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संदेश

ऊर्जा

जिस प्रकार एक पुष्प सर्वप्रथम कली के रूप में प्रकट होता हैं कली जानते हो ना कली से तात्पर्य हैं की वो अब तक खिला नही अर्थात उसकी पंखुडियाँ पूर्ण रूपेन से अब तक खुल नही पाया परंतु अगर लम्बे समय तक यही स्थिति बनी रहे अर्थात वो कली कली ही रह जाए पुष्प के समान खिल ना पाए तो उसकी सुगंध तो मंद मंद होते नष्ट होगी ही स्वयं उसकी अस्तित्व भी ज़र ज़र होकर छिन्न भिन्न हो जाएगी और अल्ल समय में ही वो कली के रूप में ही नष्ट हो जाएगा  अर्थात उसके अंदर भी जीवन हैं परंतु वो जीवन उस प्राण रुकी अनंत विराट जीवन रुकी स्पंदन को मुक्त होने हेतु उसने रास्ता नही दिया अर्थात जब तक खिले नही तब तक वो प्राण अपने निम्न रूप में ही निवास करने लगती हैं अर्थात यहाँ प्रक्रिया बिलकुल उल्टी हो गयीं जीवन देने वाली प्राण ही जीवन का भक्षण करने लगी और धीरे धीरे वो कली जर्जर होने लगा मुरझाने लगा उसकी सुगंध की चरम अवस्था आने से पूर्व वो नष्ट होने लगी  शायद मेरी बातें आप लोग को समझ में अच्छे से नही आ पाए परंतु इस विषय को बताना उतना ही जटिल हैं जैसे समुंदर की  गहराई को नापना परंतु फिर भी साधक तो इसे समझ ही सकते हैं हाँ जिन्हें साध

वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 25 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य

हरदोई। जनपद के एक दिवसीय भ्रमण के दौरान सचिव, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण सुधांशु पाण्डेय ने हरियावां चीनी मिल का निरीक्षण किया। उन्होने मिल में लगी डिस्टिलरी को देखा। इस दौरान उन्होने एथेनॉल के उत्पादन पर जोर दिया। उन्होने कहा कि वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 25 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य है इससे आयात पर निर्भरता कम होगी और चीनी मिलों के सशक्त होने से किसानों के जीवन में भी खुशहाली आयेगी। उन्होने कहा कि चीनी मिल में बनने वाले उक्त उत्पादों से भी किसानो की जिन्दगी में बेहतरी हो रही है। निरीक्षण के अतिरिक्त श्री पाण्डेय ने तीन गॉवों का भी दौरा किया। जहॉ उन्होने स्वच्छ ग्राम पुरस्कार वितरण व शत प्रतिशत कोविड टीकाकरण ग्राम पुरस्कार वितरण समारोह में भाग लिया तथा उन्होने इन क्षेत्रों में विशेष प्रयास करने वाले लोगो को सम्मानित किया। उन्होने कहा कि आज के युवा का बदला हुआ रूप देखकर उन्हे बहुत खुशी होती है। आज की नई पीढ़ी खुद को नई तकनीक व नई सम्भावनाओं के साथ जोड़ रही है। वे स्वयं के अलावा समाज के लिए भी कुछ करने की चाह रखते है। उन्होने आगे कहा कि इन्सान सकारात्मक सोच के साथ कुछ भी करने की क्षमता

क्या है तंत्र-विद्या?

