Ads

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

1600 किमी प्रति घंटे रफ़्तार वाली कार

0

ब्लडहाउंड एसएससी


ये थोड़ा अंतरिक्ष यान है, कुछ कार जैसा है और कुछ जेट फाइटर जैसा.
इन सबका मिला-जुला रूप है ब्लडहाउंड सुपरसोनिक कार, जिसकी रफ़्तार के बारे में आप सुनेंगे तो आपको यक़ीन नहीं होगा.
दुनिया के सबसे तेज़ विमान कॉनकॉर्ड की रफ़्तार से बस कुछ ही कम है इसकी स्पीड.
अगर सब कुछ इंजीनियरों की योजना के अनुसार चला तो नई पीढ़ी की इस 'कॉनकॉर्ड कार' की स्पीड होगी 1000 मील यानी क़रीब 1600 किलोमीटर प्रति घंटा.

ब्लडहाउंड एसएससी

ब्लडहाउंड (एसएससी) आख़िर कैसे हासिल करेगी ये रफ़्तार?
ब्लडहाउंड एसएससी
ब्लडहाउंड प्रॉजेक्ट के चीफ़ इंजीनियर मार्क चैपमैन कहते हैं कि पहला थ्रस्ट एसएससी इंजन कार को 763 मील प्रति घंटे की रफ़्तार देने में ही सक्षम था.
ब्लडहाउंड एसएससी में एक-दो नहीं बल्कि तीन इंजन हैं. पहले दो इंजन कंबाइंड हैं, तीसरा इंजन रेसिंग कार की तरह का है. जो कार को रॉकेट जैसी गति देता है.
ये इंजन 20 टन की ताक़त से सुपरसोनिक कार को रफ़्तार देगा.
ब्लडहाउंड एसएससी
चैपमैन कहते हैं कि ब्लडहाउंड एसएससी 1600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार पाने के लक्ष्य से तैयार किया जा रहा है.

अनूठी खूबियां

ब्लडहाउंड एसएससी को 2015 तक ट्रैक पर उतारने का लक्ष्य है.
ब्लडहाउंड एसएससी
अगर कार की खूबियों की बात करें तो कार में ड्राइवर के बैठने की जगह अंतरिक्ष, एरोनॉटिकल और फॉर्मूला वन इंजीनियरिंग के कॉम्बिनेशन से तैयार की गई है.
अब तक की तेज़ रफ़्तार कारों में तरल प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल होता है, जबकि ब्लडहाउंड में ठोस रबर ईंधन का इस्तेमाल होगा.
कार की चेसिस पर ख़ास ध्यान दिया गया है. सभी मशीनों को बनाने के लिए कार्बन फाइबर्स का इस्तेमाल किया गया है.
चेसिस में टाइटेनियम की छड़ों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है. साथ ही एल्यूमीनियम का भी. एल्यूमीनियम के ऑक्साइड की परत इतनी मोटी होगी कि इसमें किसी तरह की जंग नहीं लगेगी.

कॉकपिट का ख़याल

मार्क चैंपमैन
इंजन की थरथराहट कॉकपिट तक न पहुंचे, इसके लिए ख़ास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
अंदर बैठे ड्राइवर को अहसास ही नहीं होगा कि कार का जेट इंजन कितना शोर कर रहा है. हाँ, शुरुआत में इंजन के शोर को लेकर कुछ परेशानी आ सकती है.
इसके लिए ड्राइवर ख़ास तरह के हेडफोन का इस्तेमाल करेंगे.
रेसिंग इंजन कार को अतिरिक्त ताक़त देता है. इससे यह कार इतनी तेज़ी से भागने लगती है कि अपनी ही पैदा की गई ध्वनि तरंगों तक को पीछे छोड़ देती है.
sabhar :http://www.bbc.co.uk/

Read more

रविवार, 21 दिसंबर 2014

क्लिनिकली डेड इंसान को भी रहता है होश

0


मेडिकल लिहाज से डेड करार दिए जा चुके इंसान को भी होश रह सकता है...


लंदन

किसी का दिल और दिमाग काम करना बंद कर दे तो उसे मरा हुआ ही समझा जाएगा ना, पर क्या कोई यह उम्मीद भी कर सकता है कि वह इंसान अपने आसपास की हलचल महसूस कर रहा होगा। यकीन करना मुश्किल है मगर साइंटिस्ट्स ने 2000 लोगों पर स्टडी के बाद यही पता लगाया है। डॉक्टरों के मुताबिक, मेडिकल लिहाज से डेड करार दिए जा चुके इंसान को भी होश रह सकता है।

साउथैंप्टन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने मौत के बाद कैसा लगता है इस बात को जानने के लिए यूके, यूएस और ऑस्ट्रिया के 15 अस्पतालों से मरीजों को चुना। ये वो लोग थे जिन्हें दिल का दौरा पड़ा था। साइंटिस्ट्स ने चार साल तक तहकीकात की और पाया कि इनमें से करीब 40 पर्सेंट लोगों को उस वक्त भी होश था, जबकि क्लिनिकल तौर पर वह डेड करार दिए जा चुके थे।

हालांकि बाद में उनके दिल ने दोबारा काम करना शुरू कर दिया। रिसर्चरों के मुताबिक, इनमें से एक शख्स को तो यहां तक याद है कि वह अपने शरीर से किस तरह बाहर आया और कमरे के एक कोने से अपने शरीर के साथ सबकुछ होता हुआ देख रहा था।

'द टेलिग्राफ' के मुताबिक, साउथैंप्टन के 57 साल के एक सोशल वर्कर का कहना था कि बेहोशी और तीन मिनट तक डेड पड़े रहने के बाद भी मुझे अच्छी तरह याद है कि नर्सिंग स्टाफ मेरे आसपास क्या-क्या कर रहा था। इस शख्स को मशीनों की आवाज तक याद थी।

स्टडी को लीड करने वाले यूनिवर्सिटी के ही एक पूर्व रिसर्च फेलो डॉ. सैम पर्निया के मुताबिक दिल एक बार धड़कना बंद कर दे तो दिमाग काम करना बंद कर देता है। पर इस शख्स के मामले में देखा गया कि दिल का धड़कना बंद होने के 3 मिनट बाद तक व्यक्ति को होश था जबकि होता यह है कि धड़कन बंद होने के 20 से 30 सेकेंड बाद ही दिमाग आमतौर पर काम करना बंद कर देता है।

