गुरुवार, 31 दिसंबर 2020
दुनिया का पहला सिंथेटिक पेड़
0अमेरिकी वैज्ञानिको ने दुनिया का पहला सिंथेटिक पेड़ बनाया है कर्नेल स्थित एक प्रयोगशाला में इस पेड़ को ट्रांसिपिरेसन से बनाया गया ट्रांसिपिरेसन से ही नमी पेड़ो की उची शाखाओ को पहुचती है पत्रिका नेचर के अनुसार इस खोज से पेड़ पौधे में ट्रांसपिरेसन की उस पुरानी थ्योरी को बल मिलता जिसमे कहा है की यह पूरी तरह भौतिक प्रक्रिया है और इसमे किसी जैविक ऊर्जा की जरूरत नहीं होती इससे कार इमारतों के तापमान के स्थान्तरण और मिट्टी को उपजाऊ बनाने में मदद मिल सकती है इससे आंशिक तौर पर सुखी जमीन से पानी निकालने में मदद मिल सकती है
टच स्क्रीन आप के कलाई पर होगा
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दिसंबर 31, 2020 in आप के कलाई, टच स्क्रीन, पर होगा
वैज्ञानिक युग के क्या संभव हो जाएगा यह कहा नहीं जा सकता है अब टच स्क्रीन के सम्बन्ध में इक क्रांती आ गयी है जो कलाई पर होगा, वैज्ञानिको के अन्तराष्ट्रीय दल ने इस तकनीक का नाम दिया है ' स्कीन पुट' यह उपकरण ब्यक्ति के हाथ में कलाई से कोहनी तक के हिस्से को टच स्क्रीन में बदल देगा चाहे मनपसंद संगीत सुनना हो या काल मिलानी हो , ब्यक्ति को दूसरे हाथ की उंगलियों से इस हिस्से की त्वचा को छूना भर होगा यह उपकरण ध्वनिक सेंसर और मिनी प्रोजेक्टर से चलेगा इसे ब्लू ट्रुथ जैसी वायर लेस सेवा से आसानी से जोड़ा जा सकेगा इसको तकनीक के जरिए मोबाईल , कम्पूटर , आई पाड, से आसानी से जोड़ा जा सकता है
एड्स को रोकने वाली क्रीम की खोज
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दिसंबर 31, 2020 in एड्स, को रोकने वाली. क्रीम की खोज
वैज्ञानिको ने एक ऐसी क्रीम की खोज की है जो एड्स की रोकथाम में कारगर होगी इस क्रीम का इस्तेमाल केवल महिलाए कर सकेंगी लेकिन यौन सम्बन्ध बनाने पर पुरूष या महिला किसी को भी एड्स है तो पार्टनर के एड्स होने का खतरा नहीं रहेगा इस क्रीम पर शोध दछिण अफ्रीका में हुआ है इस क्रीम के उत्पादन की मंजूरी दे दी गयी है और शिग्र ही बाजार में आ जाएगी हाल ही में आस्ट्रिया में हुयी इंटर नॅशनल एड्स कांफ्रेंस में इस क्रीम पर हुए शोध पर सफलता की जानकारी दी गयी इस क्रीम को अबतक सबसे कारगर तरीको में से एक है जो एड्स रोक सकती है क्रीम का निर्माण उन्ही एंटी वाइरल दवाओं के फार्मूले पर किया गया है जो एड्स होने पर दी जाती है
सोमवार, 28 दिसंबर 2020
वंडर ड्रग्स
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दिसंबर 28, 2020 in
वंडर ड्रग्स नामक यह गोली सभी प्रकार के कैंसर को खत्म करेगी | इसे खोजा है ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने न्यू कासल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिको ने बताया की यह सभी प्रकार क कैंसर को ठीक कर सकती है | इस गोली का कोई साएड इफेक्ट नहीं है यह गोली काफी महँगी है करीब २४०० यूरो की एक महीने की दवा का दाम पड़ेगा तथा छः महीने की दवा लेनी पड़ेगी पर बाद में धीरे धीरे इसका मूल्य कम हो जायेगा आम आदमी की पहुँच में हो जायेगा |
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020
स्ट्रिंग थ्योरी भारतीय दर्शन के करीब
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दिसंबर 18, 2020 in Sring theouri and indian spiritual
इस सिद्धांत के अनुसार सभी कण एक धागे रूपी रचना के रूप में है जिसे स्ट्रिंग कहते है यह अति छोटी इकाई है तथा फ्रीकवेंसी पे आधारित होती यह एक आयाम की संगरचना है इसकी एक निश्चित लम्बाई है यह गति के अतिरिक्त दोलन भी कर सकता है यदि यह दोलन करे तो हम जान नहीं सकते यह बिंदु है या रिंग यह किसी और तरीके से गति करे तो उसे फोटान कहा जाता है तीसरे तरीके से दोलन करने पे क्वार्क कहा जा सकता है यानी अलग अलग तरीके से गति करने पे सभी मुलभुत कणो की ब्याख्या कर सकता है यदि स्ट्रिंग सिद्धांत सही है तो समस्त ब्रमांड कणों से नहीं स्ट्रिंग से बना है डबल स्लेट एक्सपरिमेंट में यह सिद्ध किया जा चुका की स्ट्रिंग या इलेक्ट्रान देखने से प्रभावित होते है जब देखा जाता है तो बिंदु के रूप में दिखायी देते है और जब नहीं देखा जाता है तो वेब के रूप में ब्यवहार करते है भारतीय आधात्मिक दर्शन मन दृष्टि और स्वर पे आधारित मंत्रो का प्रयोग करके सृष्टि या ब्रमांड में परिवर्तन किया जा सकता है नई सृष्टि को मन की कल्पना से बनाया जा सकता है इस प्रकार स्ट्रिंग सिद्धांत इसकी पुष्टि करता है की मंत्र इत्यादि के द्वारा कुछ भी किया जा सकता है
शरीर के इन अंगों पर तिल मानते हैं बेहद शुभ, धनवान होने का सूचक
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दिसंबर 18, 2020 in
Many mole are born on the body and many mole emerge later. Over time, many mole also become small and big. According to oceanography, the presence of mole on the body has special importance. Because these mole can change your luck. It also exposes many of your secrets. In Indian as well as Chinese astrology, mole is considered an indicator of luck and having mole on some parts of the body also gives auspicious signs of getting rich. Through these sesame life you can also learn about many deep secrets. On this basis, we tell you that having mole on these parts of the body is considered very auspicious and these are indicative of being rich….If there is a mole on the palm of your right side hand then it is considered auspicious sign. Being a mole here means that you will get success in every field and you will also gain from there. Such people, whether in business or in jobs, they always get advancement and luck also always supports them.It is considered fortunate to have a mole in the middle of one's chest. Having a mole in this part indicates wealth and life ends well. Also, their wishes are fulfilled from time to time. He never lacks money and achieves his position on the strength of hard work, which creates his new identity in the family.
शरीर पर कई तिल जन्म के साथ होते हैं और कई तिल बाद में उभरकर आते हैं। समय के साथ-साथ कई तिल छोटे-बड़े भी होते रहते हैं। समुद्रशास्त्र की मानें तो शरीर पर तिल का होना विशेष महत्व रखता है। क्योंकि ये तिल आपकी किस्मत को बदल सकते हैं। साथ ही यह आपके कई राज को उजागर भी कर देते हैं। भारतीय के साथ-साथ चीनी ज्योतिष में भी तिल को भाग्य का सूचक माना गया है और शरीर के कुछ हिस्सों पर तिल का होना धनवान होने के शुभ संकेत भी देते हैं। इन तिलों के माध्यम से आप जीवन कई गहरे रहस्यों के बारे में भी जान सकते हैं। इसी आधार पर हम आपको बताते हैं कि शरीर के इन अंगों पर तिल का होना बेहद शुभ माना जाता है और ये धनवान होने का सूचक हैं सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति के राइट साइड के गाल पर अगर तिल है तो यह काफी शुभ माना जाता है। यह भाग्यशाली होने का सूचक तो है ही साथ में समय-समय पर इनको धन लाभ होता रहता है। यह अपने पार्टनर के लिए काफी वफादार होते हैं और अपनी सभी जरूरतों को पूरा करते हैं। वहीं लेफ्ट साइड के गाल पर तिल होने का मतलब है कि व्यक्ति अधिक खर्चीला है।अगर आपकी राइट साइड के हाथ की हथेली पर तिल है तो यह शुभ संकेत माना जाता है। यहां पर तिल होने का अर्थ है कि आपको हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी और वहां से लाभ भी प्राप्त होगा। ऐसे लोग चाहें व्यापार में हों या नौकरी में इनको हमेशा उन्नति मिलती है और किस्मत भी हमेशा साथ देती है। .व्यक्ति के सीने के मध्य भाग में तिल होना भाग्यवान माना जाता है। इस भाग में तिल होना धन प्राप्ति के संकेत देता है और जीवन सुखमय कटता है। साथ ही इनकी इच्छाओं की पूर्ति समय-समय पर होती रहती है। इनको धन का कभी अभाव नहीं रहता और मेहनत के दम पर अपना मुकाम हांसिल करते हैं, जिससे कुटंब में इनकी नई पहचान बनती है।.
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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
Vartabook.com : varta.tv :(वार्ताबुक डॉट कॉम ; वार्ता डॉट टीवी ): खुशबू का विज्ञान
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दिसंबर 15, 2020 in
Vartabook.com : varta.tv :(वार्ताबुक डॉट कॉम ; वार्ता डॉट टीवी ): खुशबू का विज्ञान: खुशबू का विज्ञान:नींबू की खुशबू तरोताजा और फिट होने का अहसास कराती है, वनीला की महक मोटापा महसूस कराती है इंग्लैंड की सुसेक्स यूनिवर्सिटी के...
सोमवार, 14 दिसंबर 2020
अमेरिका के वैज्ञानिको ने कृत्रिम लिवर ऊतक बनाने में सफलता हासिल की है
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दिसंबर 14, 2020 in
अमेरिकी वैज्ञानिको ने कृत्रिम लिवर ऊतक बनाने में सफलता हासिल की है जिन्हे लिवर प्रत्यारोपण के दौरान मरीजों में अस्थाई तौर पर लिवर की जगह तैनात किया जा सकता है वैज्ञानिकों के अनुसार लिवर टिसू में बिकृत कोशिकाओं को नष्ट कर नयी कोशिका बिकसित करने की अद्धभुत छमता होती है शुरूआती दौर में खामियों को पकड़ लिया जाए तो लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता नहीं पड़ती
बुधवार, 2 दिसंबर 2020
वैज्ञानिकों ने मिरर न्यूरॉन्स का रिकार्डिंग करने में सफलता हासिल कर ली है
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दिसंबर 02, 2020 in
ब्रेन के अंदर मोटर रीजन में , बल्कि विजन और मेमोरी के लिए जिम्मेदार हिस्सोँ में भी सिंगल सेल और मल्टीपल सेल की गतिबिधियाँ रिकार्ड की है |
मोटर रीजन ब्रेन का वह हिस्सा है जिसके बारे में माना जाता है , की वहां मिरर न्यूरॉन की मौजूदगी है मिरर न्यूरॉन ही हमें आदमी बनाती है
यह कारनामा कैलिफोर्निया युनिवेर्सिटी के वैज्ञानिजो को ने किया था जो की एलन मास्क के न्यूरालिंक प्रोजेक्ट में मददगार साबित हो सकती है
शनिवार, 21 नवंबर 2020
CELL AS A BASIC UNIT OF LIFE
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नवंबर 21, 2020 in CELL AS A BASIC UNIT OF LIFE
Inspite of so much diversity in the living organism with regard to struture ,function,habit,etc. It is a universal princpal of biology that all living organisms the tiniest to the large are composed of small compartments called cells.The cells and are invisablee cells are very small in size and are invisable to the unaided eyes that is why cells were discoved only after the invention of microscope. In 1838 a german batanist, M.J schwam and in 1839 a German zoologist theodor schwam after stydying atydying plants and animals independently put farwad a theory called the cell thory . Schultze in 1861 proposed the portoplant Doctrinr which states that all living substance called protplant.To prepare tempory mount of epidermal perl from onion ,cut an onion intro four piecrs longitudially remove one thick scale from one of the quarters.To see the grass structur of a cell to see the finer datails,focus it under high power of compound microscop.These structures cell look similar to each other and together feom a big structure likr onion buld.
गुरुवार, 19 नवंबर 2020
बुधवार, 8 जुलाई 2020
मंगलवार, 7 जुलाई 2020
ये 10 लक्षण बताएंगे आपकी प्राण ऊर्जा हो चुकी है खत्म
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जुलाई 07, 2020 in ये 10 लक्षण बताएंगे आपकी प्राण ऊर्जा हो चुकी है खत्म
प्राण संस्कृत का शब्द है जिसका संबंध जीवन शक्ति से है। यदि आप जीवन में खुशहाली और सकारात्मकता चाहते हैं तो प्राण ऊर्जा को संतुलित करना बहुत जरूरी है। जब हमारी प्राण ऊर्जा मजबूत होती है तो हम प्रसन्न, स्वस्थ और संतुलित महसूस करते हैं लेकिन यदि हमारी आदतें और जीवनशैली खराब हो तो प्राण शक्ति कमजोर हो जाती है। इसकी वजह खराब डायट, खराब जीवनशैली और नकारात्मक सोच है। ऐसा होने पर हमें शारीरिक और मानसिक स्तर पर कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जो वास्तव में खतरे की घंटी है कि आपकी प्राण ऊर्जा कमजोर पड़ रही है।
प्राण ऊर्जा का कार्य
जब हम सांस लेते हैं हम प्राण ऊर्जा ग्रहण करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि हम तो ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं लेकिन आपको जानने की जरूरत है, प्राण शक्ति वो अनछुआ और अनदेखा एहसास है जो अध्यात्म में मौजूद तो है लेकिन इसे आप तभी महसूस कर पाएंगे जब आपका रुख अध्यात्म की तरफ होगा।
ये जीवन शक्ति ऊर्जा के रूप में शरीर में फैलती है बिल्कुल वैसे ही जैसे नसों के जरिए खून संपूर्ण शरीर में दौड़ता है। यह प्राण शक्ति 7 चक्रों से होती हुई पूरे शरीर में बहती है ठीक उसी तरह जैसे रक्त सभी अंगों तक पहुंचता है। जब यह ऊर्जा ब्लॉक हो जाती है तो हमें कुछ शारीरिक और भावात्मक लक्षण दिखाई देते हैं।
प्राण ऊर्जा के असंतुलन के 10 लक्षण
1. अत्यधिक थकान और आलस
2. तनाव और काम से थकान या चाहकर भी इसे नहीं बदल पाना
3. बार-बार नकारात्मक और हानिकारक विचार
4. प्रेरणा की कमी
5. जो भी चीज़ नकारात्मक लगे उसके प्रति फौरन और बार-बार भावात्मक प्रतिक्रिया देना
6. सिर दर्द और उलझन
7. जुकाम, एलर्जी या रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ा कोई विकार
8. परेशान रहना
9. पाचन तंत्र की परेशानी जैसे खराब पेट या डायरिया
10. सेक्सुअल दिक्कतें
ये 10 लक्षण यदि आपको अपने अंदर बार-बार दिख रहे हों और वो भी तब जब आपको कोई बड़ी बीमारी ना हो और आप चिकित्सीय रूप से स्वस्थ हों तब समझिए आपकी प्राण ऊर्जा को रिचार्ज करने की जरूरत है।
sabhar :https://hindi.speakingtree.in/
प्राण ऊर्जा का कार्य
जब हम सांस लेते हैं हम प्राण ऊर्जा ग्रहण करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि हम तो ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं लेकिन आपको जानने की जरूरत है, प्राण शक्ति वो अनछुआ और अनदेखा एहसास है जो अध्यात्म में मौजूद तो है लेकिन इसे आप तभी महसूस कर पाएंगे जब आपका रुख अध्यात्म की तरफ होगा।
ये जीवन शक्ति ऊर्जा के रूप में शरीर में फैलती है बिल्कुल वैसे ही जैसे नसों के जरिए खून संपूर्ण शरीर में दौड़ता है। यह प्राण शक्ति 7 चक्रों से होती हुई पूरे शरीर में बहती है ठीक उसी तरह जैसे रक्त सभी अंगों तक पहुंचता है। जब यह ऊर्जा ब्लॉक हो जाती है तो हमें कुछ शारीरिक और भावात्मक लक्षण दिखाई देते हैं।
प्राण ऊर्जा के असंतुलन के 10 लक्षण
1. अत्यधिक थकान और आलस
2. तनाव और काम से थकान या चाहकर भी इसे नहीं बदल पाना
3. बार-बार नकारात्मक और हानिकारक विचार
4. प्रेरणा की कमी
5. जो भी चीज़ नकारात्मक लगे उसके प्रति फौरन और बार-बार भावात्मक प्रतिक्रिया देना
6. सिर दर्द और उलझन
7. जुकाम, एलर्जी या रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ा कोई विकार
8. परेशान रहना
9. पाचन तंत्र की परेशानी जैसे खराब पेट या डायरिया
10. सेक्सुअल दिक्कतें
ये 10 लक्षण यदि आपको अपने अंदर बार-बार दिख रहे हों और वो भी तब जब आपको कोई बड़ी बीमारी ना हो और आप चिकित्सीय रूप से स्वस्थ हों तब समझिए आपकी प्राण ऊर्जा को रिचार्ज करने की जरूरत है।
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रविवार, 12 अप्रैल 2020
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020
सोमवार, 6 अप्रैल 2020
5G से तकनीक जगत में होंगे बड़े बदलाव
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अप्रैल 06, 2020 in