  07 FACTS;- 1-तंत्र-विद्या, जिसे अंग्रेजी में 'ऑकल्ट' कहते हैं, के लिए अकसर लोगों के मन में शंका और भय जैसी भावनाएं होती है।   तंत्र में बहुत सारी संभावनाएं होती हैं। उन्हीं में से एक है 'ऑकल्ट' यानी गुह्य-विद्या जिसमें तंत्र का भौतिक तरीके से इस्तेमाल किया जाता है।तंत्र का मतलब होता है कि आप कामों को अंजाम देने के लिए अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह के गुह्य-विद्या के अभ्यासों को आमतौर पर तंत्र के लेफ्ट हैंड या वाम मार्ग के रूप में जाना जाता है। इसका एक आध्यात्मिक पहलू भी है, जिसे राइट हैंड या दक्षिण मार्गी तंत्र के रूप में जाना जाता है।जिसे वाम-मार्गी तंत्र कहा जाता है, वह एक स्थूल या अपरिपक्व टेक्नोलॉजी है जिसमें अनेक कर्मकांड होते हैं। जबकि जो दक्षिण-पंथी तंत्र है, उसकी टेक्नोलॉजी अत्यंत सूक्ष्म है। इन दोनों की प्रकृति बिलकुल अलग है।तंत्र विद्या ईश्‍वरीय शक्ति और मनुष्‍य की आत्‍मा के बीच संपर्क जोड़ने का साधन है, जिसकी सही परिभाषा जल्‍दी नहीं मिलती।   2-तंत्र, का संधि- विच्छेद करें तो दो शब्द मिलते हैं - तं- अर्थात फैलाव और त्र अर्थात बिना रुकावट के। ऐसा

ॐ का रहस्य क्या है?

 🕉⚜🕉⚜🕉⚜🕉⚜🕉 🕉*⚜♥ॐ का रहस्य क्या है? ♥⚜*🕉 *मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है। मन्त्र का जाप एक मानसिक क्रिया है। कहा जाता है कि जैसा रहेगा मन वैसा रहेगा तन। यानि यदि हम मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा।* *मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मन्त्र का जाप करना आवश्यक है। ओम् तीन अक्षरों से बना है। अ, उ और म से निर्मित यह शब्द सर्व शक्तिमान है। जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस देने वाले ओम् के उच्चारण करने मात्र से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है।* *सृष्टि के आरंभ में एक ध्वनि गूंजी ओम और पूरे ब्रह्माण्ड में इसकी गूंज फैल गयी। पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि इसी शब्द से भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा प्रकट हुए। इसलिए ओम को सभी मंत्रों का बीज मंत्र और ध्वनियों एवं शब्दों की जननी कहा जाता है।* *इस मंत्र के विषय में कहा जाता है कि, ओम शब्द के नियमित उच्चारण मात्र से शरीर में मौजूद आत्मा जागृत हो जाती है और रोग एवं

चेतना उच्च शिखर

चेतना जब भी उच्च शिखर पर विराजती है तब व्यक्ति ज्योतिर्शिखर के प्रकाश से सम्पूर्णं दिशाओं में  प्रकाश से भर  जाता  है  ।  तब  उन क्षणों  में  वह  🌼 🌼 सम - गुण  🌼🌼 में   तो  जीता  है  बस समबन्ध , बन्धित नहीं होता ।  🏵  सम-बन्ध  🏵 तो उसे शिखर  से  नीचे  उतर हृदय तल पर आकर समग्र जीवन जीने के लिए अभिनित  करने पड़ते है । जिससे जीवन शुष्क नहीं रस पूर्ण जीया जा सके । तभी जीवन सार्थक जीया जा सकता है । उच्च-शिखर पर जो आनन्द है वह निचले पड़ाव पर लौट आने में कहां ?  हालाकि निचले पड़ाव पर कभी अनन्द  , कभी विषाद में झूलती  जिन्दगी , सृजन में सहयोगी होती है । वहीं उच्च-शिखर पर  व्यक्ति प्रेमपूर्ण  ,  स्वीकार  पूर्ण  तो होता है । कर्ता नहीं ! और जब वह करता होता है तो !  भरोसे योग्य नहीं रह जाता है । यही परम सत्य है I स्वयं के लिए उच्च शिखर !   संसार के लिए  सभी तलों का योगदान होता है !  होश , जागरण  दोनो  में चाहिये ।   इनके बिना न स्वयं में , न संसार में आनन्दपूर्ण , सुखमय जीवन जिया जा सकता है ! संसार में तौले जाते हैं कर्म, परमात्मा में तौला जाता है भाव। संसार हिसाब रखता है, क्या तुमने किया;

