तंत्र के मत में देवी की उपासना ही एक मात्र शक्ति की उपासना नहीं है गणपत्य सौर और वैष्णव शैव और शाक्त सभी शक्ति के उपासक हैं तंत्र के अनुसार पुरुष निर्गुण है और निर्गुण की उपासना नहीं होती है उपास्य देवता पुरुष होने पर ही वास्तव में वहां भी उसकी शक्ति की ही उपासना होती है शक्ति ही हमारे ज्ञान का विषय होती है शक्तिमान या पुरुष ज्ञान अतीत सत्ता मात्र है वह किसी भी समय किसी के बोध का विषय नहीं होता। वेद वे तंत्र में ब्रह्म को सच्चिदानंद कहा गया है इसमें सत् अंश पुरुष या निर्गुणभाव तथा चित् और आनन्दांश गुणयुक्त भाव अर्थात है एवं इस प्रकृति के द्वारा ही पुरुषों का परिचय प्राप्त होता है सांख्यदर्शन भी पुरुष और प्रकृति में का ही विचार करता है आप संख्य के मत में दुख के ही अत्यंत विनाश को ही मुक्ति कहते हैं। सुख दुःखादि बुद्धादि के स्वभाव हैं। स्वभाव किसी प्रकार नष्ट नहीं हो सकता अतः बुद्धि के अतिरिक्त किसी सत्...
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