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वाक् शुद्धि : हर ध्वनि हम पर असर डालती है

अध्यात्म की साधना करने वालों को मन्त्रों का जप करने की सलाह क्यों डी जाती है? क्या असर होता है उस ध्वनि का जो हम बोलते हैं? क्या है वाक् शुद्धि, मंत्र साधना?  हम जिस तरह की ध्वनि सुनते हैं उसका अपने ऊपर असर तो हम कई बार महसूस कर लेते हैं, लेकिन कभी सोचा है कि हम जो बोलते हैं उसका असर हम पर क्या होता है? हमारी बोली गई ध्वनि का असर सुनने वाले से अधिक खुद हम पर पड़ता है। कैसे?   जीवन के सूक्ष्म आयामों को जानने और समझने के लिए, शरीर, मन, रसायन, (न्युरोलोजिकल) तंत्रिका तंत्र और ऊर्जा तंत्र को तैयार करना जरूरी होता है। व्यक्ति के पास एक ऊर्जावान भौतिक शरीर होना चाहिए। तंत्रिका तंत्र पूरी तरह सक्रिय और जीवंत होना चाहिए। प्राणशक्ति पूरी तरह सक्रिय और संतुलित होनी चाहिए और आपका मन बाधक नहीं बल्कि सहायक होना चाहिए। सवाल यह है कि इसकी तैयारी में कितने जीवन लगेंगे? यह निर्भर करता है कि आप कितने बिगड़े हुए हैं। हो सकता है कि आप उस आदमी को न रोक पाएं, जो आपके बगल में चिल्ला रहा हो, लेकिन कम से कम आप जो बोलते हैं, उस ध्वनि को तो शुद्ध कर सकते हैं। क्योंकि आप जिन ध्वनियों का उच्चारण करते हैं, उनका असर

प्राणायाम -ध्यान -समाधि क लिए चेतावनी

                                  आध्यात्मिक क्षेत्र मे भक्ति करने के लिए जब योगक्रिया मे प्राणायाम-ध्यान-समाधि करने के लिए शरीर मे कोईभी प्रकार की तकलीफ ना होवे ईसिके लिए प्राणायाम-ध्यान-समाधि करने के बाद शरीर मे ठंडी लगती है अगर तो गरमी लगती है ईसिके लिए प्राणायाम-ध्यान-समाधि करने के बाद उठने के बाद शरीर मे गरमी लगेतो एक ग्लास ठंडा दूध मे दो चमची शहद डालकर तुरंत पी जानेका ईसिलिए शरीर मे गरमी नही लगेगी और प्राणायाम-ध्यान-समाधि करके उठने के बाद शरीर मे ठंडी लगेतो एक कप चाय या तो गरम दूध मे गरम मसाले सूंठ, काळामरी, दावचीनी ये तीनो सप्रमाण मे एक कप चाय मे एक ग्राम जितना मसाला डालकर पी जानेका ईसिलिए शरीर मे ठंडी नही लगेगी ये दोनो चीजे प्राणायाम के बाद लेना फरजियात होता है नहीं तो शरीर का बेलेन्स बिगड जाता है और प्राणायाम-ध्यान-समाधि करके के बाद 15 से 20 मिनिट तक पानी कभी पीना मत कीतनी भी  प्यास लगेतो भी पानी कभी मत पीना 15 से 20 मिनिट के बाद पानी आप पी शकते हो ईसिके पहले कभी पानी मत पीना नहितर तुरंत ही दो मिनिट मे आपको शरदी-झुकीम हो जायेगा ये बात का हंमेशा के लिए आपको ख्याल रखना पडेगा.   

