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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

बायोइंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारत लाया है क्रांति, दुनिया को उपहार स्वरूप दिया ‘Liquid Cornea’

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 लिक्विड कॉर्निया आविष्कार : भारत आविष्कारों और विविध नवाचारों का देश है। अपने दक्ष युवा शक्ति और कुशल कर्मचारियों एवं वैज्ञानिकों के बल पर भारत तकनीक प्रौद्योगिकी और विज्ञान के क्षेत्र में नित नए प्रयोग करते रहता है। इन प्रयोगों में मिलने वाले सफलताओं और असफलताओं की खुशियों और झंझावातों को झेलते हुए एक कर्मयोगी की भांति भारत अनवरत रूप से विश्व निर्माण की प्रक्रिया में लीन रहता है। इसी क्रम में भारत ने पुनः एक नया आविष्कार कर पूरे विश्व को उपकृत किया है।

आंखें इंसान को मिली ईश्वर की अनुपम भेंट है। सभी ज्ञानेंद्रियों में आपकी आंखें सर्वोत्तम हैं, इसके बिना सब सूना-सूना है, देव दर्शन भी अधूरा है। विश्व में हर साल लाखों लोगों को अपनी दृष्टि संबंधी समस्या के निवारण हेतु कॉर्निया की आवश्यकता होती है। इन जरूरतमंदों में भारत के भी दो से तीन लाख लोग निरंतर अस्पतालों के चक्कर काटते रहते हैं। चक्षु दृष्टि रहित हो और ऐसी स्थिति में अस्पतालों का चक्कर काटना काफी पीड़ादायी है, लेकिन उससे भी भयावह है रोशनी मिलने की उम्मीद का टूटना।

पूर्व में आंखों की रोशनी प्राप्त करने का एकमात्र उपाय पूर्ण रूप से नेत्र प्रत्यारोपण था। आप सभी जानते हैं कि अंगदान को लेकर भारत में प्रचलन बहुत कम है और इस कारण से किसी भी सामान्य व्यक्ति को नेत्रदान के माध्यम से नेत्र प्रत्यारोपण कराना काफी असंभव सा कार्य था। ऊपर से इस पूरी प्रक्रिया में इतना खर्च व्यय होता था कि उसका वहन करना एक सामान्य आदमी के लिए दुष्कर था। तब भारत ने पूरे विश्व के नेत्र को प्रकाशित कर तमस रहित बनाने का बीड़ा उठाया और अपने इस दुर्धुष प्रयास में भारत सफल भी हुआ है।

तैयार हो गया है कॉर्निया का ब्लू प्रिंट

Organovo, Tissium,  Carmat,  Syncardia, जैसे पूरे देश-विदेश में कई ऐसे नवाचार है, जो रिजेनरेटिव तकनीक पर काम कर रहे हैं। इन  सभी नवाचारों का मूल उद्देश्य तकनीक के माध्यम से क्षतिग्रस्त  अंगों में पुनः प्राकृतिक कोशिकाओं के निर्माण प्रक्रिया को प्रारंभ करना है। उदाहरण हेतु हमारा लिवर कुछ परिस्थितियों जैसे- कर्क  रोग में स्वयं से कोशिकाओं का निर्माण करने में सक्षम होता है। भारतीय स्टार्टअप “The Pandorum” के सीईओ अरुण चन्द्र भी अपने इस नवाचार का आधार इसी प्रक्रिया को बताते है। डॉक्टर सांगवान भी “The Pandorum” से जुड़े हुए हैं, उनकी कोशिश ऐसी ही बायो इंजीनियरिंग के माध्यम से कॉर्निया का निर्माण करना है जो क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के स्वानिर्माण में सक्षम हो। बायो प्रिंटिंग तकनीक के माध्यम से ऐसे कॉर्निया का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया गया है।

