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यूरी गगारिन ने कहा था : 'उड़नतश्तरियाँ सचमुच होती हैं

यूरी गगारिन ने कहा था : 'उड़नतश्तरियाँ सचमुच होती हैं'
Photo: RIA Novosti

12  अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के नागरिक, सोवियत वायुसेना में मेजर यूरी गगारिन ने मानव इतिहास में

12  अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के नागरिक, सोवियत वायुसेना में मेजर यूरी गगारिन ने मानव इतिहास में पहली बार 'वस्तोक-1' नामक अन्तरिक्ष यान में सवार होकर पृथ्वी की निकटतम परिधि  पर अंतरिक्ष की यात्रा की थी।
आज ऐसा लगता है मानो हम यूरी गगारिन की उस पहली उड़ान के बारे में सब कुछ जानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। एक विषय ऐसा है, जिसकी औपचारिक सूचना साधनों ने अक्सर उपेक्षा की है। यह विषय है —  उड़नतश्तरियाँ। जबकि यूरी गगारिन ने अपने संस्मरणों में लिखा है — 'उड़नतश्तरियाँ  एक वास्तविकता हैं। अगर आप मुझे इज़ाजत देंगे तो मैं उनके बारे में और भी बहुत-कुछ बता सकता हूँ।'
यह वाक्य सचमुच आश्चर्यजनक है क्योंकि तब, आज से चालीस-पचास साल पहले, सोवियत संघ में उड़नतश्तरियों के बारे में अंतरिक्ष यात्रियों और पत्रकारों को कुछ भी कहने या बताने की छूट नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उड़नतश्तरियों के साथ विभिन्न अंतरिक्ष-यात्रियों की मुलाक़ातों के बारे में बहुत-सी सामग्री इकट्ठी हो गई है। इनमें से कुछ बातें अब हम आपको बताते हैं।
गेरमन तितोव गगारिन के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे व्यक्ति थे। उन्होंने बताया कि 1961 में अपनी अन्तरिक्ष उड़ान के दौरान उन्होंने 7 उड़नतश्तरियाँ देखी थीं, जो उनके अन्तरिक्ष-यान के आसपास 'नाच' रही थीं।
26  फ़रवरी 1962  के दिन  'मरकरी फ़्रेंडशिप-7'  नामक अंतरिक्ष यान में उड़ान भर रहे  अमरीकी अंतरिक्ष-यात्री जॉन ग्लेनी ने  सिगार की शक़्ल की तरह की कोई अपरिचित चीज़ अंतरिक्ष में देखकर उसकी तस्वीरें ली थीं। सिगारनुमा इस यान के क़रीब एक भारी प्रकाशपुँज चमक रहा था। यह तस्वीर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
12  अक्तूबर 1964  को 'वस्ख़ोद' नामक अंतरिक्ष-यान में पहली बार एक साथ तीन अंतरिक्ष-यात्री सवार होकर अंतरिक्ष में गए थे। कमारव, फ़िआक्तीस्तव और येगोरव नाम के इन तीनों अंतरिक्ष-यात्रियों ने पृथ्वी पर बने उड़ान संचालन केन्द्र को यह सूचना दी कि उनके यान को भयानक तेज़ी से उड़ रहीं डिस्क की शक़्ल की चीज़ों ने घेर लिया है। 5 दिवसीय इस उड़ान को यह सूचना मिलने के तुरन्त बाद बीच में ही  स्थगित कर दिया गया।
1968   में अमरीकी अंतरिक्ष-यात्रियों बोरमन, लॉवेल और एंड्रे जब 'अपोलो-8'  नामक अंतरिक्ष-यान में सवार होकर अंतरिक्ष में पहुँचे तो उन्होंने डिस्क की तरह गोल कुछ चीज़ों को देखा, जो ग्यारह हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से उड़ रही थीं। इन उड़नतश्तरियों के वहाँ पहुँचते ही 'अपोलो-8'  के सभी यंत्र-उपकरणों ने काम करना बंद कर दिया  तथा अमरीकी नगर ह्यूस्टन में बने उड़ान-संचालन केन्द्र से 'अपोलो-8'  का सम्बन्ध  टूट गया। इसके बाद इन रहस्यमयी चीज़ों ने 'अपोलो' को तेज़ रोशनी में नहला दिया और अपोलो  ऐसे  झूलने लगा, मानो कोई उसे झूले में झुला रहा  हो। इसके बाद एक बड़ी भयानक आवाज़ गूँजनी शुरू हो गई। इस आवाज़ से तीनों अंतरिक्ष-यात्रियों के कान के पर्दे जैसे फटने लगे और उनके कानों में  भयानक दर्द होना शुरू हो गया। कुछ पलों तक यही स्थिति रही। लेकिन कुछ ही मिनट बाद  अचानक ये  उड़नतश्तरियाँ कहीं ग़ायब हो गईं और वह भयानक आवाज़ तथा तेज़ रोशनी भी बंद हो गई। लेकिन  कुछ ही देर बाद 'अपोलो-8'  के पास डिस्क की तरह की ही एक और उड़नतश्तरी उभर आई जो  पहले वाली उड़नतश्तरियों से बहुत ज़्यादा बड़ी थी। अमरीकी अंतरिक्ष-यात्रियों के सारे शरीर में भयानक दर्द होने लगा। परन्तु 11 मिनट बाद यह उड़नतश्तरी भी ग़ायब हो गई और सब-कुछ पहले जैसा ही सामान्य हो गया। ह्यूस्टन के साथ सम्पर्क-लाइन भी तुरन्त ही काम करने लगी।