कमाल की बात तो यह है कि उस शख्स ने अपने आसपास हो रही हलचल के बारे में जो-जो भी बताया वो सब सही निकला। यहां तक कि पास रखी मशीन हर तीन मिनट पर एक आवाज निकालती थी और उस मरीज ने उस मशीन से दो आवाजें सुनी थीं। इस तरह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस शख्स को कितनी देर तक होश रहा होगा। पर्निया के मुताबिक, उस शख्स की बात पर भरोसा करना ही होगा क्योंकि जो भी उसने बताया वह असल में उसके इर्द-गिर्द हो रहा था।

गौरतलब है कि इस स्टडी के लिए जिन 2060 मरीजों को चुना गया था उनमें से 330 लोग बच गए थे और 140 का कहना था कि उन्हें धड़कन वापस आने तक किसी न किसी तरह के एक्सपीरियंस हुए थे। पांच में से एक का कहना था कि उन चंद मिनटों में एक अजीब सी शांति का अहसास हुआ था। वहीं एक तिहाई का कहना था कि वे धीमे पड़ गए थे या उनकी स्पीड तेज हो गई थी।

कुछ ने कहा कि हमने चमकीली रोशनी देखी, किसी ने तेज सुनहरी रोशनी या चमकता सूरज देखा। वहीं कुछ को डर या डूबने का अहसास हुआ था। डॉ. पर्निया मानते हैं कि कई और लोगों को भी मौत के करीब पहुंचने पर ऐसे अनुभव हुए होंगे मगर दवाओं या बेहोशी की दवाओं के कारण शायद वे याद न रख पाएं हों। यह स्टडी जर्नल रिससिटेशन में छपी है।

मौत के करीब होने का अहसास करने वाले कई लोग दुनिया में हैं। गैलप के एक पोल के मुताबिक अमेरिका में आबादी का 3 पर्सेंट हिस्सा मानता है कि उसने ऐसा अहसास किया है। वैसे हर ऐसा अनुभव सच होगा ही ऐसी भी कोई गारंटी नहीं। 58 पेशंट्स पर की गई एक स्टडी से पता लगा था कि 30 मरीज तो मौत के करीब पहुंचे भी नहीं थे जबकि उन्हें लगा था कि वे मौत के करीब थे। हाल की कई स्टडी इस तरह के अनुभवों का तरह-तरह से आकलन करती रही हैं।

काश... मैं कभी न जागूं!

टेक्सस के रहने वाले 18 साल के बेन ब्रीडलव को दिल की बीमारी है। यूट्यूब में उन्होंने मौत के करीब पहुंचने के अहसास को बयां किया है। ऐसे ही एक वाकये के बारे में उन्होंने बताया कि जब मैं बेहोश था, मैंने खुद को एक सफेद कमरे में पाया, जिसकी दीवारें नहीं थीं। वहां कोई शोर नहीं था और उसी शांति का अहसास हो रहा था जो चार साल की उम्र में भी मुझे हुई थी। मैंने एक सुंदर सूट पहना था। मैंने आइने में खुद को देखा और गर्व महसूस किया। मैं वहां से जाना नहीं चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि फिर कभी जागूं।
sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

Read more

रविवार, 30 नवंबर 2014

इंटरनेट के जरिए दूसरे का दिमाग होगा काबू में

0

brainवॉशिंगटन।। वैज्ञानिकों ने ऐसा सिस्टम डिवेलप किया है, जिसमें एक शख्स एक खास इंटरफेस का इस्तेमाल करके दूसरे शख्स की सोच को कंट्रोल कर सकता है। यह इंटरफेस इंटरनेट के जरिए दोनों के दिमागों को कनेक्ट करता है। खास बात यह है कि इसे डिवेलप करने वाली रिसर्च टीम में एक भारतीय भी शामिल है।

यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में प्रोफेसर राजेश राव ने इलेक्ट्रिकल ब्रेन रेकॉर्डिंग का इस्तेमाल करके अपना दिमागी सिग्नल अपने साथी को भेजा। इस सिग्नल की वजह से उनके साथी की कीबोर्ड पर टिकी उंगली में हरकत हुई। राव के असिस्टेंट स्टोको का कहना है, 'जिस तरह से इंटरनेट कंप्यूटरों को आपस में जोड़ने का काम करता है, ठीक वैसे ही इंटरनेट दिमागों को भी कनेक्ट कर सकता है। हम दिमाग में बसे ज्ञान को एक शख्स से दूसरे में ट्रांसफर करना चाहते हैं।'

गौरतलब है कि ड्यूक यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने दो चूहों के बीच ब्रेन-टु-ब्रेन कम्यूनिकेशन होने से जुड़ा प्रयोग किया था। हावर्ड ने भी इंसान और चूहे के बीच ऐसा प्रयोग किया है। राव का मानना है कि उनका यह प्रयोग इंसानों के बीच ब्रेन कम्यूनिकेशन का पहला साइंटिफिक प्रयोग है। 
sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

Read more

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

चूहे में इंसानी दिमाग

0

मस्तिष्क के प्रत्यारोपण की दिशा में वैज्ञानिकों ने एक अहम कदम आगे बढ़ाया है. मानव दिमाग का अहम जीन जब उन्होंने चूहे में प्रत्यारोपित किया तो पाया कि चूहे का दिमाग सामान्य से ज्यादा तेज चलने लगा.



