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कृत्रिम बुद्धि और मानवजाति का भविष्य

कुछ वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम बुद्धि का विकास किया जा रहा है जबकि कुछ अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इस कृत्रिम बुद्धि कुछ वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम बुद्धि का विकास किया जा रहा है जबकि कुछ अन्य वैज्ञानिकों द्वारा इस कृत्रिम बुद्धि से सुरक्षा के उपाए भी खोजे जा रहे हैं। इस साल कैम्ब्रिज में एक विशेष अनुसंधान केंद्र खुल जाएगा, जिसका मुख्य कार्य- कृत्रिम बुद्धि से उत्पन्न ख़तरों का मुकाबला करना होगा। अभी कुछ समय पहले अमरीका के रक्षा विभाग ने एक निर्देश जारी किया था जो स्वचालित और अर्द्ध-स्वचालित युद्ध प्रणालियों के प्रति मानव के व्यवहार को निर्धारित करता है। अमरीकी सैन्य अधिकारियों की इस चिंता को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। बात दरअसल यह है कि अमरीका अपनी सेना के रोबोटिकरण के मामले में दुनिया के अन्य देशों से बहुत आगे निकल गया है। उसके पास कई प्रकार के "ड्रोन" विमान हैं। इसके अलावा, उसके पास रोबोट-इंजीनियर, रोबोट-सैनिक (मशीनगनों और ग्रेनेड लांचरों से लैस छोटे क्रॉलर प्लेटफार्म) पहले से ही मौजूद हैं। और मीडिया में समय-समय पर ऐसी चिंताजनक ख़बरें भी आती रहती हैं कि &qu

मंगल के “निवासी” मानवजाति के लिए ख़तरा

पृथ्वी के निवासियों द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए या भविष्य में भेजे जानेवाले अनुसंधान वाहन बेशक हमें अमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं लेकिन अगर ये वाहन पृथ्वी पर वापस लौटेंगे तो वे अपने साथ बिन बुलाए मेहमानों को भी ला सकते हैं। बेशक, ये हरी चमड़ी वाले मनुष्य नहीं होंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये बेहद सूक्ष्म जीव हो सकते हैं जो पृथ्वी के निवासियों के लिए एक भयानक ख़तरा बन सकते हैं। अमरीका द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए रोवर “क्युरियोसिटी” पर लगे एक खोज-यंत्र ने अभी हाल ही में इस गृह पर मीथेन गैस की मौजूदगी का पता लगाया है। इस गैस की मौजूदगी का मतलब यह है कि मंगल गृह पर जीव और पौधे भी मौजूद हो सकते हैं। पौधों और जीवों की वजह से ही पृथ्वी पर मीथेन गैस पैदा होती है। अब सवाल पैदा होता है कि क्या मंगल ग्रह पर वास्तव में जीव-जंतु और पौधे मोजूद हैं? वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मंगल ग्रह पर बुद्धिमान प्राणी तो शायद नहीं रहते हैं लेकिन वहाँ अति सूक्ष्म अविकसत जीवों की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में रूसी विज्ञान अकादमी के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के एक वरिष्ठ शोधक

यूरी गगारिन ने कहा था : 'उड़नतश्तरियाँ सचमुच होती हैं

Photo: RIA Novosti 12  अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के नागरिक, सोवियत वायुसेना में मेजर यूरी गगारिन ने मानव इतिहास में 12  अप्रैल 1961 को सोवियत संघ के नागरिक, सोवियत वायुसेना में मेजर यूरी गगारिन ने मानव इतिहास में पहली बार 'वस्तोक-1' नामक अन्तरिक्ष यान में सवार होकर पृथ्वी की निकटतम परिधि  पर अंतरिक्ष की यात्रा की थी। आज ऐसा लगता है मानो हम यूरी गगारिन की उस पहली उड़ान के बारे में सब कुछ जानते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। एक विषय ऐसा है, जिसकी औपचारिक सूचना साधनों ने अक्सर उपेक्षा की है। यह विषय है —  उड़नतश्तरियाँ। जबकि यूरी गगारिन ने अपने संस्मरणों में लिखा है —  'उड़नतश्तरियाँ  एक वास्तविकता हैं। अगर आप मुझे इज़ाजत देंगे तो मैं उनके बारे में और भी बहुत-कुछ बता सकता हूँ।' यह वाक्य सचमुच आश्चर्यजनक है क्योंकि तब, आज से चालीस-पचास साल पहले, सोवियत संघ में उड़नतश्तरियों के बारे में अंतरिक्ष यात्रियों और पत्रकारों को कुछ भी कहने या बताने की छूट नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उड़नतश्तरियों के साथ विभिन्न अंतरिक्ष-यात्रियों की मुलाक़ातों के बारे में बहुत-सी सामग्री इकट्