ध्यान में होने वाले अनुभव

******************************************** साधकों को ध्यान के दौरान कुछ एक जैसे एवं कुछ अलग प्रकार के अनुभव होते हैं. अनेक साधकों के ध्यान में होने वाले अनुभव एकत्रित कर यहाँ वर्णन कर रहे हैं ताकि नए साधक अपनी साधना में अपनी साधना में यदि उन अनुभवों को अनुभव करते हों तो वे अपनी साधना की प्रगति, स्थिति व बाधाओं को ठीक प्रकार से जान सकें और स्थिति व परिस्थिति के अनुरूप निर्णय ले सकें. १. भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर पहले काला और फिर नीला रंग दिखाई देता है. फिर पीले रंग की परिधि वाले नीला रंग भरे हुए गोले एक के अन्दर एक विलीन होते हुए दिखाई देते हैं. एक पीली परिधि वाला नीला गोला घूमता हुआ धीरे-धीरे छोटा होता हुआ अदृश्य हो जाता है और उसकी जगह वैसा ही दूसरा बड़ा गोला दिखाई देने लगता है. इस प्रकार यह क्रम बहुत देर तक चलता रहता है. साधक यह सोचता है इक यह क्या है, इसका अर्थ क्या है ? इस प्रकार दिखने वाला नीला रंग आज्ञा चक्र का एवं जीवात्मा का रंग है. नीले रंग के रूप में जीवात्मा ही दिखाई पड़ती है. पीला रंग आत्मा का प्रकाश है जो जीवात्मा के आत्मा के भीतर होने का संकेत है. इस प्रका

ब्रह्म साक्षात्कार

🕉🌞🌞🌞🌞🚩🌞🌞🌞🌞🕉              ⚜🚩⚜ ❓ ब्रह्म साक्षात्कार का वास्तविक अर्थ क्या है ? हम कैसे जानेंगे कि हमने ब्रह्म साक्षात्कार कर लिया है?             🕉⚜🕉 ॐ जब साधक साधना करते हुए प्राण वायु पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है और प्राण का प्रवाह सुषुम्ना मार्ग के अवरोधों को पार करते हुए आज्ञा चक्र को पार कर  नाद ध्वनि का साक्षात्कार कर लेता है , तब उसे मानना चाहिए कि वह ब्रह्म के क्रियात्मक अस्तित्व को जानने लगा है ।उसकी क्रिया शक्ति को उसने अपने ही शरीर में महसूस कर लिया है । यह नाद 10 प्रकार का होता है । इसमें सबसे उच्च स्तरीय नाद ओंकार की ध्वनि के समान है ।यह नाद ही है जो संपूर्ण ब्रह्मांड को गतिमान किए हुए है और हमारे संपूर्ण शरीर की क्रियाओं को संचालित करने का मुख्य कारण यह नाद ब्रह्म ही है । यदि इस संपूर्ण  ब्रह्मांड के सृजन एवं क्रिया का कारण खोजा जाए तो यह नाद ही इसका एकमात्र कारण है । हमारे शरीर में यह नाद ही कारण शरीर का प्रतिनिधित्व करता है । इसे हम ईश्वर भी कह सकते हैं जो त्रिगुणात्मक प्रकृति को नियंत्रित एवं संचालित करता है । इसी के द्वारा त्रिगुणात्मक प्रकृत

नाभि तक गहरी श्वास ले ये अतिआवश्यक है।गहरी सांसों से गुपचुप हो जाते हैं 7 बड़े बदलाव

******************************************** सांस ही प्राण है। इसलिए हमारे यहां ऑक्सीजन को भी प्राणवायु कहा गया है। यही वजह है कि सदियों से हमारी संस्कृति और रोजमर्रा के जीवन में प्राणायाम को प्रभावी माना गया है। नए दौर में विदेशी भी मानने लगे हैं कि यदि हमें अच्छा स्वास्थ्य और जीवन चाहिए तो अपनी हर एक सांस पर ध्यान देना होगा। अपनी आने-जाने वाली संास पर ध्यान देने से न सिर्फ हम शारीरिक बल्कि मानसिक विकारों से भी दूर रह सकते हैं। सांस हमारे तनाव, बेचैनी और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित कर सकती है। अच्छी सांस तन और मन में सात आश्चर्यजनक बदलाव ला सकती है लेकिन इसके लिए अभ्यास की जरूरत है। दिमागी क्षमता में वृद्धि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुए शोध के अनुसार मेडिटेशन से हमारे मस्तिष्क का आकार विस्तार लेता है (कार्टेक्स हिस्से की मोटाई बढऩे लगती है)। इससे मस्तिष्क की तार्किक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। सोने के बाद गहरी सांस लेने का अभ्यास दिमागी क्षमता को बढ़ाता है।   दिल की धडक़न में सुधार मेडिकल साइंस की रिसर्च में यह पाया गया कि दिल की दो धडक़नों के बीच अंतर होता है जिसे लो हार्ट रेट वैरिएबिलिटी