रिसर्चरों के मुताबिक इस रिसर्च का लक्ष्य यह देखना था कि अन्य प्रजातियों में मानव दिमाग का कुछ हिस्सा लगाने पर उनकी प्रक्रिया पर कैसा असर पड़ता है. उन्होंने बताया कि इस तरह के प्रत्यारोपण के बाद चूहा अन्य चूहों के मुकाबले अपना खाना ढूंढने में ज्यादा चालाक पाया गया. उसके पास नए तरीकों की समझ देखी गई.
एक जीन के प्रभाव को अलग करके देखने पर क्रमिक विकास के बारे में भी काफी कुछ पता चलता है कि इंसान में कुछ बेहद अनूठी खूबियां कैसे आईं. जिस जीन को प्रत्यारोपित किया गया वह बोलचाल और भाषा से संबंधित है, इसे फॉक्सपी2 कहते हैं. जिस चूहे में ये जीन डाला गया उसमें जटिल न्यूरॉन पैदा हुए और ज्यादा क्षमतावान दिमाग पाया गया. इसके बाद मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों ने चूहे को एक भूलभुलैया वाले रास्ते से चॉकलेट ढूंढने की ट्रेनिंग दी. इंसानी जीन वाले चूहे ने इस काम को 8 दिनों में सीख लिया जबकि आम चूहे को इसमें 11 दिन लग गए.
इसके बाद वैज्ञानिकों ने कमरे से उन तमाम चीजों को निकाल दिया जिनसे रास्ते की पहचान होती हो. अब चूहे रास्ता समझने के लिए सिर्फ फर्श की संरचना पर ही निर्भर थे. इसके विपरीत एक टेस्ट यूं भी किया गया कि कमरे की चीजें वहीं रहीं लेकिन टाइल्स निकाल दी गई. इन दोनों प्रयोगों में आम चूहों को मानव जीन वाले चूहों जितना ही सक्षम पाया गया. यानि नतीजा यह निकला कि उनको सिखाने में जो तकनीक इस्तेमाल की गई है वे सिर्फ उसी के इस्तेमाल होने पर ज्यादा सक्षम दिखाई देते हैं.
मानव दिमाग का यह जीन ज्ञान संबंधी क्षमता को बढ़ाता है. यह जीन सीखी हुई चीजों को याद दिलाने में मदद करता है. जबकि बगैर टाइल या बगैर सामान के फर्श पर खाना ढूंढना उसे नहीं सिखाया गया था इसलिए उसे वह याद भी नहीं था. लेकिन दिमाग सीखी हुई चीजों को याददाश्त से दोबारा करने और बेख्याली में कोई काम करने के बीच अदला बदली करता रहता है. जैसे कोई छोटा बच्चा जब कोई नए शब्द सुनता है तो उन्हें दोहराता है लेकिन इसी बीच वह बेख्याली में अन्य पहले से याद शब्द भी बोलने लगता है. इस रिसर्च का यह भी अहम हिस्सा है कि दिमाग में ऐसा कैसे होता है.
एसएफ/एएम (रॉयटर्स)
sabhar :http://www.dw.de/

Read more

विज्ञान का हिंदी में प्रसार हेतु विशेषज्ञों ने अपने विचार ब्यक्त किये

0

     




जीएफ  कॉलेज शाहजहाँपुर  के बायो टेक्नोलॉजी  बिभाग ने हिंदी दिवस के अवसर विज्ञान का हिंदी में प्रसार हेतु एक संगोष्टी का आयोजन किया  जिसमे विज्ञान का हिंदी में प्रसार हेतु  विशेषज्ञों  ने अपने विचार ब्यक्त किये इस अवसर पर विशेषज्ञों  नयी तकनीको  का हिंदी में सरल भाषा में प्रसार हेतु तकनीको की क्लिष्ट हिंदी का प्रयोग न करके उसी शब्दों को अंग्रेजी को हिंदी भाषा में लिखे तो ज्यादे अच्छा होगा इस अवसर पे बायो टेक्नोलॉजी बिभाग के छात्रों और बायो टेक्नोलॉजी  के हेड डॉ  स्वप्निल यादव जो एक वैज्ञानिक भी है छात्रों के साथ सलतम वैज्ञानिक भाषा के माद्यम से छात्रों को विज्ञानं के बारे जागरूकता प्रदान करते हुए विज्ञानं और हिंदी एक साथ चलने पे बल दिया  इस अवसर पे जीएफ  कॉलेज के प्रधानाचार्य ने भी विचार ब्यक्त किये जो निम्न लोगो ने जो योगदान दिया वो निम्न है
 डॉ. टी.बी. यादव (वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र) 2: श्री अखिलेश पाल (गन्ना वैज्ञानिक) 3 श्री अमित त्यागी (सुप्रसिद्ध लेखक और पत्रकार) डॉ AQUIL अहमद (प्रिंसिपल): की अध्यक्षता आयोजक: डॉ. AMREEN इकबाल धन्यवाद प्रस्ताव: डॉ. FAIYAZ अहमद लंगर: डॉ. SWAPANIL यादव श्री विवेक कुमार, Asmat जहान, डॉ: के लिए विशेष धन्यवाद. पुनीत MANISHI, डॉ. बरखा सक्सेना

   

Read more

सोमवार, 15 सितंबर 2014

अब चलेगा दिमाग से कंप्यूटर

0


फोटो : samaylive.com


अब कंप्यूटर चलने के लिए की-बोर्ड और माउस की आवश्यकता नहीं होगी । आप जैसे ही सोचेंगे की कंप्यूटर पे कोई बेबसाइट खुल जाए  वह अपने आप खुल जायेगी ।  यह अब हकीकत में होने वाला है , वैज्ञानिको ने एक ऐसे कंप्यूटर को बनाने का दावा  किया है जो आदमी के दिमाग को पढ़ सकेगा । 
इंटेल कार्पोरेसन का एक समूह  ऐसी ही इंटेलिजेंट टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है ।  इस तकनीक प्रयोग अभी ब्रमांड वैज्ञानिक प्रो स्टेफन हाकिंस के ऊपर भी होने वाला है , जो मोटर न्यूरॉन नामक रोग से पीड़ित है जिसमे वो दिमाग से ही सोच कर ऐसे कंप्यूटर के माध्यम से लोगो तक अपनी बात पंहुचा सकेंगे ।  ये कंप्यूटर उसी तरह कार्य करेंगे  जैसे अस्पतालों में  प्रयोग  किया जाने वाला मैग्नेटिक रेजोनेंस स्कैनर करता है , जो दिमाग की  गतिविधियों  को ग्रहण कर सकने की छमता रखता है । 


