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संदेश

टेलिपैथी

एक समय पहले जब विज्ञान और तर्कशास्त्र जैसे विषयों तक सामान्य जनता की पहुंच नहीं थी तब तक हर क्रिया को चमत्कार ही समझा जाता था. लेकिन अब विज्ञान के आविष्कारों और स्थापनाओं ने चमत्कार के सिद्धांत को पूरी तरह नकार दिया है और यह साबित कर दिया है कि सूरज के चमकने से लेकर पृथ्वी पर होने वाली हर हलचल, यहां तक कि इंसानी जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी घटना के तार विज्ञान के साथ जुड़े हैं ना कि चमत्कार के साथ. विज्ञान के आविष्कार ने हमारे जीवन को सहज बना दिया है और इसके कई फायदे भी हैं लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और विज्ञान भी इन सबसे बच नहीं पाया है. टेलिपैथी, विज्ञान की ही एक विधा है, जिसके अंतर्गत शारीरिक रूप से एक दूसरे से मीलों दूर बैठे लोग भी मानसिक रूप से एक दूसरे तक संदेश पहुंचा सकते हैं. टेलिपैथी की सहायता से आप किसी भी व्यक्ति को अपने अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और सबसे खास बात है कि आप दोनों की बात किसी तीसरे के कानों तक नहीं पहुंचेगी. टेलिपैथी के फायदे बहुत हैं लेकिन आज हम आपको इस विधा से जुड़ी एक ऐसी घटना से अवगत करवाने जा रहे हैं जब तुर्की

जापान करेगा इबोला का इलाज

अफ्रीकी देशों में इबोला महामारी के बढ़ते संकट के बीच जापान ने कहा है कि उसने इबोला का इलाज ढूंढ निकाला है और विश्व स्वास्थ्य संगठन की मांग पर दवाएं मुहैया कराने के लिए तैयार है. जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव योशिहिदे सूगा ने सोमवार को पत्रकारों से कहा कि कंपनी फुजीफिल्म होल्डिंग्स कॉरपोरेशन की एक शाखा ने इंफ्लुएंजा की दवा तैयार की है, जिसे इबोला के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. फैवीपीरावीर नाम की इस दवा को मार्च में ही जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंजूरी दे दी थी. फुजीफिल्म के प्रवक्ता ताकाओ आओकी ने बताया कि इबोला और इंफ्लुएंजा एक ही तरह के वायरस से फैलते हैं, इसलिए दोनों वायरस पर इस दवा का असर दिख सकता है. उन्होंने कहा कि प्रयोगशाला में चूहों पर टेस्ट किए जा चुके हैं और नतीजे सकारात्मक रहे हैं. कंपनी का कहना है कि उसके पास 20,000 मरीजों के लिए दवा मौजूद है और वह डब्ल्यूएचओ के जवाब का इंतजार कर रही है. साथ ही कंपनी अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के साथ भी संपर्क साधे हुए है. फुजीफिल्म का कहना है कि डब्ल्यूएचओ के जवाब से पहले अगर लोगों ने निजी तौर पर दवा की मांग शुरू

एचआईवी का टीका बनाने के करीब पहुंचे वैज्ञानिक

न्यूयॉर्क:  शोधकर्ताओं ने विशेष एचआईवी एंटीबॉडिज (रोग-प्रतिकारक) के नए गुणों का खुलासा करने में सफलता पाई है, जिसे ब्रॉडली न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडिज (बीएनए) कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस खुलासे से हम एचआईवी का टीका बनाने के एक कदम और पास पहुंच गए हैं। बीएनए का विकास एचआईवी के टीके का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। एचआईवी से संक्रमित कुछ ही लोगों में बीएनए का निर्माण होता है। बीएनए की सहायता से टीका बनाना प्रमुख उद्देश्य है। इसकी सहायता से टीकाकरण के बाद वही सुरक्षा एचआईवी से मिलेगी, जैसा अन्य बीमारियों में टीकाकरण के बाद मिलता है। अमरीका में बॉस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर थॉमस केप्लर ने कहा, इस परिणाम से स्पष्ट होता है कि बीएनए टीके का विकास संभव है। उल्लेखनीय है कि एंडिबॉडी प्रतिरक्षण बी कोशिकाओं से बनती है। जब बी कोशिकाएं किसी एंटीजेंस (रोगाणु) के संपर्क में आती है, तो उसकी रचना में परिवर्तन आ जाता है, जो एंटिजेंस के लिए घातक होता है। इस परिवर्तन को इंडेल" कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने एक विशेष बीएनए का अध्ययन किया, जिसे सीएच 31 कहते

