) जीवन में जो भी हम आज पाते है, वो कल बीज रूप में हमारा ही बोया हुआ होता है। पर समय के अंतराल के कारण हम दोनों में उसकी तादम्यता नहीं जोड़ पाते और कहते है। मनुष्य के मन के सात प्रकार है, वहीं से उसे अपनी यात्रा शुरू करनी होती है परंतु ये कार्य तो केवल गुरु ही देख सकता है। सेक्स, कृपणता, क्रोध, धूर्तता, मूढ़ता.... परंतु इस समय पूरी पृथ्वी मानसिक रूप से मनुष्य के मन पर सेक्स एक रोग बन गया है। सेक्स जो शरीर की जरूरत है, वो हमारे सभ्य होने के साथ-साथ मन पर आ गया। जो बहुत खतरनाक है। सबसे पहले तो साधक को ये समझ लेना चाहिए की सेक्स शरीर पर कैसे आये जैसे भोजन अगर हम मन से करे तो हम अस्वास्थ हो जायेगे। बाकी पृथ्वी का कोई प्राणी प्रकृति से जुड़ा है केवल मनुष्य टूट गया है। तब हम उसके पास हो सकते है, कृपणता तो पहला द्वार है कृपण आदमी न तो प्रेम कर सकता है, वह तो केवल धन का गुलाम होता है, वह कमाता तो है परंतु उसका उपयोग भी नहीं कर पता। सद्उपयोग की बात तो छोडिये, इसलिए सभी धर्मों ने दान का बहुत महत्व दिया है, दान पहला द्वार खोने के लिए अति जरूर है। परंतु जब साधक ध्यान साधना शुरू ...
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