Read more

शनिवार, 13 सितंबर 2014

इंसानों में सिर्फ 8.2% DNA ही ऐक्टिव

0


Only 8.2 per cent of human DNA is 'functional'

लंदन
इंसानों में डीएनए का सिर्फ 8.2 पर्सेंट हिस्सा ही ऐक्टिव और फंक्शनल होता है। ह्यूमन डीएनए से रिलेटेड यह चौंकाने वाली जानकारी ऑक्सफर्ड युनिवर्सिटी के एक रिसर्च के बाद सामने आई है।

2012 में साइंटिस्टों के बताए आंकड़े से यह पूरी तरह डिफरेंट है। पहले बताया गया था कि ह्यूमन बॉडी में 80 पर्सेंट डीएनए ऐक्टिव और फंक्शनल होता है।

आंकड़ों को साबित करने के लिए ऑक्सफर्ड की टीम ने टेस्ट किया कि मैमल्स के 100 मिलियन से भी ज्यादा सालों के जांच के दौरान ऐसे कितने डीएनए हैं, जिनमें बदलाव देखने को नहीं मिला। इसका मतलब यह है कि ऐसे डीएनए महत्वपूर्ण हैं और इनका कोई न कोई रोल जरूर होगा। 



डीएनए क्या है? डीएनए यानी डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड। मानव समेत सभी जीव में अनुवांशिक (जेनेटिक) गुण इसी के जरिए आता है। मनुष्य के शरीर की लगभग हर कोशिका (सेल) में समान डीएनए मौजूद होते हैं।

ज्यादातर डीएनए कोशिका के न्यूक्लियस में उपस्थित होते हैं जिन्हें न्यूक्लियर डीएनए कहा जाता है। कुछ डीएनए माइटोकॉन्ड्रिया में भी होते हैं जिन्हें माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए कहते हैं।

डीएनए में इन्फर्मेशन 4 केमिकल्स (बेस) के कोड मैप के रूप में होती हैं - एडेनिन, गुआनिन, साइटोसिन और थायमिन। मानव डीएनए करीब 3 बिलियन बेस से बना होता है। इनमें से 99 पर्सेंट बेस सभी लोगों में समान होते हैं। किसी क्रिएचर का रूप क्या होगा यह इन बेस या केमिकल्स की सीक्वेंस पर निर्भर करता है।

sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

Read more

एटम भी बातें करते हैं, आपने सुना!

0

पीटीआई, लंदन 
वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी एटम यानी पदार्थ के मूलभूत कण की आवाज को 'सुनने' में कामयाबी हासिल करने का दावा किया है। 
दरअसल स्वीडन की शार्मस यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी के वैज्ञानिकों ने एक आर्टिफिशल एटम को सुनने के लिए जब लाइट और साउंड की जुगलबंदी का इस्तेमाल किया तो क्वांटम फिजिक्स से जुड़ी कई अवधारणाएं और स्पष्ट हुईं। हालांकि क्वांटम फिजिक्स में लाइट और साउंड के प्रयोग पहली बार नहीं हो रहे थे, लेकिन इस बार खासियत यह थी कि वैज्ञानिकों ने एटम से 'इंटरैक्शन' वाली साउंड वेव्ज को कैप्चर करने में कामयाबी हासिल की, जो अपने आप में अनूठी थी। दरअसल ये ध्वनि तरंगे उस आर्टिफिशल एटम से इस तरह निकल रही थीं, मानो यह उसी एटम की आवाज हों। वैज्ञानिकों की इस टीम के मुखिया पेर डेल्सिंग कहते हैं कि इस प्रयोग से हम क्वांटम वर्ल्ड में एटम को सुनने और उससे बातचीत करने के नए दरवाजे खोल चुके हैं। हमारा मकसद क्वांटम फिजिक्स को इतना परिष्कृत कर देना है, जिससे कि इसके नियमों से हम सबसे तेज कंप्यूटर बनाने, क्वांटम लॉज को मानने वाले इलेक्ट्रिकल सर्किट ईजाद करने जैसे उपयोगी फायदे उठा सकें। 
यह आर्टिफिशल सर्किट भी किसी क्वांटम इलेक्ट्रिकल सर्किट की तरह है, जिसे चार्ज करें तो उससे एनर्जी का निरंतर उत्सर्जन देखा जा सकता है। वैसे यह आर्टिफिशल एटम सिर्फ प्रकाश का एक पार्टिकल है, लेकिन शार्मस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसे किसी साउंड पार्टिकल की तरह एनर्जी सोखने और उत्सर्जित करने जैसा डिजाइन किया था। सैद्धांतिक रूप से देखें तो एटम की इस साउंड को क्वांटम पार्टिकल्स में डिवाइड किया जा सकता है। लेकिन इस रिसर्च आर्टिकल के पहले लेखक मार्टिन गुस्ताफसन कहते हैं कि ऐसे पार्टिकल्स से निकली साउंड सबसे धीमे होगी। 
गुस्ताफसन बताते हैं कि आखिर कैसे एटम की आवाज को डिटेक्ट किया जा सका। वह कहते हैं कि साउंड की धीमी स्पीड के कारण हमारे पास इसके क्वांटम पार्टिकल्स को कंट्रोल करने का वक्त होगा, लेकिन ऐसा प्रकाश कणों के क्वांटम पार्टिकल्स के साथ मुमकिन नहीं है, क्योंकि वे साउंड पार्टिकल्स की तुलना में 1 लाख गुना कहीं तेजी से ट्रैवल करते हैं। ऐसे में उनकी साउंड को डिटेक्ट करना मुमकिन नहीं। साथ ही, ध्वनि तरंगों की वेवलेंथ भी प्रकाश तरंगों की तुलना में छोटी होती है। इसलिए जो परमाणु प्रकाश तरंगों के साथ इंटरैक्ट करते हैं वे हमेशा प्रकाश तरंगों से छोटी वेवलेंथ वाले होंगे। लेकिन ध्वनि तरंगों से वे कहीं ज्यादा बड़े होंगे। 
इस प्रयोग का फायदा यह भी हुआ कि कोई साइंटिस्ट अब किसी आर्टिफिशल एटम को कुछ निश्चित तरंगों केसाथ डिजाइन कर सकता है जिससे कि वे ज्यादा तेज आवाज के साथ इंटरैक्ट कर सकें। वैसे इस प्रयोग में 4.8गीगा हर्त्ज की फ्रीक्वेंसी इस्तेमाल की गई। यह उतनी ही है जितनी आम वायरलेस नेटवर्क्स में इस्तेमाल होत ी है। 

sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

Read more

विटामिन बी1 की कमी ब्रेन को कर देती है फेल

0

नई खोज से पता चला है कि विटामिन बी1 की कमी से ब्रेन की घातक बीमारी वैनिक इंसेफैलॉपथी हो सकती है। ऐल्कॉहॉल और एड्स के 75-80 पर्सेंट केसों में इस बीमारी के होने की आशंका रहती है। यह ब्रेन की ऐसी बीमारी है, जिसमें समय पर इलाज नहीं होने पर मरीज इंसेफैलॉपथी का शिकार हो जाता है।