दुनिया के कुछ देशों में 5जी की शुरुआत हो चुकी है, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन दोनों के नाम शामिल हैं। धीरे-धीरे 5जी इंटरनेट पूरी दुनिया में शुरू हो जाएगा। गार्टनर के मुताबिक, 2020 तक दुनिया भर में 5जी वायरलेस नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर रिवेन्यू 4.2 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
साल 2025 तक 75 अरब इंटरनेट ऑफ थिंग्स डिवाइस आने की उम्मीद है, जिससे यह दुनिया इंटरनेट की मदद से अधिकतर काम बड़ी आसानी से कर सकेगी। 5जी कमर्शियल नेटवर्क आने के बाद पहला फायदा मोबाइल ब्रांडबैंड को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को बेहतर अनुभव मिलेगा। साथ ही हर घर तक बिना फाइबर लेन के फाइबर स्पीड पहुंचाई जाएगी।
समय की होगी बचत
इंटरनेट की स्पीड बढ़ने से न सिर्फ जिंदगी आसान होगी बल्कि समय की भी बचत होगी। दरअसल, वर्तमान समय में कोई भी एच एचडी क्वालिटी की फिल्म डाउनलोड करने में काफी समय लगता है लेकिन 5जी आने के बाद किसी भी काम को चंद सेकेंड में किया जा सकेगा। यहां तक कि कई बार तार के माध्यम से आने वाले इंटरनेट कनेक्शन में कनेक्टिविटी टूटने की आशंका रहती है, 5जी में उस तरह की भी समस्या नहीं होगी।
इन देशों में शुरू हो चुकी है 5जी सेवा
5जी सर्विस अमेरिका, दक्षिण कोरिया और कुछ यूरोपियन देश जैसे स्विट्जरलैंड, फिनलैंड और ब्रिटेन का नाम शामिल है। इसके अलावा कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, स्पेन, स्वीडन, कतर और द यूएई 5जी के शुरुआत की घोषणा कर चुके हैं।
दक्षिण कोरिया, चीन, जापान भर रहे फर्राटा
दक्षिण कोरिया, चीन, जापान जैसे देश अगले साल 5जी तकनीक को लोगों तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और इसके लिए उनका होमवर्क भी पूरा हो चुका है। दरअसल, जिस तरह बुलेट ट्रेन के लिए पूरी तरह अलग ट्रैक बनाने की जरूरत होती है, उसी तरह 5जी तकनीक के लिए भी खास इंतजाम करने होते हैं। इसके लिए 80 फीसदी मोबाइल टावर को ऑप्टिकल फाइबर से लैस करने की जरूरत होती है, जबकि देश में मात्र 15फीसदी टावर इस तकनीक से जुड़े हैं। इंडस्ट्री के मुताबिक, अभी जो स्थिति है, उसमें 5जी तकनीक आने में तीन-चार साल लग सकते हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि जब 4जी तकनीक ही पूरे देश में अपने पैमानों पर खरी नहीं उतर रही, ऐसे में 5जी की बात करना जल्दबाजी ही है। एक सर्वे में आया भी है कि 4जी सर्विस पूरे विश्व में सबसे धीमी भारत में ही है।
सरकार कर रही यह दावा
सरकार का कहना है कि 5जी जैसी तकनीक देश में आए, इसे देखते हुए ही नई टेलिकॉम नीति बनाई गई है और इसे केंद्र सरकार ने पिछले साल ही मंजूरी दी है। प्रस्तावित नीति में टेलिकॉम सेक्टर में लाइसेंसिंग और फ्रेमवर्क, सभी के लिए कनेक्टिविटी, सेवाओं की गुणवत्ता, व्यापार करने में आसानी और नई तकनीक पर जोर जैसे 5जी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी चीजें शामिल हैं। इस नीति में टेलिकॉम सेक्टर में 100 अरब डॉलर के निवेश को किस तरह आकर्षित किया जाए, इस बारे में भी रोडमैप दिया गया है। सरकार का दावा है कि इसमें 5जी के लिए भी रोडमैप है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह इसकी राह में मौजूद बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
पढ़ेंः
5जी तकनीक से आएगी सूचना क्रांति
जानकारों का मानना है कि 5जी से तकनीक में नई क्रांति आ जाएगी। इसे 4जी तकनीक से 1000 गुना तेज माना जाता है। इस तकनीक के उपयोग में आने के बाद दैनिक जरूरतों से जुड़ी तकनीकी सुविधाएं भी हाइटेक हो जाएंगी।
पढ़ेंः
5जी कैसे करता है काम
इसमें कई नई तकनीक इस्तेमाल की जाएंगी और यह हाई फ्रिकवेंसी बैंड 3.5गीगाहर्ट्ज से 26गीगारर्ट्ज या उससे भी ज्यादा पर काम करेगा। जहां 4जी में सिग्नल के लिए बड़े हाई पाव सेल टावर्स की जरूरत होती है, वहीं 5जी वायरलेस सिग्नल को भेजने के लिए बहुत सारे छोटे सेल स्टेशन का इस्तेमाल करेगा। जिन्हें छोटी-छोटी जगह जैसे लाइट पोल्स या बिल्डिंग पर लगाया जा सकता है। यहां पर मल्टीपल स्मोल सेल से उसका इस्तेमाल किया जाएगा, क्योंकि यह मिलिमीटर वेव स्पेक्ट्रम हमेशा 30गीगाहर्ट्ज से 300गीगाहर्ट्ज के भीतर ही होती है और 5जी में हाई स्पीड पैदा करने की ही जरूरत है।
पहली जनरेशन ´
पहली जनरेशन में वायरलेस टेक्नोलॉजी के लिए स्पेक्ट्रम की लोवर फ्रिक्वेंसी बेंड का इस्तेमाल होता था, जिससे कि दूरी ज्यादा होती है। इससे जूझने के लिए इंडस्ट्री ने 5जी नेटवर्क में लोअर फ्रिक्वेंसी स्पेक्स्ट्रम इस्तेमाल करने के बारे में सोचा है। जिससे नेटवर्क ऑपरेटर सिस्टम का इस्तेमाल कर सके, जो कि उनके पास पहले से ही मौजूद है। इसकी इंटरनेट स्पीड पहले के जनरेशन से 10 से 20 गुना ज्यादा होगी जो अपने आपमें बहुत ही तेज होगी।
4जी से 5जी से कितना अलग
5जी पूरी तरह से 4जी तकनीक से अलग होगी। शुरुआत में अपने ओरिजिनल स्पीड में काम करेगा या नहीं यह भी तय नहीं है क्योंकि यह सब कुछ टेलीकॉम कंपनियों का निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है। फिलहाल 4जी पर सर्वाधिक 45 एमबीपीएस मुमकिन है लेकिन एक चिप को बनाने वाली कंपनी का अनुमान है कि 5जी 4g से 10 से 20 गुना तक अधिक स्पीड दे सकेगी। sabhar :https://www.livehindustan.com

