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गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

होलोग्राफिक तकनीक द्वारा अंतरिक्ष की यात्रा

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  लंदन: यह फिल्म स्टार ट्रेक के एक दृश्य की तरह लग सकता है, लेकिन नासा के एक डॉक्टर और उनकी टीम पृथ्वी से अंतरिक्ष में 'होलोपोर्टेड' होने वाले पहले इंसान बन गए हैं. फ्लाइट सर्जन डॉ जोसेफ श्मिड ने अचानक खुद को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के बीच में बीमित पाया, जहां वह दो-तरफा बातचीत का आनंद लेने में सक्षम थे और यहां तक ​​​​कि फ्रांसीसी अंतरिक्ष यात्री थॉमस पेस्केट के साथ हाथ मिलाने में भी सक्षम थे.

      नासा ने खुलासा किया है कि कैसे होलोग्राफिक डॉक्टर नेअंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन' का दौरा किया. फ्लाइट सर्जन जोसेफ श्मिड पृथ्वी से अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले मानव 'होलोपोर्टेड' थे. डॉ श्मिड ने बताया कि होलोपोर्टेशन एक प्रकार की तकनीक है जो लोगों के उच्च-गुणवत्ता वाले 3D मॉडल को वास्तविक समय में कहीं भी फिर से संगठित, संपीड़ित और प्रसारित करने की अनुमति देती है. इस प्रयोग के लिए नासा ने कस्टम सॉफ़्टवेयर के साथ Microsoft Hololens Kinect कैमरा और कंप्यूटर का उपयोग किया. 

 पहली बार इस तकनीक का इतनी दूरी पर प्रयोग

माइक्रोसाफ्ट के होलोलेंस जैसे मिश्रित रियलिटी डिस्प्ले के साथ संयुक्त होने पर, यह उपयोगकर्ताओं को 3D में दूरस्थ प्रतिभागियों को देखने, सुनने और बातचीत करने की अनुमति देता है जैसे कि वे वास्तव में एक ही भौतिक स्थान में मौजूद हों. माइक्रोसाफ्ट की ओर से 2016 से होलोपोर्टेशन का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन यह पहली बार है जब प्रौद्योगिकी को अंतरिक्ष जैसे चरम और दूरस्थ वातावरण में तैनात किया गया है.

मानव संचार का नया तरीका

डॉ श्मिड ने कहा, 'यह विशाल दूरी पर मानव संचार का पूरी तरह से नया तरीका है. 'इसके अलावा, यह मानव अन्वेषण का एक नया तरीका है, जहां हमारी मानव इकाई ग्रह से यात्रा करने में सक्षम है. हमारा भौतिक शरीर वहां नहीं है, लेकिन हमारा मानव अस्तित्व बिल्कुल है. 'इससे ​​कोई फर्क नहीं पड़ता कि अंतरिक्ष स्टेशन 17,500 मील प्रति घंटे की यात्रा कर रहा है और पृथ्वी से 250 मील ऊपर कक्षा में निरंतर गति में है. नासा ने कहा कि कोविड महामारी के लगभग दो वर्षों के दौरान, 'टेलीमेडिसिन का विकास और लोगों तक पहुंचने के नए तरीके बदल गए और विकसित हुए'.sabhar znews. Com

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मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

आत्मा की यात्रा

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 आत्मा जब शरीर छोड़ती है तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है,,ऐसे में वह स्वयं भी हथियार डाल देता है अन्यथा उसने आत्मा को शरीर में बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया होता है और इस चक्कर में कष्ट झेला होता है ।


अब उसके सामने उसके सारे जीवन की यात्रा चल-चित्र की तरह चल रही होती है । उधर आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है इसलिए शरीर के पांच प्राण  एक धनंजय प्राण को छोड़कर शरीर से बाहर निकलना आरंभ कर देते है।


यह प्राण आत्मा से पहले बाहर निकलकर आत्मा के लिए सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं जो कि शरीर छोड़ने के बाद आत्मा का वाहन होता है ।धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाती है ।


बहरहाल अभी आत्मा शरीर में ही होती है और दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते हैं कि व्यक्ति को पता चल जाता है ।


उसे बेचैनी होने लगती है,, घबराहट होने लगती है सारा शरीर फटने लगता है,,खून की गति धीमी होने लगती है सांस उखड़ने लगती है बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं ।


अर्थात अब चेतना लुप्त होने लगती है और मूर्छा आने लगती है चेतन ही आत्मा के होने का संकेत है और जब आत्मा ही शरीर छोड़ने को तैयार है - तो चेतना को तो जाना ही है और वह मूर्छित होने लगता है ।


बुद्धि समाप्त हो जाती है और किसी अनजाने लोक में प्रवेश की अनुभूति होने लगती है यह चौथा आयाम होता है 


फिर मूर्छा आ जाती है और आत्मा एक झटके से किसी भी खुली हुई इंद्रिय से बाहर निकल जाती है इसी समय चेहरा विकृत हो जाता है यही आत्मा के शरीर छोड़ देने का मुख्य चिन्ह होता है ।