मेटाबॉलिक संतुलन बिगड़ने और नशीले पदार्थ का सेवन करने से यह बीमारी होती है। लायोला यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के न्यूरॉलजिस्ट के मुताबिक, वैनिक इंसेफैलॉपथी से पीड़ित में कन्फ्यूजन, भ्रम, कोमा, मांसपेशियों की कमजोरी और दृष्टि दोष जैसी दिक्कतें होती हैं। यही बाद में स्थायी तौर पर ब्रेन डैमेज का कारण बनती हैं और मरीज की मौत भी हो जाती है। साइंस अमेरिकन मेडिसिन जर्नल में इस नई खोज को प्रकाशित किया गया है।
sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

Read more

स्मार्टफोन के बाद स्मार्ट होम

0


स्मार्टफोन के इस दौर में एक ऐसे स्मार्ट होम की कल्पना करना कोई अजीब बात नहीं जहां उपकरण एक दूसरे से बातें करेंगे और फ्रिज खुद दूध की देखभाल करेगा. बहुत जल्द यह सपना भी सच होने वाला है.
बर्निल में चल रहे ईफा इलेक्ट्रॉनिक मेले में भविष्य के स्मार्ट घरों की कल्पना पेश की गई. स्मार्ट दौर में सबसे आगे निकलने की दौड़ में सैमसंग, एप्पल और गूगल जैसी कामयाब कंपनियां जद्दोजहद में लगी हैं. कंपनियों को उम्मीद है कि तकनीकी क्रांति के साथ आने वाला समय उनके लिए अरबों डॉलर का मुनाफा लेकर आएगा. मार्केट रिसर्च कंपनी आईएचएस की लीसा ऐरोस्मिथ मानती हैं कि बहुत जल्द स्मार्ट होम बाजार में बहुत आम बात होगी.
स्मार्ट होम की कल्पना और इसकी तैयारियां 1980 के दशक से ही की जा रही हैं. लेकिन अब तक इसके रास्ते में कई तकनीकी बाधाएं खड़ी थीं. उपकरणों का एक दूसरे के साथ तालमेल बिठा पाना, इंटरनेट की बेहतर सुविधा न होना और तार का झंझट जैसी अड़चनें. लेकिन आने वाले समय में कंपनियां एक दूसरे से मिलकर चलने वाले उपकरणों को बढ़ावा दे रही हैं. जैसे कि घर की हीटिंग का घर पहुंचने से पहले कार से ही स्विच ऑन कर देना. यहां तक कि छुट्टी पर गए लोग किसी सुहानी जगह बैठे कैमरे के जरिए अपने घर पर भी नजर रख सकेंगे.
भविष्य का घर
ईफा में कोरियाई कंपनी सैमसंग ने 2020 को ध्यान में रखते हुए भविष्य का घर पेश किया. इसमें एक ऐसी तकनीक भी होगी जो किचेन में खाना बनाते समय एक के बाद एक आपको बताती जाएगी के कब क्या किया जाए. यहां तक कि एक ऐसा डिजिटल कोच जो आपके साथ दौड़ लगाएगा. साथ ही आपको बताता जाएगा कि आपने कितनी कसरत की और कितनी करना बाकी है. सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स के अध्यक्ष बू क्यून ने कहा, "बहुत सारे लोगों के लिए यह अभी भी किसी ख्वाब की तरह ही है. लेकिन बदलाव आ रहा है और अब बहुत पास है. याद कीजिए कि कुछ ही सालों में कितनी तेजी से स्मार्टफोन ने हमारी जिंदगी बदल कर रख दी है."
घरेलू उपकरणों में इंटरनेट
स्मार्ट होम की दिशा में छोटे छोटे कदम बढ़ाते हुए सैमसंग ने अमेरिकी कंपनी स्मार्ट थिंग्स को खरीद लिया. यह कंपनी छोटे छोटे घरेलू उपकरणों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए ऐप तैयार कर रही है. इससे पहले गूगल ने ऊर्जा बचाने वाले फायर अलार्म और थर्मोस्टैट बना रही नेस्ट लैब्स को 3.2 अरब डॉलर में खरीदा था. ये उपकरण यह भी पता लगा सकेंगे कि घर पर कोई है या नहीं.
रिसर्च कंपनी गार्टनर की आनेट सिमरमन के मुताबिक, "स्मार्ट होम की कल्पना को सच करने के लिए चीजों के इंटरनेट के अस्तित्व में आना बहुत जरूरी था."
एबीआई रिसर्च कंपनी के मुताबिक पिछले साल करीब 1.7 करोड़ स्वचलित घरेलू उपकरण खरीदे गए. अनुमान है कि 2018 तक इनकी बिक्री आधे अरब से ज्यादा होगी. फिलहाल कंपनियां इंटेलिजेंट घरों की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं.
एसएफ/आईबी (एएफपी)
sabhar :http://www.dw.de/

Read more

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

स्टेम सेल से जल्द ठीक होंगे' स्ट्रोक के मरी़ज़

0

स्टेम सेल, दिमाग

स्ट्रोक होने के बाद दिमाग में स्टेम सेल डालने से सेहत में सुधार की रफ़्तार बढ़ सकती है.
लंदन के इंपीरियल कॉलेज के वैज्ञानिकों ने इस पद्धति की सुरक्षा की जांच के लिए किए गए शुरुआती प्रयोग में स्ट्रोक का शिकार हुए पांच लोगों की अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में ख़ास तरह के स्टेम सेल्स डाले.

