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अगस्त, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रहस्यमयी एंटीमैटर पकड़ने का दावा

तकनीकी कमाल दिखाते हुए वैज्ञानिकों ने 16 मिनटों तक एंटीमैटर (प्रतिपदार्थ) को रिकार्ड समय तक इकट्ठा किए रखा. उनका दावा है कि इससे एंटीमैटर के रहस्यों पर से पर्दा हट सकता है. एंटीमैटर रहस्यमयी पदार्थ है जिसे डॉन ब्राउन के उपन्यास और फिल्म 'एंजल्स एंड डेमन्स' में सर्वविनाशक हथियार के तौर पर दिखाया गया है. एंटीमैटर को रखना आसान नहीं क्योंकि कण और प्रतिकण एक-दूसरे से हुई टक्कर से पैदा ऊर्जा में खत्म हो जाते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार 14 अरब साल पहले बिग बैंग के समय पदार्थ और एंटीमैटर बराबर मात्रा में उपलब्ध थे. अगर यह संतुलन बना रहता तो ब्राह्मांड आज जिस रूप में है उस आकार में नहीं रहता. अनजाने कारणों से प्रकृति में पदार्थ के लिए अनुकूलता है और एंटीमैटर आज दुर्लभ हो गया है. भौतिक शास्त्र के लिए यह बड़ी पहेली है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हाइड्रोजन के अणुओं के साथ कम ऊर्जा के परीक्षण इस रहस्य को सुलझाने में अहम कदम साबित हो सकते हैं. जेनेवा में प्रयोग करने वाली यूरोपीय ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च के अल्फा टीम के प्रवक्ता जैफरी हैंग्स्ट ने कहा, 'हम एंटीहाइड्रोजन

चश्मे से छुटकारा जल्द

क्या आप भी उन लोगों में से एक हैं जो चश्मे का इस्तेमाल करने से आजिज आ चुके हैं? यदि ऐसा है तो चिंता न करें. वैज्ञानिकों ने एक ऐसा क्रांतिकारी तरीका ईजाद किया है जो लाखों लोगों को चश्मा पहनने की मजबूरी से हमेशा के लिए छुटकारा दिला सकता है. वैज्ञानिकों ने जो नई चिकित्सा पद्धति विकसित की है उसके तहत आंखों के अंदर एक तरह का छोटा-सा प्लास्टिक प्रतिरोपित कर चश्मे की जरूरत को खत्म किया जा सकता है. 'जेड कामरा' नाम की इस शैली के प्रायोगिक परीक्षणों में काफी अच्छे परिणाम मिले हैं. डेली टेलीग्राफ के अनुसार इस शैली में लेजर की मदद से कॉर्निया (आंखों के बाहरी लेंस) में एक हल्का सा छेद कर काफी महीन परत डाल दी जाती है. इससे आंखों में प्रवेश करने वाली रोशनी की मात्रा को नियंत्रित करने में सहूलियत होगी और स्पष्ट और साफ देखा जा सकेगा. ब्रिटेन में इस तरह का इलाज शुरू हो चुका है. वैज्ञानिकों के मुताबिक 70 साल से ज्यादा उम्र के लोग, जिनकी दूर या पास की नजर काफी कम है, उन्हें इस नए इलाज का ज्यादा फायदा नहीं मिल सकेगा क्योंकि उनके कैट्रैक्ट्स को बदले जाने की जरूरत होती है. इस तकनीक में एक आंख