21  अप्रैल 1969  के दिन 'अपोलो-11'  नामक अंतरिक्ष-यान चाँद पर उतरा। यान से बाहर आकर अंतरिक्ष-यात्रियों आर्मस्ट्राँग और ओल्डरिन ने अपने सिर के ऊपर दो  उड़नतश्तरियों को देखा। उन्हें कुछ दूरी पर कुछ और उड़नतश्तरियाँ चन्द्रमा की सतह पर खड़ी दिखाई दीं। नासा अंतरिक्ष संगठन के भूतपूर्व सहकर्मी ओट्टो बिन्देर ने बताया कि   रेडियो-प्रेमियों ने 'अपोलो-11'   से आने वाले इस तरह के संदेश को  रिकार्ड किया था, जिसमें अंतरिक्ष-यात्री  कह रहे थे  — "हे भगवान!  ...आपको शायद ही इस बात पर विश्वास होगा कि यहाँ कुछ दूसरे यान भी दिखाई दे रहे हैं... जो कुछ ही दूर खड़े हुए हैं... क्रेटर के उस दूर वाले किनारे पर। वे हमें देख रहे हैं !"
अप्रैल 1975   में पृथ्वी से 195  किलोमीटर की ऊँचाई पर वाहक-रॉकेट के दुर्घटनाग्रस्त होने से अन्तरिक्ष-यान 'सोयूज-18'  का यात्री-कैपसूल उससे अलग हो गया। यह यात्री-कैपसूल पैराशूट के सहारे लाज़रेव और मकारव नाम के अंतरिक्ष-यात्रियों के साथ साईबेरिया के अल्ताई नामक पहाड़ी इलाके में सुरक्षित उतर आया। रात को इन अंतरिक्ष-यात्रियों के शिविर पर अचानक बैंगनी रंग की तेज़ रोशनी फैल गई। बाद में अचानक वह रोशनी ग़ायब हो गई। फिर वर्ष 1996 में लाज़रेव ने   बताया कि उनका यह मानना है कि इस  बैंगनी रोशनी फेंकने वाली चीज़ की वज़ह से ही वे दोनों अंतरिक्ष-यात्री एकदम पूरी तरह से सुरक्षित पृथ्वी पर लौट आए थे।
1978   में जब अंतरिक्ष-यात्री पपोविच एक यात्री-विमान में सवार होकर वाशिंगटन से मास्को लौट रहे थे तो  धरती से 10  हज़ार मीटर की ऊँचाई पर अपने विमान से क़रीब 1500  मीटर की दूरी पर उन्होंने आकाश में एक तिकोनी चीज़ को देखा, जो किसी नौका के पाल या बादबान की तरह लग रही थी।
5  मई 1981  को 'सल्यूत-6'  नामक अंतरिक्ष स्टेशन के कमांडर कवालेनक ने स्टेशन की खिड़की के बाहर एक अपरिचित बड़ी-सी गोल चीज़ को देखा, जो बाद में दो  घेरों में विभाजित हो गई। ये घेरे एक  कॉरीडोर जैसी चीज़ से जुड़े हुए थे।
1985  में  'सल्यूत-7'  नामक अंतरिक्ष-स्टेशन की उड़ान के 155 वे दिन अंतरिक्ष-स्टेशन पर उपस्थित  छह अंतरिक्ष-यात्रियों — कीज़िम, अत्कोफ़, सलाव्योव, सवीत्सकया, वोल्क और जानिबेकव ने स्टेशन की खिड़की के बाहर खुले अंतरिक्ष में सात बड़े-बड़े जीव देखे।  इन जीवों की बहुत कम चर्चा करते हुए उन्होंने इन्हें  'अंतरिक्षीय देवदूत'  कहा है। इन जीवों  की शक़्लें एक-दूसरे से अलग-अलग थीं।  लेकिन ये सभी जीव  ख़ुशी से मुस्करा रहे थे। क़रीब दस मिनट तक अंतरिक्ष-स्टेशन के पास बने रहकर ये  'देवदूत' अचानक ग़ायब हो गए। वर्ष 2007 में टेलिस्कोप 'हेब्ब्ल' ने भी पृथ्वी की परिधि पर सात चमकती हुई चीज़ों को नोट किया और उनकी तस्वीरें लीं। इन तस्वीरों में इन चीज़ों का आकार पंखों वाले किसी जीव की तरह था। 
1990  में अंतरिक्ष-स्टेशन 'मीर' में कार्यरत अंतरिक्ष-यात्रियों स्त्रेलकोव और मनाकव ने अपनी खिड़की के बाहर कुछ सैकंड तक एक गोल घेरे को चमकते हुए देखा जो किसी जलते हुए लट्टू की तरह लग रहा था।
1991  में अंतरिक्ष-यात्री मूसा मनारव ने अंतरिक्ष-स्टेशन 'मीर'  के बाहर एक अजीब-सी चीज़ देखी।  शुरू में उन्होंने सोचा कि यह एंटेना है, लेकिन कुछ ही देर में  वह एंटेनानुमा चीज़ अंतरिक्ष स्टेशन से बड़ी तेज़ी से दूर होती चली गई।
औपचारिक तौर पर रूस और अमरीका के अंतरिक्ष संगठन या तो इस तरह की सूचनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं करते, या फिर इन्हें पत्रकारों की कपोल-कल्पना बताते हैं। लेकिन   उड़नतश्तरियों को देखे जाने की जो सूचनाएँ लगातार मिलती रहती हैं, वे यह सोचने को  बाध्य करती हैं कि धुआँ बिना आग के तो पैदा नहीं होता।  sabhar : http://hindi.ruvr.ru/
और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/2012_04_11/71375385/

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