दुनिया के कुछ देशों में 5जी की शुरुआत हो चुकी है, जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन दोनों के नाम शामिल हैं। धीरे-धीरे 5जी इंटरनेट पूरी दुनिया में शुरू हो जाएगा। गार्टनर के मुताबिक, 2020 तक दुनिया भर में 5जी वायरलेस नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर रिवेन्यू 4.2 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
साल 2025 तक 75 अरब इंटरनेट ऑफ थिंग्स डिवाइस आने की उम्मीद है, जिससे यह दुनिया इंटरनेट की मदद से अधिकतर काम बड़ी आसानी से कर सकेगी। 5जी कमर्शियल नेटवर्क आने के बाद पहला फायदा मोबाइल ब्रांडबैंड को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को बेहतर अनुभव मिलेगा। साथ ही हर घर तक बिना फाइबर लेन के फाइबर स्पीड पहुंचाई जाएगी।
समय की होगी बचत
इंटरनेट की स्पीड बढ़ने से न सिर्फ जिंदगी आसान होगी बल्कि समय की भी बचत होगी। दरअसल, वर्तमान समय में कोई भी एच एचडी क्वालिटी की फिल्म डाउनलोड करने में काफी समय लगता है लेकिन 5जी आने के बाद किसी भी काम को चंद सेकेंड में किया जा सकेगा। यहां तक कि कई बार तार के माध्यम से आने वाले इंटरनेट कनेक्शन में कनेक्टिविटी टूटने की आशंका रहती है, 5जी में उस तरह की भी समस्या नहीं होगी।
इन देशों में शुरू हो चुकी है 5जी सेवा
5जी सर्विस अमेरिका, दक्षिण कोरिया और कुछ यूरोपियन देश जैसे स्विट्जरलैंड, फिनलैंड और ब्रिटेन का नाम शामिल है। इसके अलावा कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, स्पेन, स्वीडन, कतर और द यूएई 5जी के शुरुआत की घोषणा कर चुके हैं।
दक्षिण कोरिया, चीन, जापान भर रहे फर्राटा
दक्षिण कोरिया, चीन, जापान जैसे देश अगले साल 5जी तकनीक को लोगों तक पहुंचाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं और इसके लिए उनका होमवर्क भी पूरा हो चुका है। दरअसल, जिस तरह बुलेट ट्रेन के लिए पूरी तरह अलग ट्रैक बनाने की जरूरत होती है, उसी तरह 5जी तकनीक के लिए भी खास इंतजाम करने होते हैं। इसके लिए 80 फीसदी मोबाइल टावर को ऑप्टिकल फाइबर से लैस करने की जरूरत होती है, जबकि देश में मात्र 15फीसदी टावर इस तकनीक से जुड़े हैं। इंडस्ट्री के मुताबिक, अभी जो स्थिति है, उसमें 5जी तकनीक आने में तीन-चार साल लग सकते हैं। जानकारों का यह भी कहना है कि जब 4जी तकनीक ही पूरे देश में अपने पैमानों पर खरी नहीं उतर रही, ऐसे में 5जी की बात करना जल्दबाजी ही है। एक सर्वे में आया भी है कि 4जी सर्विस पूरे विश्व में सबसे धीमी भारत में ही है।
सरकार कर रही यह दावा
सरकार का कहना है कि 5जी जैसी तकनीक देश में आए, इसे देखते हुए ही नई टेलिकॉम नीति बनाई गई है और इसे केंद्र सरकार ने पिछले साल ही मंजूरी दी है। प्रस्तावित नीति में टेलिकॉम सेक्टर में लाइसेंसिंग और फ्रेमवर्क, सभी के लिए कनेक्टिविटी, सेवाओं की गुणवत्ता, व्यापार करने में आसानी और नई तकनीक पर जोर जैसे 5जी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) जैसी चीजें शामिल हैं। इस नीति में टेलिकॉम सेक्टर में 100 अरब डॉलर के निवेश को किस तरह आकर्षित किया जाए, इस बारे में भी रोडमैप दिया गया है। सरकार का दावा है कि इसमें 5जी के लिए भी रोडमैप है, जिसमें बताया गया है कि किस तरह इसकी राह में मौजूद बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
पढ़ेंः
5जी तकनीक से आएगी सूचना क्रांति
जानकारों का मानना है कि 5जी से तकनीक में नई क्रांति आ जाएगी। इसे 4जी तकनीक से 1000 गुना तेज माना जाता है। इस तकनीक के उपयोग में आने के बाद दैनिक जरूरतों से जुड़ी तकनीकी सुविधाएं भी हाइटेक हो जाएंगी।
पढ़ेंः
5जी कैसे करता है काम
इसमें कई नई तकनीक इस्तेमाल की जाएंगी और यह हाई फ्रिकवेंसी बैंड 3.5गीगाहर्ट्ज से 26गीगारर्ट्ज या उससे भी ज्यादा पर काम करेगा। जहां 4जी में सिग्नल के लिए बड़े हाई पाव सेल टावर्स की जरूरत होती है, वहीं 5जी वायरलेस सिग्नल को भेजने के लिए बहुत सारे छोटे सेल स्टेशन का इस्तेमाल करेगा। जिन्हें छोटी-छोटी जगह जैसे लाइट पोल्स या बिल्डिंग पर लगाया जा सकता है। यहां पर मल्टीपल स्मोल सेल से उसका इस्तेमाल किया जाएगा, क्योंकि यह मिलिमीटर वेव स्पेक्ट्रम हमेशा 30गीगाहर्ट्ज से 300गीगाहर्ट्ज के भीतर ही होती है और 5जी में हाई स्पीड पैदा करने की ही जरूरत है।
पहली जनरेशन ´
पहली जनरेशन में वायरलेस टेक्नोलॉजी के लिए स्पेक्ट्रम की लोवर फ्रिक्वेंसी बेंड का इस्तेमाल होता था, जिससे कि दूरी ज्यादा होती है। इससे जूझने के लिए इंडस्ट्री ने 5जी नेटवर्क में लोअर फ्रिक्वेंसी स्पेक्स्ट्रम इस्तेमाल करने के बारे में सोचा है। जिससे नेटवर्क ऑपरेटर सिस्टम का इस्तेमाल कर सके, जो कि उनके पास पहले से ही मौजूद है। इसकी इंटरनेट स्पीड पहले के जनरेशन से 10 से 20 गुना ज्यादा होगी जो अपने आपमें बहुत ही तेज होगी।
4जी से 5जी से कितना अलग
5जी पूरी तरह से 4जी तकनीक से अलग होगी। शुरुआत में अपने ओरिजिनल स्पीड में काम करेगा या नहीं यह भी तय नहीं है क्योंकि यह सब कुछ टेलीकॉम कंपनियों का निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है। फिलहाल 4जी पर सर्वाधिक 45 एमबीपीएस मुमकिन है लेकिन एक चिप को बनाने वाली कंपनी का अनुमान है कि 5जी 4g से 10 से 20 गुना तक अधिक स्पीड दे सकेगी। sabhar :https://www.livehindustan.com
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020
कोरोना से जुड़े आपके सब सवालों के जवाब
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अप्रैल 03, 2020 in कोरोना से जुड़े आपके सब सवालों के जवाब
कोरोना वायरस से जुड़े कुछ अहम सवाल हैं, जो आपके लिए भी जानना बेहद जरूरी है. ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब हम देने की कोशिश करते हैं.