इस महान उद्देश्य में दिल्ली के दरियागंज स्थित ‘Dr Shroff charity eye hospital’ ने सांगवान और “The Pandorum”  का साथ दिया है। दोनों संस्थानों ने मिलकर लिक्विड कॉर्निया (Liquid Cornea) के प्रोटोटाइप का निर्माण कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया है। Dr shroff charity eye hospital का  निर्माण 1917 में किया गया था और “The Pandorum” ने इसी संस्थान से चिकित्सीय आधारभूत संरचना और शोध में मदद मांगी थी। डॉक्टर सांगवान के नेतृत्व में Shroff-Pandorum cornea regeneration टीम का गठन किया गया, जिसने लिक्विड कॉर्निया (Liquid Cornea) बनाने में अशातीत सफलता हासिल की। यह Gel और पॉलीमर के बेहतरीन संयोग से बनी है और कॉर्नियल कोशिका के विकास में अप्रत्याशित मदद करती है, जिसके कारण पूरे नेत्र और कॉर्निया प्रत्यारोपण की जगह मात्र क्षतिग्रस्त कोशिका के प्रत्यारोपण से काम बन जाता है। जानवरों पर इसका प्रयोग सफल रहा है और अब 2022 तक इसका परीक्षण इंसानों पर किया जाएगा।

देश में 11 लाख लोग दृष्टि बाधित हैं

नेत्रदान और नेत्र प्रत्यारोपण दोनों की प्रक्रिया काफी जटिल और कठिन है। मृत्यु पश्चात अगर नेत्रदान त्वरित और एक समय सीमा के अंदर ना हो तो वह व्यर्थ हो जाता है। नेत्रदान में चिकित्सक आपकी आंखों के ऊपरी परत को ही निकालते हैं, जिसे हम कॉर्निया कहते हैं। आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया (EBAI) के अनुसार हमारे देश में 11 लाख लोग दृष्टि बाधित हैं।

1,00,000 लोगों को हर साल नेत्र प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, जबकि हमारी स्वास्थ्य और चिकित्सीय व्यवस्था सिर्फ 25,000 लोगों की जरूरतों को ही पूरा कर पाती है। महामारी ने परिस्थितियों को और भी बदतर कर दिया है। अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के एक साल के दौरान पूरे देश में 12,998 प्रत्यारोपण ही संभव हो सकें, जो कि औसतन 52 प्रतिशत कम है लेकिन अब इस बड़ी खोज से हालात पहले से बेहतर होंगे, इसकी उम्मीद लगाई जा रही है।

चाहे कोरोना हो या फिर कोई और आपदा हिंदुस्तान मानवता के लिए सर्वदा खड़ा रहा है। यह आविष्कार भारत के प्रयासों का सूचक है और भारत के गौरव का विषय है। धन्य है ‘सांगवान’ और ‘धरती के भगवान’ जो इस पुनीत कार्य के संवाहक है।

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गुरुवार, 10 मार्च 2022

कुण्डलिनी शक्ति एक खोज अंतर यात्रा की भाग

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सहजबोध को मेघा बुद्धि ( तर्क-वितर्क) के साथ नही जोडना चाहिए क्योंकि मेधा का अवलोकन कभी सही और कभी गलत हो सकता है। मगर सहजबोध का अवलोकन सर्वदा सही ही होंगा।

    

प्रत्येक व्यक्ति को कार्य शक्ति प्राप्त करने के लिए चालीस हजार प्रोटींस की आवश्यकता होती है। नित्य सुबह-शाम क्रियायोग कर हम इन प्रोटींस मे वृद्धि कर सकते है एवम वृद्धावस्था और व्याधियों का भी निवारण कर सकते है।


फेफडों, कालेय(जिगर), गुर्दो इत्यादि अंगों के बीच मे असंतुलन ही वृद्धावस्था और व्याधियों का प्रमुख कारण है। जेनेस ही व्याधिग्रस्थ कोशिकाओ(सेल्सो) को आरोग्यवंत करा सकते है।


हम क्रियायोग द्वारा इन जेनेस को जो आवश्यक प्रेरणा है वह देकर फेफडों, कालेय(जिगर), गुर्दा इत्यादि अंगों के बीच मे असंतुलित को दूर कर सकते है।शरीर के भीतर की प्रत्येक कोशिका उस आदमी का प्रतिरूप होती है।


हर जीवित कोशिका मे जेने विध्यमान रहता है।जेने का अंदर क्रोमोजोम होते है और इन क्रोमोजोम के अंदर डी.एन.ए होते है! जीवित सेल के अंदर डी.एन.ए मालिक्यूल अति मुख्य साझेदारी रखता है।


प्रोटीन, जेने और ऐंजाईम्स का उत्पादन करने मे प्रत्येक कोशिका शक्तिशाली होती है।हम जेने से वंशपरंपराणुगत गुण निर्धारित कर सकते है। हार्मोंस इस जेनेस को आवश्यक उत्प्रेरणा देते है ।