 शरीर छोड़ने से पहले केवल कुछ पलों के लिए आत्मा अपनी शक्ति से शरीर को शत-प्रतिशत प्रतिशत सजीव करती है ताकि उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध ना रहे और फिर उसी समय आत्मा अपनी शक्ति से शरीर को शत प्रतिशत सजीव करती है ताकि उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध ना रहे और फिर उसी समय आत्मा निकल जाती है और शरीर खाली मकान की तरह निर्जीव रह जाता है ।

इससे पहले घर के आसपास कुत्ते बिल्ली के रोने की आवाज आती हैं इन पशुओं की आंखें अत्यधिक चमकीली होती है जिससे यह रात के अंधेरे में तो क्या सूक्ष्म शरीर धारी आत्मा को भी देख लेते हैं।


जब किसी व्यक्ति की आत्मा शरीर छोड़ने को तैयार होती है तो उसके अपने सगे-संबंधी जो मृत आत्माओं के रूप में होते हैं उसे लेने आते हैं और व्यक्ति उन्हें यमदूत समझता है और कुत्ते बिल्ली उन्हें साधारण जीवित मनुष्य ही समझते हैं । और अनजान होने की वजह से उन्हें देख कर रोते हैं और कभी-कभी भोंकते भी हैं ।


शरीर के पांच प्रकार के प्राण बाहर निकल कर उसी तरह सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं जैसे गर्भ में स्थूल शरीर का निर्माण क्रम से होता है।


सूक्ष्म शरीर का निर्माण होते ही आत्मा अपने मूल वाहक धनंजय प्राण के द्वारा बड़े वेग से निकलकर सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाती है ।आत्मा शरीर के जिस अंग से निकलती है उसे खोलती व तोड़ती हुई निकलती है ।जो लोग भयंकर पापी होते हैं उनकी आत्मा मूत्र या मल मार्ग से निकलती है,,जो पापी भी हैं और पुण्यात्मा भी हैं उनकी आत्मा मुख से निकलती है,,जो पापी कम और पुण्यात्मा अधिक हैं उनकी आत्मा नेत्रों से निकलती है,, और जो पूर्ण धर्मनिष्ठ हैं पुण्यात्मा और योगी पुरुष हैं उनकी आत्मा ब्रह्मरंध्र से निकलती है 


अब तक शरीर से बाहर सूक्ष्म शरीर का निर्माण हुआ रहता है लेकिन यह सभी का नहीं हुआ रहता जो लोग अपने जीवन में ही मोह-माया से मुक्त हो चुके योगी पुरुष हैं उन्हीं के लिए तुरंत सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है। अन्यथा जो लोग मोह माया से ग्रस्त हैं परंतु बुद्धिमान हैं ज्ञान विज्ञान से अथवा पांडित्य से युक्त हैं ऐसे लोगों के लिए 13दिनों में सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है।


हिंदू धर्म में शास्त्रों में 10 गात्र का श्राद्ध और अंतिम दिन मृतक का श्राद्ध करने का विधान इसलिए है कि 10 दिनों में शरीर के 10 अंगो का निर्माण इस विधान से पूर्ण हो जाए और आत्मा को सूक्ष्म शरीर मिल जाय ।

ऐसे में जब तक दसगत्र का श्राद्ध पूर्ण नहीं होता और सूक्ष्म शरीर तैयार नहीं हो जाता आत्मा प्रेत शरीर में निवास करती है।

अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो आत्मा प्रेत योनि में भटकती रहती है ।

एक और बात, आत्मा के शरीर छोड़ते समय व्यक्ति को पानी की बहुत प्यास लगती है । शरीर से प्राण निकलते समय कंठ सूखने लगता है ह्रदय सूखता जाता है और इसे नाभि जलने लगती है । लेकिन कंठ अवरुद्ध होने से पानी पिया नहीं जाता और ऐसी स्थिति में आत्मा शरीर छोड़ देती है ।प्यास अधूरी रह जाती है इसलिए अंतिम समय में मुख्य में गंगा जल डालने का विधान है।


इसके बाद आत्मा का अगला पड़ाव होता है "शमशान का पीपल"यहां आत्मा के लिए 'यमघंट' बंधा होता है जिसमें पानी होता है यहां प्यासी आत्मा यमघंट से पानी पीती हैं,,जो उसके लिए अमृ-त्तुल्य होता है । इस पानी से आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है ।


 हिंदू धर्म शास्त्रों में विधान है कि मृतक के लिए यह सब करना होता है ताकि उसकी आत्मा को शांति मिले अगर किसी कारणवश मृतक का दस गात्र का श्राद्ध ना हो सके और उसके लिए!! पीपल पर यमघंट भी ना बांधा जा सके तो उसकी आत्मा प्रेत योनि में चली जाएगी और फिर कब वहां से उसकी मुक्ति होगी कहना कठिन होगा ।

सदगुरुदेव भगवान के चरणों में दण्डवत  नमन....


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