कितना गंभीर है कोरोना का खतरा?
कोरोना वायरस के संक्रमण और उससे होने वाली बीमारी कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया गया है. इसके बावजूद बहुत से लोगों को अब भी ऐसा लगता है कि एक छोटे से वायरस को बहुत बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है. मौजूदा दर के अनुसार हर व्यक्ति दो से तीन लोगों को संक्रमित कर रहा है. इस वक्त दुनिया भर में कुल पांच लाख लोग इस वायरस के संक्रमित हैं.
लक्षण कब दिखते हैं?
संक्रमण का शक होने पर कम से कम दो हफ्ते सेल्फ क्वॉरंटीन में रहने के लिए कहा जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि लक्षण दिखने में 14 दिन तक लग सकते हैं. हो सकता है कि वायरस आपके शरीर में हो लेकिन अब तक आपको बीमार नहीं कर पाया हो
कैसे होता है संक्रमण?
कैसे होता है संक्रमण?
खांसते या छींकते वक्त मुंह से निकलने वाले ड्रॉप्लेट्स से यह वायरस फैलता है. लक्षण दिखने के बाद व्यक्ति को सबसे अलग कर दिया जाता है क्योंकि अगले 14 दिन तक वह दूसरों के लिए खतरा है. इसी वजह से दुनिया भर की सरकारें सोशल डिस्टैन्सिंग का आग्रह कर रही हैं. घर से बाहर मत निकलिए और संक्रमण के खतरे से बचिए.
कितनी तेजी से फैलता है ये वायरस?
कोरोना संक्रमण अगर एक बार कहीं शुरू हो जाए तो औसतन हर दिन मामले दोगुने हो जाते हैं. यानी अगर कहीं 100 मामले दर्ज हुए हैं, तो अगले दिन 200, फिर 400, 800.. इस तरह से बढ़ते चले जाते हैं. यही वजह है कि अब आंकड़ा पांच लाख को पार कर गया है. अगर अभी इसे नहीं रोका गया तो इस पर काबू करना नामुमकिन हो जाएगा.
आंकड़ों पर भरोसा किया जा सकता है?
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 80 फीसदी मामलों में लोगों को पता भी नहीं चलता कि वे वायरस के साथ जी रहे हैं. ऐसे में ये लोग दूसरों को संक्रमित कर देते हैं. कुछ देश बहुत तेजी से टेस्टिंग कर रहे हैं और ऐसे में आधिकारिक आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है. लेकिन भारत में टेस्टिंग दर अब भी बहुत ही कम है. इसलिए असली संख्या काफी ज्यादा हो सकती है.
मृत्यु दर क्या है?
इस महामारी के बारे में जब पता चला तो शुरू में मृत्यु दर के सिर्फ 0.2 होने की बात कही गई थी. इस बीच यह दो फीसदी हो गई है. लेकिन इटली में एक दिन में करीब हजार लोगों के मरने के बाद यह बदल सकती है अगर जल्द ही स्थिति पर नियंत्रण नहीं कर लिया गया. मरने वालों में अधिकतर 65 साल से ज्यादा उम्र के लोग हैं
कोरोना से बचने के लिए क्या करें?
अगर आपके आस पड़ोस में कोई व्यक्ति संक्रमित है, तो उससे और उसके परिवार से दूर रहें. सब्जी अच्छी तरह पकाएं क्योंकि उच्च तापमान पर वायरस मर जाता है. साथ ही बाजार से लाए किसी भी पैकेट को खोलने से पहले अच्छी तरह धो लें.
कितनी बार हाथ धोएं?
जितना मुमकिन हो. खांसने या छींकने के बाद, बाहर से जब भी घर आएं, खाना पकाने से पहले और बाद में. साबुन से कम से कम बीस सेकंड तक हाथ धोएं. अगर बाहर हैं और हाथ धोना मुमकिन नहीं है, तो सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें.
sabhar : dw.de
शनिवार, 1 फ़रवरी 2020
शनिवार, 25 जनवरी 2020
नई खोज की डगर: भारत के कुछ वैज्ञानिक
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जनवरी 25, 2020 in नई खोज की डगर: भारत के कुछ वैज्ञानिक
स्वपन कुमार दत्ता 58 वर्ष