इन पांच लोगों में से चार को गंभीर स्ट्रोक पड़ा था. वह बोलने में अक्षम हो गए थे और शरीर का एक हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था.इन्हें दिमाग में सीधे जाने वाली नस के ज़रिए क्षतिग्रस्त हिस्से में पहुंचाया गया.
ऐसे स्ट्रोक से मरने वालों और विकलांग होने वालों की दर ज़्यादा होती है.
लेकिन छह महीने पूरे होते-होते चार में से तीन ख़ुद अपनी देखभाल करने लगे थे. थोड़ी मदद से सभी चलने और रोज़मर्रा के काम करने लगे.
हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी इसके लिए व्यापक अध्ययन की ज़रूरत है.
sabhar :http://www.bbc.co.uk/

Read more

बुधवार, 10 सितंबर 2014

झील की सतह पर 'चलने वाली चट्टानों' का रहस्य सुलझा!

0

झील की सतह पर 'चलने वाली चट्टानों' का रहस्य सुलझा!

वैज्ञानिकों के एक दल का दावा है कि उन्होंने कैलिफोर्निया में मौत की घाटी में एक सूखी झील पर बेतरतीब ढंग से गतिमान चट्टानों के रहस्य को सुलझा लिया है।

गतिमान चट्टानें सूखी झील रेसट्रैक प्लाया की सतह पर हैं जिनके रहस्य को समझने के लिए शोधकर्ता 1940 से पड़ताल कर रहे हैं। इनमें से कुछ चट्टानों का वजन 320 किलो से भी अधिक है जो कई वर्षो की अवधि में झील की सतह पर एक सिरे से दूसरे छोर पर चले जाते हैं और अपने पीछे पथमार्ग की निशानी छोड़ जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के पेलियोबॉयोलाजिस्ट रिचर्ड नॉरिस की अगुवाई में एक टीम ने गतिमान चट्टानों का अध्ययन किया। इसके निष्कर्षो का प्रकाशन गुरुवार को पीएलओएस वन जर्नल में किया गया है। इसके अनुसार, जाहिर तौर पर चट्टानें भले एक दशक से ठहरी हों या बगैर अधिक गति किए हों लेकिन कुछ अवसरों पर वे धीमी गति से यात्रा करती हैं। यह बर्फ और हवा के असामान्य संयोजन के परिणामस्वरुप होता है। नॉरिस ने कहा कि यह उस समय होता है जब वे सूखी झील पर बर्फ की एक पतली परत के साथ जमे होते हैं और हल्की हवा से टूट जाते हैं, जिससे चट्टानों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर बर्फ की परतें आती हैं जो उन्हें प्रति मिनट कुछ यार्ड चलने के लिए पर्याप्त बल देती हैं।
sabhar :http://hindi.ruvr.ru/

और पढ़ें: http://hindi.ruvr.ru/news/2014_08_31/276651512/

Read more

इस लड़की के हैं तीन 'माता-पिता'

0

अलाना सारीनेन

एक मां और एक पिता की संतान में तो कुछ भी असामान्य नहीं है. लेकिन अगर किसी बच्चे के शरीर में तीन लोगों का डीएनए हो तो?
कुछ ऐसा ही मामला है अलाना सारीनेन का और दुनिया में ऐसे गिने चुने ही किस्से हैं.

तीसरा व्यक्ति कैसे बनता है बच्चे का बॉयोलॉज़िकल माँ या बाप? - पढ़ें पूरी रिपोर्ट
अलाना सारीनेन को गोल्फ़ खेलना, पियानो बजाना, संगीत सुनना और दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद है. इन सब आदतों को देखते हुए वह दुनिया की दूसरी किशोरियों की तरह ही है, लेकिन असल में उनसे भिन्न हैं.
अलाना कहती हैं, "कई लोग मुझसे कहते हैं कि मेरा चेहरा मेरी मां से मिलता है, मेरी आंखे मेरे पिता की तरह हैं. वगैरह-वगैरह.. मुझे कुछ विशेषताएं उनसे मिली हैं और मेरी शख्सियत भी कुछ उनकी ही तरह है."
वह कहती हैं, "मेरे शरीर में एक और महिला का भी डीएनए है. लेकिन मैं उन्हें अपनी दूसरी मां नहीं मानती, मेरी शरीर में उनके कुछ माइटोकॉन्ड्रिया हैं."

माइटोकॉन्ड्रिया का महत्व

कोशिका संरचना
माइटोकॉन्ड्रिया किसी भी कोशिका के अंदर पाया जाता है जिसका मुख्य काम कोशिका के हर हिस्से में ऊर्जा पहुंचाना होता है. इसी कारण माइटोकांड्रिया को कोशिका का पावर हाउस भी कहा जाता है.
माइटोकॉन्ड्रिया की एक ख़ासियत यह है कि यह सिर्फ़ मां से ही विरासत में मिलते हैं, पिता से कभी नहीं.
अलाना दुनिया की उन 30 से 50 लोगों में से एक हैं, जिनके शरीर में किसी तीसरे व्यक्ति के कुछ माइटोकॉन्ड्रिया हैं और इसी वजह से कुछ डीएनए भी.
अमरीका के एक मशहूर इनफर्टिलिटी केंद्र में उपचार के बाद वह गर्भ में आई थीं, जिस पर बाद में प्रतिबंध लगा दिया गया था.

कब ज़रूरी होती है ये तकनीक

भ्रूण की मरम्मत
लेकिन, जल्द ही अलाना जैसे लोगों की तादाद बढ़ सकती है, क्योंकि ब्रिटेन अनुवांशिक बीमारी को खत्म करने के लिए माइटोकॉन्ड्रिया लेने की नई तकनीकी को क़ानूनी दर्जा दे सकता है.
इसे माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट कहा जाता है और अगर ब्रितानी संसद से इसे मंज़ूरी मिल जाती है तो ब्रिटेन तीन लोगों के डीएनए लेकर पैदा होने वाले बच्चों को क़ानूनी वैधता देने वाला पहला देश होगा.
दरअसल, अलाना की मां शेरोन सारीनेन दस साल से आईवीएफ तकनीक से मां बनने का प्रयास कर रही थी.
शेरोन कहती हैं, "मैं अयोग्य महसूस कर रही थी. मुझे अपराधबोध हो रहा था कि मैं अपने पति को एक बच्चा नहीं दे पा रही हूं. मैं सो नहीं सकती थी और चौबीसों घंटे मेरे दिमाग में यही सब चलता रहता था."

