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होलोग्राफिक तकनीक द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा

  लंदन: यह फिल्म स्टार ट्रेक के एक दृश्य की तरह लग सकता है, लेकिन नासा के एक डॉक्टर और उनकी टीम पृथ्वी से अंतरिक्ष में 'होलोपोर्टेड' होने वाले पहले इंसान बन गए हैं. फ्लाइट सर्जन डॉ जोसेफ श्मिड ने अचानक खुद को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के बीच में बीमित पाया, जहां वह दो-तरफा बातचीत का आनंद लेने में सक्षम थे और यहां तक ​​​​कि फ्रांसीसी अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेस्केट के साथ हाथ मिलाने में भी सक्षम थे.       नासा ने खुलासा किया है कि कैसे होलोग्राफिक डॉक्टर नेअंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन' का दौरा किया. फ्लाइट सर्जन जोसेफ श्मिड पृथ्वी से अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले मानव 'होलोपोर्टेड' थे. डॉ श्मिड ने बताया कि होलोपोर्टेशन एक प्रकार की तकनीक है जो लोगों के उच्च-गुणवत्ता वाले 3D मॉडल को वास्तविक समय में कहीं भी फिर से संगठित, संपीड़ित और प्रसारित करने की अनुमति देती है. इस प्रयोग के लिए नासा ने कस्टम सॉफ़्टवेयर के साथ Microsoft Hololens Kinect कैमरा और कंप्यूटर का उपयोग किया.   पहली बार इस तकनीक का इतनी दूरी पर प्रयोग माइक्रोसाफ्ट के होलोलेंस जैसे मिश्र

आत्मा की यात्रा

 आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है,,ऐसे में वह स्वयं भी हथियार डाल देता है अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है और इस चक्कर में कष्ट झेला होता है । अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चल-चित्र की तरह चल रही होती है । उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है इसलिए शरीर के पांच प्राण  एक धनंजय प्राण को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरंभ कर देते है। यह प्राण आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिए सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं जो कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है ।धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाती है । बहरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते हैं कि व्यक्ति को पता चल जाता है । उसे बेचैनी होने लगती है,, घबराहट होने लगती है सारा शरीर फटने लगता है,,खून की गति धीमी होने लगती है सांस उखड़ने लगती है बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं । अर्थात अब चेतना लुप्त होने लगती है और मूर्छा आने लगती है चेतन ही आत्मा के होने का संकेत है

बायोइंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारत लाया है क्रांति, दुनिया को उपहार स्वरूप दिया ‘Liquid Cornea’

  लिक्विड कॉर्निया आविष्कार : भारत आविष्कारों और विविध नवाचारों का देश है। अपने दक्ष युवा शक्ति और कुशल कर्मचारियों एवं वैज्ञानिकों के बल पर भारत तकनीक प्रौद्योगिकी और विज्ञान के क्षेत्र में नित नए प्रयोग करते रहता है। इन प्रयोगों में मिलने वाले सफलताओं और असफलताओं की खुशियों और झंझावातों को झेलते हुए एक कर्मयोगी की भांति भारत अनवरत रूप से विश्व निर्माण की प्रक्रिया में लीन रहता है। इसी क्रम में भारत ने पुनः एक नया आविष्कार कर पूरे विश्व को उपकृत किया है। आंखें इंसान को मिली ईश्वर की अनुपम भेंट है। सभी  ज्ञानेंद्रियों  में आपकी आंखें सर्वोत्तम हैं, इसके बिना सब सूना-सूना है, देव दर्शन भी अधूरा है। विश्व में हर साल लाखों लोगों को अपनी दृष्टि संबंधी समस्या के निवारण हेतु कॉर्निया की आवश्यकता होती है। इन जरूरतमंदों में भारत के भी दो से तीन लाख लोग निरंतर अस्पतालों के चक्कर काटते रहते हैं। चक्षु दृष्टि रहित हो और ऐसी स्थिति में अस्पतालों का चक्कर काटना काफी पीड़ादायी है, लेकिन उससे भी भयावह है रोशनी मिलने की उम्मीद का टूटना। पूर्व में आंखों की रोशनी प्राप्त करने का एकमात्र उपाय पूर्ण रूप स