प्रयोगशाला में विकसित हुआ इंसानी दिमाग़

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में छोटे आकार का ‘मानव मस्तिष्क’ विकसित किया है. मटर के बराबर का ये अंग ठीक उतना बड़ा है जितना नौ हफ़्ते के भ्रूण में पाया जाता है. लेकिन इसमें सोचने की क्षमता नहीं है. वैज्ञानिकों ने कुछ असामान्य बीमारियों की जानकारी हासिल करने के लिए इस ‘मस्तिष्क’ की मदद ली है.समझा जाता है कि ये तंत्रिका से जुड़ी बीमारियों के इलाज में मददगार साबित होगा. इस शोध के बारे में विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में लेख छपा है. कोशिकाएं तंत्रिका विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों ने नई खोज को चौंका देनेवाला और दिलचस्प बताया है. मानव मस्तिष्क शरीर में पाए जाने वाले सभी अंगों में सबसे अधिक जटिल माना जाता है. 'ऑस्ट्रियन अकादमी ऑफ़ साइंसेस' के वैज्ञानिक अब मानव मस्तिष्क के शुरूआती आकार को विकसित करने में कामयाब हो गए हैं. वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग के लिए या तो मूल भ्रूणीय को‏‏‏शिकाओं या वयस्क चर्म कोशिकाओं को चुना. इनकी मदद से भ्रूण के उस हिस्से को तैयार किया गया जहां दिमाग़ और रीढ़ की हड्डी का हिस्सा विकसित होता है. इन कोशिकाओं को 'जेल' की छोटी बूंदों में रखा गय

'फेस मशीन' पढ़ लेगी चेहरे की ख़ुशी और ग़म

बीबीसी संवाददाता समांथा फेनविक ने चेहरा पढ़ने वाली मशीन के प्रयोग में हिस्सा लिया आपका चेहरा आपके बारे में क्या कह रहा है? किसी के लिए ये बताना शायद मुश्किल हो लेकिन एक नई तकनीक के बारे में दावा किया जा रहा है कि वो चेहरा देखकर पहचान लेगी कि आप ख़ुश हैं, उदास हैं या बोर हो रहे हैं. लेकिन कंपनी इसके लिए पहले आपकी अनुमति लेती है. इसके बाद बायोमेट्रिक ट्रैकिंग के लिए विशेष वेबकैम से आपके चेहरे के भावों को रिकार्ड करती है.इससे ऑनलाइन विज्ञापन कंपनियों को पता चल सकेगा कि आप उनके  क्लिक करें विज्ञापन पेज  को देखकर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं? इस तकनीक का इस्तेमाल अभी बड़े बजट के विज्ञापनों को लांच करने से पहले लोगों के रुझान को जानने के लिए किया जाता है. अनौपचारिक प्रयोग बीबीसी ने इस तकनीक का विकास करने वाले रीयलआइज़ के साथ मिलकर अपने रेडियो-4 के श्रोताओं पर प्रोग्राम ‘यू एंड योर्स’ की रिलीज से पहले अनौपचारिक प्रयोग किए. " यह कंप्यूटर प्रोग्राम देखने में सक्षम है कि लोगों की भौंहें, मुंह और आंखें कैसे गति करती है? वैश्विक स्तर पर छह भावनाएं होती हैं, जो सबके लिए सम

आनुवंशिक कोड में परिवर्तन जीवों की उम्र बढ़ाए

जापान के राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया है कि जीवों के आनुवंशिक कोड में परिवर्तन करके उनकी उम्र बढ़ाई जा सकती है। जापानी वैज्ञानिकों ने राइबोसोम के अध्ययन पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। राइबोसोम जीवित कोशिकाओं का एक ऐसा घटक है जो एमिनो एसिड से प्रोटीन का संश्लेषण करता है। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि राइबोसोम का अस्थिर व्यवहार ही जीवों का बुढ़ापा बढ़ने का कारण बनता है। वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक कोड में परिवर्तन करके इस अस्थिरता को दूर करने का एक रास्ता भी खोज लिया है। उन्होंने फफूंदीय ख़मीर के जीवन को दो दिन से बढ़ाकर तीन दिन तक करने के काम में सफलता पाई है। वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष भी निकाला है कि इसी तरह से मानव जीवन को लम्बा करने के लिए भी नए तरीके खोजे जा सकते हैं। sabhar : http://hindi.ruvr.ru और पढ़ें:  http://hindi.ruvr.ru/news/2013_08_30/viv-umr-barhae/

