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30 सेकंड के फर्क ने मिटा दिया था डायनसोर युग का वजूद

डायनासोर युग के अंत के लिए कहा जाता है कि एक बहुत बड़ा ऐस्टरॉइड धरती से टकराया था जिससे पैदा हुए विस्फोट ने इन विशालकाय जानवरों का वजूद खत्म कर दिया। लेकिन इस विस्फोट की टाइमिंग को लेकर बीबीसी की एक डॉक्युमेंट्री में बहुत दिलचस्प तथ्य सामने आया है। द डे डायनासोर डाइड नाम की इस डॉक्युमेंट्री में बताया गया है कि जिस ऐस्टरॉइड ने डायनासोरों का अंत किया, अगर वह धरती से 30 सेकंड जल्दी (पहले) या 30 सेकंड देर (बाद) से टकराता तो उसका असर जमीनी भूभाग पर इतना कम होता कि डायनासोर खत्म नहीं होते। ऐसा इसलिए क्योंकि 30 सेकंड की देरी या जल्दी गिरने की स्थिति में वह जमीन की बजाय समुद्र में गिरता। यह ऐस्टरॉइड 6.6 करोड़ साल पहले मेक्सिको के युकटॉन प्रायद्वीप से टकराया था जिससे वहां 111 मील चौड़ा और 20 मील गहरा गड्ढा बन गया था। वैज्ञानिकों ने इस गड्ढे की जांच की तो वहां की चट्टान में सल्फर कम्पाउन्ड पाया गया। ऐस्टरॉइट की टक्कर से यह चट्टान वाष्प में बदल गई थी जिसने हवा में धूल का बादल बना दिया था। इसके परिणामस्वरूप पूरी धरती नाटकीय रूप से ठंडी हो गई और पूरे एक दशक तक इसी स्थिति में रही। उन हालात में अधिक

जल्द खत्म हो जाएगी इंसानी खून की किल्लत

वैज्ञानिकों की मानें, तो आने वाले दिनों में किसी भी मरीज के इलाज में खून की कमी नहीं होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि जल्द ही वे इलाज में जरूरत पड़ने वाले खून की बेशुमार मात्रा सप्लाइ कर पाएंगे। मौजूदा समय में लोगों को चिकित्सा कारणों से जब खून की जरूरत पड़ती है, तो ब्लड की किल्लत के कारण उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। ब्लड डिसऑर्डर्स और कई अन्य बीमारियों में लोगों को बड़ी मात्रा में खून चढ़ाना पड़ता है। लंबे शोध के बाद वैज्ञानिक वयस्क कोशिकाओं को मूल कोशिकाओं में बदलने में कामयाब हुए हैं। ये मूल कोशिकाएं की भी तरह की रक्त कोशिकाएं बनाने में सक्षम होंगी।  पिछले करीब 20 साल से वैज्ञानिक यह पता करने की कोशिश कर रहे थे कि क्या इंसान के खून में कृत्रिम तौर पर मूल कोशिकाओं का निर्माण किया जा सकता है। मूल कोशिकाएं शरीर में किसी भी तरह की कोशिकाएं बना सकती हैं। अब शोधकर्ताओं की एक टीम को अलग-अलग तरह की कोशिकाओं को मिलाने में सफलता मिली है। इनमें रक्त की मूल कोशिकाएं भी शामिल हैं। जब इन कोशिकाओं को चूहे के शरीर में डाला गया, तो उन्होंने अलग-अलग तरह की इंसानी रक्त कोशिकाओं का निर्माण कि

समय क्या है ? समय का निर्माण कैसे होता है?

भौतिक वैज्ञानिक तथा लेखक  पाल डेवीस  के अनुसार “ समय ” आइंस्टाइन की अधूरी क्रांति है। समय की प्रकृति से जुड़े अनेक अनसुलझे प्रश्न है। समय क्या है ? समय का निर्माण कैसे होता है ? गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से समय धीमा कैसे हो जाता है ? गति मे समय धीमा क्यों हो जाता है ? क्या समय एक आयाम है ? अरस्तु  ने अनुमान लगाया था कि समय गति का प्रभाव हो सकता है लेकिन उन्होने यह भी कहा था कि गति धीमी या तेज हो सकती है लेकिन समय नहीं! अरस्तु के पास  आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद  के सिद्धांत को जानने का कोई माध्यम नही था जिसके अनुसार समय की गति मे परिवर्तन संभव है। इसी तरह जब आइंस्टाइन साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के विकास पर कार्य कर रहे थे और उन्होने क्रांतिकारी प्रस्ताव रखा था कि द्रव्यमान के प्रभाव से अंतराल मे वक्रता आती है। लेकिन उस समय आइंस्टाइन  नही जानते थे कि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है। ब्रह्माण्ड के विस्तार करने की खोज  एडवीन हब्बल  ने आइंस्टाइन द्वारा “साधारण सापेक्षतावाद” के सिद्धांत के प्रकाशित करने के 13 वर्षो बाद की थी। यदि आइंस्टाइन को विस्तार करते ब्रह्माण्ड का ज्ञान ह