सनई (Crotalaria juncea) का साग

सनई (Crotalaria juncea) का साग- सरसो, मिर्च,मेथी,जीरा और आजवाईन के संयोग से बनने वाला यह साग सिर्फ स्वाद में हीं बेमिसाल नहीं है बल्कि सेहत का भी खजाना है। कैल्शियम, फोस्फोरस और फाइबर सनई के फूल में प्रमुख हैं। कैल्शियम और फोस्फोरस हड्डियों और दांतों के निर्माण एवं मजबूती के लिए ज़रूरी होते हैं। ये शरीर में एंज़ाइम्स की क्रियाओं और कई चयापचयी (मेटाबॉलिक) क्रियाओं में भी महत्व रखते हैं। कैल्शियम हृदय कि धड़कन को सामान्य रखने और मांसपेशियों की सामान्य क्रियाशीलता में भी सहायक है। फाइबर मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों की आशंकाओं को कम करता है। फाइबर कब्ज़ और कुछ प्रकार के कैंसर से बचाव और नियंत्रण में भी सहायक है। सनई के फूल में थोड़ी मात्रा में प्रोटीन भी पाया जाता है।

शिव तत्व

---------------------------------------- ******************************  परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरूदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन     योग में 'यत्पिण्डे तद्ब्रह्माण्डे' रूप अध्यात्म विज्ञान को इन शब्दों में पूर्णतया 'शिवत्व' के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया है-- यस्मिन्दर्पणबिम्बजम्भितपुरी। भातं यत्परसंविदो यत् इदं रूपयादिवल्लीयते।। यस्याज्ञानविजृम्भिता परभिदावारीन्दु भेदादिवत। तं भूमानमुपास्महे हृदि सदा वाघारघानिम् शिवम्।।     अर्थात्--भगवान् ने मनुष्य के साढ़े तीन हाथ के शरीर में भूर्भुवः आदि सप्त लोकों तथा सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, पर्वत, सागर, वृक्ष आदि सभी वस्तुओं को बिम्बवत् प्रतिफलित कर दिया है। शिव संहिता के द्वितीय पटल में योगी की परिभाषा करते हुए कहा गया है कि ब्रह्माण्ड की संज्ञा वाली देह में जिस प्रकार अनेक देशों की व्यवस्था है, उसे पूर्णतया जान लेने वाला ही योगी है-- जानाति यः सर्वमिदं योगी नात्र संशयः। ब्रह्माण्डसंज्ञके देहे यथा देशं व्यवस्थितः।।       यो

चतुर्थ आयाम:

----------------------------               ******************************                       भाग--05                     ********** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन         दरवाजा खुलने के बाद मैंने एक युवती को बाहर उतरते हुए देखा। मेरे युवती कहने से जो आपके मन में कल्पना उभरेगी, वैसी नहीं थी वह युवती। उन व्यक्तियों की तरह वह भी विचित्र थी। वह काफी लंबी-चौड़ी कद-काठी की थी। उसका सिर काफी बड़ा था और उस पर घने बाल थे जिनका रंग लाल था। शरीर का भी रंग हल्का गुलाबी था। कमर के नीचे वह सिर्फ एक घाघरा पहने थी। ऊपर का हिस्सा बिलकुल बेपर्दा था। उसके गले में एक कैमरे जैसा डिब्बा लटका हुआ था जिसमें से काफी तीव्र नीले रंग की रौशनी निकल रही थी। युवती ने यान के बाहर निकल कर एक बार चारों और अपना सिर घुमाया। फिर भुवन बाबू की ओर आश्चर्य और कौतूहल से देखने लगी। उसके बाद उसने कैमरे जैसा वह डिब्बा उनकी ओर कर दिया। भुवन बाबू के पूरे शरीर पर वह तीव्र रौशनी पड़ने लगी। कुछ ही मिनट बाद मैंने ज

