क्या अंतरिक्ष में रहना संभव है। वहां न तो सांस लेने के लिए हवा है और न ही पीने के लिए पानी। इसके बावजूद वैज्ञानिकों का मानना है कि एक दिन वह ऐसा संभव कर दिखाएंगे। इसके लिए आज से नहीं बल्कि तकरीबन चार दशक पहले से ही शोधकार्य चल रहा है। कई सारे वैज्ञानिकों ने इसका ब्लूप्रिंट भी तैयार किया है। इन ब्लूप्रिंट के सहारे वह सोचने पर मजबूर करते हैं कि एक दिन अंतरिक्ष में जीवन संभव होगा। ये जीवन मशीनों के सहारे संभव होगा। नासा 1975 से इस बारे में शोध कर रहा है। इसके अलावा स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में इस बारे में रिसर्च चल रही है। बताया जा रहा है कि यह रिसर्च अगर कामयाब हो गई तो अंतरिक्ष में 10 से 14 हजार लोग एक ही मशीनी कालोनी में रह सकेंगे।
अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की भी समस्या है। अंतरिक्ष यानों में अक्सर व्यक्ति हवा में तैरते हुए देखे जाते हैं क्योंकि वहां पहुंचने पर गुरुत्वाकर्षण न होने की वजह से उनके पैर टिक नहीं पाते हैं। इस समस्या का भी इलाज खोजा गया।
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इस कालोनी में पृथ्वी की तरह गुरुत्वाकर्षण होगा। इसके लिए यह कालोनी एक मिनट में एक बार घूमेगी जिससे कि आर्टीफीशियल गुरुत्वाकर्षण पैदा होगा। इससे उसमें रहने वाले लोगों के पैर टिके रहेंगे और वह जिस सामान्य तरीके से पृथ्वी पर चलते फिरते हैं, उसी तरह से वहां भी चलेंगे फिरेंगे।
जीवन के लिए जितनी जरूरी हवा और पानी है, उतना ही जरूरी सूर्य का प्रकाश भी है। इस समस्या का भी समाधान स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और नासा में चल रही रिसर्च में खोजने की कोशिश की गई है। इसके लिए इसमें खास तरह के शीशे लगाए जाएंगे। यह शीशे एक खास एंगल पर लगेंगे जो सूर्य के प्रकाश को प्राकृतिक तरीके से इस मशीन में लेकर आएंगे।
कोशिश की जा रही है कि इस मशीनी कालोनी के अंदर रहने वालों को पूरी तरह से पृथ्वी जैसा प्राकृतिक माहौल मिले। वहां पेड़ पौधे तो होंगे ही, छोटे मोटे झरने जैसे भी डिजाइन किए गए हैं।
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sabhar : www.bhaskar.com
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