पूज्य ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन इस विश्वब्रह्माण्ड के कण-कण में नैसर्गिक शक्तियों का विपुल भण्डार भरा हुआ है। ये नैसर्गिक शक्तियां ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर सर्वप्रथम ग्रह-नक्षत्रों की ऊर्जाओं में परिवर्तित होती हैं और उनके द्वारा मनुष्य के विभिन्न अंगों से अपना सम्बन्ध स्थापित करती हैं। इसके पश्चात पंचतत्वों का आश्रय लेकर विभिन्न पदार्थों का निर्माण करती हैं। हमें ज्ञात होना चाहिए कि सूर्य से निःसृत उष्ण ऊर्जा ही वास्तव में वह नैसर्गिक शक्ति है। हम-आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि केवल दस एकड़ भूमि पर सूर्य की जो उष्ण ऊर्जा दिन के समय बिखरी हुई होती है, उसकी शक्ति से पूरे विश्व के कल-कारखाने और मशीनों को पूरे एक महीने तक चलाया जा सकता है। लेकिन यह सम्भव कैसे है ? सूर्य की उसी उष्ण ऊर्जा का दूसरा नाम 'सौर ऊर्जा' है जो ज्योतिर्विज्ञान की मूलभित्ति है। ज्योतिर्विज्ञान के अन्तर्गत छः विज्ञान हैं--नक्षत्रविज्ञान, राशिविज्ञान, क्षणविज्ञान, कालविज्ञान, चंद्रविज्ञान और सूर्यविज्ञान। ...
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