जिस प्रकार एक पुष्प सर्वप्रथम कली के रूप में प्रकट होता हैं कली जानते हो ना कली से तात्पर्य हैं की वो अब तक खिला नही अर्थात उसकी पंखुडियाँ पूर्ण रूपेन से अब तक खुल नही पाया परंतु अगर लम्बे समय तक यही स्थिति बनी रहे अर्थात वो कली कली ही रह जाए पुष्प के समान खिल ना पाए तो उसकी सुगंध तो मंद मंद होते नष्ट होगी ही स्वयं उसकी अस्तित्व भी ज़र ज़र होकर छिन्न भिन्न हो जाएगी और अल्ल समय में ही वो कली के रूप में ही नष्ट हो जाएगा अर्थात उसके अंदर भी जीवन हैं परंतु वो जीवन उस प्राण रुकी अनंत विराट जीवन रुकी स्पंदन को मुक्त होने हेतु उसने रास्ता नही दिया अर्थात जब तक खिले नही तब तक वो प्राण अपने निम्न रूप में ही निवास करने लगती हैं अर्थात यहाँ प्रक्रिया बिलकुल उल्टी हो गयीं जीवन देने वाली प्राण ही जीवन का भक्षण करने लगी और धीरे धीरे वो कली जर्जर होने लगा मुरझाने लगा उसकी सुगंध की चरम अवस्था आने से पूर्व वो नष्ट होने लगी शायद मेरी बातें आप लोग को समझ में अच्छे से नही आ पाए परंतु इस विषय को बताना उतना ही जटिल हैं जैसे समुंदर की गहराई को नापना परंतु फिर भी साधक तो इसे समझ ही सकते हैं ह...
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