{{{ॐ}}}
#
ग्रहित मंत्र के अनुष्ठान करते समय साधक का कर्तव्य होता है कि मंत्र दोषों का सावधानीपूर्वक निराकरण कर ले, मंत्र के अर्थात मंत्रोंपासक के आठ दोष होते हैं पहला दोष है अभक्ति और इन रहस्यों को समझने की लेने के पश्चात मंत्रों को केवल शब्द समूह या भाषा के वाक्य मात्र मान लेने की भूल साधक नहीं कर सकता फिर भी यदि कोई व्यक्ति मंत्र को भाषा मात्र समझता हैa तो यह अभक्ति है।
किसी दूसरे के मंत्र को श्रेष्ठ और अपने मंत्र को निम्न कोटि का मानता है तो भी यह अभक्ति ही है अर्थात इन दोनों ही स्थितियों में मंत्र में मंत्र भावना और श्रद्धा नहीं रह पाती श्रद्धा नहीं होने से मंत्र की साधना फलवती नहीं होती है।
#अक्षर_भ्रान्ति-- साधना का दूसरा दोष अक्षर भ्रान्तिं साधक भ्रम वश अक्षरों में विपर्यक कर जाए अथवा अधिक जोड़ दें तो अक्षर भ्रान्ति दोष होता है उदाहरण के लिए ,भार्या रक्षतु भैरवी, किस स्थान पर भार्या भक्षतु भैरवी कश्यप अक्षर भ्रांति के दोष में ही दिन आ जाएगा।
#लुप्त-- तीसरा दोष लुप्ताक्षरता का है साधक मंत्र ग्रहण करने के समय सावधानी वर्ष या जप करते समय किसी अक्सर को भूल जाता है छोड़ देता है तो लुप्त दोष होता है।
#छिन्न-- मंत्र में प्रयुक्त संयुक्त अक्षर का एक अंश टूटता हुआ सा हो तो छिन्न दोष होता है।
#ह्नस्व-- दीर्घ वर्णन के स्थान पर ह्रस्व वर्ण का प्रयोग ह्रस्व दोष होता है जैसे मारवाड़ी लोग गधे को गधा बोलते हैं यहां ध के स्थान पर द का उपयोग होता हैs जैसे पंजाब के लोग छुट्टी शब्द को छुटि बोलने में ह्रस्व दोष होता है भाषा में कुछ भी होता हूं मंत्र व्यवहार के कारण ध्वनि और रूप में परिवर्तन धर्मा नहीं होते इसलिए जो अक्सर जिस रूप में जिस ले में बोला जाता है उसी में बोलना चाहिए किसी दीर्घ मात्रा को ह्रस्व मात्रा के रूप में बोलना भी इसी दोष के अंतर्गत आता है।
#दीर्घ-- ह्रस्व से विपरीत स्थिति वाला दीर्घ दोष हुआ करता है छोटी मात्रा को बड़ी मात्रा के रूप में बोलने पर अथवा अल्पप्राण अक्षरों को महाप्राण की तरह बोलने पर भी दीर्घ दोष होता है।
#कथन-- मंत्र एक नितांत गुप्त रहस्य हैh मंत्र शब्द का दूसरा अर्थ गोपन ही होता है अतः मंत्र का प्रकाशन कथन दोष की श्रेणी में आता है किसी भी स्थिति में व्यक्ति को अपना मंत्र प्रकाशित नहीं करना चाहिए।
#स्वप्न_कथन-- यदि कोई व्यक्ति अपनी मंत्र को संपन्न में किसी दूसरे को बताता है तो स्वप्न कथन का दोषी होता है भीम दोस्तों के विभिन्न फल सामने आते हैं oकई बार साधक को चित्त विपेक्ष हो जाता है
किसी का शरीर लक्षण होने लग जाता है किसी को अर्थ की हानि होने लगती है किसी के परिवार जनों को आधि व्याधि सताने लगती है अर्थात जो मंत्र व्यक्ति के कल्याण का मार्ग खोलता था ऋद्धि सिद्धि प्रदान करता था वही अशुभ बन जाता है kनियम पूर्वक उपासना करने पर भी यदि विपरीत लक्षण और अशुभ फल मिलता हो तो व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने मंत्र का और साधना का आत्म निरीक्षण करें और उपर्युक्त दोनों में से कोई दोष दिखाई दे तो उसका प्रायश्चित करके विधिपूर्वक पुणे अनुष्ठान करें ।sabhar Facebook wall sakti upasak
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe