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चेतना उच्च शिखर

चेतना जब भी उच्च शिखर पर विराजती है तब व्यक्ति ज्योतिर्शिखर के प्रकाश से सम्पूर्णं दिशाओं में  प्रकाश से भर  जाता  है  ।  तब  उन क्षणों  में  वह  🌼 🌼 सम - गुण  🌼🌼 में   तो  जीता  है  बस समबन्ध , बन्धित नहीं होता ।
 🏵  सम-बन्ध  🏵 तो उसे शिखर  से  नीचे  उतर हृदय तल पर आकर समग्र जीवन जीने के लिए अभिनित  करने पड़ते है । जिससे जीवन शुष्क नहीं रस पूर्ण जीया जा सके । तभी जीवन सार्थक जीया जा सकता है । उच्च-शिखर पर जो आनन्द है वह निचले पड़ाव पर लौट आने में कहां ? 
हालाकि निचले पड़ाव पर कभी अनन्द  , कभी विषाद में झूलती  जिन्दगी , सृजन में सहयोगी होती है ।
वहीं उच्च-शिखर पर  व्यक्ति प्रेमपूर्ण  ,  स्वीकार  पूर्ण  तो होता है । कर्ता नहीं ! और जब वह करता होता है तो ! 
भरोसे योग्य नहीं रह जाता है ।
यही परम सत्य है I स्वयं के लिए उच्च शिखर !  
संसार के लिए  सभी तलों का योगदान होता है ! 
होश , जागरण  दोनो  में चाहिये ।  
इनके बिना न स्वयं में , न संसार में आनन्दपूर्ण , सुखमय जीवन जिया जा सकता है !

संसार में तौले जाते हैं कर्म, परमात्मा में तौला जाता है भाव। संसार हिसाब रखता है, क्या तुमने किया; परमात्मा हिसाब रखता है, क्या तुम हो। तो यह भी हो सकता है, तुम मोक्ष में उन लोगों को पाओ, जिनको तुमने पूजा पाठ-में कभी नहीं देखा हो। और तुम नर्क में उन लोगों को पाओ जो सदा  पूजा पाठ का दिखावा ही करते रहे मंदिर में ही जिंदगी गुजारे। संसार तो कृत्य देख सकता है। क्योंकि उतनी गहरी आंख नहीं है, जो भाव को देख ले।

एक संन्यासी हिमालय की यात्रा पर था। और उसने देखा कि एक पहाड़ी लड़की अपने कंधे पर एक बड़े मोटे बच्चे को लेकर पहाड़ चढ़ रही है। लड़की की उम्र मुश्किल से नौ साल होगी। और बच्चा बड़ा तगड़ा है। कम से कम चार साल का होगा। और भारी वजन। और संन्यासी भी थक गया है। गर्मी है, धूप तेज है, पसीना-पसीना हो रहा है। वह भी अपने कंधे पर अपना थोड़ा बहुत जो भी बिस्तर सामान है, वह बांधे हुए है। लड़की के करीब पहुंच कर उसने उस लड़की को कहा, ‘बेटी, वजन बहुत है, थक गई होगी।’ और पसीना-पसीना बह रहा है उस लड़की को। उस लड़की ने ऊपर देखा और कहा, ‘स्वामी जी, वजन आप लिए हैं। यह मेरा छोटा भाई है।’

तराजू पर कोई फर्क पड़ेगा, बिस्तर में और छोटे भाई में? तराजू बराबर वजन बता देगा। अगर तुम बाहर ही बाहर देखते हो तो तुम्हारी स्थिति तराजू से ज्यादा नहीं है। उस संन्यासी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि उस लड़की ने मुझे चौंका दिया। जब उसने कहा कि स्वामी जी, वजन आप लिए हैं; यह मेरा छोटा भाई है। छोटे भाई में कैसा वजन। वजन तो होता ही है, लेकिन भाव वजन को काट देता है।

तुम्हारा उठना-बैठना, तुम्हारा चलना-फिरना, तुम्हारा भोजन, तुम्हारा सोना, यह सब ऊपर के कृत्य हैं। और हर कृत्य से तुम्हारी आत्मा बाहर झांकती है। तुम देखना; कृत्य का बहुत हिसाब मत रखना, भाव का हिसाब रखना। और अगर भाव का हिसाब साफ होने लगा तो तुम पाओगे, कृत्य बदलने लगे। उनमें से नकल खो जायेगी और प्रामाणिकता आ जायेगी। और तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर के प्रकाश ने तुम्हारे बाहर के कृत्यों को आच्छादित कर दिया। और तब तुम पाओगे कि उनका गुणधर्म और हो गया। उनका मूल्य ही और हो गया। सदगुरु कोई बहुत बड़े-बड़े कृत्य नहीं करता।

झेन फकीर रिंझाई से किसी ने पूछा कि आप क्या करते हैं? तो उसने कहा, ‘जब मुझे भूख लगती है मैं भोजन कर लेता हूं। और जब नींद आती है तब सो जाता हूं। और कुछ विशेष नहीं।’ तो उस आदमी ने कहा, ‘यह तो हम सभी करते हैं।’ रिंझाई हंसने लगा और उसने कहा, ‘काश, इतना सभी करते तो मोक्ष दूर कहां!’

तुम नहीं करते; तुम्हें खयाल है। क्योंकि जब तुम भोजन करते हो, तब तुम हजार काम और भी कर रहे हो। मन कहीं और है, प्राण कहीं और हैं; भोजन तो तुम किसी तरह कर रहे हो। वह तुम्हारी प्रार्थना नहीं है। जब तुम सो रहे हो, तब तुम सिर्फ सोते हो? तुम कितनी यात्रायें करते हो। कितने सपने हैं!

रिंझाई कह रहा है कि जब मैं सोता हूं, तब सिर्फ सोता हूं। जब भोजन करता हूं, तब सिर्फ भोजना करता हूं। मेरे होने और मेरे कृत्य में एकता है। मैं इकाई हूं, अद्वैत हूं। जो भी हो रहा है, वह मेरी समग्रता से, मेरी पूर्णता से हो रहा है। जब भूख लगी है, तो मैं भोजन कर रहा हूं। वह मेरी पूर्णता वहां संलग्न है। मेरे पीछे कुछ भी नहीं बचा है जो अलग खड़ा होगा। और जब मैं सो रहा हूं, तो मैं पूरा सो रहा हूं। फिर मेरे पीछे कोई नहीं बचा है, जो सपने देख रहा हो। मेरा पूरा जीवन, मेरी पूरी आत्मा, एक-एक कृत्य में अपनी समग्रता से प्रविष्ट है।

यही तो जीवन-मुक्त का लक्षण है। तब वह किसी भी क्षण मर जाये, तो पश्चात्ताप नहीं है। क्योंकि सब पूरा है। सदा पूरा है। वह ठीक से रात सो लिया था, सुबह उसने ठीक से भोजन कर लिया था; करने को कुछ बचा नहीं था। हर कृत्य पूरा होता जाता है अगर तुम पूरे उसमें हो। अगर तुम पूरे उसमें नहीं हो, तो तुम्हारा कोई कृत्य पूरा नहीं है। सब अधूरा है। तुम्हारी जिंदगी अधूरे-कृत्यों का जोड़ है। और वे अधूरे-कृत्य तुम्हारा पीछा करते हैं।

💥दीया तले अंधेरा💥

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