चेतना जब भी उच्च शिखर पर विराजती है तब व्यक्ति ज्योतिर्शिखर के प्रकाश से सम्पूर्णं दिशाओं में प्रकाश से भर जाता है । तब उन क्षणों में वह 🌼 🌼 सम - गुण 🌼🌼 में तो जीता है बस समबन्ध , बन्धित नहीं होता । 🏵 सम-बन्ध 🏵 तो उसे शिखर से नीचे उतर हृदय तल पर आकर समग्र जीवन जीने के लिए अभिनित करने पड़ते है । जिससे जीवन शुष्क नहीं रस पूर्ण जीया जा सके । तभी जीवन सार्थक जीया जा सकता है । उच्च-शिखर पर जो आनन्द है वह निचले पड़ाव पर लौट आने में कहां ? हालाकि निचले पड़ाव पर कभी अनन्द , कभी विषाद में झूलती जिन्दगी , सृजन में सहयोगी होती है । वहीं उच्च-शिखर पर व्यक्ति प्रेमपूर्ण , स्वीकार पूर्ण तो होता है । कर्ता नहीं ! और जब वह करता होता है तो ! भरोसे योग्य नहीं रह जाता है । यही परम सत्य है I स्वयं के लिए उच्च शिखर ! संसार के लिए सभी तलों का योगदान होता है ! होश , जागरण दोनो में चाहि...
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