जिसकी वजह से यह जेनेस आरोग्यता बनाए रखते है हजारों जेनेस मे से शास्त्रज्ञो ने व्याधिकारक जेनेस को पहचाना है। यदि हम नियम से चक्रों मे ध्यान, क्रियायोग इत्यादि करे तो जो 40 से 50 हजार प्रोटींस है ।


वह अपने-अपने शरीरिक स्वास्थ्य के लिये स्वयं ही तैयारी कर सकते है जिससे हम समस्त जीवन सुख और शांति से आराम से रह सकते है। इंद्रियों मे ज्यादा लालच या चंचलता होने पर हम ।


जीवकणो का सुधारस न पी सकते है और न ही अनुभव कर सकते है।हर एक जीवकण मे डियोक्सी अडेनिलिक, गुआनिलिक, रिबोसी, सिटेडिलिक, थैमिडिलिक और फास्फारिक नाम के छः अम्ल और मिठापन होता है! 


साधक खेचरी मुद्रा मेंॐ का ध्यान करते हुवे सहस्रार चक्र मे पहुंच कर स्थिर हो जाता है तब ये मिठा-सा अमृत जैसे सोमरस का आस्वादन अवश्य मिलता है। पहले कारण शरीर मे फिर सूक्ष्मशरीर मे स्थूल शरीर मे प्रवेश करता है।


कुण्डलिनी शक्ति को व्यष्टि मे कुंडलिनी और समिष्ठि मे माया कहते हैकुंडलिनी शक्ती चर(चलनेवाली चीजो मे) और अचर (नही चलनेवाली चीजों मे) प्रपंच मे उपस्थित है।सृष्टि, स्थिति और लय कारक है यह कुंडलिनी शक्ति।


प्रत्येक प्राण कण मे प्राणशक्ति उपस्तिथ रहती है।यह प्राणशक्ति जेनेस के रूप मे होती है, ये जेने क्रोमोजोम मे उपस्थित रहते है।जेनेस वंशानुगत गुणों के वाहक होते है। जेनेस मे डी.एन.ए मालिक्यूल्स रहते है।


ये डी.एन.ए मालिक्यूल्स बहुत ही मुख्य एवम आवश्यक होते है, इन डी.एन.ए मालिक्यूल्स मे छः अम्ल होते।अगर हम इन छः अम्लों को संतुलित कर पाए तो हम वृद्धावस्था और व्याधियों का निवारण कर सकते है।


इस संसार मे प्रत्येक व्यक्ति का जेनेस 99.9 फिसदी मिलता-जुलता है । बाकी 0.01 फिसदी की भिन्नता से ही एक व्यक्ति और दुसरे व्यक्ती के रंग, गुण और प्रकृती मे परख होती है। 


विस्तार इतना है कई बार कलम स्वयं बढ़ती जाती हमे वापस लौटना पड़ता । यह विषय पेढ की शाखाओं की तरह है और आगे से आगे अंनत विस्तृत है न लोटे तो मुख्य विषय ही छूट जाता। 


इडा नाडी गंगा, पिंगला नाडी यमुना और शुषुम्ना नाडी सरस्वती नदी है। ये तीनों सूक्ष्म नाडिया जब कूटस्थ यानि आज्ञाचक्र मे मिल जाती है तब इसी मिलन को गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का त्रिवेणीसंग़म कहते है।


अधिक साधना से प्राणशक्ति कूटस्थ से आगे बढकर केवल शुषुम्ना नाडी द्वारा ही सहस्रारचक्र मे पहुंचती है, इडा और पिंगला नाडियाँ केवल कूटस्थ तक ही शुषुम्ना के साथ रहती है।


स्वास अंदर खींचने और कूटस्थ को इस प्राणशक्ति से भरने को पूरक कहते है, कूटस्थ को इस प्राणशक्ति से भर के थोडा देर रखने को यानि कुंम्भक करने को अंतः कुंभक कहते है बाहर निकालने को रेचक कहते है ।


प्राणशक्ति को बाहर थोडी देर रोकने को बाह्य कुंभक कहते है। पूरक करके प्राणशक्ति को कूटस्थ मे अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार रोककर फिर इस प्राणशक्ति को रेचक करके मूलाधारचक्र द्वारा छोडने से विद्युत अयस्कांत शक्ति का उत्पादन होता है! 

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