क्या है पंचमकार का यौगिक रूप

 ? क्या है पञ्च मकार ? -  10  FACTS;- 1-प्रायः हम-आप और साधारण जन तांत्रिक साधना प्रसंग चलने पर कुछ अलग ही अनुभव करने लगते हैं। तंत्र का नाम सुनते ही जादू-टोना, काला जादू, झाड़-फूँक, खोपड़ी, मुर्दा, श्मशान, बलि, आदि के विचार स्वतः ही मस्तिष्क में आने लगते हैं और मन अजीब-सी अरुचि से भर जाता है। दर असल यह सब विचार या धारणा तन्त्र के बारे में समाज में फैले हुए हुए नाना प्रकार के भ्रम के परिणाम स्वरुप है।तंत्र के कौलमत के आरम्भ काल से ही प्रायः ‘पञ्चमकार’, ‘कुमारी-पूजन’ और ‘योनिपूजा’ का वर्णन और प्रचलन चर्चा का विषय रहा है जिस कारण तंत्र के विषय में तरह-तरह की भ्रांतियां समाज में फ़ैल गईं और तभी से जन-साधारण के मन में तंत्र के प्रति घृणा और नफ़रत की भावना घर कर गयी।वास्तव में यदि देखा जाय तो ऐसा नहीं है। तंत्र एक उच्चकोटि की विद्या है , एक प्रकृष्ट विज्ञान है जिसे कुछ भ्रष्ट और स्वार्थी तांत्रिकों ने अपने निहित स्वार्थ के चलते बदनाम कर दिया है।हमें तंत्र की वास्तविकता और उसमें आये हुए ‘पञ्च मकार'(मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन) का वास्तविक आशय समझने का प्रयास करना  चाहिए । 2-तंत्र के

श्रीकृष्ण हैं बायोटेक्नोलाॅजी के असली जनक

******************************************** स्कूल कॉलेजों में हमें यही सिखाया जाता है कि बायोटेक्नॉलाजी को विदेशी वैज्ञानिकों ने खोजा, लेकिन असल में बायोटेक्नोलाॅजी के असली जनक हमारे कान्हा यानि भगवान श्रीकृष्ण थे।  जार्ज मेंडल, वाट्सन और क्रिक नहीं ।  ये सिद्धांत करीब 5000 साल पहले भगवान श्रीकृष्ण ने दिए थे। गीता के कई श्लोकों में इस बात का जिक्र है, जिससे साबित होता है कि बायोटेक के जनक कष्ण थे। गीता के श्लोक बायोटेक के सिद्धांतों को खुद में समेटे हुए हैं। गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक ग्रंथ भी है।  कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया ज्ञान वैज्ञानिक नजरिए पर आधारित था। इसी ज्ञान आधार पर आज कई वैज्ञानिक अवधारणाओं का जन्म हुआ है। श्रीमद् भागवत गीता के सात श्लोकों में जीवन की उत्पत्ति का पूरा सार मौजूद है।इन्ही श्लोकों के द्वारा कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में ही मानव की उत्पत्ति का विज्ञान दे दिया था। सामवेद के तीसरे अध्याय के 10वें खंड में पहला व नौवां श्लोक इन पांच तत्व (एटीजीसीयू) की पुष्टि करता है। यानी जीव आत्मा अणु और परमाण