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली
कमी की पूर्तिः जेनेटिकली परिवर्तित चावल में पर्याप्त प्रोटीन, विटामिन ए और लौह तत्व होगा और यह खून की कमी दूर करने में मददगार होगा. यह उन 100 से अधिक रोगों का जोखिम कम करेगा, जिनका संवाहक चावल है.
लालफीते से संघर्षः कई स्तरों वाली नियामक प्रणाली शोध की राह में रोड़ा है. दत्ता ने तकनीकी और आर्थिक सहयोग में कमी की समस्या का सामना किया. वे कहते हैं, ''कृषि-अार्थिक जमीनी आंकड़े जुटाने के लिए भी थोड़ी और दक्षता की जरूरत है.''
दिमाग पढ़ने की कला
सुब्रह्मण्यम गणेश, 43 वर्ष

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर
जीवन की डोर: लाफोरा रोग के लिए जिम्मेदार दोषपूर्ण जींस के असर की पहचान करना और न्यूरॉन्स के शारीरिक कार्यों को सुधारने के तरीके निकालना, जिसमें उपचार करने वाले उपायों की उम्मीद है.
दिमाग को बदलने वालेः पीएचडी छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण प्रोजक्ट्स लेकर आए. एक पोस्ट-डॉक्टोरल शोधकर्ता से एक शिक्षक बन जाना एक चुनौतीपूर्ण अनुभव था.
अकेले होकर भी जमे रहे
कृष्ण एन. गणेश, 58 वर्ष

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन ऐंड रिसर्च, पुणे
आनुवांशिक प्रगतिः कृत्रिम, मॉडिफाइड कॉलेजन तैयार किया जिससे खराब कॉलेजन से होने वाली बीमारियां ठीक हो सकती हैं
आगे का रास्ताः खोज को एक व्यावहारिक उत्पाद में बदलने के लिए उद्योग, शोधकर्ताओं और शिक्षकों के बीच बेहतर तालमेल.

