श्रीचक्र साधना

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                                                                     #श्रीचक्र

षोडशी विधा मे श्री चक्र का प्रयोग साधना मे किया जाता है । इस चक्र का उद्भव  तो प्रकृति करती है, किन्तु इसके ज्ञान का उद्भव शिवलिंग (मातृशक्ति) के पूजको के समुदाय मे हुआ था । aऔर इसे भैरवीचक्र,शक्तिचक्र,आधाचक्र,सृष्टिचक्र, आदि कहा जाता है ।s श्रीचक्र इसका वैदिक संस्करण है। लोग ताँबे आदि के पत्र पर इसे खुदवाकर  पूजाघरों  मे स्थापित कर लेते है। और धूप दीप दिखाकर पूजा करके समझते है , कि उन्होंने श्रीचक्र  की स्थापना कर ली है परन्तु यह बहुत भारी भ्रम है।h श्रीचक्र की घर मे स्थापना का वास्तविक अर्थ -- घर को इस स्वरूप मे व्यवस्थित करना ।o यह चक्र भूमि चयन से लेकर घर बनाने और उसकी व्यवस्थाओं ( कमरे ,सजावट आदि) को श्रीचक्र के अनुसार व्यवस्थित करने , उसका चिन्तन करने और उसमे देवी स्वरूप की छवि देखने सम्बन्धित है ।
इसका यह भी अर्थ है कि घर की व्यवस्था एवं नियन्त्रण किसी शक्ति (नारी) के हाथ मे हो और समस्त परिवार उससे शक्ति प्राप्त करके उन्नत हो । इस चक्र को घर मे स्थापित करने के बाद नारी का सम्मान करना उसे शक्ति रूपा समझना और उसका अपमान न करना अनिवार्य हो जाता है।k
षोडशी विधा के समस्त स्वरूपों यथा - कुलमार्ग, शाक्त मार्ग,बौद्ध मार्ग ,कापरूपमार्ग, राधाकृष्ण मार्ग, पुष्टिमार्ग, मधु मार्ग,साधना मार्ग ,आदि घर मे श्रीचक्र की स्थापना का अर्थ है अपने गृह मे एक कालक्रम मे इन साधनाओं  मे से अपने द्वारा चयनित साधनाओं का गुरू निर्देश मे आयोजन करवाना। इसके वैदिक संस्करण भी अनेक मार्गों मे व्याप्त है । k
जैसे कुमारी पूजा विधान भी इस प्रकार का संस्कारित विधान है। शाक्तमार्ग मे यह केवल पशुभाव  के साधक के लिए अनुमेय है। वीर साधक एवं दिव्यभाव  के साधकों के लिए कुमारी पूजा की वर्जना है। कुछ रूढ़गत संस्कारों से युक्त लोग यह सोच सकते है कि यह अनाचार है । परन्तु विचार किजिये  कि जिन पाप पुण्य के संस्कारों मे बँधे आप जी रहै है, वह सुख दो रहा है , या आप उससे आध्यात्मिक या भौतिक लाभ पा रहे , क्या जिन सामाजिक, धार्मिक रूप नैतिक संस्कारों के आदर्शों पर आज के परिवार, समाज, राष्ट्र, संस्कृति या विभिन्न धर्मों के नियम का जाल आप पर लदा हुआ है।u
वह आपके लिए सुखमय ,संतोषप्रद है क्या नारी पुरूष के रिश्ते को समाज ने जिस धर्म के नियमो से बाँध कर सबको भयभीत कर रखा है, उसके आदर्शों को कभी भी कहीं भी प्राप्त नही किया जा सका। इसकी विकृतियों से त्राहिमाम् करते हुए नारी और पुरूष आधुनिक विश्व के लिए समस्या बने हुए है।m 
नैतिकता, भावुकता, मर्यादा, कानुन का पाठ पढाये जा रहे है, किन्तु नतीजा क्या स्मरण रखे !आपने स्वयं ही प्रकृति विरूद्ध नियमों को बनाकर स्वयं को जकड लिया है और यह सोचते है कि देवी शक्तियाँ नियमों के पालन से प्रसन्न हो जायेगी ओर परलोक मे स्वर्ग मिलेगा वरना दुःख भोगना पडेगा।m
शाक्तसाधकों की दृष्टि मे यही पशुभाव है, क्यो

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