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शनिवार, 24 नवंबर 2018

अंगों के विकास में करेगा मदद डीएनए ‘गोंद’

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3-डी प्रिंटर से प्राप्त कोशिकाओं, उत्तकों या अंगों को एक दूसरे से जोड़ने में डीएनए (अनुवांशिक पदार्थ) एक गोंद का काम भी कर सकता है। इसकी मदद से प्रयोगशाला में उत्तकों तथा अंगों का विकास भी किया जा सकता है। एक शोध में यह बात सामने आई है। ऑस्टिन स्थित टेक्सास विश्वविद्यालय में रसायन तथा जैवरसायन के प्रोफेसर एंर्डयू एलिंगटन के मुताबिक, डीएनए का इस्तेमाल कर शोधकर्ताओं ने उन सूक्ष्म वस्तुओं को सफलतापूर्वक व्यवस्थित किया, जिसे नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता।

शोधकर्ताओं ने डीएनए युक्त नैनोकणों का विकास किया है जो पॉलीस्टाइरिन या पॉलीएक्राइलामाइड से बने हैं।

डीएनए बाइंडिंग (एक प्रकार का प्रोटीन) इन नैनोकणों को एक दूसरे से जोड़ देता है, जिसके कारण एक जेल जैसी रचना का निर्माण होता है, जिसका 3 डी प्रिंटिंग में इस्तेमाल किया जा सकता है।

शोधकर्ता इन जेल के आपस में जुड़ने की क्रियाओं पर भी नियंत्रण रख सकते हैं।

लेखक ने कहा, “निष्कर्ष निकलता है कि मानव कोशिकाओं का विकास जेल में हो सकता है और किसी सामग्री द्वारा उत्तक बनाने की दिशा में यह पहला कदम है।”

यह निष्कर्ष पत्रिका ‘एसीएस बायोमेटेरियल्स साइंस एंड इंजीनियरिंग’ में प्रकाशित हुआ है।sabhar https://bioscholar.com

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मंगलवार, 13 नवंबर 2018

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लंदन/ इंसानी दिमाग जैसे दुनिया के सबसे बड़े कम्प्यूटर ने काम शुरू किया, एक सेकंड में मानेगा 20 हजार करोड़ से ज्यादा कमांड

worlds largest human brain like supercomputer switched on first time

Dainik Bhaskar

Nov 12, 2018, 10:34 AM IST
गैजेट डेस्क. इंसानी दिमाग की तरह काम करने के लिए बनाए गए दुनिया के सबसे बड़े और पहले सुपर कम्प्यूटर ने रविवार को काम करना शुरू कर दिया है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए इस सुपर कम्प्यूटर को बनाने में 141.38 करोड़ रुपए की लागत आई है। 2006 में इसे बनाना शुरू किया गया था। यह कंप्यूटर सिर्फ एक सेकंड में 20 हजार करोड़ से ज्यादा कमांड एक बार में कर सकता है। इसके प्रोसेसर में लगी चिप्स में 100 अरब ट्रांजिस्टर हैं। इस कंप्यूटर के जरिए वैज्ञानिकों को न्यूरोलॉजी से संबंधित बीमारियों की पहचान और उसके इलाज में मदद मिलेगी। 

12 साल की मेहनत के बाद बना सुपर कम्प्यूटर
सुपर कंप्यूटर की इस मशीन को 'स्पिननेकर' नाम दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के मुखिया स्टीव फरबेर का कहना है कि यह मशीन दुनिया की अब तक की सबसे तेज और नियत समय में सबसे अधिक बायोलॉजिकल न्यूरॉन्स की नकल कर सकती है।  उन्होंने बताया कि कम्प्यूटर में बहुत सी ऐसी चीजें करने में मुश्किल होती है, जो इंसान स्वाभाविक रूप से कर लेते हैं। नवजात शिशु भी अपनी मां को पहचान लेते हैं लेकिन किसी खास व्यक्ति को पहचानने वाला कम्प्यूटर बनाने का काम हमने संभव कर दिखाया।  उन्होंने कहा कि अब हम दिमागी क्रिया को आसानी से पहचान सकते हैं। मैं अब यह कह सकता हूं कि हम 12 सालों की मेहनत और कोशिशों में कामयाब रहे हैं और हमारा उद्देश्य पूरी तरह सफल रहा। इस परियोजना से जुड़े प्रोफेसर हेनरी मार्कराम कहते हैं कि इंसान का दिमाग इतना खास क्यों होता है? ज्ञान और व्यवहार के पीछे का मूल ढांचा क्या है? दिमागी बीमारियों का इलाज कैसे किया जाए सुपर कम्प्यूटर के जरिए हम अब इन सभी उपायों का आसानी से विश्लेषण कर सकते हैं। 

चूहे से आया आइडिया कि इसमें इंसानी दिमाग की हलचल कैसे नापें : प्रोफेसर स्टीव फरबेर बोले- हमें ये आइडिया चूहे की दिमागी हलचल देखकर आया। चूहे के दिमाग में लगभग 100 विमान खरीदने पर फैसला हुआ था: सरकार
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