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क्या हैं सातों शरीर के स्वप्नों के आयाम

  सातों  शरीर और सात चक्र;-  1-फिजिकल बॉडी/ भौतिक शरीर>>> मूलाधार चक्र 2-भाव शरीर/ इमोशन बॉडी>>> स्वाधिष्ठान चक्र   3- कारण शरीर/एस्ट्रल बॉडी>>>मणिपुर चक्र   4-मेंटल बॉडी /मनस शरीर >>>अनाहत चक्र 5-स्पिरिचुअल बॉडी/आत्म शरीर>>> विशुद्ध चक्र 6- कास्मिक बॉडी/ब्रह्म शरीर>>>आज्ञा चक्र 7-बॉडीलेस बॉडी/ निर्वाण काया>>>सहस्रार चक्र सातों  शरीर के स्वप्नों के   आयाम;- 07 FACTS;-  1-भौतिक शरीर ;- 02 POINTS;- 1-अगर तुम अस्वस्थ हो, अगर तुम ज्वरग्रस्त हो तो भौतिक शरीर अपनी तरह से स्वप्न निर्मित करेगा। भौतिक रुग्णता अपना अलग स्वप्न-लोक निर्मित करती है इसलिए भौतिक स्वप्न को बाहर से निर्मित किया जा सकता है।अगर तुम्हारा पेट गड़बड़ है तो एक विशेष प्रकार का स्वप्न निर्मित होगा। तुम नींद में हो अगर तुम्हारे  Legs पर एक भीगा कपड़ा रख दिया जाए तो तुम स्वप्न देखने लगोगे। तुम्हें दिख सकता है कि तुम एक नदी पार कर रहे हो। अगर तुम्हारे सीने पर तकिया रख दिया जाए तो तुम स्वप्न देखने लगोगे कि कोई तुम्हारे ऊपर बैठा है या कोई पत्थर तुम पर गिर पड़ा है। ये स्वप्न

अंगूर के साथ-साथ उसके बीज भी खा जाइएवैज्ञानिकों अंगूर के बीज में एक ऐसा रसायन खोजा है, जो उम्र को बढ़ाने वाली कोशिकाओं को मार देता

 A गर आपको बूढ़ा नहीं होना है. ज्यादा दिन युवा रहना है तो अंगूर के साथ-साथ उसके बीज भी खा जाइए. असल में वैज्ञानिकों अंगूर के बीज में एक ऐसा रसायन खोजा है, जो उम्र को बढ़ाने वाली कोशिकाओं को मार देता है. वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग चूहों पर किया, जो सफल रहा. चूहों की जिंदगी और युवावस्था में 9 फीसदी का इजाफा हुआ है. वो ज्यादा चुस्त, दुरुस्त हुए और शरीर में बनने वाले ट्यूमर्स भी कम हुए हैं.   / अंगूर के बीज में मिलने वाला यह रसायन अगर कीमौथैरेपी के साथ दिया जाए तो यह कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो सकता है. यह स्टडी हाल ही में  nature metabolism  नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह रसायन भविष्य में लोगों को बुढ़ापे और कैंसर से बचाने वाली इलाज पद्धत्तियों का मुख्य हिस्सा बन सकती है.  /10 जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे हमारे शरीर में सेन्सेंट कोशिकाओं (Senscent Cells) की मात्रा बढ़ने लगती है. यह कोशिकाएं उम्र संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देने लगती हैं. जैसे- दिल, फेफड़े संबंधी बीमारियां, टाइप-2 डायबिटीज और हड्डियों से संबंधित बीमारियां जैसे- ऑस्टियोपtist शं