तंत्र और जप साधन

{{{ॐ}}}                                                                 # मंत्र साधन के लिए मोक्ष प्राप्ति के लिए अथवा  सर्व प्रकार की सिद्धि के लिए विद्वान महर्षियों ने जप को एक बहुत ही उत्तम साधन माना है उन्होने ने तीन प्रकार के जपो का वर्णन किया है:----१,मानस जप । २वाचिक जप ।३ उपांशु जप । १:- मानसजप--जिस जप में मंत्र की अक्षर- पंक्ति के एक वर्ण से दुसरे वर्ण, एक पद से दुसरे पद तथा शब्द और अर्थ का मन द्वारा बार बार मात्र चिंतन होता है उसे मानस जप  कहते है । यह सिद्धि और साधना की उच्चकोटि का जप कहलाता है । २:-- वाचिकजप  जप करने वाला जब उंचे नीचे स्वर से  स्पष्ट तथा अस्पष्ट पद व अक्षरों के साथ मंत्र बोलकर पाठ किया जाता है तो उसे वाचिकजप कहते है । ३:--,उपांशुजप जिसे केवल जिह्वां हिलती है अथवा इतने मद्धिम स्वर  मे जप होता है जिसे कोई सुन न सके उसे उपांशुजप कहा जाता है इसे मद्धम प्रकार का जप माना गया है।  कुछ महर्षियों ने दो प्रकार के जपो का और भी वर्णन किया है:----१:- सगर्भजप और अगर्भजप सगर्भजप तो प्राणायाम के साथ किया जाता है और जप के प्रारंभ और अंत में प्राणायाम  किया जाए तो उसे अगर्भज

उम्र और यौवन का वैदिक विज्ञान

************************************** प्रश्वास की उचित विधि मनुष्य को न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनाती है बल्कि ईश्वरानुभूति तक करा सकती है। सदा युवा बने रहने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सांसों पर संयम जरूरी है। श्वास की गति का संबंध मन से जुड़ा है। मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एक साथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से सांस लेता और छोड़ता है। बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाडी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे सांस प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है। शिवस्वरोदय ज्ञान में स्पष्ट रूप से लिखा है कि प्रत्येक एक घंटे के बाद यह श्वास नासिका छिद्रों में परिवर्तित होता रहता है।  कबहु डडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही। सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।। योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। चंद्र नाड़ी से ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास

ध्वनि का विज्ञान

************************************** "एकः शब्द: सम्यग्ज्ञात: संप्रयुक्त: स्वर्गे लोके च कामधुग भवति"। अर्थात- 'एक ही शब्द के पूर्ण ज्ञान और सम्यक प्रयोग से लौकिक और पारलौकिक दोनों फलों की प्राप्ति सम्भव है'।यही वैदिक ज्ञान का रहस्य है।  जैसा कि हमें ज्ञात होना चाहिए कि कोई भी ध्वनि सदा विशुद्ध नहीं रहती। यौगिक क्रिया और श्वास-प्रश्वास से ही उसमें शुद्धता लायी जा सकती है। इस शुद्धिकरण के बाद ज्ञान की उपलब्धि स्वतः होने लगती है। उसमें विशेष ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। शब्द के माध्यम से साधक या योगी के हाथ एक नैसर्गिक शक्ति लग जाती है और वह नैसर्गिक गुणों से परिपूर्ण हो शक्तिशाली बन जाता है।  ऋषियों ने स्पष्टरूप से कहा है कि वेद ब्राह्मण में अंतर्भूत आध्यात्मिक शक्ति के सार हैं। वेद में गायत्री मन्त्र का अपना विशेष महत्व है। वैदिक ब्राह्मण को संस्कार, उपनयन या शुद्धिकरण के समय सर्वप्रथम गायत्री मंत्र ही गुरु द्वारा प्रदान किया जाता है। वैदिक साहित्य में 'भू: का अर्थ निम्नतम मेखला (भूमि) तथा 'स्व:' का उच्चतम यानी निराकार लोक और इन दोनों के मध्य स्थित '