जानने का जुनून
अशोक सेन, 55 वर्ष
हरीशचंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद
स्ट्रिंग थ्योरीः हाल के वर्षों में इस थ्योरी ने क्वांटम ग्रेविटी की समझ बढ़ाई है और ग्रेविटी को क्वांटम मैकेनिक्स के माकूल बनाया है. फिलहाल, स्ट्रिंग थ्योरी पर काम का व्यावहारिक उपयोग नहीं है, पर बकौल सेन इससे भविष्य में ब्रह्मांड की हमारी समझ बदल सकती है.
सबसे कठिन चुनौतीः उनका काम मूलतः चूंकि सैद्धांतिक है, अतः वित्तीय जरूरतें बहुत कम हैं. बकौल सेन, शोध अपने आप में मुश्किल चुनौती है, सो इस थ्योरी के लिए प्रतिभाशाली युवकों की जरूरत है.
सेहत के लिए संघर्ष
विश्वनाथ मोहन, 57 वर्ष

मद्रास डायबीटिक रिसर्च फाउंडेशन, चेन्नै
सोचा-समझा कदमः शोध को समुदाय की गतिशीलता के साथ जोड़ देना मोहन के फाउंडेशन की आधारशिला है. इसका मुख्य जोर उन परियोजनाओं पर है जिनका उद्देश्य बच्चों और वयस्कों, दोनों में मधुमेह और मोटापे को रोकना है.
पुराने पूर्वाग्रहः मोहन का कहना है कि मधुमेह संबंधी शोध को सरकार और दूसरी एजेंसियों से ज्यादा पैसे की दरकार है. इसमें और सहयोग चाहिए तथा ज्यादा से ज्यादा टेक्नोलॉजिस्ट इससे जुड़ें. उन्हें जिस दूसरी समस्या का सामना करना पड़ता है, वह है लोगों को इस बात का कायल करना कि वे मधुमेह के सर्वेक्षणों में जानकारी दें.
दिमाग पर नजर
उपिंदर एस. भल्ला, 48 वर्ष

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बंगलुरू
दिमाग पर जोरः भल्ला के शोध में मुख्यतः मस्तिष्क की कार्यशैली पर ध्यान दिया गया है. इससे खासकर बुजुर्गों में तंत्रिका ह्रास (न्यूरो डिजनरेशन) जैसे क्षेत्रों में नई जानकारी की उम्मीद है. वे यह भी पता लगा रहे हैं कि जब यादें बनती हैं तो दिमाग में क्या होता है.
बेशकीमती वक्तः अपने शोध के अलावा भल्ला 10 छात्रों के निरीक्षक हैं और ढेर प्रशासकीय जिम्मेदारियां निभाते हैं.
किसानों के मित्र
उषा बरवाले जेर, 50 वर्ष; बी.आर. चार, 47 वर्ष

महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लिमिटेड, जालना
वरदान या अभिशाप? भारत के आनुवंशिक रूप से परिवर्धित (जीएम) पहले खाद्यान्न बीटी बैंगन का श्रेय, जिसे जालना में महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लि. ने तैयार किया, मुख्यतः इन्हीं दोनों के 2000 से किए गए प्रयासों को दिया जाता है.
लाल फीताः सरकार ने 9 फरवरी, 2010 को ऐलान किया कि उसे बीटी बैंगन की वाणिद्गियक बिक्री की मंजूरी के लिए समय चाहिए.
जींस के गुरु
पार्थ प्रतिम मजूमदार, 59 वर्ष

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स, कल्याणी
नई आशाः यहां के शोध से मुख कैंसर, हृदयघात के अलावा जिगर और नेत्र रोगों के बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकती है. कैंसर जीनोम अनुसंधान से किसी को बीमारी होने से पहले इसके बारे में पता चल जाएगा. व्यक्तियों का अलग-अलग इलाज संभव होगा.
पुरानी समस्याः स्वतंत्र शोध के लिए पैसा जुटाना चिंता का विषय है. संस्थान अच्छे क्लिनिकल सहयोगी ढूंढ़ने को प्रयासरत है.
जर्रे-जर्रे में जादू
प्रद्युत घोष, 41 वर्ष

इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस,
जादवपुर, कोलकाता
एक बेहतर दुनिया की खातिरः घोष के शोध का उद्देश्य मुख्यतः स्वास्थ्य और पर्यावरण की समस्याओं को सुलझाने के लिए है. इसमें पेयजल में फ्लूराइड, विभिन्न विषाक्त आयनों की जांच, हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा और प्राकृतिक संसाधनों से विशुद्ध एल्कलाइ (क्षारीय) मेटल सॉल्ट को अलग करने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास शामिल है.
वक्त की जरूरतः इस संस्थान को ज्यादा समर्पित शोधकर्ताओं, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और पर्याप्त फंड की बेहद जरूरत है.
sabhaar https://aajtak.intoday.in/

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली
कमी की पूर्तिः जेनेटिकली परिवर्तित चावल में पर्याप्त प्रोटीन, विटामिन ए और लौह तत्व होगा और यह खून की कमी दूर करने में मददगार होगा. यह उन 100 से अधिक रोगों का जोखिम कम करेगा, जिनका संवाहक चावल है.
लालफीते से संघर्षः कई स्तरों वाली नियामक प्रणाली शोध की राह में रोड़ा है. दत्ता ने तकनीकी और आर्थिक सहयोग में कमी की समस्या का सामना किया. वे कहते हैं, ''कृषि-अार्थिक जमीनी आंकड़े जुटाने के लिए भी थोड़ी और दक्षता की जरूरत है.''
दिमाग पढ़ने की कला
सुब्रह्मण्यम गणेश, 43 वर्ष

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर
जीवन की डोर: लाफोरा रोग के लिए जिम्मेदार दोषपूर्ण जींस के असर की पहचान करना और न्यूरॉन्स के शारीरिक कार्यों को सुधारने के तरीके निकालना, जिसमें उपचार करने वाले उपायों की उम्मीद है.
दिमाग को बदलने वालेः पीएचडी छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण प्रोजक्ट्स लेकर आए. एक पोस्ट-डॉक्टोरल शोधकर्ता से एक शिक्षक बन जाना एक चुनौतीपूर्ण अनुभव था.
अकेले होकर भी जमे रहे
कृष्ण एन. गणेश, 58 वर्ष

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन ऐंड रिसर्च, पुणे
आनुवांशिक प्रगतिः कृत्रिम, मॉडिफाइड कॉलेजन तैयार किया जिससे खराब कॉलेजन से होने वाली बीमारियां ठीक हो सकती हैं
आगे का रास्ताः खोज को एक व्यावहारिक उत्पाद में बदलने के लिए उद्योग, शोधकर्ताओं और शिक्षकों के बीच बेहतर तालमेल.

जानने का जुनून
अशोक सेन, 55 वर्ष
हरीशचंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट, इलाहाबाद
स्ट्रिंग थ्योरीः हाल के वर्षों में इस थ्योरी ने क्वांटम ग्रेविटी की समझ बढ़ाई है और ग्रेविटी को क्वांटम मैकेनिक्स के माकूल बनाया है. फिलहाल, स्ट्रिंग थ्योरी पर काम का व्यावहारिक उपयोग नहीं है, पर बकौल सेन इससे भविष्य में ब्रह्मांड की हमारी समझ बदल सकती है.
सबसे कठिन चुनौतीः उनका काम मूलतः चूंकि सैद्धांतिक है, अतः वित्तीय जरूरतें बहुत कम हैं. बकौल सेन, शोध अपने आप में मुश्किल चुनौती है, सो इस थ्योरी के लिए प्रतिभाशाली युवकों की जरूरत है.
सेहत के लिए संघर्ष
विश्वनाथ मोहन, 57 वर्ष

मद्रास डायबीटिक रिसर्च फाउंडेशन, चेन्नै
सोचा-समझा कदमः शोध को समुदाय की गतिशीलता के साथ जोड़ देना मोहन के फाउंडेशन की आधारशिला है. इसका मुख्य जोर उन परियोजनाओं पर है जिनका उद्देश्य बच्चों और वयस्कों, दोनों में मधुमेह और मोटापे को रोकना है.
पुराने पूर्वाग्रहः मोहन का कहना है कि मधुमेह संबंधी शोध को सरकार और दूसरी एजेंसियों से ज्यादा पैसे की दरकार है. इसमें और सहयोग चाहिए तथा ज्यादा से ज्यादा टेक्नोलॉजिस्ट इससे जुड़ें. उन्हें जिस दूसरी समस्या का सामना करना पड़ता है, वह है लोगों को इस बात का कायल करना कि वे मधुमेह के सर्वेक्षणों में जानकारी दें.
दिमाग पर नजर
उपिंदर एस. भल्ला, 48 वर्ष

