एक समय पहले जब विज्ञान और तर्कशास्त्र जैसे विषयों तक सामान्य जनता की पहुंच नहीं थी तब तक हर क्रिया को चमत्कार ही समझा जाता था. लेकिन अब विज्ञान के आविष्कारों और स्थापनाओं ने चमत्कार के सिद्धांत को पूरी तरह नकार दिया है और यह साबित कर दिया है कि सूरज के चमकने से लेकर पृथ्वी पर होने वाली हर हलचल, यहां तक कि इंसानी जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी घटना के तार विज्ञान के साथ जुड़े हैं ना कि चमत्कार के साथ.
विज्ञान के आविष्कार ने हमारे जीवन को सहज बना दिया है और इसके कई फायदे भी हैं लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और विज्ञान भी इन सबसे बच नहीं पाया है. टेलिपैथी, विज्ञान की ही एक विधा है, जिसके अंतर्गत शारीरिक रूप से एक दूसरे से मीलों दूर बैठे लोग भी मानसिक रूप से एक दूसरे तक संदेश पहुंचा सकते हैं. टेलिपैथी की सहायता से आप किसी भी व्यक्ति को अपने अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं और सबसे खास बात है कि आप दोनों की बात किसी तीसरे के कानों तक नहीं पहुंचेगी.
टेलिपैथी के फायदे बहुत हैं लेकिन आज हम आपको इस विधा से जुड़ी एक ऐसी घटना से अवगत करवाने जा रहे हैं जब तुर्की के चार इंजीनियरों ने आत्महत्या कर ली थी और आश्चर्यजनक रूप से इन चारों ही आत्महत्याओं का कारण टेलिपैथी को बताया गया.
संदिग्ध रूप से हुई इन चारों आत्महत्याओं की जब जांच-पड़ताल शुरू हुई तो इनके पीछे का कारण टेलिपैथी को पाया गया. ऐसा माना गया कि किसी ने इन चारों इंजीनियरों को टेलिपैथी के जरिए पहले अपने वश में किया और फिर बाद में उन्हें आत्महत्या करने के लिए उकसाया. इनपर टेलिपैथी का प्रयोग इतना असरदार था कि वह अपने कानों में गूंजने वाली आवाज को अनसुना नहीं कर पाए और बिना सोचे-समझे मौत को गले लगा लिया.
यह घटना 2006-2007 की है लेकिन टेलिपैथी के प्रयोग के किस्से पुराणों में भी पढ़े जाते हैं, जहां बिना किसी यंत्र के सिर्फ विचारों के संप्रेषण के जरिए ही अपनी बात दूसरों तक पहुंचाई जाती थी. पहले इसे चमत्कातर का नाम दिया जाता था लेकिन अब यह स्पष्ट रूप से विज्ञान का ही एक नमूना साबित हुई है. आपको बता दें कि टेलिपैथी में मनुष्य शरीर की पांचों इन्द्रियों का कोई भी प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि छठी इन्द्री को विकसित कर टेलिपैथी का उपयोग किया जाता है जो किसी भी रूप में आसान नहीं है.
भारत में टेलिपैथी की विधा बहुत पुरानी है, हमारे शास्त्रों में इसका जिक्र मिलता है लेकिन आधुनिक युग में टेलिपैथी को जन सामान्य तक पहुंचाने का श्रेय फ्रेड्रिक डब्ल्यू एच मायर्स को जाता है जिन्होंने वर्ष 1882 में विचार संप्रेषण की इस विधा को जन टेलिपैथी का नाम दिया.
आपको शायद यह जानकर आश्चर्य होगा कि कछुआ इकलौता ऐसा जीव है जिसे इस विधा में महारत हासिल है, मादा कछुआ अपने अंडों से मीलों दूर से भी संपर्क साध सकती है इतना ही नहीं जब अंडों में से बच्चे निकलने का समय नजदीक आने लगता है तो वह अपने बच्चों के पास चली जाती है. सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि मादा कछुआ को अगर कुछ हो जाए तो अंडों में मौजूद उसके बच्चे भी मर जाते हैं.sabhar :http://infotainment.jagranjunction.com/
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