साइटोप्लास्मा

भ्रूण की मरम्मत
1990 के दशक में विकसित साइटोप्लास्मिक ट्रांसफ़र टेस्ट ट्यूब बेबी की उन्नत तकनीक है, जिसमें शुक्राणु को एक अंडाणु में डाला जाता है.
अमरीका के न्यू जर्सी में डॉक्टर ज्याक कोहेन ने एक महिला के साइटोप्लास्म को शेरोन के अंडाणु में स्थानांतरित किया. इसके बाद उसे उसके पति के शुक्राणु के साथ फर्टिलाइज़ किया गया.
बर्नार्डी
माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी के चलते बर्नार्डी के सात बच्चों की मृत्यु हो गई थी
इस प्रक्रिया के दौरान कुछ माइटोकॉन्ड्रिया भी स्थानांतरित हुआ और उस महिला का कुछ डीएन भी भ्रूण में पहुंच गया.
शेरोन कहती हैं कि उनकी बेटी अलाना स्वस्थ और अन्य किशोरियों की तरह है.

वह कहती हैं, "मैं इससे बेहतर बच्चे की इच्छा नहीं रख सकती थी. वह कुशाग्र और सुंदर है. उसे गणित और विज्ञान पसंद हैं. जब वो पढ़ नहीं रही होती है तो घर के काम में मेरी मदद करती है."
sabhar :http://www.bbc.co.uk/

Read more

जब एक किसान को मिला दोमुंहा सांप

0

दोमुंहा सांप


तुर्की के उत्तर पश्चिमी इलाके में एक किसान को एक दोमुंहा सांप मिलने की ख़बर है.
क्लिक करेंतुर्की के अख़बार रैडिकल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गिरेसन के ब्लैक सी प्रांत में यह सांप पाया गया है. अंताल्या शहर में रेंगने वाले जीवों को रखने की एक जगह पर इसे रखा गया है.
सांप की देख-भाल कर रहे ओज़गुर एरेल्दी कहते हैं कि इसके आकार के कारण इस पर लगातार नज़र रखने की जररूत है.
वे कहते हैं, "चूंकि सांप के दो मुंह हैं इसलिए इसकी गर्दन सामान्य सांपों की तुलना में पतली है. ये सांप अपने शिकार को पूरी तरह से निगल कर पचा लेता है. अगर आप इस सांप को बड़ी खुराक देते हैं तो इसका दम घुट सकता है इसलिए हम इसे छोटी छोटी खुराकों में खाना दे रहे हैं."
हालांकि ये सांप अभी कम उम्र है और तेज भागने वाले सांपों की नस्ल का लगता है.

शिकारियों की नज़र

दोमुंहा सांप
अंताल्या एक्वेरियम के रेंगने वाले जीवों को रखने की जगह पर काम करने वाले कुनेयत एल्पगुवेन बताते हैं कि दोमुंहे सांप के जंगल में बचने के आसार बहुत कम होते हैं.
वे कहते हैं, "दोमुंहा होना इसके लिए मुसीबत है. शरीर के इस तरह के ढांचे की वजह से शिकार पर हमला करना इसके लिए हमेशा मुश्किल होता है जबकि शिकारियों की इस पर हमेशा नजर रहती है."
क्लिक करेंहुर्रियेत डेली न्यूज़ के मुताबिक यह सांप अभी दो हफ्ते का ही है और एल्पगुवेन का कहना है कि अगले कुछ महीनों के भीतर इस सांप की लंबाई 20 सेंटीमीटर हो जाने की संभावना है.

इस महीने की शुरुआत में इसी अखबार ने पश्चिमी तुर्की के एक सागर तट पर क्लिक करेंदोमुंहे डॉल्फ़िन के बहकर आने की खबर छापी थी.
sabhar :http://www.bbc.co.uk/

Read more

मंगलवार, 9 सितंबर 2014

समूचे ब्रह्मांड को तबाह कर सकता है ‘गॉड पार्टिकल’: स्टीफन हॉकिंग

0



समूचे ब्रह्मांड को तबाह कर सकता है ‘गॉड पार्टिकल’: स्टीफन हॉकिंग

लंदन : भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने आगाह किया है कि महज दो साल पहले वैज्ञानिकों ने जिस मायावी कण ‘गॉड पार्टिकल’ की खोज की थी उसमें समूचे ब्रह्मांड को तबाह-बरबाद करने की क्षमता है।
एक्सप्रेस डॉट को डॉट यूके की एक रिपोर्ट के अनुसार हॉकिंग ने एक नई किताब ‘स्टारमस’ के प्राक्कथन में लिखा कि अत्यंत उच्च उर्जा स्तर पर हिग्स बोसोन अस्थिर हो सकता है। इससे प्रलयकारी निर्वात क्षय की शुरुआत हो सकती है जिससे दिक् और काल ढह जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि इस ब्रह्मांड में हर जो चीज अस्तित्व में है हिग्स बोसोन उसे रूप और आकार देता है।
हॉकिंग ने बताया, हिग्स क्षमता की यह चिंताजनक विशिष्टता है कि यह 100 अरब गिगा इलेक्ट्रोन वोल्ट पर अत्यंत स्थिर हो सकती है। वह कहते हैं, इसका यह अर्थ हो सकता है कि वास्तविक निर्वात का एक बुलबुला प्रकाश की गति से फैलेगा जिससे ब्रह्मांड प्रलयकारी निर्वात क्षय से गुजरेगा।
हॉकिंग ने आगाह किया, यह कभी भी हो सकता है और हम उसे आते हुए नहीं देखेंगे। बहरहाल, उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रलय के निकट भविष्य में होने की उम्मीद नहीं है। लेकिन उच्च उर्जा में हिग्स के अस्थिर होने के खतरे इतने ज्यादा हैं कि उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। sabhar :http://zeenews.india.com/