ढूंढ़ने में मददगार कोशिका की खोज

इनसान के मस्तिष्क में एक ऐसी कोशिका होती है, जो उसे किसी अपरिचित माहौल में अपनी जानी-पहचानी चीजों को ढूंढ़ने में मदद करती है. वैज्ञानिकों ने इनसान के दिमाग में एक नये प्रकार की कोशिका को खोज निकाली है, जो इनसान की रुचि और उसके अनुकूल चीजों को ढूंढ़ने में उसकी मदद करता है. पेनसिलवालिया यूनिवर्सिटी, ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी, यूसीएलए और थॉमस जैफरसन यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम ने मिल कर यह खोज की है. साइंस डेली में छपी एक खबर में बताया गया है कि हम जब किसी अपरिचित माहौल में खुद की रुचि से जुड़ी चीजों को ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं तो इसमें ग्रिड सेल हमारी मदद करता है. हमारे ढूंढ़ने का तरीका इसी सेल के व्यवहार पर निर्भर करता है. इस प्रकार से चीजों को ढूंढ़ने को विज्ञान की भाषा में पाथ नेविगेशन कहा जाता है. ड्रेक्सेल्स स्कूल ऑफ बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, साइंस एंड हेल्थ सिस्टम्स में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर जोशुआ जैकब का कहना है कि ग्रिड पैटर्न के बारे में बताना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि यह दृढ़ होता है. इस रिसर्च के दौरान दिमाग की कई तरह से रिकॉर्डिग की गयी, जिसमें 14 भागीदारों को शामिल किया ग

रूसी वैज्ञानिकों ने गम्भीर रोगों के इलाज के लिए दुनिया का पहला 'स्मार्ट' नैनोकण

रूसी वैज्ञानिकों ने चिकित्सा के क्षेत्र में नैनोरोबोटों की खोज करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। ये नैनोरोबोट शरीर मेंजैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं का उपयोग कर रोग का ठीक-ठीक निदान कर सकेंगे। इस नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके रोगों केनिदान और गम्भीर रोगों के उपचार के नए तरीकों की खोज की जा सकेगी। प्रोख़रोफ़ सामान्य भौतिकी संस्थान, शेम्याकिन और अवचेन्निकोफ़ जैव-आर्गेनिक रसायन संस्थान तथा मास्को के भौतिकी तकनीकी संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा मिलकर किए जा रहे इस अनुसन्धान की रिपोर्ट प्रमुख वैज्ञानिक पत्रिका ’नेचर नैनोटैक्नोलौजी’ में प्रकाशित हुई है। अपने काम के बारे में बताते हुए वैज्ञानिकों ने लिखा है कि उनका यह अनुसन्धान जैवमोलेक्यूल की सहायता से बीमारी का पता लगाने के सिद्धान्त पर आधारित है। यदि इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में तार्किक तत्त्वों की मदद से करेण्ट के द्वारा या वोल्टेज़ के द्वारा क्रिया की जाती है तो जैव रासायनिक प्रणालियों में कोई ऐसा निश्चित तत्त्व सामने आएगा जो जैविक प्रणालियों पर उपचारात्मक प्रभाव दिखा सकता है। इस स्थिति में नैनोकणों की विशेष रूप से चयनित रचना बाहर

दिमाग़ की उत्तेजना दिल के लिए फायदेमंद!

