------------------:ज्ञानतन्तु:------------------ *********************************** भाग--02 ********** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन तंत्र के मतानुसार मानव शरीर में छः चक्र हैं जो चेतना-शक्ति के केंद्र-स्थल हैं--मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहद चक्र, विशुद्ध चक्र और आज्ञाचक्र। सहस्त्रदल वाला चक्र यानी 'सहस्त्रार' चक्र सातवें और 'सोम' नामक आठवें चक्र का योग में गणना करते हैं जहां अनवरत सोम की वर्षा होती रहती है, अमृत-क्षरण होता रहता है और जीवनी-शक्ति बराबर गतिमान होती रहती है। जब इस अमृत का क्षरण बन्द होने लगता है, तब जीवन-चक्र भी समाप्त होने लगता है। अमृत-क्षरण अनवरत चलता है। यह साधक की साधना पर निर्भर करता है। हज़ारों वर्ष तक जीवित रहने वाले दीर्घजीवी साधकों को इस सोमरस का पान योग द्वारा सम्भव होता है। आज भी हिमालय की कंदराओं में सिद्ध साधक इसी सोमतत्व का पान कर वर्षों से साधना में लीन हैं।
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