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दस महाविद्याओं का रहस्य

{{{ॐ}}}                                                              #कमला_रहस्य दस महाविद्याओं में से प्रत्येक की अंग देवियां है इनकी संख्या अंनगनित है दक्षिण मार्ग की पूजा आधारित तंत्र विधियों में सोलह  आवरण तक की पूजा विधि मिलती है पर इसका अर्थ यह नहीं कि यह यहीं तक सीमित है प्रथम केंद्र की में कर्णिका के बाद कमल में आठ दल हो जाते हैं जिसमें पचास से ऊपर देवी देवताओं की पूजा करनी होती है और फिर दूसरे आवरण में सोलह के तीसरे में बत्तीस चौथे में चौसठ अर्थात हर आवरण मे दल दोगुना होते होते चले जाते हैंa इस प्रकार हजारों से अधिक देवी देवताओं और उनके आयुधों पूजा करनी होती है समस्त शास्त्रीय वाड्गमय मैं ऐसे ही तंत्र साधना कहा गया है किंतु सत्य यह नहीं है यह तंत्र के दक्षिणमार्गी जिसे वैदिक मार्ग भी कहते हैं कर्म कांडों को के आधार पर किया गया रूपांतर है हम पूर्व पोस्टों मे लिखते आये है के तंत्र जिन लोगों की संस्कृति से प्रस्फुटित हुआ है उसमें कर्मकांड प्रचलित नहीं थे यह विद्या वैदिक संस्कारों के अनुरूप नहीं थी इसलिए उन्हें परिवर्द्धित संशोधित कर दिया था।  कमला लक्ष्मी का ही दूसरा नाम है यह मण

चतुर्थ क्रिया पीनियल ग्रंथि

  चतुर्थ क्रिया का अभ्यास करने से आप ललाट, पोन्स, थैलेमस, हाइपोथैलेमस, पीनियल ग्रंथि के अंदर, पिट्यूटरी के सामने और मध्य मस्तिष्क में कुछ विशेष आत्मिक गति को अनुभव करते हैं। आपको लगता है कि प्रकाश  उर्ध्वलोकों से  भूलोक की ओर घूमते हुए आ रहा है । इस चौथे स्तर को असंशक्ति समाधि कहा जाता है, इसका अर्थ है कि आप स्वतंत्र रूप से परमचेतना में विचरण कर रहे हैं और अपने पूरे शरीर में भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिति का अनुभव करते हैं। आप स्वयं को एक दिव्य प्रकाश एवं भगवत अनुभूति का अनुभव करने वाले  देवता के रूप में देखते हैं। आप हजारों ज्योतियों और उनके प्रकाश को देख सकते हैं, यहां तक ​​कि खुली आंखों से, जो आपकी आंतरिक जगत को प्रकाशित करती हैं। आप वास्तव में सहस्रार के ऊपर एक परम प्रकाश को पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशमान करते हुए देख सकते हैं । आपके शरीर में आप सात प्रकार के प्रकाश देख सकते हैं,  सात केंद्रों में से प्रत्येक में दो अग्नि, एक आरोही और दूसरा अवरोही । आप इन ज्योतियों को अपने शरीर के भीतर और बाहर दोनों जगह देख सकते हैं। गुरु का शरीर अंधकार जैसा दिखाई देगा, जिसके चारों तरफ प्रकाश होगा। ~ परम

मृत्यु और जीवन

{{{ॐ}}}                                                         #  मृत्यु इस पृथ्वी की सबसे बडी माया है इसे भ्रम भी कह सकते है ,और इसी कारण इस लोक को मृत्युलोक भी कहते है । विज्ञान कहता है  कि #क्रोमोजोम्स की मृत्यु ही मनुष्य की मृत्यु है । ये क्रोमोजोम्स एक निश्चित अवधि तक ही सक्रिय रहते है । परन्तु अध्यात्म कहता है कि मनुष्य एक भौतिक ईकाई मात्र नही है ।बल्कि एक अभौतिक पदार्थ है जो मृत्यु के समय शरीर से मिलकर शुन्य मे चला जाता है, एवं समय पाकर पुनः नया शरीर ग्रहण करता है । kक्रोमोजोम्स भी उसी चेतना शक्ति जीवित एवं मृत होते है। अभी मैने विडियो पर एक संत को यह कहते सुना था कि मृतक को चौदह दिनो तक आराम से मरने दिजिये ।क्या ये लोग ज्ञान बांट रहे है या हलवा बना रहे है आराम से मरो ओर चौदह दिन मरो हमारे यहां मृतक का दाह संस्कार कुछ घण्टे मै हो जाता है चौदह दिन मे तो मृतक मे कीड़े पड जायेगे , यह उन लोगों के ज्ञान की पराकाष्ठा है ,और उनके अनुयायी के तो क्या कहने।  वास्तव मे सच क्या है सोने से पुर्व जिस प्रकार स्वप्न की छाया पडने लगती है । उसी प्रकार मृत्यु के छ: महिने पुर्व   उसकी छाया पडने लग