प्रयोगशालाएं, जहां मौत के डर से बे-खौफ करते हैं वैज्ञानिक खोज

दुनिया जहान से बेखबर कुछ खोजने और दुनिया को देने की सनक वैज्ञानिकों में सदियों से रही है। उसी का नतीजा है कि आज हम ये सारे सुख भोग रहे हैं और आराम की जिंदगी जीते हैं। लेकिन कुछ जुनूनी अपनी जिंदगी को दांव लगाकर लगे हुए हैं खोज में।   शोधकर्ता हर चरम परिस्थिति में काम करने के लिए तैयार रहते हैं। इसके लिए उन्होंने बनाई हैं कुछ प्रयोगशालाएं, जो आम जगहों से दूर ऐसे हालातों में हैं जहां चल रहा है निरंतर शोध।   कैसे खतरनाक हालातों में ये काम कर पाते होंगे। आईए जानते हैं कुछ ऐसी ही प्रयोगशालाओं के बारे में, जो असामान्य वातावरण वाले स्थानों पर बनी हैं और वहां क्या होता है काम।    सबसे गहरे पानी में स्थित लैब अमेरिका के फ्लोरिडा में नोआ एक्वारिस रीफ बेस एकमात्र ऑपरेशनल अंडरवाटर लैब है। पिछले दो दशकों में शोधकर्ता यहां इकोलॉजी और रीफ का अध्ययन कर रहे हैं। इसके अलावा तरिक्षयात्रियों को भारहीनता जैसे कुछ अनुभव दिलाने के लिए नासा भी इसका प्रयोग करता है। ................................... सर्वाधिक तापमान पैदा करने वाली लैब  अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में स्थित ब्रूकहैवन नेशन

कृत्रिम बुद्धि और मानवजाति का भविष्य

कुछ वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम बुद्धि का विकास किया जा रहा है जबकि कुछ अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इस कृत्रिम बुद्धि कुछ वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम बुद्धि का विकास किया जा रहा है जबकि कुछ अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इस कृत्रिम बुद्धि से सुरक्षा के उपाए भी खोजे जा रहे हैं। इस साल कैम्ब्रिज में एक विशेष अनुसंधान केंद्र खुल जाएगा, जिसका मुख्य कार्य- कृत्रिम बुद्धि से उत्पन्न ख़तरों का मुकाबला करना होगा। अभी कुछ समय पहले अमरीका के रक्षा विभाग ने एक निर्देश जारी किया था जो स्वचालित और अर्द्ध-स्वचालित युद्ध प्रणालियों के प्रति मानव के व्यवहार को निर्धारित करता है। अमरीकी सैन्य अधिकारियों की इस चिंता को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। बात दरअसल यह है कि अमरीका अपनी सेना के रोबोटिकरण के मामले में दुनिया के अन्य देशों से बहुत आगे निकल गया है। उसके पास कई प्रकार के "ड्रोन" विमान हैं। इसके अलावा, उसके पास रोबोट-इंजीनियर, रोबोट-सैनिक (मशीनगनों और ग्रेनेड लांचरों से लैस छोटे क्रॉलर प्लेटफार्म) पहले से ही मौजूद हैं। और मीडिया में समय-समय पर ऐसी चिंताजनक ख़बरें भी आती रहती हैं कि &qu

मंगल के “निवासी” मानवजाति के लिए ख़तरा

पृथ्वी के निवासियों द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए या भविष्य में भेजे जानेवाले अनुसंधान वाहन बेशक हमें अमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं लेकिन अगर ये वाहन पृथ्वी पर वापस लौटेंगे तो वे अपने साथ बिन बुलाए मेहमानों को भी ला सकते हैं। बेशक, ये हरी चमड़ी वाले मनुष्य नहीं होंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये बेहद सूक्ष्म जीव हो सकते हैं जो पृथ्वी के निवासियों के लिए एक भयानक ख़तरा बन सकते हैं। अमरीका द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर “क्युरियोसिटी” पर लगे एक खोज-यंत्र ने अभी हाल ही में इस गृह पर मीथेन गैस की मौजूदगी का पता लगाया है। इस गैस की मौजूदगी का मतलब यह है कि मंगल गृह पर जीव और पौधे भी मौजूद हो सकते हैं। पौधों और जीवों की वजह से ही पृथ्वी पर मीथेन गैस पैदा होती है। अब सवाल पैदा होता है कि क्या मंगल ग्रह पर वास्तव में जीव-जंतु और पौधे मोजूद हैं? वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मंगल ग्रह पर बुद्धिमान प्राणी तो शायद नहीं रहते हैं लेकिन वहाँ अति सूक्ष्म अविकसत जीवों की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में रूसी विज्ञान अकादमी के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ शोधक