कुण्डलिनी शक्ति एक खोज अंतर यात्रा की भाग

सहजबोध को मेघा बुद्धि ( तर्क-वितर्क) के साथ नही जोडना चाहिए क्योंकि मेधा का अवलोकन कभी सही और कभी गलत हो सकता है। मगर सहजबोध का अवलोकन सर्वदा सही ही होंगा।      प्रत्येक व्यक्ति को कार्य शक्ति प्राप्त करने के लिए चालीस हजार प्रोटींस की आवश्यकता होती है। नित्य सुबह-शाम क्रियायोग कर हम इन प्रोटींस मे वृद्धि कर सकते है एवम वृद्धावस्था और व्याधियों का भी निवारण कर सकते है। फेफडों, कालेय(जिगर), गुर्दो इत्यादि अंगों के बीच मे असंतुलन ही वृद्धावस्था और व्याधियों का प्रमुख कारण है। जेनेस ही व्याधिग्रस्थ कोशिकाओ(सेल्सो) को आरोग्यवंत करा सकते है। हम क्रियायोग द्वारा इन जेनेस को जो आवश्यक प्रेरणा है वह देकर फेफडों, कालेय(जिगर), गुर्दा इत्यादि अंगों के बीच मे असंतुलित को दूर कर सकते है।शरीर के भीतर की प्रत्येक कोशिका उस आदमी का प्रतिरूप होती है। हर जीवित कोशिका मे जेने विध्यमान रहता है।जेने का अंदर क्रोमोजोम होते है और इन क्रोमोजोम के अंदर डी.एन.ए होते है! जीवित सेल के अंदर डी.एन.ए मालिक्यूल अति मुख्य साझेदारी रखता है। प्रोटीन, जेने और ऐंजाईम्स का उत्पादन करने मे प्रत्येक कोशिका शक्तिशाली होती है।

निद्रा को योगसूत्र

 निद्रा को योगसूत्र में पाँच कठिन दोषों में से एक माना गया है | गहरी नीन्द वालों की स्मृति कमजोर हो जाती है | इसलिए ब्रह्मचर्य आश्रम वालों को श्वाननिद्रा का आदेश दिया जाता था |  इन्द्रियाँ सो जाए किन्तु मन जागता रहे उसे स्वप्न कहते हैं | मन की सात्विकता के अनुसार स्वप्न की सत्यता होती है | सात्विक संस्कारों वाला मन स्वप्न में सु+अप्न अर्थात समस्याओं का अच्छा समाधान प्राप्त करता है | इसकी विधि लोमश संहिता में वर्णित है | स्वप्न से निकलते समय जो अन्तिम स्वप्न होता है वही याद रहता है | सात घण्टे बारह मिनट की औसत निद्रा में वास्तविक सुषुप्ति अत्यल्प काल की होती है जिसके बाद स्वप्न का दीर्घकाल होता है, पुनः सुषुप्ति आती है | इस प्रकार इन्द्रियों की जागृति के स्तर का उतार-चढ़ाव होता रहता है, एक सीमा से अधिक ऊपर चढ़ने पर जागृति होती है | मन भी सो जाय उसे सुषुप्ति कहते हैं, जिसमे सभी प्राणी ब्रह्मलोक में रहते हैं और शारीरिक एवं मानसिक थकान दूर करके नयी ऊर्जा प्राप्त करते हैं | अज्ञानी जीव सुषुप्ति में चित्त की निद्रावृत्ति को देखकर स्वयं को निद्रा में अनुभव करता है, सोचता है कि कुछ नहीं है, न तो