जेम्स गैलाघर हेल्थ एडिटर, बीबीसी न्यूज़ वेबसाइट दिमाग़ के एक हिस्से की उत्तेजना दिल के लिए फायदेमंद हो सकती है. 'प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंस' में प्रकाशित इस रिसर्च पेपर के अनुसार दिमाग़ का जो हिस्सा शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करता है, उसके उत्तेजित होने से दिल का दौरा पड़ने के बाद मरीज़ की हालत सुधर सकती है. 'द स्ट्रोक एसोसिएशन' ने कहा है कि रिसर्च से दिलचस्प नतीजे निकले हैं. देखा गया है कि दिल के दौरे से लोगों की याद्दाश्त चली जाती है, उनकी गतिविधियों और बातचीत करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है.अध्ययन में चूहे के दिमाग़ पर तेज़ रोशनी डाली गई. ये चूहे उन जानवरों की तुलना में तेजी से दौड़ने लगे जिन पर यह प्रयोग नहीं आज़माया गया था. ख़ून के थक्के से दिमाग़ की कोशिकाओं को ऑक्सीजन और शुगर की आपूर्ति बंद हो जाती है और वे कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं. स्ट्रोक होने की सूरत में नुक़सान कम हो इसके लिए जल्द से जल्द इलाज ज़रूरी होता है. उत्तेजना स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन की रिसर्च टीम ने जानवरों पर परीक्षण करके इस बात का पत

नई क़िस्म की सूर्य-बैटरियों के निर्माण की तक्नोलौजी खोज ली गई

आस्ट्रेलिया की फ़्लींडेर्स यूनिवर्सिटी में प्लास्टिक लेमिनेशन करके लचीली सूर्य-बैटरियों के निर्माण की ऐसी नई तकनीक खोज ली गई आस्ट्रेलिया की फ़्लींडेर्स यूनिवर्सिटी में प्लास्टिक लेमिनेशन करके लचीली सूर्य-बैटरियों के निर्माण की ऐसी नई तकनीक खोज ली गई है जो कहीं अधिक सस्ती है। इस आविष्कार से नई पर्यावरण शुद्ध ऊर्जा की ओर आगे बढ़ना आसान हो जाएगा। हालाँकि प्लास्टिक की सूर्य-बैटरियों के क्षेत्र में पिछले पन्द्रह साल से अनुसंधान किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी इस दिशा में आजकल उपयोग में लाई जा रही तकनीक बड़ी महँगी पड़ती है। परम्परागत् रूप से प्लास्टिक पैनल बनाने की तकनीक में एक के बाद एक विभिन्न सामग्रियों की परतें एक-दूसरे के ऊपर चढ़ाई जाती हैं। लेकिन समय के साथ-साथ ये सामग्रियाँ घिस जाती हैं और सूर्य-बैटरियाँ काम करना बन्द कर देती हैं। नई तकनीक के अनुसार दो विद्युत-संचरण परतों पर विभिन्न सामग्रियों की परत चढ़ाने के बाद ऊपर से उस पर प्लास्टिक लेमिनेशन किया जा सकेगा। इस लेमिनेशन के फलस्वरूप सामग्रियों का घिसना और आपस में मिलना रूक जाएगा और सूर्य-बैटरी कहीं अधिक कुशलता से काम कर सकेगी। ले

