{{{ॐ}}}
#
कुण्डलिनी साधना से ऐसी कोई चमत्कारिक शक्ति नही मिलेगी कि आप खडे़ खडे़ गायब हो जायें ।आपकी उंगलियों या दृष्टि से कोई लपटें या किरण भी नहीं निकलेंगी।
हां आपकी चैतन्य शक्ति में विलक्षण परिवर्तन होगा। aजीवन शक्ति और ताकत बढ़ जायेगी।
सम्मोहन, दिव्य दृष्टि, अन्तर्ज्ञान, अन्तर्दृष्टि तीव्रतम होती चली जायेगी।
शारीरिक ऊर्जा मे वृद्धि होगी। भविष्य दर्शन होगा। भविष्यवाणीयां फलित होंगी।
कुण्डलिनी साधना जितनी सरल है उतनी ही सहजयोग में दुस्कर साधना समझा जाता है ।
वस्तुत सबसे अधिक परिश्रम मूलाधार पर करना होता है इसके फव्वारे को तीव्र कर लेना या कथित सर्प के फण को उठा देना कठिन नही है ।
वास्तविक कठिनाई इस फण को ऊपर के स्वाधिष्ठान के नाभिक तक ले जाना है।
यह ऋणात्मक उर्जा है और इसका प्रवाह सबसे तीव्र होता है, क्योंकि यह ऊर्जा परिपथ के ऋण बिन्दू से उत्पन्न होती है ।
सर्वाधिक कठिनाई इसे नीचे की ओर क्षरित या पतित होने से रोकने मे है।
यहां के शिवलिंग से उत्पन्न होने वाली उर्जा महिषासुर है। इससे अन्धीं तीव्रता है। काम, क्रोध, कर्कशता, निर्माता, क्रूरता, मर्यादाहीन ,उच्छृंखलता इसका गुण है। sयह किसी का नियन्त्रण नही मानती है। जब तीव्र होकर दौड़ती है।
तो भैसें की तरह खतरों आदि को बारे मे अंधी हो जाती है
ज्ञान विवेक लुप्त हो जाता है ।
यह काली है जो शिव (शिव/विवेक)को पैरों तले रौंद डालती है।
तन्त्र विधा मे सबसे कठिन सिद्धि इसी शक्ति को करने मे होती है ।
इस बिन्दू को जाग्रत करना कठिन नही है । कठिनाई यह है कि जब यह उर्जा बढ़ती है, तो उपर्युक्त गुणों कि मात्रा भी बढती है।
इन गुणों मे बहकर उत्पन्न उर्जा को क्षरित करने से रोकना ही वास्तविक सिद्धि है ।
इसके लिये तंत्र मेनिर्देश है कि इस भैंसे की बलि देने या निरन्तर प्रयत्न करते रहें ।भैसें की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखें शराब पीकर भी इस उर्जा को आप प्राप्त कर सकते है।
पर वास्तव मे सिद्धि तो वह है कि शराब पीयें ,पर नियन्त्रत रहें। काम की भावना से भी रति के समय भी यह ऊर्जा बढ़ जाती है ।
इस समय आप भैंसे की सवारी कर रहे होते है, तेज रफ्तार से दौड़ते हुए अंन्धे भैंसे को रोकने की कला नही आती तो वह पतन की खाई मे गिरा देता ही है ।
विवेक से इस भैसे को नियन्त्रत करके इस भाव की बलि देना ही तंत्र के भैंसे की बलि है।
लोग धर्मस्थलों पर भैसा काट रहे है मूर्खों के सिर पर सींग नही होते । वे देखने मे आदमी जैसे लगते है।
तंत्र मे भैंसे के रक्त, सींग, पूछा के बाल गोबर आदि कि उपयोग होता है, परन्तु यह रसायन सामग्री योग है।लेकिन इसका अर्थ भैंसे को काटने से नही।
इसी तरह स्वाधिष्ठान की ऊर्जा बढ़ने पर से अंधी चंचलता या क्रियाशीलता बढ़ाती है।
