स्वयं की खोज

समाधि में साधक  ध्यान से ही जाएगा। ध्यान है परम संकल्प। ध्यान का अर्थ समझ लो। ध्यान का अर्थ है, अकेले हो जाने की क्षमता। दूसरे पर कोई निर्भरता न रह जाए, दूसरे का खयाल भी विस्मृत हो जाए। सभी खयाल दूसरे के हैं। खयाल मात्र पर का है। जब पर का कोई विचार न रह जाए, तो स्व शेष रह जाता है। और उस स्व के शेष रह जाने में स्व भी मिट जाता है, क्योंकि स्व अकेला नहीं रह सकता, वह पर के साथ ही रह सकता है। जिस नदी का एक किनारा खो गया, उसका दूसरा भी खो जाएगा। दोनों किनारे साथ-साथ हैं। अगर सिक्के का एक पहलू खो गया, तो दूसरा पहलू अपने आप नष्ट हो जाएगा। दोनों पहलू साथ-साथ हैं। जिस दिन अंधकार खो जाएगा, उसी दिन प्रकाश भी खो जाएगा।

ऐसा मत सोचना कि जिस दिन अंधकार खो जाएगा, उस दिन प्रकाश ही प्रकाश बचेगा। इस भूल में मत पड़ना, क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस दिन मौत समाप्त हो जाएगी, उसी दिन जीवन भी समाप्त हो जाएगा। ऐसा मत सोचना कि जब मौत समाप्त हो जाएगी तो जीवन अमर हो जाएगा। इस भूल में पड़ना ही मत। मौत और जीवन एक ही घटना के दो हिस्से हैं, अन्योन्याश्रित हैं, एक-दूसरे पर निर्भर हैं। तो जब पर बिलकुल छूट जाता है, तो स्वयं की उस निजता में अंततः स्वयं का होना भी मिट जाता है, शून्य रह जाता है। ध्यान की यही अवस्था है, उसको हमने समाधि कहा है।

ध्यान साधना:______
                          ध्यान साधना करते हुए अपने योग केअस्तित्व को महसूस करने के लिए मन से लड़ना बंद कर देना चाहिए।शरीर और मन की क्रियाओं को साक्षी भाव से देखने की कोशिश करते रहें। आपके अन्दर अपने-आप एक दैवीय घटना घटने लगेगी। और किसी भी समय अचानक से आपके अन्दर उर्जा का तेज तेज प्रवाह मूलाधार से सहस्रार तक महसूस होने लगेगा।इस प्रवाह से अपने अलौकिक अनुभव से अपने भीतर तक अंनत शान्ति और स्थिरता में डूब जाने जैसी स्थिति बनेगी। ध्वनि  प्रकाश  और कम्पन इतना गहन होता जाएगा।कि उस समय लगेगा की उनका शरीर छूट जा रहा है।वह एक मृत्यु के समान अनुभव होता है। जिसमें परम आनंद का अनुभव भी किया जाता है।उसी क्षण से सतत् स्थिरता की अनुभूति होती है।आगे चलकर प्रकाश ,ध्वनि,सब बदल जाएगा पर एक स्थिरता सतत् बनी रहती है।वह कहीं आती जाती नहीं।उस समय भी थी अब भी है हमारा आत्मस्वरुप, जो कभी बदलता नहीं वहां बस एक ही एक है।उसकी हर समय अनुभूति बनी रहेगी।

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