आ के फिर ना जायेगी जवानी

स्रोत फोटो : गूगल  आ के  फिर ना जायेगी जवानी  जवानी जो तीनो पड़ाव मे मे  सबसे   लुभावनी है  | कब सरक जाती है पता नहीं चलता  मगर ईधर पश्चिम  देशो मे  कयी ऐसी चौकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है | जो आई जवानी के वापस न जाने की बात कही है, यानी की सदाबहार जवानी का दावा  इस संदर्भ मे पिछले दिनो हावर्ड विश्विद्यालय से आई रिपोर्ट अपने आप मे पहली रिपोर्ट कही जा सकती है | जो जवानी की चाभी कही जाने वाली टेलोमियर्स को राह पे आने मे सफल हुई है | fo’ofo|ky; ds vksadksykWftLV ¼V~;we;Z v/;;udrkZ½ Mk0 jksukYMks fM fiUgks ds vuqlkj c<+rh mez ds izHkko vkSj Vsfyfe;lZ dk fo’ks”k laca/k gSA vly esa izR;sd dksf’kdk ds dsUnzd esa ,d yM+h xaqFkh jgrh gSA  स्रोत फोटो : गूगल  ;gh thou ds gjdkjs xq.klw= ;kuh ØksekslksEl gSA buds fljs ij Vsfyfe;lZ uked Vksihuqek lajpkuk,a gksrh gsA ‘kks/kdrkZvks ds vuqlkj dksf’kdk foHkktu ds lkFk&alkFk Vsfyfe;lZ f?klus yxrs gS vkSj mudh yEckbZ ?kVRkh tkrh gSA MkW0 jksukYM ds vuqlkj blh ds dkj.k ,YthelZ] fMeksZf’k;k tSls mez ls tqM+s jksx iuirs gSA blh ‘kks

'मकड़ी के धागों की तरह' बुने जा सकेंगे अंग

ब्रिटेन में शोधकर्ताओं ने शरीर के अंग मकड़ी के जाले की तरह बनाने का एक तरीका दिखाया है. लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की एक टीम ने नए टिश्यू बनाने के लिए पॉलीमर के साथ मिली हुई कोशिकाओं का निरंतर प्रवाह इस्तेमाल किया. इन शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का परीक्षण चूहों में खून लाने-ले जाने वाली नसें बनाने में किया.शोधकर्ताओं का मानना है कि ट्रांसप्लांट के लिए अंग बनाने में दूसरी तकनीकों के मुकाबले इस तकनीक से ज़्यादा बेहतर नतीजे मिल सकते हैं. अभी प्रयोगशालाओं में अंग बनाने के लिए कई विधियों का इस्तेमाल हो रहा है. 'प्रयोगशाला में अंग' कुछ विधियों में एक कृत्रिम ढांचे से शुरुआत होती है जिसमें मरीज़ की ख़ुद की कोशिकाओं को डाल दिया जाता है और फिर इसे कलम की तरह लगा दिया जाता है. कुछ मरीज़ों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर ब्लैडर बनाए गए हैं. एक अन्य तकनीक में किसी शव से किसी अंग को लिया जाता है, जैसा अंग प्रत्यर्पण में होता है, फिर एक डिटर्जेंट का इस्तेमाल कर पुरानी कोशिकाओं को हटा दिया जाता है और प्रोटीन का एक ढांचा बचा रह जाता है. इस ढांचे में उस मरीज़ की कोशिकाएं लगाई जाती

क्या रोबोट के साथ सेक्स संभव हो पाएगा?

    टिम बाउलर सेक्स रोबोट रॉक्सी से मिलिए. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे किस तरह लेते हैं- इंसान और रोबोट के संबंधों के बीच एक अहम कड़ी या सेक्स रोबोट के रूप में. सेक्स के लिए बाज़ार में कई कृत्रिम साधन उपलब्ध हैं, लेकिन रॉक्सी को बनाने वाले डगलस हाइंस का कहना है कि यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंसानी रूप का संगम है. " अगर आप अपनी समस्याओं को मित्रों, परिजनों और समाज के बजाए रोबोट के माध्यम से सुलझाना चाहते हैं तो आपको इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. हम सोच रहे हैं कि हम केवल रोबोट बना रहे हैं लेकिन वास्तव में हम मानवीय मूल्यों और संबंधों को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं. " रोबोट की परिकल्पना दशकों पुरानी है, लेकिन यह मशीनी मानव अभी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है. प्रोफेसर शेरी टर्कल चलने में सक्षम रोबोट का अभी बहुत ज्यादा व्यावसायिक उपयोग नहीं है. वे बहुत महंगे हैं और केवल समतल सतह पर ही चल सकते हैं. कमज़ोरी क्लिक करें जापान  की सबसे अच्छी माने जाने वाली महिला रोबोट एचआरपी-4सी का विकास नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस एंड टेक्न