कृत्रिम हाथ असली हाथ जैसा

  रोम.   किसी दुर्घटना में अपना हाथ गंवा चुके लोगों के लिए वैज्ञानिक एक खुशखबरी लाए हैं. शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कृत्रिम हाथ बनाने में कामयाबी हासिल करली हैं जो काफी कुछ असली हाथ जैसा हैं. यानि यह कृत्रिम हाथ चीज़ों को पकड़ने के साथ-साथ उन्हें महसूस भी कर सकेगा. यूरोपीय शोधकर्ताओं ने अपनी इस सफलता की घोषणा करते हुए कहा है कि पहली बार एक बायोनिक हाथ के जरिए एक व्यक्ति मुट्ठी में पकड़ी गई चीज की बनावट और आकार समझने में कामयाब रहा है. यानी कृत्रिम हाथ भी अब महसूस करने में मदद कर सकेगा. इटली में बायोनिक हाथ पर एक महीने तक ट्रायल चला. इस कामयाबी ने शोधकर्ताओं में नया जोश भर दिया है. अब तक कृत्रिम हाथ का इस्तेमाल करने वाले को वस्तु के पकड़े जाने का कोई एहसास नहीं होता था. साथ ही कृत्रिम हाथ को नियंत्रित करना मुश्किल होता है, मतलब यह कि कृत्रिम हाथ का इस्तेमाल करने वाला वस्तु को पकड़ने की कोशिश में उसे नुकसान पहुंचा सकता है. शोध में शामिल सिलवेस्ट्रो मिचेरा के मुताबिक, जब हमने ये कृत्रिम हाथ सेंसर की मदद से उस व्यक्ति के हाथ पर लगाया तो हम उस हाथ में अहसास उसी समय बहाल कर सके और वह अपने

चांद पर एलियन्स

लंदन.  गूगल मैप के जरिये एक शोधकर्ता ने चंद्रमा की सतह का अध्ययन किया तो अचानक उसे चंद्रमा की सतह पर ऐसा रहस्यमय त्रिकोणीय स्पेसशिप के दिखाई दिया, जो एलियन्स के स्पेसशिप जैसा दिखता है. शोधकर्ता ने अपने इस वीडियो को ऑनलाइन खोज को प्रोत्साहित करने के लिए यूट्यूब पर wowforreel के नाम से पोस्ट किया है. यूट्यूब पर पोस्ट किए अपने वर्णन में इस शोधकर्ता ने कहा है कि आज तक एलियन्स के संदर्भ में हुई यह खोज अद्वितीय और अद्भुत है. शोधार्थी ने दावा किया कि उसे चंद्रमा पर दिखाई देने वाला त्रिकोणीय स्पेसशिप बिलकुल सुपर सीक्रेट स्टेल्ट एयरक्राफ्ट की उस टेक्नोलॉजी के समान था, जिसका दावा टेक एंड गेजेट्स न्यूज में किया जाता है. हालांकि उसने यह भी कहा कि चंद्रमा पर दिखाई देने वाली आकृति धरती पर बने अब तक के सबसे बड़े एयरक्राफ्ट से कई गुणा बड़ी है.sabhar :http://www.palpalindia.com/

अब चंद घंटों में बना लीजिए घर

 आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस मकान को बनने में ना जाने कितना-कितना समय लग जाता है इस नई वैज्ञानिक क्रांति के बाद वह महज 24 घंटों में ही बनकर तैयार हो जाएगा. दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रोफेसर बाहरोख खॉसनेविस के दल ने एक ऐसे जाइंट 3डी प्रिंटर का निर्माण किया है जो 2,500 स्क्वैर फुट के मकान का निर्माण महज 24 घंटों में कर पाने में सक्षम है. बाहरोख का कहना है कि इस प्रिंटर के जरिए आप परत दर परत एक घर का निर्माण कर सकते हैं और वो भी मात्र एक दिन में. इतना ही नहीं प्रोफेसर बाहरोख का यह भी दावा है कि इस 3डी प्रिंटर की सहायता से ना सिर्फ एक घर बल्कि आप कॉलोनी भी बसा सकते हैं. इसके अलावा प्रोफेसर का यह भी दावा है कि इससे अलग - अलग डिजाइन और स्ट्रक्चर के मकान भी बनाए जा सकते हैं. अत्याधिक नवीन तकनीक के साथ निर्मित हुआ यह 3डी प्रिंटर एक ऐसी क्रांति कहा जा सकता है जिसके बारे में कुछ वर्षों पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था. अगर यह 3डी प्रिंटर इन सब दावों पर खरा उतरता है तो आपातकाल के समय निवास स्थानों का निर्माण किया जा सकता है और वो भी अपेक्षाकृत कम खर्च के  sabhar :htt