पुरातन ज्ञान के खण्डहरों पर खड़ा है आज का विज्ञान

प्राचीन काल ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से कितना समृद्ध था, इसका अनुमान तब के सुविकसित यंत्र उपकरणों एवं वास्तुशास्त्र से संबंधित अद्भुत निर्माणों से लगाया जा सकता है। आज तो उनकी हम बस कल्पना ही कर सकते है। यथार्थतः ज्ञान और विज्ञान को समझने में तो शायद सदियों लगा जाएँ। आर्ष उल्लेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि प्राचीन समय के दो मूर्धन्य वैज्ञानिकों-वास्तु विदों में त्वष्टा एवं मय अग्रगण्य थे। त्वष्टा एवं मय अग्रगण्य थे। अर्थात् विश्वकर्मा देवों के विज्ञानवेत्ता थे। और तरह तरह के आश्चर्यचकित करने वाले शोध अनुसंधानों सदा संलग्न रहते थे,। जबकि मय, विश्वकर्मा के प्रतिद्वंद्वी और असुरों की सहायता में निरत रहते थे। उनके उपकरण देवों पर विजय प्राप्ति हे दानवों के लिए होते थे। या तो विश्वकर्मा को संपूर्ण सृष्टि का रचयिता माना गया है। (विश्वकर्मन नमस्तेऽस्तु विशत्मन् विश्वसंभव) महाभारत शान्ति पर्व 47/75 किन्तु वे चिरपुरातन विधा वास्तु शास्त्र के प्रथम उपदेष्टा एवं प्रवर्तक आचार्य के रूप में अधिक विख्यात है। राजा भोजकृत ‘ समराँगण सूत्रधार के तीसरे अध्याय प्रश्नध्याय में खगोल विज्ञान मनोविज्ञान एवं

आध्यात्मिक काम विज्ञान

आस्तिक कौन ? नास्तिक कौन ? आस्तिकता का सच्चा स्वरूप 'ईश्वर है'-केवल इतना मान लेना मात्र ही आस्तिकता नहीं है । ईश्वर की सत्ता में विश्वास कर लेना भी आस्तिकता नहीं है, क्योंकि आस्तिकता विश्वास नहीं, अपितु एक अनुभूति है । 'ईश्वर है' यह बौद्धिक विश्वास है । ईश्वर को अपने हृदय में अनुभव करना, उसकी सत्ता को संपूर्ण सचराचर जगत में ओत- प्रोत देखना और उसकी अनुभूति से रोमांचित हो उठना ही सच्ची आस्तिकता है । आस्तिकता की अनुभूति ईश्वर की समीपता का अनुभव कराती है । आस्तिक व्यक्ति जगत को ईश्वर में और ईश्वर को जगत में ओत-प्रोत देखता है । वह ईश्वर को अपने से और अपने को ईश्वर से भिन्न अनुभव नहीं करता । उसके लिए जड़-चेतनमय सारा संसार ईश्वर रूप ही होता है । वह ईश्वर के अतिरिक्त किसी भिन्न सत्ता अथवा पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं मानता । प्राय: जिन लोगों को धर्म करते देखा जाता है उन्हें आस्तिक मान लिया जाता है । यह बात सही है कि आस्तिकता से धर्म-प्रवृत्ति का जागरण होता है । किंतु यह आवश्यक नहीं कि जो धर्म-कर्म करता हो वह आस्तिक भी हो । अनेक लोग प्रदर्शन के लिए भी धर्म-कार्य किया करते हैं ।

शोधकर्ता एक वास्तविक जीवन टर्मिनेटर बनाने के करीब आ सकते हैं

कृत्रिम बुद्धि और मशीन सीखने के भविष्य के बारे में सामूहिक मानवीय कल्पना को परेशान करने का एक व्यापक भय है, लेकिन विज्ञान-कल्पित फिल्मों के इन प्रतीकों को जल्द ही एक वास्तविकता बन सकती है? डीसीएस निगम और अमेरिकी सेना अनुसंधान  प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं  ने मानव मस्तिष्क के डेटासेट को कृत्रिम बुद्धि तंत्रिका नेटवर्क में डालने के बाद मार्च में साइप्रस में वार्षिक  बुद्धिमान उपयोगकर्ता इंटरफ़ेस सम्मेलन में एक पत्र प्रस्तुत किया। इसके बाद, नेटवर्क ने एक लक्ष्य के लिए खोज करते समय एक इंसान को पहचानना सीख लिया।   निष्कर्ष एक साल के लंबे शोध कार्यक्रम का परिणाम संज्ञानात्मक और न्यूरोएगोनोमिक्स सहयोगी प्रौद्योगिकी गठबंधन के रूप में किया गया था। युद्ध में लक्ष्य को एक सैन्य की प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी कि सेना का देश किस प्रकार दुनिया भर में प्रकट होता है।   अमेरिकी सेना के रूप में नागरिक मौत, या "संपार्श्विक क्षति" की जनता, उस देश की अंतरराष्ट्रीय ख्याति पर गंभीरता से नजरअंदाज और नष्ट हो जाती है। © फोटो: PIXABAY मशीनों का उदय: आर्टिफिशियल इंटेलीजें