वेदो का मनोमयी कोश

 {{{ॐ}}}                                                       # मनस शरीर यानि मनोमय शरीर का विकास साधना के द्वारा किया जाता है यह इक्कीस वर्ष के बाद विकसित हो सकता है इसे विकसित होने सअतीन्द्रिय शक्ति आ जाती है जैसे सम्मोहन ,दुर संरेक्षण दसरो का मनपढ़ लेना शरीर से बहार निकल कर यात्रा करना अपने को शरीर से अलग करना वनस्पतियो  के गुण पता लगना उपयोग करना  आदि। चरक और सुश्रुत ने इसी सिद्धि से शरीर के बारिक  से बारिक अंगो का भी वर्णन किया था। सुषुम्ना नाडी़ ,कुण्डलिनी और षट् चक्रों  को विज्ञान अभी भी नही खोज पाया। इन विचार तरगों  का प्रभाव पदार्थ पर भी पडता है संकल्प से वस्तु  हिलाई व तोडी  जा सकती है। विज्ञान ने भी इसके कई प्रयोग किये है योग की समस्त सिद्धियाँ जो पांतजलयोग दर्शन मे दी गयी है वे इसी शरीर के विकसित होने से आ जाती है कुण्डलिनी भी इसी शरीर की घटना है। जादु चमत्कार इसी का विकास है और इसका केन्द्र है अनाहत चक्र  जब अनाहत जाग्रत होता है तो ये सिद्धियाँ आ जाती है इसके जाग्रत होने से काल व स्थान की दुरी मिट जाती है  वह बिना मन इन्द्रियो के सीधा मन से देख व सुन सकता है। कल्पना, इसकी

आत्मा का शरीर छोड़ना

 🚩 जय श्री हरि 🚩 आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है । ऐसे में वह स्वयं भी हथियार डाल देता है अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है और इस चक्कर में कष्ट झेला होता है ।  अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चल-चित्र की तरह चल रही होती है । उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है इसलिये शरीर के पाँच प्राण एक 'धनंजय प्राण' को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरम्भ कर देते हैं ।  ये प्राण, आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिये सूक्ष्म-शरीर का निर्माण करते हैं जो कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है । धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश कर जाती है ।  बहरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते हैं कि व्यक्ति को पता चल जाता है ।  उसे बेचैनी होने लगती है, घबराहट होने लगती है । सारा शरीर फटने लगता है, खून की गति धीमी होने लगती है । सांँस उखड़ने लगती है । बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं ।  अर्थात् अब चेतना लुप्त होने लगती है और मूर्च्छा

प्राण का रहस्य

{{{ॐ}}}                                                              # प्राण क्या है जिस अन्न को हम खाते है वह पेट मे चला जाता है वहाँ पर नाभि में रहने वाली जठराग्नि उसे पत्ती है और चन्द घण्टों के अन्दर उस अन्न कि स्थल भाग मल मुत्र पसीने इत्यादि के द्वारा बाहर चला जाता है । और उसका वास्तविक तत्व भीतर ही रह जाता है उसी जठराग्नि के द्वारा शक्ति के रूप मे बदल जाता है  और प्राण वही स्रोतों द्वारा शरीर के सारे अंगो मे प्रवाहित होता रहता है । साधारण लोग प्राण को वायु कहते है क्योंकि हवा हमारे जीवन के लिए सबसे आवश्यक है इसलिए अगर हम उसे प्राण के नाम से पुकारने लगे तो भी कोई  बुराई नही है । परन्तु प्राण  उस शक्ति का नाम है जो हमे जीवन देती है इसी को हम जीवन शक्ति कहते है । जीवन शक्ति का बहुत बडा भण्डार इस ब्रह्माण्ड की चोटी पर है वहाँ से सीधी ब्रहारंध्र के शरीर मे प्रवेश हो अपने अपने केन्द्र पर इकट्ठा होती है । इसको सुरति,कुण्डलिनीशक्ति और आघाशक्ति इत्यादि कहते है । मुख्य प्राण शक्ति इसी का नाम है। यह जीवन शक्ति ब्रह्माण्ड से जब शरीर मे उतरती है तो वह चोटी के स्थान से प्रवेश हो उसके एक इंच नीच