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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वो 6 तरकीबें जिनसे दुनिया को मिलेगा भोजन

भारत में सब के लिए भोजन की गारंटी के कानून पर बहस हो रही है लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि इतनी बड़ी आबादी के लिए खाने का इंतजाम कहां से होगा. ये सवाल सिर्फ भारत का ही नहीं पूरी दुनिया का है लेकिन कई नए और उभरते हुए शोध से इसका जवाब मिलने की उम्मीद नज़र आ रही है. अनुमानों के मुताबिक 2050 तक दुनिया की आबादी 9 अरब तक पहुंच जाएगी. इतनी बड़ी आबादी के लिए ख़ाने का इंतज़ाम करने के लिए खाद्यान्न उत्पादन कम से कम 60% बढ़ाना होगा. सबको मिलेगा भोजन? फसल आनुवांशिकी के एसोसिएट प्रोफेसर शॉन मेज़ का कहना है कि ये मानने के कई कारण हैं कि पर्याप्त भोजन पैदा करना एक “अहम चुनौती” होगी. उन्होंने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "ये सिर्फ अभी के उत्पादन को दोगुना करना नहीं है क्योंकि पर्याप्त ज़मीन नहीं है. इस का सिर्फ एक हल नहीं है और कभी नहीं हो सकता. जितने पहलू संभव हैं उनकी कोशिश करनी होगी." वैज्ञानिकों का मानना है कि 6 आइडिया हैं जो मदद कर सकते हैं. फसल उत्पादन " ये सिर्फ अभी के उत्पादन को दोगुना करना नहीं है क्योंकि पर्याप्त ज़मीन नहीं है. इस का सिर्फ एक हल नहीं है

मंगल पर जीवन के 'मज़बूत साक्ष्य'

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के 'क्यूरियोसिटी रोवर' को मंगल पर गए करीब एक साल हो चुके हैं. इस दौरान क्यूरियोसिटी रोवर ने जो तथ्य इकट्ठे किए हैं उनसे पता चलता है कि यह लाल ग्रह चार अरब साल पहले जीवन योग्य रहा होगा. क्लिक करें साइंस जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार  क्लिक करें मंगल  ग्रह के वायुमंडल के विस्तृत अध्ययन से पता चला है कि चार अरब साल पहले मंगल ग्रह का वायुमंडल पृथ्वी से ज़्यादा अलग नहीं था. देखिए मंगल की तस्वीरें उस समय  क्लिक करें मंगल  का वायुमंडल काफ़ी सघन हुआ करता था. इन नए नतीजों से इस बात को बल मिलता है कि उस समय इस ग्रह की सतह गर्म और आर्द्र रही होगी और यहाँ पानी भी मौजूद रहा होगा. हालाँकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि मंगल पर कभी भी किसी प्रकार का जीवन था या नहीं ओपेन यूनिवर्सिटी की डॉक्टर मोनिका ग्रैडी कहती हैं, “इस अध्ययन से पहली बार यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मंगल ग्रह पर जल और वायुमंडल की कितनी क्षति हुई होगी, उस समय मंगल का वायुमंडल कैसा रहा होगा और क्या उस समय मंगल ग्रह पर जीवन संभव रहा होगा.” पूरी संभावना है कि समय का साथ मंग