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो पर किया अनिल अनुसंधान )

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग ■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग ■ 2 त्रुटि  = 1 लव , ■ 1 लव = 1 क्षण ■ 30 क्षण = 1 विपल , ■ 60 विपल = 1 पल ■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) , ■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा ) ■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) , ■ 7 दिवस = 1 सप्ताह ■ 4 सप्ताह = 1 माह , ■ 2 माह = 1 ऋतू ■ 6 ऋतू = 1 वर्ष , ■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी ■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी , ■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग ■ 2 युग = 1 द्वापर युग , ■ 3 युग = 1 त्रैता युग , ■ 4 युग = सतयुग ■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग ■ 72 महायुग = मनवन्तर , ■ 1000 महायुग = 1 कल्प ■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ ) ■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म ) ■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म ) सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l दो लिंग : नर और नारी । दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)। दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन। तीन देव : ब्रह्

ध्यान के प्रकार

******************************************** आपने आसन और प्राणायाम के प्रकार जाने हैं, लेकिन ध्यान के प्रकार बहुत कम लोग ही जानते हैं। निश्चित ही ध्यान को प्रत्येक व्यक्ति की मनोदशा के अनुसार ढाला गया है। मूलत: ध्यान को चार भागों में बांटा जा सकता है– 1.देखना, 2.सुनना, 3.श्वास लेना और 4.आंखें बंदकर मौन होकर सोच पर ध्‍यान देना। देखने को दृष्टा या साक्षी ध्यान, सुनने को श्रवण ध्यान, श्वास लेने को प्राणायाम ध्यान और आंखें बंदकर सोच पर ध्यान देने को भृकुटी ध्यान कह सकते हैं। उक्त चार तरह के ध्यान के हजारों उप प्रकार हो सकते हैं। उक्त चारों तरह का ध्यान आप लेटकर, बैठकर, खड़े रहकर और चलते-चलते भी कर सकते हैं। उक्त तरीकों को में ही ढलकर योग और हिन्दू धर्म में ध्यान के हजारों प्रकार बताएं गए हैं जो प्रत्येक व्यक्ति की मनोदशा अनुसार हैं। भगवान शंकर ने मां पार्वती को ध्यान के 112 प्रकार बताए थे जो ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ में संग्रहित हैं। देखना : ऐसे लाखों लोग हैं जो देखकर ही सिद्धि तथा मोक्ष के मार्ग चले गए। इसे दृष्टा भाव या साक्षी भाव में ठहरना कहते हैं। आप देखते जरूर हैं, लेकिन वर्त

शिवलिंग कोई साधारण (मूर्ती) नहीं है पूरा विज्ञान है

शिवलिंग में विराजते हैं तीनों देव:--- सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है वह ब्रह्म है, दूसरा बीच का हिस्सा वह भगवान विष्णु का प्रतिरूप और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है वह देवा दी देव महादेव का प्रतीक है, शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है तथा अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला नाली नुमा भाग माता पार्वती को समर्पित तथा प्रतीक के रूप में पूजनीय है....अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। अन्य मान्यता के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव और शक्ति, एक साथ में वास करते हैं। ▪️ #शिवलिंग_का_अर्थ:  शास्त्रों के अनुसार 'लिंगम' शब्द 'लिया' और 'गम्य' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ 'शुरुआत' व 'अंत' होता है। तमाम हिंदू धर्म के ग्रंथों में इस बात का वर्णन किया गया है कि शिव जी से ही ब्रह्मांड का प्राकट्य हुआ है और एक दिन सब उन्हीं में ही मिल जाएगा। ▪️ #शिवलिंग_में_विराजते_त्रिदेव:  हम में लगभग लोग यही जानते हैं कि शिवलिंग में शिव जी का