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कुण्डलिनी रहस्य

 {{{ॐ}}}                                                                #  कुण्डलिनी साधना से ऐसी कोई चमत्कारिक शक्ति नही मिलेगी कि आप खडे़ खडे़ गायब हो जायें ।आपकी उंगलियों या दृष्टि से कोई लपटें या किरण भी नहीं निकलेंगी। हां आपकी चैतन्य शक्ति में विलक्षण परिवर्तन होगा। aजीवन शक्ति और ताकत बढ़ जायेगी। सम्मोहन, दिव्य दृष्टि, अन्तर्ज्ञान, अन्तर्दृष्टि तीव्रतम होती चली जायेगी। शारीरिक ऊर्जा मे वृद्धि होगी। भविष्य दर्शन होगा। भविष्यवाणीयां फलित होंगी। कुण्डलिनी साधना जितनी सरल है उतनी ही सहजयोग में दुस्कर साधना समझा जाता है । वस्तुत सबसे अधिक परिश्रम मूलाधार पर करना होता है इसके फव्वारे  को तीव्र कर लेना या कथित सर्प के फण को उठा देना कठिन नही है । वास्तविक कठिनाई इस फण को ऊपर के स्वाधिष्ठान के नाभिक तक ले जाना है। यह ऋणात्मक उर्जा है और इसका प्रवाह सबसे तीव्र होता है, क्योंकि यह ऊर्जा परिपथ के ऋण बिन्दू से उत्पन्न होती है । सर्वाधिक कठिनाई इसे नीचे की ओर क्षरित या पतित होने से रोकने मे है। यहां के शिवलिंग से उत्पन्न होने वाली उर्जा महिषासुर है। इससे अन्धीं तीव्रता है। काम, क्रोध, कर्कशता

मन्त्र दोष

 {{{ॐ}}}                                                                # ग्रहित मंत्र के अनुष्ठान करते समय साधक का कर्तव्य होता है कि मंत्र दोषों का सावधानीपूर्वक निराकरण कर ले, मंत्र के अर्थात मंत्रोंपासक के आठ दोष होते हैं पहला दोष है अभक्ति और इन रहस्यों को समझने की लेने के पश्चात मंत्रों को केवल शब्द समूह या भाषा के वाक्य मात्र मान लेने की भूल साधक नहीं कर सकता फिर भी यदि कोई व्यक्ति मंत्र को भाषा मात्र समझता हैa तो यह अभक्ति है। किसी दूसरे के मंत्र को श्रेष्ठ और अपने मंत्र को निम्न कोटि का मानता है तो भी यह अभक्ति ही है अर्थात इन दोनों ही स्थितियों में मंत्र में मंत्र भावना और श्रद्धा नहीं रह पाती श्रद्धा नहीं होने से मंत्र की साधना फलवती नहीं होती है। #अक्षर_भ्रान्ति-- साधना का दूसरा दोष अक्षर भ्रान्तिं साधक भ्रम वश अक्षरों में विपर्यक कर जाए अथवा अधिक जोड़ दें तो अक्षर भ्रान्ति दोष होता है उदाहरण के लिए ,भार्या रक्षतु भैरवी, किस स्थान पर भार्या भक्षतु भैरवी कश्यप अक्षर भ्रांति के दोष में ही दिन आ जाएगा। #लुप्त-- तीसरा दोष लुप्ताक्षरता का है साधक मंत्र ग्रहण करने के समय सावधानी

भैरवनाथ के रहस्य एवं साधना...

 #.............🔱 #भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला। ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।   भैरव उत्पत्ति👉 उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव।  पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।   लोक देवता👉  लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है। कई समाज के ये कुल देवता हैं और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है। यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान भैर

क्या हैं सातों शरीर के स्वप्नों के आयाम

  सातों  शरीर और सात चक्र;-  1-फिजिकल बॉडी/ भौतिक शरीर>>> मूलाधार चक्र 2-भाव शरीर/ इमोशन बॉडी>>> स्वाधिष्ठान चक्र   3- कारण शरीर/एस्ट्रल बॉडी>>>मणिपुर चक्र   4-मेंटल बॉडी /मनस शरीर >>>अनाहत चक्र 5-स्पिरिचुअल बॉडी/आत्म शरीर>>> विशुद्ध चक्र 6- कास्मिक बॉडी/ब्रह्म शरीर>>>आज्ञा चक्र 7-बॉडीलेस बॉडी/ निर्वाण काया>>>सहस्रार चक्र सातों  शरीर के स्वप्नों के   आयाम;- 07 FACTS;-  1-भौतिक शरीर ;- 02 POINTS;- 1-अगर तुम अस्वस्थ हो, अगर तुम ज्वरग्रस्त हो तो भौतिक शरीर अपनी तरह से स्वप्न निर्मित करेगा। भौतिक रुग्णता अपना अलग स्वप्न-लोक निर्मित करती है इसलिए भौतिक स्वप्न को बाहर से निर्मित किया जा सकता है।अगर तुम्हारा पेट गड़बड़ है तो एक विशेष प्रकार का स्वप्न निर्मित होगा। तुम नींद में हो अगर तुम्हारे  Legs पर एक भीगा कपड़ा रख दिया जाए तो तुम स्वप्न देखने लगोगे। तुम्हें दिख सकता है कि तुम एक नदी पार कर रहे हो। अगर तुम्हारे सीने पर तकिया रख दिया जाए तो तुम स्वप्न देखने लगोगे कि कोई तुम्हारे ऊपर बैठा है या कोई पत्थर तुम पर गिर पड़ा है। ये स्वप्न

अंगूर के साथ-साथ उसके बीज भी खा जाइएवैज्ञानिकों अंगूर के बीज में एक ऐसा रसायन खोजा है, जो उम्र को बढ़ाने वाली कोशिकाओं को मार देता

 A गर आपको बूढ़ा नहीं होना है. ज्यादा दिन युवा रहना है तो अंगूर के साथ-साथ उसके बीज भी खा जाइए. असल में वैज्ञानिकों अंगूर के बीज में एक ऐसा रसायन खोजा है, जो उम्र को बढ़ाने वाली कोशिकाओं को मार देता है. वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग चूहों पर किया, जो सफल रहा. चूहों की जिंदगी और युवावस्था में 9 फीसदी का इजाफा हुआ है. वो ज्यादा चुस्त, दुरुस्त हुए और शरीर में बनने वाले ट्यूमर्स भी कम हुए हैं.   / अंगूर के बीज में मिलने वाला यह रसायन अगर कीमौथैरेपी के साथ दिया जाए तो यह कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो सकता है. यह स्टडी हाल ही में  nature metabolism  नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों का दावा है कि यह रसायन भविष्य में लोगों को बुढ़ापे और कैंसर से बचाने वाली इलाज पद्धत्तियों का मुख्य हिस्सा बन सकती है.  /10 जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे हमारे शरीर में सेन्सेंट कोशिकाओं (Senscent Cells) की मात्रा बढ़ने लगती है. यह कोशिकाएं उम्र संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देने लगती हैं. जैसे- दिल, फेफड़े संबंधी बीमारियां, टाइप-2 डायबिटीज और हड्डियों से संबंधित बीमारियां जैसे- ऑस्टियोपtist शं