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बंगलुरू
दिमाग पर जोरः भल्ला के शोध में मुख्यतः मस्तिष्क की कार्यशैली पर ध्यान दिया गया है. इससे खासकर बुजुर्गों में तंत्रिका ह्रास (न्यूरो डिजनरेशन) जैसे क्षेत्रों में नई जानकारी की उम्मीद है. वे यह भी पता लगा रहे हैं कि जब यादें बनती हैं तो दिमाग में क्या होता है.
बेशकीमती वक्तः अपने शोध के अलावा भल्ला 10 छात्रों के निरीक्षक हैं और ढेर प्रशासकीय जिम्मेदारियां निभाते हैं.
किसानों के मित्र
उषा बरवाले जेर, 50 वर्ष; बी.आर. चार, 47 वर्ष

महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लिमिटेड, जालना
वरदान या अभिशाप? भारत के आनुवंशिक रूप से परिवर्धित (जीएम) पहले खाद्यान्न बीटी बैंगन का श्रेय, जिसे जालना में महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी लि. ने तैयार किया, मुख्यतः इन्हीं दोनों के 2000 से किए गए प्रयासों को दिया जाता है.
लाल फीताः सरकार ने 9 फरवरी, 2010 को ऐलान किया कि उसे बीटी बैंगन की वाणिद्गियक बिक्री की मंजूरी के लिए समय चाहिए.
जींस के गुरु
पार्थ प्रतिम मजूमदार, 59 वर्ष

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स, कल्याणी
नई आशाः यहां के शोध से मुख कैंसर, हृदयघात के अलावा जिगर और नेत्र रोगों के बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकती है. कैंसर जीनोम अनुसंधान से किसी को बीमारी होने से पहले इसके बारे में पता चल जाएगा. व्यक्तियों का अलग-अलग इलाज संभव होगा.
पुरानी समस्याः स्वतंत्र शोध के लिए पैसा जुटाना चिंता का विषय है. संस्थान अच्छे क्लिनिकल सहयोगी ढूंढ़ने को प्रयासरत है.
जर्रे-जर्रे में जादू
प्रद्युत घोष, 41 वर्ष

इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस,
जादवपुर, कोलकाता
एक बेहतर दुनिया की खातिरः घोष के शोध का उद्देश्य मुख्यतः स्वास्थ्य और पर्यावरण की समस्याओं को सुलझाने के लिए है. इसमें पेयजल में फ्लूराइड, विभिन्न विषाक्त आयनों की जांच, हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा और प्राकृतिक संसाधनों से विशुद्ध एल्कलाइ (क्षारीय) मेटल सॉल्ट को अलग करने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास शामिल है.
वक्त की जरूरतः इस संस्थान को ज्यादा समर्पित शोधकर्ताओं, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और पर्याप्त फंड की बेहद जरूरत है.
sabhaar https://aajtak.intoday.in/
बुधवार, 22 जनवरी 2020
तकनीक 2020 - जो बदल देगी दुनिया
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जनवरी 22, 2020 in

तकनीकी कंपनियों के लिए साल 2019 शानदार रहा. लेकिन नए दशक में कंपनियां ग्राहकों के लिए और बहुत कुछ पेश करने वाली हैं. कुछ तकनीकें अगले कुछ महीने में बाजार में होंगी जबकि कुछ पर कंपनियां अभी भी काम कर रही हैं.
ग्रीन तकनीक
2019 में कंपनियों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई कदम उठाए. नए दशक में भी कंपनियां पर्यावरण के अनुकूल ही टेक्नॉलोजी पर काम करेंगी जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो और पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो. कई कंपनियां अक्षय ऊर्जा पर जोर-शोर से काम कर रही हैं.
डाटा सुरक्षा
2020 में लोग अपने डाटा को लेकर और ज्यादा सजग होंगे और सरकार की सख्तियों के बाद कंपनियों पर भी लोगों के डाटा संरक्षण का दबाव होगा. उम्मीद है कि 2020 में कंपनियां डाटा को सुरक्षित करने के लिए नए उपायों को भी अपनाएंगी.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
दुनियाभर में क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक की ही चर्चा हो रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को और सटीक और बेहतर बनाने के लिए कंपनियां करोड़ों डॉलर खर्च कर रही हैं. अमेजन के अलेक्सा सक्षम गैजेट्स भी लोगों को खूब भा रहे हैं. उम्मीद है कि 2020 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ज्यादा सटीक और तेज हो जाएगा.
5जी नेटवर्क कवरेज का विस्तार
फिलहाल मोबाइल पर जो 4जी डाटा स्पीड है उसके मुकाबले 5जी कहीं अधिक तेज होगा. 5जी इंटरनेट स्पीड पर 4के रिजॉल्यूशन वाली पूरी की पूरी फिल्म मिनटों में डाउनलोड हो जाएगी. 5जी इंटरनेट आज के तकनीक के मुकाबले 10 से लेकर 100 गुना तेज चल सकता है. हालांकि 5जी तकनीक को इस्तेमाल करने के लिए आपको नया हैंडसेट खरीदना पड़ेगा
ड्राइवरलेस कारें
तेज रफ्तार जिंदगी में हर किसी को जल्दी है. ऐसे में ड्राइवर-रहित कारों की बिक्री भी बढ़ने की उम्मीद है. कई कंपनियां बिना ड्राइवर वाली कार पर तेजी से काम कर रही हैं. हालांकि इन कारों को चलाने के लिए खास अनुमति चाहिए होगी. यही नहीं सुरक्षा के लिहाज से भी कुछ नए कानूनों की भी आवश्यकता पड़ेगी.
ड्राइवरलेस कारें
तेज रफ्तार जिंदगी में हर किसी को जल्दी है. ऐसे में ड्राइवर-रहित कारों की बिक्री भी बढ़ने की उम्मीद है. कई कंपनियां बिना ड्राइवर वाली कार पर तेजी से काम कर रही हैं. हालांकि इन कारों को चलाने के लिए खास अनुमति चाहिए होगी. यही नहीं सुरक्षा के लिहाज से भी कुछ नए कानूनों की भी आवश्यकता पड़ेगी.
साभार https://www.dw.com/
ड्रा
वैज्ञानिकों ने कैमरे पर मानव की आंखों से चमकती हुई रहस्यमयी घटना को पकड़ लिया
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जनवरी 22, 2020 in वैज्ञानिकों ने कैमरे पर मानव की आंखों से चमकती हुई रहस्यमयी घटना