ध्यान की ताकत

 **  जब 100 लोग एक साथ साधना करते हैं तो उत्पन्न लहरें 5 कि.मी. तक फैलती हैं और नकारात्मकता नष्ट कर सकारात्मकता का निर्माण करती हैं। आइंस्टाईन नें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा था कि एक अणु के विघटन से लाखों अणुओं का विघटन होता है, इसीको हम अणु विस्फोट कहते है। यही सूत्र हमारे ऋषि, मुनियों ने हमें हजारो साल पहले दिया था। ... आज पृथ्वी पर केवल 4% लोग ही ध्यान करते है लेकिन बचे 96% लोगों को इसका पॉजिटिव इफेक्ट होता है। ... अगर हम लगातार 90 दिनों तक ध्यान करे तो इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे और हमारे परिवार पर दिखाई देगा। .. अगर पृथ्वी पर 10% लोग ध्यान करने लगें तो पृथ्वी पर विद्यमान लगभग सभी समस्याओं को नष्ट करने की ताकत ध्यान में है। .. उदाहरण के लिए हम बात करें तो महर्षि महेश योगी जी ने सन् 1993 में वैज्ञानिकों के समक्ष यह सिद्ध किया था।। हुआ यूं कि उन्होने वॉशिंगटन डी सी में 4000 अध्यापको को बुलाकर एक साथ ध्यान (मेडिटेशन) करने को कहा और चमत्कारिक परिणाम यह था कि शहर का क्राईम रिपोर्ट 50% तक कम हुआ पाया गया। . वैज्ञानिकों को कारण समझ नहीं आया और उन्होनें इसे`महर्षि इफेक्ट" नाम दिया।  

तँत्र क्यो महत्वपूर्ण है का शेष भाग

  हम दो चीजों से बहुत भयभीत हैं–काम और मृत्यु।लेकिन ये दोनों ही बुनियादी हैं।वास्तविक अर्थों में सत्यान्वेष इन दोनों में प्रवेश करेगा। वह काम-वृत्ति को समझने के लिए इसमें प्रवृत्त होगा । क्योंकि काम-वृत्ति को समझना जीवन को समझना है। और वह यह भी जानना चाहेगा कि मृत्यु क्या है? क्योंकि जब तक तुम यह न जानोगे कि मृत्यु क्या है? तुम शाश्वत जीवन को नहीं जान सकते। सत्यान्वेष के लिए काम और मृत्यु दोनों बुनियादी हैं लेकिन साधारण मनुष्यता के लिए ये दोनों वर्जनाएं हैं–उनकी चर्चा ही मत करो। और दोनों बुनियादी हैं और दोनों एक -दूसरे से जुड़ी हैं।  उनका परस्पर संबंध इतना घनिष्ठ है कि काम में प्रवेश करते समय तुम एक प्रकार की मृत्यु में ही प्रविष्ट होते हो; क्योंकि तुम मर रहे हो। अहंकार मिट रहा है समय विलीन हो रहा है तुम मर रहे हो। काम भी एक सूक्ष्म मृत्यु है। अगर तुम यह जान सको कि काम एक सूक्ष्म मृत्यु है तो मृत्यु एक महान काम-कृत्य, बन जाएगा। कोई सुकरात मृत्यु में प्रवेश करते समय भयभीत नहीं होता। उलटे वह मौत को जानने के लिए अत्यधिक उत्साहित है। ;रोमांचित है ,उतावला है। उसके हृदय में मौत के लिए स्वागत

तँत्र क्यो महत्वपूर्ण है

  साधारण काम-कृत्य में दो उत्तेजित प्राणी मिलते है जो तनाव से भरे हैं ;उत्तेजित है ,स्वयं को भार मुक्त करने में प्रयत्न शील हैं। साधारण काम-कृत्य  पागलपन लगता है। तांत्रिक काम-कृत्य एक गहरा तनावशून्य ध्यान है। इसमें कोई शक्ति नष्ट नहीं होती, बल्कि शक्ति प्राप्त होती है। तुम्हें इस बात का ख्याल भी नहीं होगा लेकिन यह एक जैविक जीव-ऊर्जा का एक तथ्य है कि स्त्री और पुरुष दो विपरीत शक्तियां हैं। धन और ऋण; यिन और यैग, या जो कुछ भी तुम उन्हें नाम दो। वे दोनों एक दूसरे के लिए चुनौती हैं और जब वे दोनों गहन शिथिलता में मिलते हैं तो एक दूसरे को पुन: जीवन-शक्ति प्रदान करते हैं।  वे दोनों एक दूसरे में जीवन संचार करते हैं वे दोनों और युवा हो जाते हैं वे दोनों और अधिक सजीवता अनुभव करते हैं वे दोनों नव-शक्ति से कांतिमय हो जाते हैं। और नष्ट कुछ भी नहीं होता। दो विपरीत ध्रुवों के मिलन से नव शक्ति का संचार होने लगता है। तांत्रिक काम कृत्य उतना किया जा सकता है जितना तुम करना चाहते हो। साधारण काम कृत्य उतना नहीं किया जा सकता जितना तुम करना चाहते हो। क्योंकि उसमें तुम्हारी ऊर्जा नष्ट हो रही है और तुम्हारे शर