अमेरिकी सैनिक जल्द बनेंगे रोबोट, करेंगे जंग की तैयारी

सभी देशों के लिए चुनौती बना अमेरिका अब एक नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। वह अपने सैनिकों को  महामानव बनाने की  हर कोशिश करने में जुटा है। अमेरिकी रक्षा एजेंसी 'डारपा' सैनिकों के मस्तिष्क को नियंत्रिंत करने पर शोध कर रही है। इस खास तरह के प्रोजेक्ट का नाम है टीएनटी (टार्गेटेड न्यूरोप्लास्टिसिटी ट्रेनिंग)। इसमें सैनिकों के सीखने और  समझने की  क्षमता बढ़ेगी।  प्रयोग सफल रहा तो अमेरिकी सैनिक बन जाएंगे जीवित रोबोट इस प्रक्रिया से सैनिकों के  सीखने और समझने  में 30 प्रतिशत तेज सुधार देखने को मिलेगा।  इस पूरे प्रोजेक्ट  को लगभग 4 सालों में पूरा किया जाएगा। इन चार सालों में सैनिकों के मस्तिष्क में सिनैप्टिक प्लास्टिसिटी को तेज करने की गतिविधियों पर भी काम किया जाएगा। 'डारपा' विद्युतीय उत्तेजना के जरिए सैनिकों के मस्तिष्क को तेज करना चाहती है।  2016 में घोषित हुए टीएनटी कार्यक्रम में डारपा ने अमेरिका के 7  संस्थानों  यूनिवर्सिटी  अॉफ टेक्सास,  एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी,  जॉन हॉपकिस यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी अॉफ फ्लोरिडा,यूनिवर्सिटी अॉफ मैरीलैंड, और राइट स्टेट यून

मंत्र विज्ञान का रहस्य

मन को मनन करने की शक्ति या एकाग्रता प्राप्त करके जप के द्वारा सभी भयों का नाश करके पूरी तरह रक्षा करने वाले शब्दों को मंत्र कहते है।  अर्थार्थ मनन करने पर जो रक्षा करे उसे मंत्र कहते है।  जो शब्दों का समूह या कोई शब्द विशेष जपने पर मन को एकाग्र करे और प्राण रक्षा के साथ साथ अभीष्ट फल प्रदान करें वे मंत्र होते है। मंत्र शब्द संस्कृत भाषा से है।  संस्कृत के आधार पर मंत्र शब्द का अर्थ सोचना ,  धारणा करना  ,  समझना व् चाहना  होता है।  मन्त्र जप हमारे यहां सर्वसामान्य है।  मन में कहने की प्रणाली दीर्घकाल से चली आ रही है।  केवल हिन्दुओ में ही नहीं वरन बौध्द ,  जैन  ,  सिक्ख आदि सभी धर्मों में मंत्र जप किया जाता है।  मुस्लिम भाई भी तस्बियां घुमाते है। सही अर्थ में मंत्र जप का उद्देश्य अपने इष्ट को स्मरण करना है।  श्रीरामचरित्र मानस में नवधा भक्ति का जिकर भी आता है।  इसमें रामजी शबरी को कहते है की  ' मंत्र जप मम दृढ विस्वास  ,  पंचम भक्ति सो वेद प्रकासा  '   अर्थार्थ  मंत्र जप और मुझमे पक्का विश्वास रखो। भगवन श्रीकृष्ण जी ने  गीता के १० वें अध्याय के २५ वें श्लोक में  ' जपयज्ञ &

टेलीपैथी और सम्मोहन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

     टैलीपैथी  क्या  है हमारे  पुराणों  में वर्णित  है की देवता लोग  आपस  में बातचीत  बिना कुछ  कहे  कर लेते थे |  और  वो  सोचते थे  तो  दूसरे  लोगो  के पास  सन्देश  पहुंच  जाता था , धर्म और विज्ञान ने दुनिया के कई तरह के रहस्यों से पर्दा उठाया है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के इस युग में अब सब कुछ संभव होने लगा है। मानव का ज्ञान पहले की अपेक्षा बढ़ा है। लेकिन इस ज्ञान के बावजूद व्यक्ति की सोच अभी भी मध्ययुगीन ही है। वह इतना ज्ञान होने के बावजूद भी मूर्ख, क्रूर, हिंसक और मूढ़ बना हुआ है। खैर, आज हम विज्ञान की मदद से हजारों किलोमीटर दूर बैठे किसी व्यक्ति से मोबाइल, इंटरनेट या वीडियो कालिंग के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं, लेकिन प्राचीन काल में ऐसा संभव नहीं था तो वे कैसे एक दूसरे से संपर्क पर पाते थे? मान लीजिये आप समुद्र, जंगल या रेगिस्तान में भटक गए हैं और आपके पास सेटेलाइट फोन है भी तो उसकी बैटरी डिस्चार्च हो गई है ऐसे में आप कैसे लोगों से संपर्क कर सकते हैं? दरअसल, बगैर किसी उपकरण की मदद से लोगों से संपर्क करने की कला को ही टेलीपैथी कहते हैं। जरूरी नहीं कि हम किसी से संपर्क करें।