Read more

सोमवार, 8 सितंबर 2014

हिम मानव की संभावना

0

हिम मानव के लिए चित्र परिणाम

फोटो : गूगल

हिमालय पे मिले हिम मानव के  बालों  का डीएनए  का  जांच करने के बाद ब्रिटिश वैज्ञानिको ने ये दावा किया की  धुव्रीय  भालू जैसा एक प्राणी हिमालय पे मौजूद है ।धुव्रीय  भालुओं की की इस प्रजाति को अभी तक विलुप्त माना जाता था  40 हजार पहले का इसका जीवाश्म पाया गया था ।

जी हाँ, दुनिया में हिममानव भी है

यह कहना है उस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के सहभागियों का, जो रूस के दक्षिणी साइबेयाई इलाके के केमेरेवा प्रदेश में

यह कहना है उस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के सहभागियों का, जो रूस के दक्षिणी साइबेयाई इलाके के केमेरेवा प्रदेश में सम्पन्न हुआ। पहाड़ी शोरिया या गोरनाया शोरिया अभियान से वापिस लौटने वाले वैज्ञानिक कुछ एसी चीज़ें लेकर वापिस लौटे हैं, जिन्हें कोई मानव ही तैयार कर सकता है। और अब उनका मानना है कि ये चीज़ें उस बात में कोई संदेह नहीं रहने देतीं कि साइबेरिया में येती यानी हिममानव भी रहता है...  साभार :http://hindi.ruvr.ru/

Read more

रविवार, 7 सितंबर 2014

महिला की पीठ में उगी नाक..!

0

FILE
में एक महिला का के जरिए पक्षाघात का इलाज किया जाना था, लेकिन आठ वर्ष बाद महिला की उग आई। डॉक्टर ने उसका इलाजा करने के लिए उसकी पीठ में एक स्टेम सेल इस उम्मीद से छोड़ दी थी कि क्षतिग्रस्त नर्व का इलाज हो जाएगा। लेकिन इलाज सफल नहीं हुआ और महिला ने शिकायत की कि उसकी पीठ में लगातार दर्द रहता है। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस घटना के आठ वर्ष बाद उसकी पीठ में एक नाक उग आई थी जो कि तीन सेमी लम्बी थी और इसमें हड्‍डियां भी थीं। 

उल्लेखनीय है कि डॉक्टर ने महिला की पीठ में नेजल टिशू डाल दिया था। डेली मेल ऑन लाइन डॉट कॉम में छपी एक खबर के मुताबिक अब अमेरिकी नागरिक इस अज्ञात महिला का पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन के ‍हास्पिटल द इगेज मोनिज में इलाज किया गया था। तब डॉक्टर ने उसकी रीढ़ की हड्‍डी में एक स्टेम सेल टिशू डाल दिया था। तब डॉक्टरों ने सोचा था कि ऐसा करने से न्यूरल सेल्स विकसित हो जाएंगी और महिला की रीढ़ की हड्‍डी में जो क्षति हुई थी, वह ठीक हो जाएगी, लेकिन यह इलाज सफल नहीं हो सका था। 

पर पिछले वर्ष आठ वर्षों में इस 36 वर्षीय महिला ने‍ शिकायत की थी कि उसकी पीठ में बहुत तेज दर्द होता रहा है जोकि लगातार बढ़ता जा रहा है। जब डॉक्टरों ने देखा तो उन्हें पता लगा कि उसकी पीठ में 3 सेमी लम्बी नाक उग आई है। यह नेजल टिशू से बनी थी और इसमें थोड़ी सी हड्‍डियां और नर्व ब्राचेंस भी थीं लेकिन ये इस्पाइनल कॉर्ड से जुड़ नहीं पाई थीं।

बाद में, यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा हास्पिटल्स एंड क्लीनिक्स, आयोवा सिटी के न्यूरो सर्जन ब्राइन डीलफी ने इस नाक को काटकर अलग किया। उनका कहना था कि यह नाक घातक नहीं थी लेकिन इसमें से एक गाढ़ा चिपचिपा पदार्थ निकल रहा था संभवत: इसी कारण से उसकी पीठ में तेज दर्द हो रहा था। 

डेट्रॉयड, मिशिगन की वायने स्टेट यूनिवर्सिटी के स्टेम सेल रिसर्चर ज्यां पेडुजी-नेल्सन का कहना था कि जिन लोगों ने भी नेजल टिशू को ग्रहण किया है उनमें से ज्यादातर ने सुधार का अनुभव किया था। उन्होंने न्यू साइंटिस्ट से कहा था कि इस तरह की विपरीत घटना से मैं दुखी हूं लेकिन इस तरह की घटनाएं एक फीसदी से भी कम होती हैं। इस मामले में स्टेम सेल के विशेषज्ञ प्रोफेसर एलेक्जेंडर सीफैलियान का कहना है कि स्टेम सेल की यह विशेषता होती है कि ये दूसरे प्रकार के सेल में भी बदल जाते हैं। इतना ही नहीं, अगर ठीक समय से इलाज नहीं किया जाता है तो ये कैंसर सेल में भी बदल जाती हैं और इससे बीमार की जान भी जा सकती है। 

इस महिला के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था जिसके कारण से लगातार दर्द का अनुभव होता रहा। दुनिया में ऐसी ही अन्य तरह के समाचार आते रहे हैं। चीन में एक युवक के माथे पर नाक उगाई गई थी क्योंकि उसकी नाक एक कार दुर्घटना में टूट गई थी। चूंकि दुर्घटना के बाद उसकी असली नाक में संक्रमण हो गया था और यह विकृत हो गई थी। 22 वर्षीय शियाओ लियान को दूसरी नाक लगाने के ऑपरेशन चीन के फूजियान प्रांत के फूजू नगर में किया गया था।
sabhar :http://hindi.webdunia.com/

Read more

Ads

 
Design by Sakshatkar.com | Sakshatkartv.com Bollywoodkhabar.com - Adtimes.co.uk | Varta.tv