कभी देखी है उड़ने वाली मोटर-बाइक

चेक गणराज्य में तैयार यह बाईक जमीन से कुछ मीटर की ऊँचाई पर पांच मिनट तक चक्कर लगा सकती है. उड़ने वाली कार अब भी सपना ही है, लेकिन क्या उड़ने वाली बाइक जल्द ही हकीकत बनकर सामने आ सकती है? क्लिक करें चेक गणराज्य  में शोधकर्ताओं ने 95 किलोग्राम की  क्लिक करें रिमोट से चलने वाली  बाइक तैयार की है, जो जमीन से कुछ मीटर की ऊँचाई पर पाँच मिनट तक चक्कर लगा सकती है. इस बाइक में सामने और पीछे की ओर दो-दो और अगल बगल एक-एक राजधानी प्राग के एक प्रदर्शनी हाल में एक डमी उड़ान के दौरान इस इलेक्ट्रॉनिक प्रोटोटाइप ने सफलतापूर्वक उड़ान भरी, चारों तरफ घूमा और सफलतापूर्वक उतर गया. क्लिक करें बैटरी  चालित प्रोपेलर लगे हैं. प्रोपेलर एक तरह का पंख है जो घूम घूम कर ऊर्जा पैदा करता है. बेहतरी की उम्मीद इस मशीन की मदद से दुपहिया यात्रियों के भीड़भाड़ भरे जाम से निजात मिल सकती है, लेकिय यह भी सड़क पर उतरने या हवा में कुलाँचे भरने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है. इसकी मौजूदा बैटरी की मदद से यह कुछ मिनट तक उड़ान ही भर सकती है और फिर इसे रिचार्ज करना पड़ता है. 'ड्यूरेटिक बाइसिकिल्स' के

बिना ड्राइवर की कार को सड़कों पर दौड़ाने की तैयारी

लंदन : ब्रिटेन की सड़कों पर खुद ब खुद चलने वाली कारों का पहली बार परीक्षण इस वर्ष के अंत में किए जाने की तैयारी हो रही है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जापानी बहुराष्ट्रीय ऑटो निर्माता निसान के साथ मिलकर एक ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं और उन्होंने साइंस पार्क में एक निजी रोड पर ऐसी गाड़ी का परीक्षण पूरा भी कर लिया है। हालांकि ब्रिटेन की आम सड़कों पर अन्य वाहनों के साथ उसके परीक्षण के लिए परिवहन विभाग से मंजूरी अब मिली है। ये कारें खुद सड़कों पर दौड़ेंगी लेकिन सुरक्षा के तौर पर इनके भीतर एक ड्राइवर को बिठाया जाएगा जो किसी आपात स्थिति में स्टेयरिंग संभालेगा। (एजेंसी) sabhar :  http://zeenews.india.com

दस साल बाद कैसा होगा आपका मकान?

भविष्य के घर की झलक जिस रफ्तार के तकनीक बदल रही है, उससे इंसान के रहन-सहन के तौर तरीके में भी बदलाव आ रहे हैं. कंप्यूटर क्षेत्र की नामी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने 'स्पेस ऑफ द फ्यूचर' नाम के अपने मॉडल को नए रूप में पेश किया है, जो दिखाता है कि आज से पांच या दस साल बाद जिंदगी किस तरह की होगी. वॉशिंगटन में माइक्रोसॉफ्ट के मुख्यालय में भविष्य के इस मकान को बनाया गया है. इसमें अत्याधुनिक तकनीक से आपकी शक्ल को देख कर या फिर एक इशारा पाते ही खाना पकाने जैसे काम भी बेहद आसानी हो जाते हैं. माइक्रोसॉफ्ट में इस अहम प्रोजेक्ट से जुड़े एंटन एंड्रयूज ने बीबीसी को इस मकान की सैर कराई. एंड्रयूज़ ने इस मकान में एक खास डेस्क दिखाई. ये डेस्क आपकी ज़रूरत के हिसाब से ऊपर या नीचे हो जाएगी जिससे आप आसानी से काम कर सकें. फिर देखते ही देखते वो डेस्क कंप्यूटर स्क्रीन के तौर पर खुल कर सामने आती है. डेस्क में छिपी जानकारियाँ इसमें आप कुछ चीजों को अपने हिसाब से आकार दे सकते हैं ये स्क्रीन व्यक्ति का चेहरा पहचान कर उसके काम से संबंधित चीजें स्क्रीन पर पेश करती है. एंड्रयूज़ के म