मन हमेशा चंचल ,उन्माद बना रहता है । वह भी तामसी भाव मे उतेजित ठीक बकरी के बच्चे की तरह यदि आप इस चंचलता को नियन्त्रित करके मन के बकरी को बच्चे जैसी प्रवृत्ति की बलि देते है तो सिद्धि अवश्य मिलेगी।
स्वाधिष्ठान मां दुर्गा का स्थान है कृपया इस देवी को चरणों पर मालुम पशुओं की बलि मत किजिए।
माता कभी राक्षसी नही होती वह आपकी ही नही इस सृष्टि की माता है।
वह बकरी के बच्चे कि भी माता हैh इस देवी को आंचल को रक्त से संचित कर दिया जाता है ।
मै अहिंसा, भावुकता को वशीभूत नही हूं आपको मांसाहार से भी नही रोक रहा मगर कम से कम यह दुर्गा माता को नाम पर तो रोकये।
तंत्र मे इसका अर्थ कुछ ओर ही है कुण्डलिनी साधना आजकल इसकी हर तरफ चर्चा है।इस चर्चा का लाभ अनेक तथाकथित अवतार आदि उठा रहे है।
इनका दावे डी,वी, डी , फोन पर फोटो पर शक्ति पात करके एवं कुछ तो दावा करते है ये दो घण्टे मे कुण्डलिनी जाग्रत कर देते है ऐसे विज्ञापन टी वी आदि संचार माध्यम मे देखने को मिलते रहते है।
कुछ से हमने भी पुछा कि कुण्डलिनी है क्या?
तो उत्तर मे वे बताने लगे कि मूलाधार मे एक शिवलिंग है उसमे सांप लिपटा है उसका फण लिंग मुण्ड पर है।
उस फण को जाग्रत करना ही कुण्डलिनी जागरण है।
ये लोग ठग है। ये कुछ नही जानते मूलाधार मे शिवलिंग अवश्य है पर वहाँ सांप जैसा कुछ नही है ।
वहाँ पर है क्या यह एक उर्जा संरचना है यह प्रथम परमाणु की संरचना है इसके शीर्ष पर सांप नही । यह इसके शीर्ष से निकलती उर्जा धाराएँ है।
जो शेषनाग के फणों या फव्वारों की बुदों कि भाति निकलती है फुफकारती हुई उर्जा धाराएं ।
यह संरचना इस ब्रह्माण्ड की प्रत्येक इकाई कि है प्रत्येक उर्जा बिन्दू की है । मूलाधार मे नही रीढ मे व्याप्त 9बिन्दूओं , या शरीर को तैंतीस करोड बिन्दुओं , सभी तारों ,सूर्य, नाभिकों, सी संरचना है ।
हमारे शरीर मे जो नौ उर्जा बिन्दू मुख्य kहै रीढ़ मे उनके मध्य कुछ रिक्त स्थान है जिसे सुषुम्ना नाडी कहते है जिनमे उर्जाधाराएं एवं बिन्दू तो है पर मुख्य बिन्दु जैसे नही है sabhar Facebook wall sakti upasak agyani
मूलाधार के शिवलिंग के शीर्ष से फव्वारों के रूप मे निकलती उर्जा को तीव्र करके उपर को बिन्दु के शिवलिंग के नीचे पुच्छल उर्जा धारा से मिलाने से शक्ति प्राप्त होती है
तब इसे उपर खींचा जाता है और उपरी शिवलिंग के नाभिक मे ले जाया जाता है इससे शाट् सर्किट होता है ( दोनो+ धन होते है) इससे दुसरे शिवलिंग का फव्वारा बढ जाता है ।
कुण्डलिनी साधना मे एक मूलाधार ये फव्वारे को उपर स्वाधिष्ठान के केन्द्र मे मिलाने से कई चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त होती है ।
परन्तु यह तो वर्षों का काम है वह भी निरन्तर लगन के साथ अभ्यास करने पर परन्तु दो घण्टे मे ईश्वर ही जानता है कि यह कैसा धोखा है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
vigyan ke naye samachar ke liye dekhe