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दुनिया की सबसे छोटी इलेक्ट्रिक मोटर तैयार

  टफ्ट्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विश्व की सबसे छोटी इलेक्ट्रिक मोटर तैयार की है इसका कारण के बराबर है छोटे आकार की मोटर के विकास से वैज्ञानिकों को  मेडिसिन से इंजीनियरिंग तक के क्षेत्रों में नए स्तर पर उपकरण तैयार करने में मदद मिलेगी   विश्व की सबसे छोटे आकार की इलेक्ट्रिक मोटर 1 नैनोमीटर से भी कम है जो कि मौजूदा विश्व रिकार्ड 200 नैनोमीटर की मोटर के नाम है इस मोटर के छोटे आकार का इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि मनुष्य के एक बाल की मोटाई 60000 नैनोमीटर के बराबर होती है  टफन टफन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता  चार्ल्स एप्स  स्काई की टीम इस मोटर को एक लो टेंपरेचर स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप के माध्यम से नियंत्रित करती है एलटी एसडीएम जैसे उपकरण अमेरिका में 100 के बराबर ही हैं

बिजली बनाने में काम आएंगे जिओ वेक्टर

 मिट्टी में पाया जाने वाला बैक्टीरिया जियो व्यक्ति से दोहरा लाभ मिल सकता है बैटरी यों का यह समूह  परमाणु के कचरे जैसे अन्य विषाक्त पदार्थों की सफाई करते समय बिजली भी उत्पन्न कर सकते हैं यह बात एक शोध में सामने आई है मिशीगन विश्वविद्यालय में फैक्ट्रियों पर शोध करने वाली माइक्रोबायोलॉजिस्ट जी मा रेgu  वेरा  ने कहा कि जियो वेक्टर अति सूक्ष्म जीव होते हैं जो पूरे विश्व के परमाणु ईंधन उसे दूसरी जगहों की सफाई करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं  अमेरिका के कोलोराडो में स्थित फैक्ट्री में यूरेनियम के अवशेषों की सफाई के दौरान इन व्यक्तियों के प्रभाव की जांच हो चुकी है यूरेनियम की सफाई करने के लिए शोधकर्ताओं ने भूमि के अंदर दूषित जल में एसीटेट का प्रवेश कराया था  यूरेनियम जियो फैक्टर का पसंदीदा भोजन है जमीन के अंदर पहले से ही मौजूद बैक्टीरिया समुदाय के विकास को बहुत तेजी से बढ़ा देता है और वह यूरेनियम को खड़ा कर साफ कर देते हैं

दिमाग में घुसे बिना भी दिमाग को नुकसान पहुंचाता है कोरोना

अब तक यही माना जाता रहा है कि यह वायरस शरीर के जिस जिस हिस्से में पहुंचता है, वहां ही नुकसान पहुंचाता है. लेकिन अब रिसर्चरों ने पाया है कि दिमाग में घुसे बिना भी कोरोना दिमाग को नुकसान पहुंचाता है. कोरोना वायरस नाक या मुंह के रास्ते सांस की नली में पहुंचता है और वहां से फेफड़ों में घुस जाता है. यही वजह है कि कोरोना टेस्ट के लिए नाक या गले से सैंपल लिया जाता है. इसी कारण सांस में दिक्कत भी आती है. अधिकतर मौतों का कारण भी यही होता है कि फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं. रिसर्चरों ने ऐसे 19 लोगों के मस्तिष्क पर शोध किया जिनकी मौत कोविड-19 के कारण हुई है. इन्होंने पहले शरीर की उन कोशिकाओं पर ध्यान दिया जिन्हें कोरोना वायरस के कारण सबसे ज्यादा नुकसान होता है. इसमें ओल्फैक्ट्री बल्ब शामिल है जो गंध को समझने के लिए जिम्मेदार होता है. इसके बाद उन्होंने ब्रेनस्टेम की जांच की, जो सांस लेने और दिल के धड़कने का काम कराता है. 19 में 14 मरीजों में ये दोनों या फिर इनमें से किसी एक को नुकसान हुआ था. किसी मरीज में दिमाग के इन हिस्सों की रक्त कोशिकाएं जम गई थीं, तो किसी में कोशिशकाओं में लीकेज देखा गया.

wordmedia.in: होमी जहांगीर भाभा की भविष्यवाणी क्या ब्रिटेन में स...

wordmedia.in: होमी जहांगीर भाभा की भविष्यवाणी क्या ब्रिटेन में स... : ब्रिटेन ने 2040 तक फ्यूज़न रिएक्टर वाला व्यावसायिक बिजलीघर बनाने का एलान किया है. क्या यह मुमकिन है?न्यूक्लियर फ्यूज़न (संलयन) का विज्ञान 19...