"हमारे वास्तविक समय के आंकड़ों ने कड़ाई से दिखाया कि उत्पादित प्रकाश की मात्रा एक दृश्य सनसनी को पर्याप्त करने के लिए पर्याप्त है - एक विषय जिसे साहित्य में बहस की गई है," तेंडलर कहते हैं। "वर्णक्रमीय रचना का विश्लेषण करके, हम यह भी बताते हैं कि इस उत्सर्जन को चेरनकोव प्रकाश के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है - फिर से, साहित्य में एक और प्रतियोगिता बिंदु।"
शोध को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रेडिएशन ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित किया गया है, जिसका उद्देश्य भविष्य की रेडियोथेरेपी तकनीकों को बेहतर बनाना है: उदाहरण के लिए, चेरेंकोव उत्सर्जन का पता लगाना एक संकेत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है कि उपचार ने अपने इच्छित लक्ष्य को मारा है या नहीं। वैज्ञानिकों ने इस बात के बीच एक संबंध देखा कि क्या मरीज हल्की चमक देखते हैं और क्या वे बाद में किसी दृष्टि हानि का अनुभव करते हैं।
"हालांकि प्रकाशित तंत्रिका उत्तेजना के बारे में सिद्धांत, लेंस का परिमार्जन, और अल्ट्राविक बायोलुमिनसेंट फोटॉनों से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह स्पष्ट लगता है कि आंख में चेरेंकोव प्रकाश उत्पादन मात्रात्मक और महत्वपूर्ण है," शोधकर्ताओं ने अपने प्रकाशित पेपर में निष्कर्ष निकाला है। साभार https://sputniknews.com/science
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जनवरी 22, 2020 in
कई रोगियों को बंद आंखों के साथ भी, विकिरण चिकित्सा के दौरान उनकी आंखों के सामने रोशनी की चमक दिखाई देती है, और अब ये फ्लैश पहली बार कैमरे पर पकड़े गए हैं।
एक नए अध्ययन से पता चलता
रविवार, 19 जनवरी 2020
वैज्ञानिकों ने ट्यूमर के अंदर ही खोजी कैंसर से लड़ने की "फैक्ट्रियां"
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जनवरी 19, 2020 in
ताजा शोध से पता चला है कि कुछ ट्यूमर या कैंसर के अंदर ही प्रतिरक्षा कोशिकाओं की "फैक्ट्रियां" होती हैं. जो शरीर को कैंसर के खिलाफ लड़ने में मदद करती हैं.

हाल के वर्षों में डॉक्टरों ने कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए इम्यूनोथेरेपी के जरिए नया इलाज खोजा है. इसमें शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत कर उन्हें ट्यूमर से लड़ने लायक बनाया जाता है.
यह तकनीक तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाएं (टीएलएस) इस इलाज में कारगर साबित हुई हैं. हाल के वर्षों में, डॉक्टरों ने कैंसर, इम्यूनोथेरेपी के नए उपचार की ओर रुख किया है, जो ट्यूमर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का लाभ उठाकर काम करता है. साइंस जर्नल "नेचर" में इस उपचार से संबंधित तीन शोध प्रकाशित हुए हैं. जो दुनिया के अलग देशों के वैज्ञानिकों की ओर से आए हैं.
शोध में बताया गया है कि श्वेत रक्त कोशिकाएं या टी-सेल्स ट्यूमर को मारने का काम कैसे करती हैं. कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और उन पर हमला करने के लिए यह "प्रशिक्षित" होती हैं. हालांकि यह उपचार केवल 20 प्रतिशत रोगियों पर ही बेहतर काम कर रहा है. शोधकर्ता यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों कुछ ही मरीज इस इलाज में बेहतर परिणाम दे रहे हैं.
वैज्ञानिकों ने बताया कि ट्यूमर या कैंसर पर बनी कुछ कोशिकीय संरचनाएं शरीर को कैंसर से लड़ने में मदद करने के लिए "कारखानों या स्कूलों" जैसे काम करती हैं. पेरिस डेकार्टी यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के कॉर्डेलिए रिसर्च सेंटर में इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर वुल्फ फ्रीडमैन ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "इन टी-कोशिकाओं को तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाओं के 'स्कूलों' में शिक्षित करने की आवश्यकता है. जहां वे प्रभावी रूप से कैंसर कोशिकाओं को पहचाकर उन पर हमला करना सीख सकते हैं."
रिसर्च का निष्कर्ष है कि केवल टी-सेल ही कैंसर से लड़ने में सक्षम नहीं हैं बल्कि ऐसे कुछ और एजेंट भी शरीर में हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि तृतीयक लिम्फॉइड संरचनाएं या टीएलएस, बी-सेल से भरी हुई थीं, जो भी एंटीबॉडी का उत्पादन करने वाली एक तरह की प्रतिरक्षा कोशिकाएं हैं. प्रोफेसर फ्रीडमैन ने बताया, "हम 15 साल से टी-सेल से ही कैंसर को खत्म करने के आदी बन चुके हैं. हमने यह देखने के लिए सारकोमा जैसे कैंसर का विश्लेषण किया कि उनके पास कौन से समूह हैं. जो कैंसर से लड़ सकते हैं. इसके परिणामस्वरूप हमारे पास बी-कोशिकाएं आईं."
अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के एंडरसन कैंसर सेंटर में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग की डॉक्टर बेथ हेल्मिंक कहती हैं कि इस खोज ने इम्यूनोथेरेपी में बी-कोशिकाओं से जुड़ी धारणाओं को बदल दिया है. बेथ के मुताबिक, "इन अध्ययनों के माध्यम से हमने पाया कि बी-कोशिकाएं ट्यूमर-विरोधी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए एक सार्थक तरीके से योगदान दे रही हैं."
इस खोज में कई आश्चर्यजनक बातें सामने आई हैं. पहले कैंसर रोगियों में बी-कोशिकाओं की बहुतायत को ज्यादातर खराब रोग के रूप में देखा जाता रहा है. इसके उलट अध्ययन में पाया गया कि उनके ट्यूमर में टीएलएस के अंदर बी- कोशिकाओं के उच्च स्तर वाले रोगियों में इम्यूनोथेरेपी के लिए अच्छी प्रतिक्रिया की संभावना होती हैं.
बार्ट्स एंड लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन एंड डेंटिस्ट्री में लेक्चरर लुईसा जेम्स कहती हैं, "अध्ययन की यह श्रृंखला रोमांचक इसलिए भी है क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकने में सक्षम है. हालांकि जेम्स इस अध्ययन में शामिल नहीं थीं, उन्होंने इस शोध को पढ़ने के बाद कहा, "कम समय में ही इस शोध के परिणामस्वरूप रोगियों को इम्यूनोथेरेपी से लाभ होने की संभावना के लिए नया टूल मिल जाएगा. जिससे भविष्य में बेहतर उपचार का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है."
कैंसर के सभी प्रश्नों का जवाब नहीं है यह शोध
हालांकि अभी भी कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर नहीं मिल पाए हैं. जैसे कि ऐसी संरचनाएं कुछ ही तरह के ट्यूमर में क्यों बनती हैं और बाकी में नहीं. यह स्पष्ट हो गया है कि इन्ही संरचनाओं के अंदर पाई जाने वाली बी-कोशिकाएं इम्यूनोथेरेपी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन ऐसा कैसे होता है इसका उत्तर अब तक वैज्ञानिकों के पास नहीं है.
यह हो सकता है कि बी-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए आगे आती हों और एंटीबॉडी का निर्माण करती हों. सभी टीएलएस समान नहीं होते. शोधकर्ताओं ने कोशिकाओं की तीन श्रेणियां पाईं लेकिन केवल एक कोशिका कैंसर को मात देने में "परिपक्व" पाई गई.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस रिसर्च ने कई आशाजनक रास्ते खोले हैं. यह शोध डॉक्टरों को उन मरीजों का इलाज करने में मदद कर सकता है जो इम्यूनोथेरेपी के लिए अच्छी प्रतिक्रियाएं देते हैं. स्वीडन के लुंथ विश्वविद्यालय में ऑन्कोलॉजी और पैथोलॉजी के प्रोफेसर गोरान जॉनसन ने इनमें से एक अध्ययन पर काम किया है. जॉनसन बताते हैं, "अगर कोई ऐसा उपचार विकसित किया जा सके जिससे टीएलएस के निर्माण को बढ़ाया जा सके, तो हम इसे आजकल की इम्यूनोथेरेपी रेजिमेंट के साथ जोड़ कर इलाज कर सकते हैं." उनका मानना है कि इससे ज्यादा से ज्यादा रोगियों में इम्यूनोथेरेपी का असर दिखेगा."
एसबी/आरपी (एएफपी) sabhar DW.de
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