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काम वासना और आध्यात्मिक ज्ञान

 आज की युवा पीढ़ी वासना - कामवासना और अज्ञानता के चलते अंधकार में डूबती चली जा रही है जब तक कि लोग उस आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त नहीं करेंगे जो इस जीवन का महासत्य है ! 

     जीवन ऊर्जा की बात करें तो जिसे वीर्य कहा जाता है यह एक ऐसी चमत्कारी ऊर्जा है जो एक जीवन को प्रकट करती है ! कभी सोचे समझे हो कि आखिर इस वीर्य में इतनी शक्ति आती कहां से है जिससे वह एक जीते जागते जीव को प्रकट करता है ?? सोचो सोचो सोचने का पैसा नहीं लगता !! इसमें वह चैतन्य आखिर कहां से आता है जो बड़ा होकर संसार में अद्भुत कार्य करता है ?? 

  वीर्य एक आध्यात्मिक पदार्थ है ! अपने इस अस्तित्व को एक पल के लिए तेल का दीपक समझो ! जैसे बिना तेल के दीपक में मौजूद लौ टिमटिमाती है और उसके बाद दीपक बुझ जाता है ठीक उसी भांति वीर्य के बिना हमारा यह अस्तित्व जीवित्त लास की भांति जानो ! जिससे हमारी औरा फीकी पड़ जाती है तथा हमारा मन और शरीर शक्तिहीन बनता है , हमारे विचार व भावनाएं अशुद्ध होकर अंधकारमय बन जाते हैं ! हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि जीवन शक्ति की रक्षा , पोषण और निर्देशन करना आध्यात्मिक जागृति और ब्रह्मांडीय चेतना इन दोनों की कुंजी थी ! 

 अब समझते हैं कि वीर्य ऊर्जा और आध्यात्म के बीच कौन सा संबंध है जो आध्यात्मिक जीवन में अतिआवश्यक है !    

 आध्यात्मिक जानते हैं कि परम ब्रह्म में लीन होने के लिए उन्हें हर वक्त अनुशासन के साथ स्वयं को नियन्त्रण रखना होगा ! ब्रम्ह में जो व्यक्ति विलीन होना चाहता है तो उन्हें ब्रम्ह ऊर्जा को सुरक्षित रखना होगा क्योंकि ब्रम्ह ऊर्ज वो चाबी है जो ब्रम्ह के पास पहुंचाती है ! एक धनुर्धर व्यक्ति जब तीर छोड़ने वाला होता है तो पूरे शरीर मन और सांस के साथ पूरे शरीर की ऊर्जा को स्थिर करना पड़ता है तभी उसका तीर सधता है और अपने निशाने पर लगता है ! यह वीर्य भी कुछ उसी भांति है यदि यह ऊर्जा बिखर जाती है और इधर-उधर की चीजों में नष्ट हो जाती है तब आपका निशाना डगमगा जाता है ! वीर्य केवल एक सेक्सुअल एनर्जी नहीं यह हमारे पूरे शरीर बुद्धि उसके हर एक कण के साथ जुड़ी होती है ! अतः जब कोई व्यक्ति गलत काम करके उसकी ऊर्जा को नष्ट करता है तो निर्बलता उसके आंख से लेकर उसके चेहरे मन और शरीर पर पड़ती है ! क्या कभी सोचे हो कि जब एक व्यक्ति वीर्य ऊर्जा को नष्ट करता है तो उसे आखिर गिल्टी फील क्यों होती है ?? क्यों अंदर से उसको बहुत बुरा लगता है ?? 

    क्योंकि यह वो ब्रह्मांडीय ऊर्जा है जिसकी ऊर्जा को आपकी आत्मा पहचानती है और इसके महत्व को भली भांति जानती है ! जब आपका मन इस ऊर्जा को नष्ट कर देता है तब आपकी आत्मा प्रतिक्रिया करती है इसी वजह से एक व्यक्ति को बहुत बुरा अनुभव होता है !! परीक्षण तो किए ही होगे जब आप अकेले में वीर्य नष्ट उपरांत के कुछ पल बाद विचारते हो ??