शिव शक्तिएवं चेतन परमात्मा

वह परमात्मा चैतन्य है जो ज्ञान स्वरूप अथवा बोधस्वरूप है। वह तत्व अति सूक्ष्म होने से किसी भी प्रकार से दृश्य नही है  वह स्वयं कोई क्रिया नही करता किन्तु क्रिया का माध्यम उसकी शक्ति है जो सभी प्रकार की क्रिया का कारण है। यह सम्पूर्ण दृश्य जगत उसी की शक्ति का विलास है।  बिना शक्ति के शिव भी शव रूप ही है शिव को सीधा नही जाना जा सकता है शक्ति की सहायता से ही शिव की पहिचान होती है जिस प्रकार से अग्नि की पहिचान उसकी दाहिक शक्ति (जलाने की शक्ति) से होती है। यदि उसमे जलाने की शक्ति ही नही है तो उसे अग्नि कैसे कहा जा सकता है?  जिस प्रकार अग्नि से उसकी दाहशक्ति भिन्न नही है, जिस प्रकार सूर्य से उसका प्रकाश भिन्न नही है जिस प्रकार चंद्रमा से उसकी चांदनी भिन्न नही जिस प्रकार चीनी से उसकी मिठास भिन्न नही है उसी प्रकार शिव से उसकी शक्ति भिन्न नही है।  शक्ति के बिना अकेला शिव सृष्टि की रचना नही कर सकता है। अकेली शक्ति भी बिना चेतन (शिव ) सृष्टि की  रचना नही कर सकती अतःयह शक्ति उसका उपकरण है जिसकी सहायता से वह सृष्टि की रचना करता है। जहा चेतना है वह शक्ति विद्यमान रहती है तथा जहा शक्ति है

पुरुष की अपेक्षा स्त्री अधिक सुन्दर, सुडौल और आकर्षक क्यों

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अनादिनाथ की माया

{{{ॐ}}}                                                   # अनादिनाथ सदाशिव की लीला बडी ही विचित्र है ,विचित्र मायानगरी का निर्माण करती है और यही मायानगरी, महामाया,प्रकृति यह ब्रह्माण्ड है। पौराणिक रूपक कथाएं मूर्त होकर ज्ञानी महात्माओं के मन मे भी घर कर गयी है भारतीय आध्यात्म जगत् मे एक भारी कमी विधमान हैa, यह कर्मकाण्ड और मुक्ति पूजा एवं उनकी विधियों का भण्डार बन गया है । और उन्हें विश्वास हुए है। कि वे सभी तैतींस करेंट देवी- देवतागण इस विशाल ब्रह्माण्ड के भिन्न भिन्न लोको मे रहते है ।a साधक की तपस्या से प्रसन्न होकर वे आते है और वर देकर चले जाते है। किसी को यह भी विश्वास है ,कि कहीं पर क्षीर सागर है, जिसमे एक विशालकाय शेषनाग की कुड़ली पर विष्णु भगवान शयन करते है और लक्ष्मी जी उनके पैर कराती रहती है।s और वे भक्तों की पुकार सुनकर वे नंगे पांव दौडे चले आते है। इसी प्रकार शिव और देवताओं के बारे मे विश्वास है ।और यह विश्वास इतना प्रबल है, कि इन पर किसी प्रकार की चोट बर्दाश्त नही कर पाते है। अनेक अन्धीआस्था मे डुबे  हुए अज्ञानता के अन्धकार मे विलोपित स्त्री पुरूषों को इससे चोट पहुंचती है!

हवन का महत्व

       फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर ही किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है, तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शु्द्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है। टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो, तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है। हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की। क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होता है ? अथवा नही ?  उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये हवन विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी एक किलो जलाने से हवा में मौजूद