घुमाते है। सही अर्थ में मंत्र जप का उद्देश्य अपने इष्ट को स्मरण करना है।  श्रीरामचरित्र मानस में नवधा भक्ति का जिकर भी आता है।  इसमें रामजी शबरी को कहते है की  ' मंत्र जप मम दृढ विस्वास  ,  पंचम भक्ति सो वेद प्रकासा  '   अर्थार्थ  मंत्र जप और मुझमे पक्का विश्वास रखो। भगवन श्रीकृष्ण जी ने  गीता के १० वें अध्याय के २५ वें श्लोक में  ' जपयज्ञ &

टेलीपैथी और सम्मोहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

     टैलीपैथी  क्या  है हमारे  पुराणों  में वर्णित  है की देवता लोग  आपस  में बातचीत  बिना कुछ  कहे  कर लेते थे |  और  वो  सोचते थे  तो  दूसरे  लोगो  के पास  सन्देश  पहुंच  जाता था , धर्म और विज्ञान ने दुनिया के कई तरह के रहस्यों से पर्दा उठाया है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के इस युग में अब सब कुछ संभव होने लगा है। मानव का ज्ञान पहले की अपेक्षा बढ़ा है। लेकिन इस ज्ञान के बावजूद व्यक्ति की सोच अभी भी मध्ययुगीन ही है। वह इतना ज्ञान होने के बावजूद भी मूर्ख, क्रूर, हिंसक और मूढ़ बना हुआ है। खैर, आज हम विज्ञान की मदद से हजारों किलोमीटर दूर बैठे किसी व्यक्ति से मोबाइल, इंटरनेट या वीडियो कालिंग के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन प्राचीन काल में ऐसा संभव नहीं था तो वे कैसे एक दूसरे से संपर्क पर पाते थे? मान लीजिये आप समुद्र, जंगल या रेगिस्तान में भटक गए हैं और आपके पास सेटेलाइट फोन है भी तो उसकी बैटरी डिस्चार्च हो गई है ऐसे में आप कैसे लोगों से संपर्क कर सकते हैं? दरअसल, बगैर किसी उपकरण की मदद से लोगों से संपर्क करने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं। जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें।

फेसबुक ला रहा है नई तकनीक, दिमाग जो सोचेगा वही टाइप हो जाएगा

नई दिल्ली:  फेसबुक इन दिनों एक नए तरीके की तकनीक पर काम कर रही है, जिसमें  फेसबुक  पर लिखने से आपको निजात मिल जाएगी. इस तकनीक में आप जो सोचेंगे वही टाइप होना शुरू हो जाएगा. फेसबुक इंक ने अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन के पूर्व प्रमुख के नेतृत्व में चलाए गए गोपनीय प्रोजेक्ट से पर्दा हटाते हुए बताया कि कंपनी अब विचार व स्पर्श द्वारा संचार की दिशा में शोध कर रही है.  हाल ही में लॉन्च बिल्डिंग-8 शोध तकनीक का इस्तेमाल करते हुए फेसबुक द्वारा ब्रेन सेंसिंग पर काम किया जा रहा है. इसके तहत फेसबुक इस्तेमाल करने वालों को टाइपिंग के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी और वह दिमाग में जो सोचेगा वही टाइप हो जाएगा. पेंटागन की डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजंसी (डीएआरपीए) के पूर्व निदेशक व फेसबुक की हेड ऑफ सीक्रेटिव बिल्डिंग-8 के उपाध्यक्ष रेजिना डुगन ने कंपनी के एफ-8 सम्मेलन में कहा कि हम बिल्डिंग-8 पर काम कर रहे हैं.  उन्होंने कहा, 'भविष्य क्रांतिकारी तकनीकी से भरा हुआ है, जो बिना टाइपिंग के हमें लोगों से संवाद करने योग्य बनाएगी.'     इस शोध पर फेसबुक में 60 लोगों की ट