पांचवां शिवसूत्र-"उद्यमो भैरव:''

  1-भगवान   शिव कहते है "उद्यमो भैरव:''-उद्यम ही भैरव है।उद्यम का अर्थ है प्रगाढ़ श्रम। उद्यम उस आध्यात्मिक प्रयास को कहते हैं, जिससे तुम इस  संसार रूपी कारागृह के बाहर होने की चेष्टा करते हो।जो चेष्टा /Effort करता है, वही भैरव है। भैरव शब्द पारिभाषिक है।’भ' का अर्थ है 'भरण';'र' का अर्थ है रवण;और  'व' का अर्थ है वमन। भरण का अर्थ है Maintenance , रवण का अर्थ है संहार, और वमन का अर्थ है फैलाना।मूल अस्तित्व का नाम भैरव है।हिंदू देवताओं में भगवान भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है।भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करनेवाला। भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा विष्णु  और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव  के  गण और पार्वती के अनुचर माने जातेहैं।भैरव  नाम में दार्शनिक गुण हैं और   स्पष्ट जागरूकता और सावधान रवैया के कारण स्पष्ट अंतर्ज्ञान है।  2-जिस दिन भी तुमने आध्यात्मिक जीवन की चेष्टा शुरू की, तुम भैरव होने लगे;अथार्त तुम परमात्‍मा के साथ एक होने लगे। तुम्हारे भीतर मुक्त होने का पहला खयाल तुम्हारी चेष्टा की पहली किरण है ,और

कुण्डलिनी जागरण का दुसरा उपाय

 {{{ॐ}}}                                         # कुण्डलिनी जागरणका दुसरा उपाय है नियमित मंत्र जप। यह एक बहुत ही शक्तिशाली , सरल एवं निरापद मार्ग है परन्तु निस्संदेह यह एक साधना है जिसमें अपेक्षा कृत अधिक समय तथा धैर्य की आवश्यकता होती है । पहलेतो मंत्र और योग के किसी ऐसे योग्य गुरू से अनुकूल मंत्र लेना होता है जो साधना मार्ग  में पथ प्रदर्शन कर सके। जब आप मंत्र का निरन्तर अभ्यास करते रहते है तो आंतरिक शक्ति में वृद्धि होती है इससे जीवन मे तटस्थ रहने के दृष्टिकोण का विकास होता है। जिस प्रकार किसी शांत झील मे कंकड  फेंकने पर उसमे तरंगे उत्पन्न होती है उसी प्रकार  मंत्र को बार बार दोहराने से मन रूपी समुद्र मे भी तरंगें उत्पन्न होती है लाखों करोडों बार उसी मंत्र को दोहराने से मस्तिक का कोना कोना उससे झंकृत हो जाता है । इससे आपके शारीरिक , मानसिक एवं  आध्यात्मिक तीनो स्तरो का शुद्धिकरण हो जाता है। मंत्र का उच्चारण मानसिक और मनोविज्ञानिक स्तरो पर ध्वनि मे मंद गति से किया जाना चाहिए ।। इन चारो स्थितियों मे मंत्र का अभ्यास करने से कुण्डलिनी जागरण  बिना परेशानी  के सही ढगं से होता है मंत्र को