---------:शरीर और साधना:--------- *********************************** भाग--01 ********** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन विश्वब्रह्माण्ड में तो सब कुछ रहस्यमय है वह भी जो हमारे विचार से परे दिखता है। उन रहस्यों में हमारा यह भौतिक शरीर कम रहस्यमय नहीं है। प्राचीन काल से लेकर आज तक मनुष्य स्वयं को खोज रहा है। यह खोज आध्यात्मिक क्रांति से लेकर विज्ञान-क्रांति तक चल रही है। आज का विज्ञान मानव के आंतरिक और बाह्य रचनाओं का गहन अध्ययन कर रहा है। आज का मानव कल कैसा होगा ? आज का युग एक क्रांति-युग है, मानव जीवन का संक्रमण काल है। आज का मानव आधुनिकता और अध्यात्म--दोनों जीवन को एक साथ जी रहा है। वह आधुनिक जीवन के साथ आध्यात्मिक भी रहना चाहता है। लेकिन आने वाले कल का मानव आधा मशीन और आधा मानव होगा। तब संवेदना कहाँ होगी ? तब क्या वह अध्यात्म और स्वयं के सृजन तथा सृजन करने वाले परमतत्व को भी भूल जाएगा ? वह स्वयं को ही सृजनकर्ता मा
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