कैसे होंगे भविष्य के स्मार्ट शहर

भविष्य के शहर के निर्माण में तकनीक के इस्तेमाल पर बढ़ रहा है जोर दुनियाभर में नए शहर बसाए जा रहे हैं और जिन शहरों में हम सदियों से रह रहे हैं उन्हें सुधार कर भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है. ऐसा तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते प्रदूषण के जवाब में हो रहा है. साथ ही पूरे शहर को एक साथ वेब नेटवर्क पर जोड़ना भी नए शहर बसाने और पुराने शहरों के नवीनीकरण का एक प्रमुख कारण है. वहीं कुछ शहर स्मार्ट होने का मकसद शहरों को और हरा-भरा और पर्यावरण को कम दूषित करना है.स्मार्ट शहर का मतलब ये हो सकता है कि डेटा की मदद से ट्रैफिक में जाम से बचा जा सके, या फिर निवासियों को बेहतर सूचना देने के लिए विभिन्न सेवाओं को एक साथ जोड़ देना. तकनीकी कपंनी जैसे आईबीएम और सिस्को स्मार्ट शहरों में अपने लिए व्यवसाय का ज़बर्दस्त मौका देख रहीं हैं. आईए जानते हैं, दुनियाभर में चर्चा में रहने वाले ऐसे स्मार्ट शहरों के प्रोजेक्ट के बारे में. सॉन्गडो, दक्षिण कोरिया कई लोगों के लिए सॉन्गडो स्मार्ट शहरों का सरताज है. येलो सी समुद्री तट पर इस शहर को बसाने का काम वर्ष 2005 में शुरु हुआ और इस पर 35 बिल

छोटा दिमाग बड़ी समझदारी

पिछले 30 हजार सालों में इंसान का दिमाग लगातार सिकुड़ता जा रहा है. इसका मतलब ये नहीं कि हम दिमागी रूप से कमजोर हो रहे हैं बल्कि रिसर्च में पता चला है कि विकास के क्रम में छोटा होता दिमाग इंसानों को स्मार्ट बना रहा है. होमो सेपियन्स से आधुनिक मानव तक का सफर तय करने में इंसान के दिमाग का आकार करीब 10 फीसदी छोटा हो गया. यानी कभी 1500 क्यूबिक सेंटीमीटर के दिमाग का आकार अब घटकर 1359 क्यूबिक सेंटीमीटर रह गया है. महिलाओं का दिमाग पुरुषों के मुकाबले छोटा होता है और उनके दिमाग के आकार में भी इतनी ही कमी आई है. यूरोप, मध्य पूर्व और एशिया में मिली मानव खोपड़ियों के अवशेष की छानबीन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं. अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के जॉन हॉक्स बताते हैं, "मैं तो कहूंगा कि विकास के क्रम में पलक झपकते ही दिमाग का आकार छोटा हो गया." हालांकि दूसरे वैज्ञानिक दिमाग के सिकुड़ने को ज्यादा हैरतअंगेज नहीं मानते. उनके मुताबिक हम जितने बड़े और मजबूत होंगे हमारे शरीर पर नियंत्रण के लिए उतने बड़े दिमाग की जरूरत होगी. आधुनिक इंसान से ठीक पहले का इंसान यानी निएंडर

