अदृश्य पदार्थ और ऊर्जा
ब्रह्मांड ब्रह्मांड विज्ञान अभी नहीं जानता कि 23% पदार्थ का रंग रूप क्या है और शेष 73% किस प्रकार की ऊर्जा है अर्थात डब्बी विज्ञान अभी ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले पदार्थ तथा पदार्थ का मात्र 4% ही जानता है इस घोर अज्ञान के लिए विज्ञान को कोई खेत प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस अज्ञान का जानना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ब्रह्मांड विज्ञान ने हमें ज्ञान दिया है कि ब्रह्मांड का उद्भव 13 पॉइंट 7 अरबवर्ष पहले हुआ था उसका विकास किस तरह हुआ अर्थात किस तरह ग्रह तारे मंदाकिनी मंदाकिनी यों के समूह और किस तरह से मुंह की चादर निर्मित हुई कि ब्रह्मांड में पदार्थ इतनी दूर दूर क्यों है कि पदार्थ और पति पदार्थ का निर्माण हुआ था कि अब हमारे देखने में केवल पदार्थ ही है दिग और काल निरपेक्ष नहीं वरन बैक के सापेक्ष हैं कि वे चार आयामों में घुसे हुए हैं कि बिक का बैग के साथ संपन्न होता है और काल का वितरण की ब्रह्मांड की रचना स्थाई नहीं है और उसका प्रसार हो रहा है और वह भी त्वरण के साथ एक जगत और है जो हमें दिखता नहीं है क्योंकि वह अत्यंत सूक्ष्म कणों से बना है उस पर आइंस्टाइन के अपेक्षित सिद्धांत के नियम नहीं लगते है बल्कि क्वांटम यांत्रिकी नियम लगते हैं तो ब्रह्मांड विज्ञान की पिछली सती की उपलब्धियों की सूची बहुत लंबी है जिसका यहां छोटा सा प्रतिनिधित्व करने वाला नमूना दिया है इतना जानने के बाद ही पदार्थ और ऊर्जा का आदर्श होने का बोध हमें हुआ है और भी बहुत बड़े बड़े प्रश्न हमारे सामने हैं जैसे पदार्थ में द्रव्यमान कैसे आता है प्रति पदार्थ का क्या हुआ दिखे 3 से अधिक आयाम है ब्रह्मांड का क्या है भविष्य है आदि अदृश्य पदार्थ की संकल्पना का जन्म मंदाकिनी समूहों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्री बल के असंतुलन का संतुलन करने के लिए हुआ है जब कोई पिंड गोलाकार घूमता है तब उस पर अपकेंद्रीय बल कार्य करने लगता है इसी बल के कारण तेज मोटर कारें तीखे मोड़ों पर पलट जाती है मोटरसाइकिल चालक सर्कस के मौत के गोले में बिना गिरे ऊपर नीचे मोटरसाइकिल चलाता है इसी अपकेंद्रीय बल के कारण परिक्रमा रथ पृथ्वी को सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अपनी और अधिक निकट नहीं कर पाती है और वह अपनी नियत कक्षा में परिक्रमा करती रहती है जो अपकेंद्रीय बल पृथ्वी के परिक्रमा बैग से उत्पन्न होता है वह गुरुत्वाकर्षण बल का संतुलन कर लेता है इसी तरह की परिक्रमा हमारा सूर्य 200 किलोमीटर प्रति सेकंड के वेग से अन्य तारों के साथ अपने मंदाकिनी आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर लगाता है क्योंकि यह सारे पिंड अपनी कक्षाओं में परिक्रमा रथ हैं अर्थात उन पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षण बल तथा उसके अपकेंद्री बल में संतुलन है ऐसा संतुलन नहीं है तब एक समस्या तो आएगी इसी समस्या के बौद्धिक समाधान हेतु अगर अदृश्य पदार्थ की कल्पना की गई है sabhar विश्वमोहन तिवारी आविष्कार से

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe