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तंत्र साधना के मार्ग

{{{ॐ}}}                                                                       #_रहस्य_ तंत्र के मुख्य दो ही मार्ग  है इन्हीं विभिन्न सम्प्रदायों का उदय हुआ है १ ,वैदिकमार्ग २, शैवमार्ग। इनमे से वैदिकमार्ग को दक्षिणमार्ग  और शैवमार्ग को भी वाममार्ग  कहते है । गोरखनाथ जी के द्वारा शाबर मंत्र, जैनमार्ग, बौद्धमार्ग, मे भी साधनाए की जाती है पर वे सब वाममार्ग से ही प्रभावित है। आज ये दोनो मार्ग आपस मे मिलकर खिचड़ी बन गये है। अपितु ये आज से नही मिले आज से हजारो वर्ष पहले प्रजापति दक्ष के यज्ञ मे हुए युद्ध के समय मिल गये थे। अतः आज बडे बडे तंत्रमार्गी एवं विद्वान भी इनमे भेद कर पाने स्थित नें नही है विशेषकर दक्षिणमार्गी ! वे आज वाममार्ग के  देवी देवताओं को पूजा अर्चन कर रहे है इनमें भगवती (आधाशक्ति), दुर्गा, महालक्ष्मी, आदि है और गणेशजी भी वाममार्ग के ही देवता है, क्योंकि ये शिवकुल के देवता है , विष्णुकूल के नहीं। इसी प्रकार महालक्ष्मी को विष्णुकुल ने समुद्र मथंन(सामाजिक- धार्मिक-आध्यात्मिक- मथंन जो दक्ष के युद्ध के बाद हुआ) के पश्चात विष्णु से जोड दिया(स्मरण करें पौराणिक रूपक) आज

ISRO makes breakthrough demonstration of free-space Quantum Key Distribution (QKD) over 300 m

For the first time in the country, Indian Space Research Organisation (ISRO) has successfully demonstrated free-space Quantum Communication over a distance of 300 m. A number of key technologies were developed indigenously to accomplish this major feat, which included the use of indigenously developed NAVIC receiver for time synchronization between the transmitter and receiver modules, and gimbal mechanism systems instead of bulky large-aperture telescopes for optical alignment. The demonstration has included live videoconferencing using quantum-key-encrypted signals. This is a major milestone achievement for unconditionally secured satellite data communication using quantum technologies. The Quantum Key Distribution (QKD) technology underpins Quantum Communication technology that ensures unconditional data security by virtue of the principles of quantum mechanics, which is not possible with the conventional encryption systems. The conventional cryptosystems used for data-encryption re

तत्त्वासार

{{{ॐ}}}                                                             #  वास्तव मे सृष्टि मे एक ब्रह्म की ही सत्ता है जो विभिन्न रूपों मे अभिव्यक्त हुआ है । इसलिए सभी रूप उससे भिन्न नही है बल्कि भ्रम के कारण आत्मज्ञान के अभाव के कारण ये भिन्न भिन्न प्रतीत होते है । इसी प्रकार शरीर भी भ्रम वश उससे भिन्न प्रतीत होता है तथा जिस भ्रम के कारण प्रतीत होने वाले की सत्ता नही होती ,जिस भ्रम से रस्सी मे सर्प दिखाई देता है किन्तु उसमे सर्प की सत्ता नही होती ,वह रस्सी ही है ।इसी प्रकार शरीर भी भ्रम मात्र ही है । जिनको ऐसी शंका होती है कि यदि ज्ञान से अज्ञान का मूल सहित नाश हो जाता है, तो ज्ञानी का यह देह स्थूल कैसे रह जाता है उन मूर्खों को समझाने के लिए श्रुति ऊपरी दृष्टि ऊपरी दृष्टि से प्रारब्ध को उसका कारण बता देती है वह विद्वान को देहादि का सत्य स्व समझाने के लिए ऐसा नही कहती ; क्योंकि श्रुति का अभिप्राय तो एकमात्र परमार्थ वस्तु का वर्णन करने से ही है। ज्ञानी और अज्ञानी को समझाने की भाषा मे भिन्नता रखनी ही पड़ती है। जिस भाषा मे ज्ञानी अथवा विद्वान को समझाया जाता है उस भाषा मे मूर्ख को

शंकर पर आरूढ़ जगज्जननी महाकाली की छवि रहस्य

---------------: ****************************** परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अध्यात्म-ज्ञानगंगा में पावन अवगाहन पूज्य गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन       पाश्चात्य अनुसन्धान कर्ता जो इस समय योग और तंत्र पर खोज कर रहे हैं, उनका कहना है कि योग-तंत्र-विज्ञान विशाल, अनन्त गहराइयों वाला समुद्र है जिसके जल की एक बूंद ही भौतिक विज्ञान है।       यह सत्य है कि स्थूल और सूक्ष्म वायु में होने वाली ध्वनि- तरंगें एक समय नष्ट हो जाती हैं, परंतु सूक्ष्मतम वायु (ईथर) जो अखिल ब्रह्माण्ड में सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है, में पहुँचने वाली ध्वनि-तरंगें कभी किसी काल में नष्ट नहीं होतीं।      आधुनिक उपकरणों द्वारा ध्वनि को विद्युत्-प्रवाह में बदल कर उसको सूक्ष्मतम अल्ट्रासॉनिक रूप दिया जाता है। इसलिए इसी वैज्ञानिक विधि से रेडियो, वायरलैस, आदि का निर्माण हुआ था। बाद में उसका और विकसित रूप टेलीविजन का निर्माण हुआ जिसमें ध्वनि- तरंगों को प्रकाश-तरंगों में बदल दिया गया और जिन्हें चित्र-दर्शन के रूप में हम देखते है। ईथर में होने वाले कम्पन, आवृत्ति, फ्रीक्वेंसी की स