कोरोना वैक्सीन के हैं ये साइड इफेक्ट सुरक्षित टीका क्या होता है

कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है. बड़े साइड इफेक्ट का खतरा? अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया बायोनटेक फाइजर जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग

कोरोना थमा नहीं, बर्ड फ्लू की नई आफ़त आ गई

कोरोना की मुसीबत अभी बनी हुई ही थी कि भारत में एक और संकट खड़ा होता दिख रहा है.देश के कई राज्यों में बर्ड फ्लू फैलने की ख़बरें आ रही हैं.मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में बड़ी तादाद में पक्षियों की मौत अचानक से हुई है.सोमवार को केरल, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान ने इस बात की पुष्टि कर दी कि उनके यहां बड़े पैमाने पर पक्षियों की मौत की वजह बर्ड फ्लू है.केरल के कोच्चि में एक महिला मरे हुए बत्तखों के साथ, इन बत्तखों की मौत एच5एन8 बर्ड फ्लू से हुई है sabhar :bbc.co.uk

एंटी-बायोटिक्स आख़िर कब, क्यों और कैसे बेअसर होने लगे : दुनिया जहान

बैक्टीरिया के मामूली इंफेक्शन से हमारा शरीर अपने इम्यून सिस्टम के दम पर निपट लेता है. लेकिन जब इम्यून सिस्टम का ही दम निकल जाता है तो बैक्टीरिया से लड़ने और उसे हराने के लिए लिए एंटी-बायोटिक्स की ज़रूरत होती है.लेकिन धीरे-धीरे कई वर्षों में हुआ ये कि हमने-आपने जाने-अनजाने इतनी अधिक एंटी-बायोटिक्स ले ली है कि बैक्टीरिया को भी एंटी-बायोटिक्स की एक तरह से आदत हो गई है और नतीजा ये हुआ कि एंटी-बायोटिक्स, बैक्टीरिया पर बेअसर नज़र आने लगीं.तो इस हफ्ते, दुनिया जहान में हम ये सवाल पूछ रहे हैं कि एंटी-बायोटिक्स आख़िर कब, क्यों और कैसे बेअसर होने लगे और ये नौबत क्यों आई.एंटी-बायोटिक्स वो दवाएं हैं जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया की वजह से होने वाले इंफेक्शन को रोकने में मदद करती हैं. sabhar :https://www.bbc.com

भूख से लड़ने वाला योद्धा -डा नारमन इ बोरलाग

डा नारमन इ बोरलाग एक ऐसे ब्यक्ति का नाम है जो जीवन पर्यंत मानव जाती के लिए भूख से लड़ता रहा इस ऋषि को भारत सहित दुनिया के अनेक देश के लोग इन्हें हरित क्रांती का जनक कहते है २० वी सदी की इस क्रांति ने तीसरी दुनिया की करीब एक अरब कुपोषित आबादी को दो जून की रोटी उपलब्ध कराई डा बोरलाग को इस कार्य हेतु १९७० में नोबेल विश्व शांति पुरस्कार दिया गया इस वैज्ञानिक को भारत का अन्नदाता भी कहा जाता है और दुनिया इन्हें प्यार से प्रो व्हीट कहती है इनका जन्म २५ मार्च १९१४ को हुआ १९३९ इन्होने विश्विद्यालय से बी एसी करने के बाद १९४२ में पी यच डी की डिग्री प्राप्त करने के बाद १९४४ में मेक्सिको में गेहूं शोध से जुड़े उस समय गेहूं की उत्पादकता बहूत कम थी पुरे विश्व में लगभग आकाल की स्थिति थी परन्तु इस वैज्ञानिक ने हार न मानते हुए गेहूं के मोटे और छोटे ताने के विकाश के लिए १९५३ में नोरिन -१० नामक गेहूं की एक जापानी किस्म को अधिक उपजाऊ अमेरिकी किस्म बेबर -१४ से संकरण कराया इस प्रकार लगभग तीन गुना अधिक उत्पादन वाली जातीय प्राप्त हुयी जिससे भारत सहित अन्य विकाश शील देशो में खाद्य समस्या हल हुई हम इस

बिना चीरे के होगी मस्तिष्क की सर्जरी

मस्तिष्क की सर्जरी के लिए अब डाक्टरों को चीरा लगाने की जरूरत नहीं होगी वैज्ञानिको ने कहा गामा नाइफ नामक उपकरण से विना चीरा लगाये मस्तिष्क की सर्जरी की जा सकती है वैज्ञानिको का दावा है की वे अब बिना चीर फाड़ किये मस्तिष्क कैंसर से पीड़ित मरीजो के मस्तिष्क की नेयुरोलाजिकल सर्जरी कर सकते है सिडनी स्थित मैक्वायर विश्व विद्यालय अस्पताल ने गामा नाइफ का उपयोग कर पहली बार सर्जरी की यह उपकरण मस्तिष्क कैंसर और मस्तिष्क सम्बंधित कई बीमारियों के इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है न्यूरो सर्जन डा जान फ्यूलर ने कहा गामा नाइफ से सर्जरी अपने आप में पहली सरजरी है और बताया की इलाज के दौरान मरीज होश में था इसमे हेलमेट नुमा उपकरण मरीज के सर पर पहना कर कोबाल्ट -६० स्रोतों के विकिरण पुंज को मस्तिष्क के भीतरी लछ्य पर डाला जाता है इसका अविष्कार स्वीडन के लार्स लेक्सेल ने १९६७ में किया था

लेज़र किरणों की सहायता से जल संघनन विधि से बारिश पर नियंत्रण

जेनेवा विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्री जेरोम कांस्पेरियन के नेतृत्व में वैज्ञानिको की एक टीम ने अस्समान में एक विशाल लेज़र बीम छोड़कर हवा में पानी की बूद बनाने की छमता हासिल कर ली है जल संघनन की विधि पे आधारित यह प्रयोग जिनेवा के करीब रोन नदी के तट पर किया गया था