यूरी गगारिन ने कहा था : 'उड़नतश्तरियाँ सचमुच होती हैं

Photo: RIA Novosti 12  अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के नागरिक, सोवियत वायुसेना में मेजर यूरी गगारिन ने मानव इतिहास में 12  अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के नागरिक, सोवियत वायुसेना में मेजर यूरी गगारिन ने मानव इतिहास में पहली बार 'वस्तोक-1' नामक अन्तरिक्ष यान में सवार होकर पृथ्वी की निकटतम परिधि  पर अंतरिक्ष की यात्रा की थी। आज ऐसा लगता है मानो हम यूरी गगारिन की उस पहली उड़ान के बारे में सब कुछ जानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। एक विषय ऐसा है, जिसकी औपचारिक सूचना साधनों ने अक्सर उपेक्षा की है। यह विषय है —  उड़नतश्तरियाँ। जबकि यूरी गगारिन ने अपने संस्मरणों में लिखा है —  'उड़नतश्तरियाँ  एक वास्तविकता हैं। अगर आप मुझे इज़ाजत देंगे तो मैं उनके बारे में और भी बहुत-कुछ बता सकता हूँ।' यह वाक्य सचमुच आश्चर्यजनक है क्योंकि तब, आज से चालीस-पचास साल पहले, सोवियत संघ में उड़नतश्तरियों के बारे में अंतरिक्ष यात्रियों और पत्रकारों को कुछ भी कहने या बताने की छूट नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उड़नतश्तरियों के साथ विभिन्न अंतरिक्ष-यात्रियों की मुलाक़ातों के बारे में बहुत-सी सामग्री इकट्

आ के फिर ना जायेगी जवानी

स्रोत फोटो : गूगल  आ के  फिर ना जायेगी जवानी  जवानी जो तीनो पड़ाव मे मे  सबसे   लुभावनी है  | कब सरक जाती है पता नहीं चलता  मगर ईधर पश्चिम  देशो मे  कयी ऐसी चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है | जो आई जवानी के वापस न जाने की बात कही है, यानी की सदाबहार जवानी का दावा  इस संदर्भ मे पिछले दिनो हावर्ड विश्विद्यालय से आई रिपोर्ट अपने आप मे पहली रिपोर्ट कही जा सकती है | जो जवानी की चाभी कही जाने वाली टेलोमियर्स को राह पे आने मे सफल हुई है | fo’ofo|ky; ds vksadksykWftLV ¼V~;we;Z v/;;udrkZ½ Mk0 jksukYMks fM fiUgks ds vuqlkj c<+rh mez ds izHkko vkSj Vsfyfe;lZ dk fo’ks”k laca/k gSA vly esa izR;sd dksf’kdk ds dsUnzd esa ,d yM+h xaqFkh jgrh gSA  स्रोत फोटो : गूगल  ;gh thou ds gjdkjs xq.klw= ;kuh ØksekslksEl gSA buds fljs ij Vsfyfe;lZ uked Vksihuqek lajpkuk,a gksrh gsA ‘kks/kdrkZvks ds vuqlkj dksf’kdk foHkktu ds lkFk&alkFk Vsfyfe;lZ f?klus yxrs gS vkSj mudh yEckbZ ?kVRkh tkrh gSA MkW0 jksukYM ds vuqlkj blh ds dkj.k ,YthelZ] fMeksZf’k;k tSls mez ls tqM+s jksx iuirs gSA blh ‘kks