चेतन मन और आत्मा के बीच अचेतन मन है।

पांच ज्ञानेंद्रयों की जो शक्ति है, वह मन की ही शक्ति है।  मन की शक्ति से ही ये इन्द्रियां कार्य करती हैं। पर यह भी जानना ज़रूरी है कि मनःशक्ति द्वारा एक समय में एक ही इन्द्रिय कार्य करती है, दूसरी नहीं।  गहरी सुप्त अवस्था में इन्द्रयों से मन का सम्बन्ध नहीं रहता है। स्वयं मन ही सभी इन्द्रियों का कार्य करता है उस समय।  मन का एक रूप और है जिसे हम 'अचेतन मन' कहते हैं। चेतन मन और आत्मा के बीच अचेतन मन है।  चेतन मन और अचेतन मन आत्मा के ही अंग हैं।  आत्मा परमात्मा का ही एक रूप है और उस रूप में समस्त ब्रह्माण्ड की शक्ति विद्यमान है। आत्मा कालातीत है। सभी अवस्थाओं में वह समान है।  अचेतन मन एक विशेष सीमा तक आत्मशक्ति को क्रियान्वित करता है।  यही कारण है कि वैज्ञानिक अचेतन मन को अलौकिक शक्ति का भंडार कहते हैं।  जब हम कभी ऐसी स्थिति में होते हैं तो उस समय हमारे चेतन मन से आत्मा का सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। फलस्वरूप भावी घटनाओं का संकेत और पूर्वाभास होता है। चेतन मन का सम्बन्ध लौकिक जगत से है और अचेतन मन का सम्बन्ध पारलौकिक जगतों से है।  योगिगण ध्यानयोग के द्वारा चेतन मन

स्वयं की खोज

समाधि में साधक  ध्यान से ही जाएगा। ध्यान है परम संकल्प। ध्यान का अर्थ समझ लो। ध्यान का अर्थ है, अकेले हो जाने की क्षमता। दूसरे पर कोई निर्भरता न रह जाए, दूसरे का खयाल भी विस्मृत हो जाए। सभी खयाल दूसरे के हैं। खयाल मात्र पर का है। जब पर का कोई विचार न रह जाए, तो स्व शेष रह जाता है। और उस स्व के शेष रह जाने में स्व भी मिट जाता है, क्योंकि स्व अकेला नहीं रह सकता, वह पर के साथ ही रह सकता है। जिस नदी का एक किनारा खो गया, उसका दूसरा भी खो जाएगा। दोनों किनारे साथ-साथ हैं। अगर सिक्के का एक पहलू खो गया, तो दूसरा पहलू अपने आप नष्ट हो जाएगा। दोनों पहलू साथ-साथ हैं। जिस दिन अंधकार खो जाएगा, उसी दिन प्रकाश भी खो जाएगा। ऐसा मत सोचना कि जिस दिन अंधकार खो जाएगा, उस दिन प्रकाश ही प्रकाश बचेगा। इस भूल में मत पड़ना, क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जिस दिन मौत समाप्त हो जाएगी, उसी दिन जीवन भी समाप्त हो जाएगा। ऐसा मत सोचना कि जब मौत समाप्त हो जाएगी तो जीवन अमर हो जाएगा। इस भूल में पड़ना ही मत। मौत और जीवन एक ही घटना के दो हिस्से हैं, अन्योन्याश्रित हैं, एक-दूसरे पर निर्भर हैं। तो जब

नींबू अदरक युक्त गन्ने का रस

ये नींबू, अदरक युक्त गन्ने का रस है, जो यूपी के दारोला मेरठ से कई देशों को निर्यात किया जा रहा है। पर हमारे यहां लोग कोकाकोला, पेप्सी और थम्सअप जैसे हानिकारक पेय पदार्थ पीकर गर्व का अनुभव करते हैं। हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली इन विदेशी कंपनियों का बाय बाय कहकर गन्ने का रस और शिकंजी पीना चाहिए। इससे ना सिर्फ हमारा करोड़ो रुपया पेय पदार्थ के नाम पर विदेश जाने से बच जाएगा, वही दुसरी और हमारे देश के ही गरीब भाईयों को रोजगार भी मिलेगा।  एक भारत - श्रेष्ठ भारत नोट- इस पोस्ट का मतलब केवल यह बताना है के हमारे पास ताजा गन्ने का रस आदि आसानी से उपलब्ध है हमे उसका सेवन करना चाहिए , विदेशों मे ऐसी सुविधा नही इसलिए उन्हे बोतलबंद मंगवाना पडता है।