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संदेश

अनादिनाथ की माया

{{{ॐ}}}                                                   # अनादिनाथ सदाशिव की लीला बडी ही विचित्र है ,विचित्र मायानगरी का निर्माण करती है और यही मायानगरी, महामाया,प्रकृति यह ब्रह्माण्ड है। पौराणिक रूपक कथाएं मूर्त होकर ज्ञानी महात्माओं के मन मे भी घर कर गयी है भारतीय आध्यात्म जगत् मे एक भारी कमी विधमान हैa, यह कर्मकाण्ड और मुक्ति पूजा एवं उनकी विधियों का भण्डार बन गया है । और उन्हें विश्वास हुए है। कि वे सभी तैतींस करेंट देवी- देवतागण इस विशाल ब्रह्माण्ड के भिन्न भिन्न लोको मे रहते है ।a साधक की तपस्या से प्रसन्न होकर वे आते है और वर देकर चले जाते है। किसी को यह भी विश्वास है ,कि कहीं पर क्षीर सागर है, जिसमे एक विशालकाय शेषनाग की कुड़ली पर विष्णु भगवान शयन करते है और लक्ष्मी जी उनके पैर कराती रहती है।s और वे भक्तों की पुकार सुनकर वे नंगे पांव दौडे चले आते है। इसी प्रकार शिव और देवताओं के बारे मे विश्वास है ।और यह विश्वास इतना प्रबल है, कि इन पर किसी प्रकार की चोट बर्दाश्त नही कर पाते है। अनेक अन्धीआस्था मे डुबे  हुए अज्ञानता के अन्धकार मे विलोपित स्त्री पुरूषों को इससे चोट पहुंचती है!

हवन का महत्व

       फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर ही किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है, तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शु्द्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है। टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो, तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है। हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की। क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होता है ? अथवा नही ?  उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये हवन विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी एक किलो जलाने से हवा में मौजूद

शरीर मे प्राण और अपान

#  की गति निरन्तर बनी रहती है। ह्रदय से बाहर की ओर जाने वाली श्वाश को प्राण कहा जाता है।तथा बाहर से भीतर आने वाली श्वास को अपान कहा जाता है। प्राण के निकल जाने पर मृत्यु होती है। तथा अपान के आने से जीवन मिलता है। इसलिए इस अपान को ही जीव कहा जाता है। जब अपना अपानवायु भीतर प्रवेश करती है। तो ('ह' ) की ध्वनि होती है। तथा श्वास छोड़ते समय (स) की ध्वनि होती है। इस प्रकार ह और स का उच्चारण निरंतर होता रहता है। जिसे हम हंस गायत्री कहते है। अपान से ही वोध होता है। कि शरीर मे जीवात्मा विद्यमान है। अपान के प्रवेश न करने पर शरीर शव हो जाता है। जब तक शरीर जीवित है। तब तक अपान और प्राण का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है। यह कब तक चलता राहेगा तथा यह क्रम कब टूट जाएगा इसके विषय मे कुछ नही कहा जा सकता। जिस प्रकार हकार में ह की आकृति टेढ़ी मेढ़ी होती है। उसी प्रकार यह जीव भी अपनी इच्छा से ही कुटिल घुमावदार आकृति धारण कर लेता है यह वक्रता परमेस्वर की स्वतंत्रत इच्छा शक्ति के कारण होती है। यह वक्रता प्राणों में आती है। जीव में नही यह जीव प्राण शक्ति के भीतर सूक्ष्म रूप में रहता है। प्राण और अपान की समान