नया स्मार्ट चश्मा, एक ही लैंस करेगा विभिन्न लैंसों का काम

वॉशिंगटन:  वैज्ञानिकों ने ऐसे  स्मार्ट ग्लासेस  (चश्मा) विकसित किए हैं जिनके लैंस तरल आधारित हैं और उनका लचीलापन हर उस वस्तु पर फोकस करने में मदद करेगा जिसे भी ग्लासेस पहनने वाला व्यक्ति देख रहा होगा. यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इन ग्लासेस को कुछ इस तरह विकसित किया गया कि वह आंख की प्राकृतिक पुतली की तरह काम करेंगे यानी वह हर उस वस्तु पर फोकस कर सकेंगे जिसे भी व्यक्ति देख रहा है चाहे वह वस्तु दूर की हो या फिर पास की. उम्र बढ़ने के साथ हमारी आंखों के लैंस कड़क होते जाते हैं और विभिन्न दूरी पर फोकस करने की अपनी क्षमता और लचीलापन खो देते हैं. इसलिए चश्मा लगाने की जरूरत पड़ती है. लेकिन तब मुश्किल और बढ़ जाती है जब हम विभिन्न दूरी पर फोकस करने की क्षमता खो देते हैं और ऐसी स्थिति में हमें अलग-अलग दूरी पर देखने के लिए विभिन्न लैंसों की जरूरत पड़ती है. नए विकसित चश्मों में ग्लिसरिन से बने लैंस होते हैं जिन्हें दो लचीली झिल्लियों के बीच रखा जाता है. इन लैंसों को फ्रेम में लगा दिया जाता है. ये झिल्लियां फोकस मिलाने के लिए मुड़ जाती हैं. लैंस का लचीलापन और

फेसबुक ऐसे बदल देगा आपके जीवन का सच

Facebook, one of the most popular searches of this century, has made it clear that its mission is to open the reality of reality. The company wants that the gadgets which are already in the hands of people, can show them the world of reality reality and for that they do not have to wait for any high tech gear to be installed. Introducing its annual developers conference in Silicon Valley, Facebook CEO Mark Zuckerberg said that the camera of smartphones is an early platform filled with reality. With this help, which can be adjusted to social media Zuckerberg said, "I'm confident that we will now go ahead with this Augmented Reality platform." He predicted that this technique will be fitted in the eye glasses in the future. Zuckerberg told how to use digital plants, animals, masks and much more. Your browser's version of this program looks like People in Pokémon go show animated creatures in real surroundings of their surroundings In the words of Zuckerberg, &qu

परमात्मा और विज्ञान

मनुष्य की इच्छा सदियों से ये रही है की उसे वह सर्वशक्तिमान हो जाए वह प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ले | इसके लिए वह परमात्मा और विज्ञान का सहारा लेता है | वह कौन है कहाँ से आया है कहा जायेगा मरने के बाद कहा जाएगा क्या मरने बाद भी अस्तित्व है समस्याएं क्यों आती है धीरे धीरे मनुष्य अपनी जिज्ञासा विज्ञान के माध्यम से जानना शुरू की ठीक यही जिज्ञासा मेरे मन में भी थी किया जो धर्म में बताया गया है किया वह कपोल कल्पित है या उनमे कुछ सच्चाई भी है इसके लिए मैंने एक ब्लॉग बहुत पहले शुरू किया था की मानव का विकास विज्ञान और अध्यात्म के द्वारा पर मैंने सोचा की पहले विज्ञान का अध्ययन किया जाये और उसके बाद इसे अध्यात्म की कसौटी पर रखा जाए इसके लिए मैंने विज्ञान इंडिया डॉट कॉम - अनंतवार्ता डॉट काम शुरू किया इस साइट पे आप को विज्ञान और अध्यात्म से जुडी रोचक जान कारी आप को मिलेगी अब बाते विज्ञान की करते है विज्ञान अवधारणाओं को नहीं मानता जब तक वह किसी तथ्य को कसौटी पर परख़ नहीं लेता तबतक मानता नहीं और सत्य भी जब तक