अब बात करते हैं उस ब्रह्मांडीय चक्र की जो वीर्य से कुंडलिनी के उच्चतम स्तर तक पहुंचती है ! वीर्य ऊर्जा कुंडली जागरण में एक बात महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है यह निष्क्रिय ऊर्जा रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित होती है ! जब वीर्य संगठित और रूपांतरित होता है तो यह कुंडली को पोषण देता है जिससे ये  रीढ़ की हड्डी के ऊपर उठती है और चेतना के उच्च केंद्रों को सक्रिय करती है ! यह यात्रा समुद्र की ओर बहने वाली नदी की भांति होती है ! नदी जो आपकी संरक्षित वीर्य की तरह है और समुद्र जो ब्रह्मांडीय चेतना है ! इस महत्वपूर्ण सार को संरक्षित करके आप अपनी व्यक्तिगत चेतना को सार्वभौमिक चेतना के साथ विलय करने में सक्षम हो जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे नदी अंत में समुद्र में विलीन हो जाती है !  कुंडलिनी योग में ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर बहती है और जब ऊर्जा नीचे से सबसे उच्चतम स्तर तक पहुंचती है तो एक - एक करके ही ऊर्जा के सारे द्वार खुलते जाते हैं ! आखरी में जब ऊर्जा उच्चतम स्तर तक पहुंचती है तब इस ब्रम्हांड के सारे नियम आपके सामने टूटते हुए प्रतीत होते हैं !

   एक बीज का विचार करें जिसमें पेड़ बनने की क्षमता होती है लेकिन तभी जब इसका पोषण किया जाता है ! वैसे ही वीर्य भी उस बीज जैसा होता है जिसमे पेड़ बनने की क्षमता होती है ! जब इसका पोषण करते हैं तो यह चेतना के सबसे उच्चतम स्तर तक पहुंचा देता है ! यह वो आध्यात्मिक ज्ञान का पेड़ बन जाता है जिसकी शाखाएं आकाश की ओर बढ़ती व जड़ें धरती की गहराई में जाती हैं जो हमारे भीतर ज्ञान, स्थिरता स्थापित करता है ! वीर्य ऊर्जा का यह ज्ञान आपको सचेत करने के लिए काफी है लेकिन ब्रह्मचर्य पालन की जानकारी के बिना यह अधूरी है और यह ज्ञान भी अधूरा है ! 

  संभव है आप में से ऐसे बहुत से लोग इस समस्या से परेशान होंगे तो प्रश्न उठता है कि कैसे इस ब्रह्मचर्य का पालन किया जाए ??

१) यदि आपमें दृढ़ संकल्प है तो अपने देवी-देवता माता-पिता  या जिन्हें आप अधिक प्रेम करते हो साक्षी मानकर मंदिर में या उनके सामने ब्रह्मचर्य का संकल्प लेना ! यह संकल्प उपरांत  आप ब्रह्मचर्य का खंडन नहीं कर पाओगे क्योंकि इस तरह से संकल्प लेने के बाद आप गलत कार्य करने से घबराओगे और यही घबराना या डर आपको गलत कार्य करने से रोकेगा ! 


२) आप एक माली भांति बन जाओ जैसे एक माली अपने बाग बगीचे का पोषण करता है ! यदि वह माली पानी का सही तरीके से प्रयोग नहीं करेगा तो उसका बाग बगीचा नष्ट हो जाएगा ठीक उसी प्रकार यदि आप अपनी ऊर्जा को व्यर्थ के कार्य में या किसी संगी साथी संग मौज मस्ती करके बर्बाद करोगे तो आगे बस आपको पछताना पड़ेगा ! जैसे माली पानी का सही इस्तेमाल करके अपने बाग बगीचे को जीवंत बनाए रखता इसी भांति आप भी अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाओ जो आपको सफलता की ओर ले जाएगी एवं अध्यात्म की इस दुनिया में सबसे उच्चतम स्तर तक ले जाएगी ! 


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