यह आंख तो नहीं, पर दिखा सकती है

नेत्रहीन तो इसे वरदान की तरह 'देख' रहे हैं. अमेरिका में बनी यह बायोनिक आंख उन लोगों की रोशनी कुछ हद तक लौटा सकती है जो रेटिनिटिस पिगमेनटोसा की वजह से आंखें खो बैठे हैं. अब दूसरी पीढ़ी की बायोनिक आंख बाजार में आ रही है. रेटिनिटिस पिगमेनटोसा एक तरह की बीमारी है जो इंसान को अंधा बना देती है. कुछ वक्त पहले तक तो यह अंधापन लाइलाज ही था. लेकिन बायोनिक आंख यानी आर्गस प्रतिरोपण ने कुछ हद तक इसे ठीक कर पाने में सफलता दिलाई. यूरोप के बाजारों में बायोनिक आंख जल्दी ही बिकने लगेगी. और जर्मनी के लोगों के लिए तो अच्छी खबर यह है कि देश के हेल्थ केयर सिस्टम ने इसे इन्श्योरेंस में कवर करने का फैसला कर लिया है. संभावना है कि ब्रिटेन और फ्रांस भी ऐसा ही करेंगे. बायोनिक आंख की कीमत एक लाख अमेरिकी डॉलर यानी 45 लाख रुपये से ज्यादा है. सवाल यह है कि इन्श्योरेंस कंपनियों को इसे कवर करने के लिए राजी किया जा सकता है या नहीं. उसी बात पर इसकी सफलता निर्भर करेगी. बायोनिक विजन सिस्टम एक कैमरा है जो चश्मे से जुड़ा है. यह हाई फ्रीक्वेंसी वाले रेडियो सिगनल रेटिना में लगी चिप को भेजता है. इन चिप

मूत्र से 'सूँघा जा सकेगा' मूत्राशय का कैंसर?

कैंसर की कोशिकाएं मौजूद हों तो मूत्र में से एक खास तरह की गंध आती है. अगर  क्लिक करें मूत्राशय में कैंसर  पनप चुका है तो इसमें गैस के रूप में रसायन की मौजूदगी पाई जाती है. यह उपकरण एक सेंसर की मदद से इस रसायन का पता लगा लेता है. मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पहले कि यह व्यापक पैमाने पर उपलब्ध हो, जाँच से शत-प्रतिशत परिणाम पाने के लिए अभी और अध्ययन करने की जरूरत है.इसको बनाने वालों ने 'प्लॉस' नामक एक पत्रिका को बताया है कि शुरुआती परीक्षणों में हुई 10 बार की जांच में से 9 बार जांच से सटीक परिणाम मिले. क्लिक करें ब्रिटेन में  हर साल करीब 10,000 लोगों के मूत्राशय के कैंसर का इलाज किया जाता है. मूत्र की गंध डॉक्टर लंबे समय से ऐसे तरीकों की तलाश कर रहे हैं जिनसे इस  क्लिक करें कैंसर का पता  पहले चरण में ही लगाया जा सके. उस समय उसका इलाज आसान होता है. " इससे पहले कि इस उपकरण का इस्तेमाल अस्पतालों में किया जाने लगे इसकी अभी और जांच करने की जरूरत है. इसके लिए हमें मरीजों से बड़े पैमाने पर नमूने इकट्ठे करने होंगे " प्रोफेसर प्रोबर्ट इन

स्‍टेम सेल थेरेपी से ठीक हुए एचआईवी के दो मरीज

मेलबर्न : अमेरिकी के दो मरीजों को घातक बीमारी एचआईवी से पूरी तरह छुटकारा मिल गया है। इससे उन लोगों के लिए उम्‍मीद की किरण जगी है, जो इस बीमारी से पीडि़त हैं।  बोस्‍टन में ब्रिगहैम एंड वीमेंस हॉस्पिटल के डाक्‍टरों ने बुधवार रात घोषणा की कि एचआईवी से पीडि़त दो मरीजों को इस खतरनाक वायरस (ब्‍लड और टिश्‍यू) से पूरी तरह मुक्ति मिल गई है। कैंसर का इलाज करने के क्रम में बोन मैरो स्‍टेम सेल ट्रांसप्‍लांट किया गया था। जिन दो मरीजों का इलाज किया गया था, उसमें से एक युवा है और दूसरा प्रौढ़ है। एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी के आठ और पंद्रह हफ्ते के बाद इनमें इस घातक वायरस के लक्षण नहीं दिखे। एचआईवी पॉजिटीव मरीज जब इलाज बंद कर देते हैं तो यह वायरस से चार से आठ हफ्ते के बीच दोबारा सक्रिय हो जाता है।  sabhar :  http://zeenews.india.com