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एटम भी बातें करते हैं, आपने सुना!

पीटीआई, लंदन 
वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी एटम यानी पदार्थ के मूलभूत कण की आवाज को 'सुनने' में कामयाबी हासिल करने का दावा किया है। 
दरअसल स्वीडन की शार्मस यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी के वैज्ञानिकों ने एक आर्टिफिशल एटम को सुनने के लिए जब लाइट और साउंड की जुगलबंदी का इस्तेमाल किया तो क्वांटम फिजिक्स से जुड़ी कई अवधारणाएं और स्पष्ट हुईं। हालांकि क्वांटम फिजिक्स में लाइट और साउंड के प्रयोग पहली बार नहीं हो रहे थे, लेकिन इस बार खासियत यह थी कि वैज्ञानिकों ने एटम से 'इंटरैक्शन' वाली साउंड वेव्ज को कैप्चर करने में कामयाबी हासिल की, जो अपने आप में अनूठी थी। दरअसल ये ध्वनि तरंगे उस आर्टिफिशल एटम से इस तरह निकल रही थीं, मानो यह उसी एटम की आवाज हों। वैज्ञानिकों की इस टीम के मुखिया पेर डेल्सिंग कहते हैं कि इस प्रयोग से हम क्वांटम वर्ल्ड में एटम को सुनने और उससे बातचीत करने के नए दरवाजे खोल चुके हैं। हमारा मकसद क्वांटम फिजिक्स को इतना परिष्कृत कर देना है, जिससे कि इसके नियमों से हम सबसे तेज कंप्यूटर बनाने, क्वांटम लॉज को मानने वाले इलेक्ट्रिकल सर्किट ईजाद करने जैसे उपयोगी फायदे उठा सकें। 
यह आर्टिफिशल सर्किट भी किसी क्वांटम इलेक्ट्रिकल सर्किट की तरह है, जिसे चार्ज करें तो उससे एनर्जी का निरंतर उत्सर्जन देखा जा सकता है। वैसे यह आर्टिफिशल एटम सिर्फ प्रकाश का एक पार्टिकल है, लेकिन शार्मस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसे किसी साउंड पार्टिकल की तरह एनर्जी सोखने और उत्सर्जित करने जैसा डिजाइन किया था। सैद्धांतिक रूप से देखें तो एटम की इस साउंड को क्वांटम पार्टिकल्स में डिवाइड किया जा सकता है। लेकिन इस रिसर्च आर्टिकल के पहले लेखक मार्टिन गुस्ताफसन कहते हैं कि ऐसे पार्टिकल्स से निकली साउंड सबसे धीमे होगी। 
गुस्ताफसन बताते हैं कि आखिर कैसे एटम की आवाज को डिटेक्ट किया जा सका। वह कहते हैं कि साउंड की धीमी स्पीड के कारण हमारे पास इसके क्वांटम पार्टिकल्स को कंट्रोल करने का वक्त होगा, लेकिन ऐसा प्रकाश कणों के क्वांटम पार्टिकल्स के साथ मुमकिन नहीं है, क्योंकि वे साउंड पार्टिकल्स की तुलना में 1 लाख गुना कहीं तेजी से ट्रैवल करते हैं। ऐसे में उनकी साउंड को डिटेक्ट करना मुमकिन नहीं। साथ ही, ध्वनि तरंगों की वेवलेंथ भी प्रकाश तरंगों की तुलना में छोटी होती है। इसलिए जो परमाणु प्रकाश तरंगों के साथ इंटरैक्ट करते हैं वे हमेशा प्रकाश तरंगों से छोटी वेवलेंथ वाले होंगे। लेकिन ध्वनि तरंगों से वे कहीं ज्यादा बड़े होंगे। 
इस प्रयोग का फायदा यह भी हुआ कि कोई साइंटिस्ट अब किसी आर्टिफिशल एटम को कुछ निश्चित तरंगों केसाथ डिजाइन कर सकता है जिससे कि वे ज्यादा तेज आवाज के साथ इंटरैक्ट कर सकें। वैसे इस प्रयोग में 4.8गीगा हर्त्ज की फ्रीक्वेंसी इस्तेमाल की गई। यह उतनी ही है जितनी आम वायरलेस नेटवर्क्स में इस्तेमाल होत ी है। 

sabhar :http://navbharattimes.indiatimes.com/

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