चेरी की खेती

# ------------+++++++++++---------------- चेरी सबसे मनमोहक फल हैं।खट्टा- मिठा स्वाद , गहरा लाल रंग और बेहद आकर्षक दिखने वाला चेरी  मानसून और गर्मियों का फल है। ये खट्टा-मीठा फल खाने में जितना टेस्टी होता है। सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद होता है। इसमें पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, बी और सी, बीटा कैरोटीन, कैल्शियम, लोहा, पोटेशियम, फॉस्फोरस शरीर को स्वस्थ रखने का काम करते हैं। इन पोषक तत्वों की वजह से चेरी को सूपरफूड की श्रेणी में रखा जाता है। यही पोषक कई प्रॉबल्म को दूर करने में मददगार होता है। अगर रोज 10 चेरी खाई जाए तो आप कई बीमारियों से बच सकते हैं। आंखों के लिए फायदेमंद चेरी में विटामिन ए की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसको खाने से आंखों से संवंधित समस्याएं नहीं होती। जिन लोगों को मोतियाबिंद की समस्या हो उनको रोजाना चेरी खानी चाहिए। याद्दाशत बढाएं चेरी में याद्दाशत बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं। जिन लोगों को बातें या चीजें भूलने लगती हैं। उनके लिए चेरी खाना बहुत फायदेमंद होता है।  अनिद्रा की समस्या से छुटकारा चेरी में मेलाटोनिन की बहुत मात्रा होती है, जो अनिद्रा

श्रीचक्र साधना

{{{ॐ}}}                                                                      #श्रीचक्र षोडशी विधा मे श्री चक्र का प्रयोग साधना मे किया जाता है । इस चक्र का उद्भव  तो प्रकृति करती है, किन्तु इसके ज्ञान का उद्भव शिवलिंग (मातृशक्ति) के पूजको के समुदाय मे हुआ था । aऔर इसे भैरवीचक्र,शक्तिचक्र,आधाचक्र,सृष्टिचक्र, आदि कहा जाता है ।s श्रीचक्र इसका वैदिक संस्करण है। लोग ताँबे आदि के पत्र पर इसे खुदवाकर  पूजाघरों  मे स्थापित कर लेते है। और धूप दीप दिखाकर पूजा करके समझते है , कि उन्होंने श्रीचक्र  की स्थापना कर ली है परन्तु यह बहुत भारी भ्रम है।h श्रीचक्र की घर मे स्थापना का वास्तविक अर्थ -- घर को इस स्वरूप मे व्यवस्थित करना ।o यह चक्र भूमि चयन से लेकर घर बनाने और उसकी व्यवस्थाओं ( कमरे ,सजावट आदि) को श्रीचक्र के अनुसार व्यवस्थित करने , उसका चिन्तन करने और उसमे देवी स्वरूप की छवि देखने सम्बन्धित है । इसका यह भी अर्थ है कि घर की व्यवस्था एवं नियन्त्रण किसी शक्ति (नारी) के हाथ मे हो और समस्त परिवार उससे शक्ति प्राप्त करके उन्नत हो । इस चक्र को घर मे स्थापित करने के बाद नारी का सम्मान करना उसे शक्ति

लघु दुर्गा सप्तशती

{{{ॐ}}}                                                          #लघु_दुर्गा_सप्तशती ॐ वींवींवीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता, स्वानंदेमंदरुपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम् । हंसः सोहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे, ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते ।। १ ।। ॐ ह्रीं-कारं चोच्चरंती ममहरतु भयं चर्ममुंडे प्रचंडे, खांखांखां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररुपे स्वरुपे । हुंहुंहुं-कार-नादे गगन-भुवि तथा व्यापिनी व्योमरुपे, हंहंहं-कारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्रि ।। २ ।। ऐं लोके कीर्तयंती मम हरतु भयं चंडरुपे नमस्ते, घ्रां घ्रां घ्रां घोररुपे घघघघघटिते घर्घरे घोररावे । निर्मांसे काकजंघे घसित-नख-नखा-धूम्र-नेत्रे त्रिनेत्रे, हस्ताब्जे शूलमुंडे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते ।। ३ ।। क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले, मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारि गुह्ये । तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने, ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते ।। ४ ।। ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरुपेण च

Kisan Ganne se Sirka Banakar Kamayein 15-20 गुना ज्यादा लाभ | How To Mak...